5. परिवार से मिलने वाले दैहिक सुखों की समस्या का समाधान कैसे करें

बाइबल से उद्धृत परमेश्वर के वचन

“यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और बच्‍चों और भाइयों और बहिनों वरन् अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता” (लूका 14:26)

“तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता” (लूका 14:33)

“मैं तुम से सच कहता हूँ कि ऐसा कोई नहीं जिसने परमेश्‍वर के राज्य के लिए घर,या पत्नी, या भाइयों, या माता–पिता, या बाल–बच्‍चों को छोड़ दिया हो; और इस समय कई गुणा अधिक न पाए और आने वाले युग में अनन्त जीवन” (लूका 18:29-30)

अंतिम दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

वे घातक प्रभाव, जो हज़ारों वर्षो की “राष्ट्रवाद की बुलंद भावना” ने मनुष्य के हृदय में गहरे छोड़े हैं, और साथ ही सामंती सोच, जिसके द्वारा लोग बिना किसी स्वतंत्रता के, बिना महत्वाकांक्षा या आगे बढ़ने की इच्छा के, बिना प्रगति की अभिलाषा के, बल्कि नकारात्मक और प्रतिगामी रहने और गुलाम मानसिकता से घिरे होने के कारण बँधे और जकड़े हुए हैं, इत्यादि—इन वस्तुगत कारकों ने मनुष्यजाति के वैचारिक दृष्टिकोण, आदर्शों, नैतिकता और स्वभाव पर अमिट रूप से गंदा और भद्दा प्रभाव छोड़ा है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे मनुष्य आतंक की अँधेरी दुनिया में जी रहे हैं, और उनमें से कोई भी इस दुनिया के पार नहीं जाना चाहता, और उनमें से कोई भी किसी आदर्श दुनिया में जाने के बारे में नहीं सोचता; बल्कि, वे अपने जीवन की सामान्य स्थिति से संतुष्ट हैं, बच्चे पैदा करने और पालने-पोसने, उद्यम करने, पसीना बहाने, अपना रोजमर्रा का काम करने; एक आरामदायक और खुशहाल परिवार के सपने देखने, और दांपत्य प्रेम, नाती-पोतों, अपने अंतिम समय में आनंद के सपने देखने में दिन बिताते हैं और शांति से जीवन जीते हैं...। सैकड़ों-हजारों साल से अब तक लोग इसी तरह से अपना समय व्यर्थ गँवा रहे हैं, कोई पूर्ण जीवन का सृजन नहीं करता, सभी इस अँधेरी दुनिया में केवल एक-दूसरे की हत्या करने के लिए तत्पर हैं, प्रतिष्ठा और लाभ की दौड़ में और एक-दूसरे के प्रति षड्यंत्र करने में संलग्न हैं। किसने कब परमेश्वर की इच्छा जानने की कोशिश की है? क्या किसी ने कभी परमेश्वर के कार्य पर ध्यान दिया है? एक लंबे अरसे से मानवता के सभी अंगों पर अंधकार के प्रभाव ने कब्ज़ा जमा लिया है और वही मानव-प्रकृति बन गए हैं, और इसलिए परमेश्वर के कार्य को करना काफी कठिन हो गया है, यहाँ तक कि जो परमेश्वर ने लोगों को आज सौंपा है, उस पर वे ध्यान भी देना नहीं चाहते।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (3)

कौन वास्तव में पूरी तरह से मेरे लिए खप सकता है और मेरी खातिर अपना सब-कुछ अर्पित कर सकता है? तुम सभी अनमने हो; तुम्हारे विचार इधर-उधर घूमते हैं, घर के बारे में, बाहरी दुनिया के बारे में, भोजन और कपड़ों के बारे में सोचते रहते हैं। इस तथ्य के बावजूद कि तुम यहाँ मेरे सामने हो, मेरे लिए काम कर रहे हो, अपने दिल में तुम अभी भी घर पर मौजूद अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के बारे में सोच रहे हो। क्या ये सभी चीजें तुम्हारी संपत्ति हैं? तुम उन्हें मेरे हाथों में क्यों नहीं सौंप देते? क्या तुम्हें मुझ पर पर्याप्त विश्वास नहीं है? या ऐसा है कि तुम डरते हो कि मैं तुम्हारे लिए अनुचित व्यवस्थाएँ करूँगा? तुम हमेशा अपने दैहिक परिवार के बारे में चिंतित क्यों रहते हो? तुम हमेशा अपने प्रियजनों के लिए विलाप करते रहते हो! क्या तुम्हारे दिल में मेरा कोई निश्चित स्थान है? तुम फिर भी मुझे अपने भीतर प्रभुत्व रखने और अपने पूरे अस्तित्व पर कब्जा करने देने की बात करते हो—ये सभी कपटपूर्ण झूठ हैं! तुम में से कितने लोग कलीसिया के लिए पूरे दिल से समर्पित हो? और तुम में से कौन अपने बारे में नहीं सोचता, बल्कि आज के राज्य की खातिर कार्य कर रहा है? इस बारे में बहुत ध्यानपूर्वक सोचो।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 59

इन सब वर्षों में तुम लोगों ने मेरा अनुसरण किया है, फिर भी तुमने मुझे कभी वफादारी का एक कण भी नहीं दिया है। इसकी बजाय, तुम उन लोगों के इर्दगिर्द घूमते रहे हो, जिनसे तुम प्रेम करते हो और जो चीज़ें तुम्हें प्रसन्न करती हैं—इतना कि हर समय, और हर जगह जहाँ तुम जाते हो, उन्हें अपने हृदय के करीब रखते हो और तुमने कभी भी उन्हें छोड़ा नहीं है। जब भी तुम लोग किसी एक चीज के बारे में, जिससे तुम प्रेम करते हो, उत्सुकता और चाहत से भर जाते हो, तो ऐसा तब होता है जब तुम मेरा अनुसरण कर रहे होते हो, या तब भी जब तुम मेरे वचनों को सुन रहे होते हो। इसलिए मैं कहता हूँ कि जिस वफादारी की माँग मैं तुमसे करता हूँ, उसे तुम अपने “पालतुओं” के प्रति वफादार होने और उन्हें प्रसन्न करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हो। हालाँकि तुम लोग मेरे लिए एक-दो चीजों का त्याग करते हो, पर वह तुम्हारे सर्वस्व का प्रतिनिधित्व नहीं करता, और यह नहीं दर्शाता कि वह मैं हूँ, जिसके प्रति तुम सचमुच वफादार हो। तुम लोग खुद को उन उपक्रमों में संलग्न कर देते हो, जिनके प्रति तुम बहुत गहरा चाव रखते हो : कुछ लोग अपने बेटे-बेटियों के प्रति वफादार हैं, तो अन्य अपने पतियों, पत्नियों, धन-संपत्ति, व्यवसाय, वरिष्ठ अधिकारियों, हैसियत या स्त्रियों के प्रति वफादार हैं। जिन चीजों के प्रति तुम लोग वफादार होते हो, उनसे तुम कभी ऊबते या नाराज नहीं होते; उलटे तुम उन चीजों को ज्यादा बड़ी मात्रा और बेहतर गुणवत्ता में पाने के लिए और अधिक लालायित हो जाते हो, और तुम कभी भी ऐसा करना छोडते नहीं हो। मैं और मेरे वचन हमेशा उन चीजों के पीछे धकेल दिए जाते हैं, जिनके प्रति तुम गहरा चाव रखते हो। और तुम्हारे पास उन्हें आखिरी स्थान पर रखने के सिवा कोई विकल्प नहीं बचता। ऐसे लोग भी हैं जो इस आखिरी स्थान को भी अपनी वफादारी की उन चीजों के लिए छोड़ देते हैं, जिन्हें अभी खोजना बाकी है। उनके दिलों में कभी भी मेरा मामूली-सा भी निशान नहीं रहा है। तुम लोग सोच सकते हो कि मैं तुमसे बहुत ज्यादा अपेक्षा रखता हूँ या तुम पर गलत आरोप लगा रहा हूँ—लेकिन क्या तुमने कभी इस तथ्य पर ध्यान दिया है कि जब तुम खुशी-खुशी अपने परिवार के साथ समय बिता रहे होते हो, तो तुम कभी भी मेरे प्रति वफादार नहीं रहते? ऐसे समय में, क्या तुम्हें इससे तकलीफ नहीं होती? जब तुम्हारा दिल खुशी से भरा होता है, और तुम्हें अपनी मेहनत का फल मिलता है, तब क्या तुम खुद को पर्याप्त सत्य से लैस न करने के कारण निराश महसूस नहीं करते? मेरा अनुमोदन प्राप्त न करने पर तुम लोग कब रोए हो? तुम लोग अपने बेटे-बेटियों के लिए अपना दिमाग खपाते हो और बहुत तकलीफ उठाते हो, फिर भी तुम संतुष्ट नहीं होते; फिर भी तुम यह मानते हो कि तुमने उनके लिए ज्यादा मेहनत नहीं की है, कि तुमने उनके लिए वह सब कुछ नहीं किया है जो तुम कर सकते थे, जबकि मेरे लिए तुम हमेशा से असावधान और लापरवाह रहे हो; मैं केवल तुम्हारी यादों में रहता हूँ, तुम्हारे दिलों में नहीं। मेरा प्रेम और कोशिशें लोगों के द्वारा कभी महसूस नहीं की जातीं और तुमने उनकी कभी कोई कद्र नहीं की। तुम सिर्फ मामूली संक्षिप्त सोच-विचार करते हो, और समझते हो कि यह काफी होगा। यह “वफादारी” वह नहीं है, जिसकी मैंने लंबे समय से कामना की है, बल्कि वह है जो लंबे समय से मेरे लिए घृणास्पद रही है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तुम किसके प्रति वफादार हो?

तुम लोगों के विचारों में हर क्षण मैं या मुझसे आने वाला सत्य नहीं, बल्कि तुम लोगों के पति या पत्नी, बेटे, बेटियाँ, और तुम लोगों के खाने-पीने की चीजें रहती हैं। तुम लोग यही सोचते हो कि तुम और ज्यादा तथा और ऊँचा आनंद कैसे पा सकते हो। लेकिन अपने पेट फटने की हद तक खाकर भी क्या तुम लोग महज लाश ही नहीं हो? यहाँ तक कि जब तुम लोग खुद को बाहर से इतने सुंदर परिधानों से सजा लेते हो, तब भी क्या तुम लोग एक चलती-फिरती निर्जीव लाश नहीं हो? तुम लोग पेट की खातिर तब तक कठिन परिश्रम करते हो, जब तक कि तुम लोगों के बाल सफेद नहीं हो जाते, लेकिन मेरे कार्य के लिए तुममें से कोई बाल-बराबर भी त्याग नहीं करता। तुम लोग अपनी देह और अपने बेटे-बेटियों के लिए लगातार सक्रिय रहते हो, अपने तन को थकाते रहते हो और अपने मस्तिष्क को कष्ट देते रहते हो—लेकिन मेरी इच्छा के लिए तुममें से कोई एक भी चिंता या परवाह नहीं दिखाता। वह क्या है, जो तुम अब भी मुझसे प्राप्त करने की आशा रखते हो?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बुलाए बहुत जाते हैं, पर चुने कुछ ही जाते हैं

जो लोग परमेश्वर के रास्ते पर चलते हैं, उन्हें कम से कम अपना सब कुछ त्यागने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर ने बाइबल में एक बार कहा था, “तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता” (लूका 14:33)। अपने पास जो कुछ भी है, उसे त्यागने से क्या तात्पर्य है? इसका तात्पर्य यह है कि अपने परिवार को त्यागना, अपने कार्य को त्यागना, अपने सभी सांसारिक झंझटों को त्यागना। क्या यह करना आसान है? नहीं, यह बहुत ही कठिन है। ऐसा करने की इच्छाशक्ति न हो तो यह कभी नहीं किया जा सकता। जब किसी व्यक्ति के पास त्यागने की इच्छाशक्ति होती है, तो उसमें स्वाभाविक रूप से कठिनाइयाँ सहने की इच्छाशक्ति होती है। यदि कोई कठिनाइयाँ नहीं सह सकता है, तो वह चाहते हुए भी कुछ त्याग नहीं पाएगा। कुछ ऐसे लोग हैं जो अपने परिवार त्याग चुके हैं और अपने प्रियजनों से दूर हो चुके हैं, पर कुछ दिनों तक अपना कर्तव्य निभाने के बाद उन्हें घर की याद सताने लगती है। यदि वे सच में यह सहन नहीं कर पाते, तो अपने घर का हालचाल लेने के लिए चुपके से वहाँ जाते हैं और फिर अपना कर्तव्य निभाने के लिए वापस आ जाते हैं। कुछ लोग जो अपने कर्तव्य निभाने के लिए अपना घर छोड़ चुके हैं, उन्हें नववर्ष और अन्य छुट्टियों पर अपने प्रियजनों की बहुत याद आती है और जब रात में बाकी सभी लोग सो जाते हैं, तो वे छिपकर रोते हैं। रोने-धोने के बाद वे परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं और काफी बेहतर महसूस करते हैं, जिसके बाद वे अपने कर्तव्य निभाना जारी रखते हैं। हालाँकि ये लोग अपने परिवारों को त्यागने में सक्षम थे, लेकिन वे अत्यधिक पीड़ा सहने में असमर्थ हैं। यदि वे देह के इन संबंधों के लिए अपनी भावनाओं को भी नहीं त्याग पा रहे हैं, तो वे वास्तव में स्वयं को परमेश्वर के लिए कैसे खपा पाएँगे? कुछ लोग अपना सब कुछ त्याग कर परमेश्वर का अनुसरण करने में सक्षम होते हैं। वे अपनी नौकरी और अपने परिवारों को त्याग देते हैं। लेकिन ऐसा करने में उनका लक्ष्य क्या है? कुछ लोग अनुग्रह और आशीष पाने का प्रयास कर रहे हैं और कुछ पतरस की तरह केवल ताज और पुरस्कार की ही इच्छा रखते हैं। कुछ लोग सत्य और जीवन पाने और उद्धार हासिल करने के लिए अपना सब कुछ त्याग देते हैं। तो इनमें से कौन सा लक्ष्य परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है? निस्संदेह, यह सत्य की खोज और जीवन प्राप्त करना है। यह पूर्ण रूप से परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है और यह परमेश्वर में विश्वास करने का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। यदि कोई व्यक्ति सांसारिक वस्तुएँ या धन नहीं त्याग सकता, तो क्या वह सत्य प्राप्त कर पाएगा? एकदम नहीं। ... परमेश्वर के राज्य में तुम केवल तभी प्रवेश कर पाओगे जब तुम परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए अपनी सबसे महत्वपूर्ण चीजों को त्याग पाओगे और अपना कर्तव्य निभाओगे और सत्य तथा जीवन पाने के लिए प्रयास करोगे। परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने का अर्थ क्या है? इसका मतलब है कि तुम अपना सब कुछ त्यागने और परमेश्वर का अनुसरण करने, उनके वचनों पर ध्यान देने और उनकी व्यवस्थाओं के प्रति समर्पित होने, हर चीज में उनकी आज्ञा का पालन करने में सक्षम हो; इसका मतलब है कि वो तुम्हारा प्रभु और तुम्हारा परमेश्वर बन गया है। परमेश्वर के लिए इसका मतलब है कि तुमने उसके राज्य में प्रवेश पा लिया है और तुम पर चाहे कोई भी विपत्ति आए, तुम्हें उसकी सुरक्षा मिलेगी और तुम बच जाओगे, और तुम उसके राज्य के लोगों में से एक होओगे। परमेश्वर तुम्हें अपने अनुयायी के रूप में स्वीकार करेगा या तुम्हें पूर्ण बनाने का वादा करेगा—लेकिन अपने पहले कदम के रूप में तुम्हें यीशु का अनुसरण करना होगा। केवल तभी तुम्हें राज्य के प्रशिक्षण में कोई भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा। यदि तुम यीशु का अनुसरण नहीं करते और परमेश्वर के राज्य के बाहर हो, तो परमेश्वर तुम्हें स्वीकार नहीं करेगा। और यदि परमेश्वर तुम्हें स्वीकार नहीं करता, तो क्या तुम खुद को बचा लिए जाने और परमेश्वर का वादा और उससे पूर्णता पाने की इच्छा के बावजूद यह सब पा सकोगे? तुम नहीं पा सकोगे। यदि तुम परमेश्वर का अनुमोदन पाना चाहते हो, तो तुम्हें सबसे पहले उसके राज्य में प्रवेश करने लायक बनना होगा। यदि तुम सत्य के अनुसरण के लिए अपना सब कुछ त्याग सकते हो, यदि तुम अपना कर्तव्य निभाते हुए सत्य खोज सकते हो, यदि तुम सिद्धांतों के अनुसार कार्य कर सकते हो और यदि तुम्हारे पास सच्ची अनुभवात्मक गवाही है, तो तुम परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने और उसका वादा हासिल करने के योग्य हो। यदि तुम परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए अपना सब कुछ त्याग नहीं सकते, तो तुम न तो उसके राज्य में प्रवेश करने के योग्य हो, और न ही उसके आशीष और वादे के हकदार। बहुत से लोग अपना सब कुछ त्याग कर परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य निभा रहे हैं, फिर भी यह निश्चित नहीं है कि वे सत्य पा सकेंगे। व्यक्ति को सत्य से प्रेम करना चाहिए और उसे प्राप्त कर सकने से पहले उसे स्वीकार करने में सक्षम होना चाहिए। यदि कोई सत्य को पाने का प्रयास नहीं करता है, तो वो इसे पा नहीं सकता। उन लोगों का तो जिक्र ही क्या जो अपने खाली समय में अपने कर्तव्य निभाते हैं—परमेश्वर के कार्य के बारे में उनका अनुभव इतना सीमित है कि उनके लिए सत्य को पाना और भी कठिन होगा। यदि कोई अपना कर्तव्य नहीं निभाता है या सत्य को पाने के लिए प्रयत्नशील नहीं है, तो वह परमेश्वर से उद्धार और पूर्णता प्राप्त करने के अद्भुत अवसर से चूक जाएगा। कुछ लोग परमेश्वर में विश्वास करने का दावा करते हैं, लेकिन अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते और सांसारिक चीजों के पीछे पड़े रहते हैं। क्या यही उनका सब कुछ त्यागना है? यदि परमेश्वर में ऐसे विश्वास करता है, तो क्या वह अंत तक उसका अनुसरण कर पाएगा? प्रभु यीशु के शिष्यों को देखो : उनमें मछुआरे, किसान और एक कर संग्राहक थे। जब प्रभु यीशु ने उन्हें पुकारा और कहा, “मेरे पीछे आओ,” तो उन्होंने अपने काम-काज छोड़ दिए और प्रभु का अनुसरण किया। उन्होंने न तो रोजी-रोटी के मुद्दे पर विचार किया, न ही इस बात पर कि बाद में उनके पास दुनिया में जीवित रहने का कोई रास्ता बचेगा या नहीं और वे तुरंत प्रभु यीशु के पीछे चल पड़े। पतरस ने खुद को पूरे दिल से समर्पित करके अंत तक प्रभु यीशु के आदेश का पालन करते हुए अपना कर्तव्य पूरा किया। उसे अपना पूरा जीवन परमेश्वर का प्रेम पाने में लगाया और अंत में परमेश्वर ने उसे पूर्णता प्रदान की। आज कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपना सब कुछ नहीं त्याग सकते, और, फिर भी वे परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना चाहते हैं। क्या वे केवल सपने नहीं देख रहे हैं?

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन

(भाइयों और बहनों की तरफ से पूछे जाने वाले सवालों के जवाब)

(अपने परिवार के लिए मेरे दिल में जो स्नेह है वह मुझे अभी भी अपना कर्तव्य निभाने से रोकता है। मुझे अक्सर उनकी याद आती है और इसका मेरे कर्तव्य निभाने पर असर पड़ता है। हाल ही में मेरी दशा थोड़ी ठीक हुई है, लेकिन मुझे अभी भी कभी-कभी चिंता होती है कि बड़ा लाल अजगर मुझे डराने के लिए मेरे परिवार के लोगों को गिरफ्तार कर लेगा और मुझे डर है कि मैं तब मजबूती से खड़ा नहीं रह पाऊँगा।) ये डर बेबुनियाद है। जब तुम इन बातों के बारे में सोचते हो, तो तुम्हें इसके हल के लिए सत्य की तलाश करनी चाहिए। तुम्हें यह समझना चाहिए कि तुम जिन भी परिस्थितियों का सामना करते हो, उनका आयोजन और व्यवस्था परमेश्वर ने की है। तुम्हें परमेश्वर को समर्पित होना सीखना चाहिए और सत्य की तलाश करने के काबिल होना चाहिए और हालात का सामना करते हुए मजबूत रहना चाहिए। यह एक सबक है जिसे लोगों को सीखना होगा। तुम्हें अक्सर सोच-विचार करना चाहिए कि इस दौरान तुम परमेश्वर की सिंचाई और चरवाही का कैसा अनुभव कर रहे हो? तुम्हारा असली आध्यात्मिक कद क्या है? एक सृजित इंसान का कर्तव्य तुम्हें कैसे पूरा करना चाहिए? तुम्हें इन बातों को समझना होगा! अगर तुम बड़े लाल अजगर के धमकाने के बारे में सोच सकते हो, तो तुम यह क्यों नहीं सोचते कि सत्य में कैसे प्रवेश किया जाए? तुम सत्य के बारे में सोच-विचार क्यों नहीं करते? (जब ये ख्याल मेरे मन में आते हैं, तो मैं परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ और वादा करता हूँ कि अगर एक दिन मुझे सच में ऐसे हालात का सामना करना पड़ा, तो मैं मृत्यु आने तक परमेश्वर के प्रति सच्चा रहूँगा। लेकिन मुझे डर है कि मैं अपने छोटे आध्यात्मिक कद के साथ ऐसा नहीं कर पाऊँगा।) फिर तुम प्रार्थना करते हो, “परमेश्वर, मुझे डर है कि मैं अपने छोटे आध्यात्मिक कद के साथ ऐसा नहीं कर पाऊँगा। मुझे अत्यधिक डर लग रहा है। कृपया ऐसा न कर। जब मेरा आध्यात्मिक कद होगा तो तू ऐसा कर सकता है।” क्या यह प्रार्थना करने का सही तरीका है? (नहीं।) तुम्हें इस तरह प्रार्थना करनी चाहिए : “परमेश्वर, मैं अभी आध्यात्मिक कद और आस्था में नीचे हूँ, मुझे किसी चीज का सामना करने से डर लगता है; असल में मैं यह नहीं मानता कि सभी मामले और सभी चीजें तेरे हाथों में हैं। मैंने खुद को तेरे हाथों में नहीं सौंपा है; यह कैसा विद्रोह है! मैं तेरी व्यवस्थाओं और आयोजनों को समर्पित होने के लिए तैयार हूँ। तू चाहे जो करे, मेरा दिल तेरी गवाही देने को तैयार है। मैं तुझे अपमानित किए बिना अपनी गवाही पर मजबूती से खड़े रहने को तैयार हूँ। जैसा तू चाहे वैसा कर।” तुम जो कहना चाहते हो और जो तुम्हारी तमन्नाएँ हैं, उन्हें परमेश्वर के सामने रखने की जरूरत है—इसी तरह तुम्हारे अंदर सच्ची आस्था पैदा हो सकती है। अगर तुम इस तरह प्रार्थना करने में भी झिझकते हो, तो तुम्हारी आस्था कितनी कम होगी! तुम्हें अक्सर इसी तरह प्रार्थना करनी चाहिए। भले ही तुम इस तरह से प्रार्थना करते रहो लेकिन यह जरूरी नहीं कि परमेश्वर जवाब देगा। परमेश्वर लोगों पर उनकी ताकत से ज्यादा बोझ नहीं डालता, लेकिन अगर तुम्हारा रवैया और जो तुमने ठाना है वह स्पष्ट है, तो परमेश्वर खुश होगा। जब परमेश्वर खुश होगा तो तुम्हारा दिल इस मामले से परेशान और मजबूर नहीं होगा। “पति, बच्चे, परिवार, संपत्ति जैसी चीजें-ये सब परमेश्वर के हाथ में हैं। उनका कोई मतलब नहीं है। सारी दुनिया परमेश्वर के हाथों में है; क्या मेरा परिवार भी उसके हाथों में नहीं है? मुझे उनके बारे में परेशान होने से क्या फायदा? इसमें मेरी एक नहीं चलती, मैं असमर्थ हूँ और मैं उनकी हिफाजत नहीं कर सकता। उनकी किस्मत और उनके बारे में सब कुछ परमेश्वर के हाथों में है!” तुम्हें परमेश्वर के सामने आने और प्रार्थना करने, मजबूती से संकल्प लेने और परमेश्वर की व्यवस्थाओं के लिए समर्पित होने का मन बनाने के लिए आस्था रखनी होगी। तब तुम्हारे अंदर की दशा बदल जाएगी। तुम्हें फिर कोई परेशानी नहीं होगी और तुम फिर चिंतित महसूस नहीं करोगे। तुम अपने हर काम में बहुत ज्यादा चौकन्ने और शक से भरे नहीं रहोगे। जब बाकी सभी लोग आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं, तुम हमेशा पीछे हटते हो, भागना चाहते हो—क्या यह एक डरपोक का काम नहीं है? जब परमेश्वर के लोग राज्य में अपना कर्तव्य पूरा करते हैं, और सभी सृजित प्राणी सृष्टिकर्ता के सामने अपना कर्तव्य पूरा करते हैं, तो उन्हें परमेश्वर का भय मानने वाले दिल के साथ शांति से आगे बढ़ना चाहिए। उन्हें लड़खड़ाते हुए, पीछे हटते हुए, या डर-डर कर नहीं चलना चाहिए। अगर तुम जानते हो कि यह दशा गलत है, और इसे हल करने के लिए सत्य की तलाश करने की बजाय लगातार इसके बारे में परेशान होते हो, तो तुम इसके आगे लाचार और इससे बँधे हुए हो और तुम अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर पाओगे। तुम एक सृजित प्राणी होने के नाते अपने कर्तव्य को पूरे दिल, पूरे दिमाग और अपनी पूरी ताकत से निभाना चाहते हो, लेकिन क्या तुम ऐसा कर सकते हो? तुम अपना पूरा दिल देने की हद तक नहीं पहुँच सकते क्योंकि तुम्हारा दिल तुम्हारे कर्तव्य पर नहीं है, तुमने ज्यादा से ज्यादा अपने दिल का सिर्फ दसवां हिस्सा ही सुपुर्द किया है। तुम अपने पूरे दिल के बिना अपना सारा दिमाग और अपनी ताकत कैसे लगा सकते हो? तुम्हारा दिल अपने कर्तव्य में नहीं है, और तुम्हारे पास इसे पूरा करने की थोड़ी सी ही इच्छा है। क्या तुम सचमुच अपना कर्तव्य पूरे दिल और दिमाग से पूरा कर सकते हो? तुम्हारे अंदर सत्य का अभ्यास करने का संकल्प नहीं है, इसलिए तुम परिवार और उसके प्रति स्नेह के आगे मजबूर हो। वे तुम्हारे हाथ-पाँव बाँध देंगे; वे तुम्हारी सोच और दिल पर नियंत्रण करेंगे और तुम सत्य और परमेश्वर की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाओगे—तुम चाहोगे लेकिन तुम्हारे अंदर ताकत की कमी रहेगी। इसलिए तुम्हें परमेश्वर के सामने प्रार्थना करनी चाहिए, एक ओर परमेश्वर की इच्छा समझनी चाहिए और साथ ही यह भी जानना चाहिए कि एक सृजित प्राणी के रूप में तुम कहाँ खड़े हो; तुम्हें वह संकल्प और रवैया अपनाना चाहिए जो तुम्हारे पास हो, और उन्हें परमेश्वर के सामने रखना चाहिए। यह वह रवैया है जो तुम्हारे पास होना चाहिए। बाकी लोगों को ये चिंताएँ क्यों नहीं होतीं? क्या तुम्हें लगता है कि बाकी लोगों को परिवार या इस तरह की परेशानियाँ नहीं होतीं? असल में हर किसी को कुछ देह संबंधी और घरेलू झंझट होते हैं, लेकिन कुछ लोग परमेश्वर से प्रार्थना करके और सत्य की तलाश करके उन्हें हल कर पाते हैं। तलाश करने के कुछ समय बाद, वे देह की इन आसक्तियों की असलियत समझ जाते हैं, और उन्हें अपने दिल से निकाल देते हैं, फिर ये चीजें उनके लिए कठिनाइयाँ नहीं रह जातीं, और वे उनके नियंत्रण में या उनके आगे मजबूर नहीं होते। वे चीजें उनके कर्तव्य-निर्वहन को प्रभावित नहीं करतीं और इसलिए वे मुक्त हो जाते हैं। बाइबल में परमेश्वर के वचनों का एक वाक्य है जो कहता है, “तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता” (लूका 14:33)। जो कुछ भी किसी के पास है उसे त्यागना क्या होता है? “सब कुछ” का क्या मतलब है? हैसियत, शोहरत और दौलत, परिवार, दोस्त और संपत्ति जैसी चीजें—ये सभी “सब कुछ” शब्द में शामिल हैं। तो कौन-सी चीजें तुम्हारे दिल में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं? कुछ लोगों के लिए ये चीजें उनके बच्चे हैं, कुछ के लिए उनके माँ-बाप हैं, कुछ के लिए यह संपत्ति है और दूसरों के लिए यह हैसियत, शोहरत और किस्मत है। अगर तुम इन चीजों को सँजोते हो, तो वे तुम पर हावी हो जाएँगी। अगर तुम उन्हें नहीं सँजोते और तुम उन्हें पूरी तरह से छोड़ देते हो, तो वे तुम्हें वश में नहीं कर सकतीं। यह सिर्फ इस बात पर निर्भर है कि उनके प्रति तुम्हारा रवैया कैसा है, और तुम इन चीजों को कैसे सँभालते हो।

तुम्हें यह समझना होगा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि परमेश्वर कब या किस चरण में अपना काम कर रहा है, उसे हमेशा अपने साथ काम करने के लिए कुछ लोगों की जरूरत पड़ती है। इन लोगों का परमेश्वर के कार्य में उसका साथ देना या सुसमाचार फैलाने में मदद करना, उसके द्वारा पहले से निर्धारित है। तो क्या परमेश्वर के पास उस हर एक इंसान के लिए एक आदेश है जिसे वह पहले से निर्धारित करता है? हर किसी का एक मिशन और एक जिम्मेदारी होती है और हर किसी के लिए एक आदेश होता है। जब परमेश्वर तुम्हें एक आदेश देता है तो यह तुम्हारी जिम्मेदारी बन जाती है। तुम्हें यह जिम्मेदारी उठानी होगी, यह तुम्हारा कर्तव्य है। कर्तव्य क्या है? यह वह मिशन है जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है। मिशन क्या है? (परमेश्वर का आदेश इंसान का मिशन है। हर किसी को अपना जीवन परमेश्वर के आदेश को पूरा करने के लिए जीना चाहिए। यह आदेश ही उसके दिल में एकमात्र चीज होनी चाहिए और उसे किसी और चीज के लिए नहीं जीना चाहिए।) परमेश्वर का आदेश इंसान का मिशन है; यह समझ सही है। जो लोग परमेश्वर के होने में विश्वास करते हैं उन्हें परमेश्वर के आदेश को पूरा करने के लिए दुनिया में लाया गया है। अगर तुम इस जीवन में सिर्फ सामाजिक सीढ़ी चढ़ने, पैसा इकट्ठा करने, एक अच्छा जीवन जीने, परिवार के करीब रहने का मजा लेने और शोहरत, पैसों और हैसियत का मजा लेने के पीछे भागते हो—अगर तुम समाज में हैसियत हासिल कर लेते हो, तुम्हारे लिए तुम्हारा परिवार जरूरी हो जाता है और तुम्हारे परिवार में हर कोई सुरक्षित और स्वस्थ है—लेकिन तुम उस मिशन को अनदेखा कर देते हो जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है, क्या इस जीवन का कोई मूल्य है जिसे तुम जी रहे हो? मरने के बाद तुम परमेश्वर को कैसे जवाब दोगे? तुम जवाब नहीं दे पाओगे और यह सबसे बड़ी बगावत है; यह सबसे बड़ा गुनाह है! परमेश्वर के घर में तुममें से कौन है जो इस समय संयोग से अपना कर्तव्य पूरा कर रहा है? तुम अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए चाहे जिस भी पृष्ठभूमि से आए थे, उनमें से कोई भी संयोग से नहीं था। इस कर्तव्य को बिना सोचे समझे सिर्फ कुछ विश्वासियों को खोज लेने से पूरा नहीं किया जा सकता; यह परमेश्वर ने युगों पहले से निर्धारित कर रखा था। किसी चीज के पहले से निर्धारित होने का क्या मतलब है? विशेषतः इसका मतलब क्या है? इसका मतलब यह है कि अपनी पूरी प्रबंधन योजना में, परमेश्वर ने बहुत पहले ही योजना बना ली थी कि तुम धरती पर कितनी बार आओगे, अंत के दिनों के दौरान तुम किस वंश और किस परिवार में पैदा होगे, इस परिवार की परिस्थितियाँ क्या होंगी, तुम मर्द होगे या औरत, तुम्हारी ताकत क्या होगी, तुम्हारी शिक्षा किस स्तर की होगी, तुम कितना साफ-साफ बोलने वाले होगे, तुम्हारी क्षमता कितनी होगी और तुम कैसे दिखोगे। उसने वह उम्र भी तय कर दी थी कि कब तुम परमेश्वर के घर में आओगे और अपना कर्तव्य निभाना शुरू करोगे और तुम कब कौन-सा कर्तव्य निभाओगे। परमेश्वर ने तुम्हारे लिए हर कदम पहले से निर्धारित कर दिया था। जब तुम पैदा भी नहीं हुए थे और जब तुम अपने पिछले कई जीवनों में धरती पर आए थे तो परमेश्वर ने तुम्हारे लिए पहले से ही व्यवस्था की थी कि तुम कार्य के इस आखिरी चरण में क्या कर्तव्य पूरे करोगे। बेशक यह कोई मजाक नहीं है! सच्चाई यह है कि तुम्हें यहाँ धर्मोपदेश सुनने का मौका मिल रहा है, यह भी परमेश्वर द्वारा पहले से निर्धारित था। इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए! इसके अलावा, तुम्हारा कद, तुम्हारा हुलिया, तुम्हारी आँखें कैसी दिखती हैं, तुम्हारी कद-काठी, तुम्हारी सेहत, तुम्हारे जीवन के अनुभव क्या हैं और तुम किसी एक उम्र में कौन-से कर्तव्य निभा सकते हो और तुम्हारे पास किस तरह के गुण और काबिलियत है—ये बहुत पहले परमेश्वर ने तुम्हारे लिए निर्धारित किए थे और बेशक ये अब व्यवस्थित नहीं किए जा रहे। परमेश्वर ने लंबे समय से उन्हें तुम्हारे लिए निर्धारित किया हुआ है जिसका मतलब यह है कि अगर वह तुम्हारा उपयोग करने का इरादा रखता है तो वह तुम्हें यह आदेश और यह मिशन देने से पहले ही तुम्हें तैयार कर चुका होगा। तो क्या तुम्हारा उससे भागना स्वीकार्य है? क्या इसके बारे में तुम्हारा अनमना रहना स्वीकार्य है? दोनों ही स्वीकार्य नहीं हैं; यह परमेश्वर को निराश करने वाली बात होगी! लोगों द्वारा अपना कर्तव्य छोड़ना सबसे खराब प्रकार का विद्रोह है। यह एक घिनौना काम है। परमेश्वर ने तुम्हारे लिए आज तक पहुँचने और तुम्हें यह मिशन सौंपे जाने के लिए अनादि काल से इसे निर्धारित करने के लिए सोच-समझकर और ईमानदारी से काफी मेहनत की है। तो क्या यह मिशन तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है? क्या यह वह नहीं है जो तुम्हारी जिदगी को मूल्यवान बनाता है? अगर तुम उस मिशन को पूरा नहीं करते हो जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है तो तुम अपनी जिदगी का मोल और मतलब खो देते हो; यह ऐसा है जैसे कि तुम बेकार में ही जिए जा रहे हो। परमेश्वर ने तुम्हारे लिए सही स्थितियों, माहौल और पृष्ठभूमि का बंदोबस्त किया। उसने तुम्हें यह क्षमता और काबिलियत दी, तुम्हें इस युग में जीने के लिए तैयार किया और तुम्हें अपने इस कर्तव्य को पूरा करने के लिए जरूरी सभी योग्यताएं हासिल करने के लिए तैयार किया, उसने तुम्हारे लिए यह सब बंदोबस्त किया है और फिर भी तुम इस कर्तव्य को पूरी लगन से नहीं करते हो। तुम लालच का सामना नहीं कर सकते और तुम बच निकलना चुनते हो, हमेशा एक अच्छा जीवन जीने की कोशिश और दुनिया की चीजों का पीछा करते हो। तुम परमेश्वर द्वारा दिए गए तोहफे और क्षमता का इस्तेमाल शैतान की सेवा के लिए करते हो, शैतान के लिए जीते हो। इससे परमेश्वर को कैसा महसूस होता है? तुम्हारे लिए उसकी आशाओं के इस तरह ख़त्म हो जाने से, क्या वह तुम लोगों से घृणा नहीं करेगा? क्या वह तुमसे नफरत नहीं करेगा? वह तुम पर बड़ा क्रोध भड़काएगा। और क्या तब यह मामला खत्म हुआ माना जाएगा? क्या यह उतना आसान हो सकता है जितना तुम सोचते हो? क्या तुम सोचते हो कि अगर तुम इस जीवन में अपना मिशन पूरा नहीं करते तो इन सबका तुम्हारी मृत्यु के साथ अंत हो जाएगा? इसका अंत यहीं नहीं होता; तब तुम्हारी आत्मा खतरे में पड़ जाएगी। तुमने अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया, तुमने परमेश्वर के आदेश को स्वीकार नहीं किया और तुम परमेश्वर की उपस्थिति से भाग गए। हालात डरावने हो गए हैं। तुम कहाँ तक भाग सकते हो? क्या तुम परमेश्वर के हाथों से बच सकते हो? परमेश्वर इस प्रकार के इंसान को कैसे वर्गीकृत करता है? (ये वे लोग हैं जिन्होंने उसके साथ धोखा किया है।) परमेश्वर उन लोगों को कैसे परिभाषित करता है जिन्होंने उसको धोखा दिया है? परमेश्वर उन लोगों को कैसे वर्गीकृत करता है जो उसके न्यायासन से भाग गए हैं? ये वे लोग हैं जो नर्क का दुख भोगेंगे और नष्ट हो जाएँगे। तुम्हारे लिए कभी कोई दूसरा जीवन या पुनर्जन्म नहीं होगा और परमेश्वर तुम्हें कोई दूसरा आदेश नहीं देगा। तुम्हारे लिए अब कोई मिशन नहीं है और तुम्हारे पास उद्धार हासिल करने का कोई मौका नहीं है। यह एक गंभीर समस्या है! परमेश्वर कहेगा : “यह इंसान एक बार मेरी आँखों के सामने से बच कर निकल चुका है, मेरे न्याय के आसन और मेरी उपस्थिति से बच कर निकल चुका है। उन्होंने अपना मिशन पूरा नहीं किया या अपना कर्तव्य पूरा नहीं किया। यहीं उनके जीवन का अंत होता है। यह खत्म हो गया है; इसका अंत हो गया है।” यह कैसी त्रासदी है! तुम्हारा आज परमेश्वर के घर में अपने कर्तव्य को पूरा कर पाना, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक, और चाहे वह बाहरी मुद्दों को संभालना हो या आंतरिक कार्य को, किसी का भी अपना कर्तव्य निभाना संयोग नहीं है। यह तुम्हारी पसंद कैसे हो सकती है? यह सब परमेश्वर द्वारा किया गया है। यह सिर्फ परमेश्वर द्वारा तुम्हें आदेश सौंपे जाने के कारण ही है कि तुम इस तरह प्रेरित हुए हो, तुम्हारे पास मिशन और जिम्मेदारी का एहसास है और तुम इस कर्तव्य को पूरा कर सकते हो। अविश्वासियों में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास अच्छी शक्ल, ज्ञान या प्रतिभा है लेकिन क्या परमेश्वर उन पर कृपा करता है? नहीं, वह नहीं करता। परमेश्वर ने उन्हें नहीं चुना और वह सिर्फ तुम लोगों पर उपकार करता है। उसने अपने प्रबंधन कार्य में तुम सभी को हर प्रकार की भूमिका निभाने, सभी प्रकार के कर्तव्यों को पूरा करने और विभिन्न प्रकार की जिम्मेदारियाँ उठाने का बीड़ा दिया है। जब परमेश्वर की प्रबंधन योजना आखिरकार खत्म हो जाएगी और पूरी कर ली जाएगी तो यह कितनी महिमा और सौभाग्य की बात होगी! तो फिर जब लोग आज अपना कर्तव्य पूरा करते समय थोड़ी कठिनाई सहते हैं; जब उन्हें कुछ चीजें छोड़नी पड़ती हैं, खुद को थोड़ा खपाना पड़ता है और कुछ कीमत चुकानी पड़ती है; जब वे दुनिया में अपनी हैसियत, शोहरत और धन-दौलत खो देते हैं और जब ये सभी चीजें खत्म हो जाती हैं तो ऐसा लगता है जैसे यह सब परमेश्वर ने उनसे छीन लिया है लेकिन उन्होंने कुछ अधिक कीमती और अधिक मूल्यवान चीज हासिल कर ली होती है। लोगों ने परमेश्वर से क्या हासिल किया है? उन्होंने अपने कर्तव्य को पूरा करके सत्य और जीवन हासिल किया है। सिर्फ जब तुमने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है, तुमने परमेश्वर का आदेश पूरा कर लिया है, तुम अपना पूरा जीवन अपने मिशन और उस आदेश के लिए जीते हो जो परमेश्वर ने तुम्हें दिया है, तो तुम्हारे पास एक सुंदर गवाही है और तुम ऐसा जीवन जीते हो जिसका कोई मूल्य है—सिर्फ तभी तुम एक असली इंसान कहला सकते हो! और मैं यह क्यों कहता हूँ कि तुम एक असली इंसान हो? क्योंकि परमेश्वर ने तुम्हें चुना है और तुमसे अपने प्रबंधन के अंतर्गत एक सृजित प्राणी होने के नाते अपना कर्तव्य पूरा करवाया है। यह तुम्हारे जीवन का सबसे बड़ा मूल्य और सबसे बड़ा मतलब है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन

जब तुमने बहुत से उपदेश, बहुत से सत्य और परमेश्वर के बहुत से वचन सुन लिए हैं और तुम्हें पहले ही यह सुनिश्चित कर लिया है कि यह मार्ग सही है और जीवन का सही रास्ता है, तो इस समय तुम्हें किस चीज की आवश्यकता है? तुम्हें परमेश्वर से तुम्हारे लिए उचित वातावरण की व्यवस्था करने के लिए प्रार्थना करनी होगी जो तुम्हारे जीवन के लिए शिक्षाप्रद और सहायक हो और तुम्हें जीवन में आगे बढ़ने में सहायक हो। यह वातावरण शायद बहुत आरामदायक नहीं हो—मनुष्य को कठिनाई का सामना करना होगा और उसे कई चीजों को छोड़ना और त्यागना होगा। इन बातों का अब तक तुम सभी अनुभव कर चुके हो। उदाहरण के लिए, मान लें कि तुम्हें सताया गया और तुम घर लौटने, अपने बच्चों या जीवनसाथी को देखने या उनसे संपर्क करने, अपने रिश्तेदारों या दोस्तों से मिलने या उनसे कोई समाचार प्राप्त नहीं कर पाए। आधी रात को, तुम घर के बारे में सोचने लगोगे : “मेरे पिता कैसे हैं? वह बूढ़े हैं, मैं उनका ख्याल कैसे रखूँ? मेरी माँ की तबीयत खराब है और मुझे नहीं पता कि वह अब कैसी हैं।” क्या तुम सदैव इन मामलों के बारे में नहीं सोचते रहोगे? यदि तुम्हारा मन हमेशा इन बातों को लेकर परेशान रहेगा, तो इसका तुम्हारे काम पर क्या असर पड़ेगा? यदि तुम सांसारिक, दैहिक मामलों में ज्यादा उलझते या चिंतित नहीं होते, तो यह तुम्हारे जीवन की प्रगति के लिए लाभप्रद है। तुम्हारे सोचने और चिंता करने से कोई लाभ नहीं होने वाला; ये सभी मामले परमेश्वर के हाथों में हैं और तुम अपने परिवार के सदस्यों के भाग्य को नहीं बदल सकते। तुम्हें यह समझना चाहिए कि परमेश्वर के विश्वासी के रूप में, तुम्हारी सर्वोच्च प्राथमिकता उसकी इच्छा के प्रति विचारशील होना, अपना कर्तव्य पूरा करना, सच्चा विश्वास हासिल करना, परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश करना, जीवन में विकास करना और सत्य को पाना है। यही सबसे ज्यादा मायने रखता है। ऊपरी ओर से, ऐसा लगता है जैसे लोग दुनिया और अपने परिवारों को त्याग रहे हैं, लेकिन वास्तव में क्या हो रहा है? (परमेश्वर ही इस पर शासन करता है और इसकी व्यवस्था करता है।) यह व्यवस्था परमेश्वर ने की है; वही तुम्हें अपने परिवार से मिलने से रोकता है। इसे और सही ढंग से कहें तो, परमेश्वर तुम्हें उससे वंचित करता है। क्या ये सर्वाधिक व्यावहारिक वचन नहीं हैं? (हैं।) लोग हमेशा कहते हैं कि परमेश्वर हर चीज पर शासन और उसकी व्यवस्था करता है, तो वह इस मामले पर कैसे शासन करता है? वह तुम्हें अपने घर से बाहर ले आता है, तुम्हारे परिवार को ऐसा बोझ नहीं बनने देता जो तुम्हें रोके। तो, वह तुम्हें कहाँ ले जाता है? वह तुम्हें ऐसे माहौल में ले जाता है जहाँ देह के बंधन नहीं हैं, जहाँ तुम अपने प्रियजनों को मिल नहीं पाते। अगर तुम उनके बारे में चिंता करते हो और उनके लिए कुछ करना चाहते हो तो तुम कर नहीं सकोगे और अगर संतानोचित कर्तव्य निभाना चाहते हो, तो नहीं निभा पाओगे। ये अब तुम्हें उलझा नहीं सकते। परमेश्वर तुम्हें इनसे दूर ले जा चुका है, इन सभी बंधनों से वंचित कर चुका है, वरना तुम अभी भी उनके प्रति संतानोचित बने रहते, उनकी सेवा करते और उनके गुलाम बने रहते। परमेश्वर तुम्हें इन सभी बाहरी उलझनों से दूर ले जा रहा है, तो क्या यह अच्छी बात है या बुरी? (यह अच्छी बात है।) यह कुछ अच्छी चीज है और इस पर पछताने की कोई जरूरत नहीं है। चूँकि यह अच्छी बात है, तो लोगों को क्या करना चाहिए? लोगों को यह कहते हुए परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए : “परमेश्वर मुझसे इतना प्रेम करता है!” कोई भी व्यक्ति स्वयं स्नेह के बंधन से बाहर नहीं निकल सकता, क्योंकि सभी लोगों के मन स्नेह की डोर से बंधे होते हैं। वे सभी चाहते हैं कि वे अपने परिवार के साथ एकजुट रहें, उनका पूरा परिवार एक साथ इकट्ठा रहे, हर कोई सकुशल और खुश रहे और हर दिन ऐसे ही, एक-दूसरे से अलग रहे बिना बिताएँ। लेकिन इसका एक बुरा पक्ष भी है। तुम अपने जीवन की सारी ताकत और मेहनत, अपनी जवानी, अपने सर्वोत्तम वर्ष और अपने जीवन के सभी सर्वोत्तम हिस्से उनके लिए भेंट करोगे; तुम अपना पूरा जीवन अपने शरीर, परिवार, प्रियजनों, काम, प्रसिद्धि और भाग्य और तमाम जटिल रिश्तों के लिए दे दोगे और नतीजे में तुम खुद को पूरी तरह नष्ट कर डालोगे। तो, परमेश्वर मनुष्य से कैसे प्रेम करता है? परमेश्वर कहता है : “खुद को इस दलदल में नष्ट मत करो। यदि तुम्हारे दोनों पैर इसमें फँस गए, तो तुम खुद को बाहर नहीं निकाल पाओगे, फिर चाहे कितनी भी कोशिश क्यों न कर लो। तुम्हारे पास आध्यात्मिक कद या बहादुरी नहीं है, आस्था तो बिल्कुल भी नहीं है। मैं खुद तुम लोगों को बाहर निकालूँगा।” परमेश्वर यही करता है और वह तुम्हारे साथ इस पर चर्चा नहीं करता। परमेश्वर लोगों की राय क्यों नहीं पूछता? कुछ लोग कहते हैं : “परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, वह जो चाहता है वही करता है। मनुष्य कीड़े-मकौड़ों की तरह हैं, परमेश्वर की नजर में वे कुछ भी नहीं हैं।” चीजें ऐसी ही हैं, लेकिन क्या परमेश्वर लोगों के साथ इसी तरह व्यवहार करता है? नहीं, ऐसा नहीं है। परमेश्वर बहुत सारे सत्य व्यक्त करता है और इन्हें मनुष्य को उपहार में देता है, जिससे लोगों को अपनी भ्रष्टता से शुद्ध होने और परमेश्वर से एक नया जीवन प्राप्त करने में मदद मिलती है। मनुष्य के लिए परमेश्वर का प्रेम बहुत शानदार है। ये सारी ऐसी चीजें हैं जिन्हें लोग देख सकते हैं। तुम्हारे लिए परमेश्वर के कुछ इरादे हैं, तुम्हें यहाँ लाने का उसका उद्देश्य जीवन में सही रास्ते पर ले जाना है, सार्थक जीवन जीने देना है, यह ऐसा रास्ता है जो तुम खुद नहीं चुन सकते हो। लोगों की दिली इच्छा अपना जीवन सकुशल ढंग से बिताने की होती है और भले ही वे अकूत धन-संपत्ति न कमाएँ, कम से कम वे अपने परिवार के साथ सदा एकजुट रहना चाहते हैं और इसी तरह की घरेलू खुशी का आनंद उठाना चाहते हैं। वे नहीं जानते कि परमेश्वर की इच्छा का ध्यान कैसे रखें, वे यह भी नहीं जानते कि अपने भविष्य की मंजिलों या मानवता को बचाने की परमेश्वर की इच्छा के बारे में कैसे सोचना है। लेकिन परमेश्वर उनकी नासमझी पर ज्यादा ध्यान नहीं देता और उसे उनसे बहुत कुछ कहने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे नासमझ हैं, उनका आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है और ऐसी किसी भी चर्चा से गतिरोध ही पैदा होगा। गतिरोध क्यों पैदा होगा? क्योंकि मानवता को बचाने की परमेश्वर की प्रबंधन योजना जैसा बहुत ही बड़ा मामला ऐसा नहीं है जिसे लोग बस एक-दो वाक्यों की व्याख्या से समझ सकें। चूँकि बात यही है, इसलिए जब तक वह दिन नहीं आ जाता जब लोग अंततः समझने-बूझने लगें, तब तक परमेश्वर निर्णय लेकर सीधे कार्य करता है।

जब परमेश्वर अपने कुछ चुने हुए लोगों को मुख्य भूमि चीन के प्रतिकूल माहौल से बाहर निकालता है, तो इसमें उसके अच्छे इरादे होते हैं, जो अब हर कोई देख सकता है। इस मामले में लोगों को अक्सर कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए और अपने पर अनुग्रह दिखाने के लिए परमेश्वर को धन्यवाद देना चाहिए। तुम उस पारिवारिक माहौल से बाहर आ गए हो, देह के सभी जटिल आपसी संबंधों से अलग हो चुके हो और खुद को सभी सांसारिक और दैहिक बंधनों से मुक्त कर चुके हो। परमेश्वर तुम्हें एक जटिल जाल से निकालकर अपने समक्ष और अपने घर लाया है। परमेश्वर कहता है : “यहाँ शांति है, यह स्थान बहुत अच्छा है और यह तुम्हारे विकास के लिए बहुत ही उपयुक्त है। यहीं परमेश्वर के वचन और मार्गदर्शन हैं, यहीं सत्य शासन करता है। यहीं मानवता को बचाने की परमेश्वर की इच्छा है और उद्धार के कार्य का केंद्र यही है। तो, यहाँ जी भर कर अपना विकास करो।” परमेश्वर तुम्हें इस प्रकार के माहौल में लाता है, एक ऐसा माहौल जिसमें शायद तुम्हारे प्रियजनों का सुख न हो, जहाँ तुम बीमार पड़े तो तुम्हारी देखभाल करने के लिए तुम्हारे बच्चे नहीं होंगे और जहाँ ऐसा कोई नहीं है जिससे तुम अपने दिल की बात कह सको। जब तुम अकेले होते हो और अपने देह की पीड़ा, कठिनाइयों और भविष्य में सामने आने वाली हर चीज के बारे में सोचते हो, तो उस समय अकेलापन महसूस करोगे। तुम अकेलापन क्यों महसूस करोगे? इसका एक वस्तुगत कारण यह है कि लोगों का आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है। और व्यक्तिपरक कारण क्या है? (लोग अपने रक्त-संबंधी प्रियजनों को पूरी तरह छोड़ नहीं पाते।) बिल्कुल सही बात है, लोग उन्हें छोड़ नहीं पाते। जो लोग देह के बंधनों में रहते हैं, वे देह के विभिन्न संबंधों और पारिवारिक बंधनों को सुख के रूप में लेते हैं। उनका मानना है कि लोग अपने प्रियजनों के बिना नहीं रह सकते। तो तुम यह क्यों नहीं सोचते कि तुम मनुष्य की दुनिया में कैसे आए? तुम अकेले आए थे, मूल रूप से तुम्हारा दूसरों से कोई संबंध नहीं था। परमेश्वर एक-एक करके लोगों को यहाँ लाता है; जब तुम आए थे, तो वास्तव में तुम अकेले थे। तब तुमने अकेला महसूस नहीं किया, तो अब जब परमेश्वर तुम्हें यहाँ लाया है, तुम अकेला क्यों महसूस करते हो? तुम्हें लगता है कि तुम्हें किसी ऐसे साथी की कमी खल रही है जिससे तुम दिल की बातें कर सको, चाहे वह तुम्हारे बच्चे या माता-पिता हों, या तुम्हारा जीवनसाथी—पति या पत्नी हो—इसलिए, तुम अकेला महसूस करते हो। फिर, जब तुम अकेलापन महसूस करते हो, तो परमेश्वर के बारे में क्यों नहीं सोचते? क्या परमेश्वर मनुष्य का साथी नहीं है? (हाँ, बिल्कुल है।) जब तुम सबसे अधिक पीड़ा और उदासी महसूस करते हो, तो तुम्हें वास्तव में दिलासा कौन दे सकता है? वास्तव में तुम्हारे कष्ट कौन दूर कर सकता है? (परमेश्वर कर सकता है।) केवल परमेश्वर ही वास्तव में लोगों के कष्ट दूर कर सकता है। यदि तुम बीमार हो और तुम्हारे बच्चे तुम्हारे पास हैं, तुम्हें कुछ न कुछ पिला रहे हैं, तुम्हारी सेवा कर रहे हैं, तो तुम्हें काफी खुशी होगी, लेकिन समय बीतने के साथ तुम्हारे बच्चे तंग आ जाएंगे और कोई भी तुम्हारी सेवा करने को तैयार नहीं होगा। ऐसे समय तुम वास्तव में अकेला महसूस करोगे! तो अब, जब तुम यह सोचते हो कि तुम्हारा कोई संगी-साथी नहीं है, तो क्या यह वाकई सच है? वास्तव में ऐसा नहीं है, क्योंकि परमेश्वर सदैव तुम्हारा साथ दे रहा है! परमेश्वर लोगों को नहीं छोड़ता; वही ऐसा है जिस पर वे भरोसा कर सकते हैं, जिसकी हर समय शरण ले सकते हैं, और जो उनका एकमात्र हमराज है। इसलिए, तुम पर चाहे जो भी कठिनाइयाँ और कष्ट आएँ, तुम्हें चाहे किन्हीं शिकायतों, निराशा और कमजोरी के मामलों का सामना करना पड़े, यदि तुम परमेश्वर के सामने आते हो और फौरन प्रार्थना करते हो, तो उसके वचन तुम्हें दिलासा देंगे और तुम्हारी कठिनाइयों और तमाम तरह की दिक्कतों को दूर करेंगे। ऐसे माहौल में तुम्हारा अकेलापन परमेश्वर के वचनों का अनुभव और सत्य हासिल करने के लिए बुनियादी शर्त बन जाएगा। जैसे-जैसे तुम अनुभव लेते जाओगे, धीरे-धीरे तुम समझने लगोगे : “मैं अपने माता-पिता को छोड़ने के बाद भी अच्छा जीवन जी रही हूँ, अपने पति को छोड़ने के बाद भी संतुष्ट हूँ और अपने बच्चों को छोड़ने के बाद भी मेरा जीवन शांतिपूर्ण और आनंदमय है। मेरा मन अब खाली नहीं हैं। मैं अब लोगों पर भरोसा नहीं करूँगी बल्कि परमेश्वर पर भरोसा करूँगी। वह मेरा पोषण करेगा और हर समय मेरी सहायता करेगा। भले ही मैं उसे छू या देख नहीं सकती, लेकिन मैं जानती हूँ कि वह हर घड़ी और हर जगह मेरे साथ है। जब तक मैं उससे प्रार्थना करती रहूँगी, उसे पुकारती रहूँगी, तब तक वह मुझे प्रेरित करता रहेगा, अपनी इच्छा समझाएगा और उचित मार्ग दिखाएगा।” उस समय, वह वास्तव में तुम्हारा परमेश्वर बन जाएगा और तुम्हारी सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, भाग तीन

अगर तुम अपना हृदय, शरीर और अपना समस्त वास्तविक प्रेम परमेश्वर को समर्पित कर सकते हो, उन्हें उसके सामने रख सकते हो, उसके प्रति पूरी तरह से समर्पण कर सकते हो, और उसकी इच्छा के प्रति पूर्णतः विचारशील हो सकते हो—देह के लिए नहीं, परिवार के लिए नहीं, और अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर के परिवार के हित के लिए, और परमेश्वर के वचन को हर चीज में सिद्धांत और नींव के रूप में ले सकते हो—तो ऐसा करने से तुम्हारे इरादे और दृष्टिकोण सब युक्तिसंगत होंगे, और तब तुम परमेश्वर के सामने ऐसे व्यक्ति होगे, जो उसकी प्रशंसा प्राप्त करता है। जिन लोगों को परमेश्वर पसंद करता है, वे वो लोग हैं जो उसके प्रति अनन्य हैं; वे वो लोग हैं जो केवल उसके प्रति समर्पित हो सकते हैं। जिनसे परमेश्वर घृणा करता है, वे वो लोग हैं जो उसके प्रति उत्साहहीन हैं, और जो उसके विरुद्ध विद्रोह करते हैं। वह उन लोगों से घृणा करता है, जो उस पर विश्वास तो करते हैं और हमेशा उसका आनंद लेना चाहते हैं, लेकिन उसके लिए स्वयं को पूरी तरह से खपा नहीं सकते। वह उन से घृणा करता है जो कहते हैं कि वे उससे प्रेम करते हैं, लेकिन अपने हृदय में उसके विरुद्ध विद्रोह करते हैं; वह उनसे घृणा करता है, जो धोखा देने के लिए भावपूर्ण और लच्छेदार शब्दों का उपयोग करते हैं। जो लोग परमेश्वर के प्रति वास्तव में निष्ठावान नहीं है या जिन्होंने वास्तव में उसके प्रति समर्पण नहीं किया है, वे प्रकृति से विश्वासघाती और अत्यधिक अभिमानी हैं। जो लोग सामान्य, व्यावहारिक परमेश्वर के सामने वास्तव में आज्ञाकारी नहीं हो सकते, वे तो और भी अधिक अभिमानी हैं, और वे विशेष रूप से महादूत के कर्तव्यनिष्ठ वंशज हैं। जो लोग वास्तव में खुद को परमेश्वर के लिए खपाते हैं, वे अपना पूरा अस्तित्व उसे समर्पित कर देते हैं और खुद को उसके सामने रख देते हैं; वे वास्तव में उसके सभी वचनों और कार्य के प्रति समर्पित हो पाते हैं, और उसके वचनों को अभ्यास में लाने में सक्षम होते हैं। वे परमेश्वर के वचनों को स्वीकार कर सकते हैं और उन्हें अपने अस्तित्व की नींव के रूप में लेते हैं, और यह पता लगाने के लिए कि किन हिस्सों का अभ्यास करना है, परमेश्वर के वचनों में इस बात की गंभीरता से खोज करने में सक्षम होते हैं। ऐसे लोग ही होते हैं, जो वास्तव में परमेश्वर के सामने रहते हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर से सचमुच प्रेम करने वाले लोग वे होते हैं जो परमेश्वर की व्यावहारिकता के प्रति पूर्णतः समर्पित हो सकते हैं

मनुष्य को अर्थपूर्ण जीवन जीने का प्रयास अवश्य करना चाहिए और उसे अपनी वर्तमान परिस्थितियों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। पतरस की छवि के अनुरूप अपना जीवन जीने के लिए, उसमें पतरस के ज्ञान और अनुभवों का होना जरूरी है। मनुष्य को ज़्यादा ऊँची और गहन चीजों के लिए अवश्य प्रयास करना चाहिए। उसे परमेश्वर को अधिक गहराई एवं शुद्धता से प्रेम करने का, और एक ऐसा जीवन जीने का प्रयास अवश्य करना चाहिए जिसका कोई मोल हो और जो सार्थक हो। सिर्फ यही जीवन है; तभी मनुष्य पतरस जैसा बन पाएगा। तुम्हें सकारात्मक तरीके से प्रवेश के लिए सक्रिय होने पर ध्यान देना चाहिए, और अधिक गहन, विशिष्ट और व्यावहारिक सत्यों को नजरअंदाज करते हुए क्षणिक आराम के लिए निष्क्रिय होकर पीछे नहीं हट जाना चाहिए। तुम्हारा प्रेम व्यावहारिक होना चाहिए, और तुम्हें जानवरों जैसे इस निकृष्ट और बेपरवाह जीवन को जीने के बजाय स्वतंत्र होने के रास्ते ढूँढ़ने चाहिए। तुम्हें एक ऐसा जीवन जीना चाहिए जो अर्थपूर्ण हो और जिसका कोई मोल हो; तुम्हें अपने-आपको मूर्ख नहीं बनाना चाहिए या अपने जीवन को एक खिलौना नहीं समझना चाहिए। परमेश्वर से प्रेम करने की चाह रखने वाले व्यक्ति के लिए कोई भी सत्य अप्राप्य नहीं है, और ऐसा कोई न्याय नहीं जिस पर वह अटल न रह सके। तुम्हें अपना जीवन कैसे जीना चाहिए? तुम्हें परमेश्वर से कैसे प्रेम करना चाहिए और इस प्रेम का उपयोग करके उसकी इच्छा को कैसे संतुष्ट करना चाहिए? तुम्हारे जीवन में इससे बड़ा कोई मुद्दा नहीं है। सबसे बढ़कर, तुम्हारे अंदर ऐसी आकांक्षा और कर्मठता होनी चाहिए, न कि तुम्हें एक रीढ़विहीन और निर्बल प्राणी की तरह होना चाहिए। तुम्हें सीखना चाहिए कि एक अर्थपूर्ण जीवन का अनुभव कैसे किया जाता है, तुम्हें अर्थपूर्ण सत्यों का अनुभव करना चाहिए, और अपने-आपसे लापरवाही से पेश नहीं आना चाहिए। यह अहसास किए बिना, तुम्हारा जीवन तुम्हारे हाथ से निकल जाएगा; क्या उसके बाद तुम्हें परमेश्वर से प्रेम करने का दूसरा अवसर मिलेगा? क्या मनुष्य मरने के बाद परमेश्वर से प्रेम कर सकता है? तुम्हारे अंदर पतरस के समान ही आकांक्षाएँ और चेतना होनी चाहिए; तुम्हारा जीवन अर्थपूर्ण होना चाहिए, और तुम्हें अपने साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए! एक मनुष्य के रूप में, और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले एक व्यक्ति के रूप में, तुम्हें इस योग्य होना होगा कि तुम बहुत ध्यान से यह विचार कर सको कि तुम्हें अपने जीवन के साथ कैसे पेश आना चाहिए, तुम्हें अपने-आपको परमेश्वर के सम्मुख कैसे अर्पित करना चाहिए, तुममें परमेश्वर के प्रति और अधिक अर्थपूर्ण विश्वास कैसे होना चाहिए और चूँकि तुम परमेश्वर से प्रेम करते हो, तुम्हें उससे कैसे प्रेम करना चाहिए कि वह ज्यादा पवित्र, ज्यादा सुंदर और बेहतर हो। ... तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक गंवारू जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान

आज, तुम मेरी बातों पर विश्वास नहीं करते, और उन पर ध्यान नहीं देते; जब इस कार्य को फैलाने का दिन आएगा, और तुम उसकी संपूर्णता को देखोगे, तब तुम्हें अफसोस होगा, और उस समय तुम भौंचक्के रह जाओगे। आशीषें हैं, फिर भी तुम्हें उनका आनंद लेना नहीं आता, सत्य है, फिर भी तुम्हें उसका अनुसरण करना नहीं आता। क्या तुम अपने-आप पर अवमानना का दोष नहीं लाते? आज, यद्यपि परमेश्वर के कार्य का अगला कदम अभी शुरू होना बाकी है, फिर भी तुमसे जो कुछ अपेक्षित है और तुम्हें जिन्हें जीने के लिए कहा जाता है, उनमें कुछ भी असाधारण नहीं है। इतना सारा कार्य है, इतने सारे सत्य हैं; क्या वे इस योग्य नहीं हैं कि तुम उन्हें जानो? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय तुम्हारी आत्मा को जागृत करने में असमर्थ हैं? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय तुममें खुद के प्रति नफरत पैदा करने में असमर्थ हैं? क्या तुम शैतान के प्रभाव में जी कर, और शांति, आनंद और थोड़े-बहुत दैहिक सुख के साथ जीवन बिताकर संतुष्ट हो? क्या तुम सभी लोगों में सबसे अधिक निम्न नहीं हो? उनसे ज्यादा मूर्ख और कोई नहीं है जिन्होंने उद्धार को देखा तो है लेकिन उसे प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते; वे ऐसे लोग हैं जो पूरी तरह से देह-सुख में लिप्त होकर शैतान का आनंद लेते हैं। तुम्हें लगता है कि परमेश्वर में अपनी आस्था के लिए तुम्‍हें चुनौतियों और क्लेशों या कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा। तुम हमेशा निरर्थक चीजों के पीछे भागते हो, और तुम जीवन के विकास को कोई अहमियत नहीं देते, बल्कि तुम अपने फिजूल के विचारों को सत्य से ज्यादा महत्व देते हो। तुम कितने निकम्‍मे हो! तुम सूअर की तरह जीते हो—तुममें और सूअर और कुत्ते में क्या अंतर है? जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, बल्कि शरीर से प्यार करते हैं, क्या वे सब पूरे जानवर नहीं हैं? क्या वे मरे हुए लोग जिनमें आत्मा नहीं है, चलती-फिरती लाशें नहीं हैं? तुम लोगों के बीच कितने सारे वचन कहे गए हैं? क्या तुम लोगों के बीच केवल थोड़ा-सा ही कार्य किया गया है? मैंने तुम लोगों के बीच कितनी आपूर्ति की है? तो फिर तुमने इसे प्राप्त क्यों नहीं किया? तुम्हें किस बात की शिकायत है? क्या यह बात नहीं है कि तुमने इसलिए कुछ भी प्राप्त नहीं किया है क्योंकि तुम देह से बहुत अधिक प्रेम करते हो? क्योंकि तुम्‍हारे विचार बहुत ज्यादा निरर्थक हैं? क्योंकि तुम बहुत ज्यादा मूर्ख हो? यदि तुम इन आशीषों को प्राप्त करने में असमर्थ हो, तो क्या तुम परमेश्वर को दोष दोगे कि उसने तुम्‍हें नहीं बचाया? तुम परमेश्वर में विश्वास करने के बाद शांति प्राप्त करना चाहते हो—ताकि अपनी संतान को बीमारी से दूर रख सको, अपने पति के लिए एक अच्छी नौकरी पा सको, अपने बेटे के लिए एक अच्छी पत्नी और अपनी बेटी के लिए एक अच्छा पति पा सको, अपने बैल और घोड़े से जमीन की अच्छी जुताई कर पाने की क्षमता और अपनी फसलों के लिए साल भर अच्छा मौसम पा सको। तुम यही सब पाने की कामना करते हो। तुम्‍हारा लक्ष्य केवल सुखी जीवन बिताना है, तुम्‍हारे परिवार में कोई दुर्घटना न हो, आँधी-तूफान तुम्‍हारे पास से होकर गुजर जाएँ, धूल-मिट्टी तुम्‍हारे चेहरे को छू भी न पाए, तुम्‍हारे परिवार की फसलें बाढ़ में न बह जाएं, तुम किसी भी विपत्ति से प्रभावित न हो सको, तुम परमेश्वर के आलिंगन में रहो, एक आरामदायक घरौंदे में रहो। तुम जैसा डरपोक इंसान, जो हमेशा दैहिक सुख के पीछे भागता है—क्या तुम्‍हारे अंदर एक दिल है, क्या तुम्‍हारे अंदर एक आत्मा है? क्या तुम एक पशु नहीं हो? मैं बदले में बिना कुछ मांगे तुम्‍हें एक सत्य मार्ग देता हूँ, फिर भी तुम उसका अनुसरण नहीं करते। क्या तुम उनमें से एक हो जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं? मैं तुम्‍हें एक सच्चा मानवीय जीवन देता हूँ, फिर भी तुम अनुसरण नहीं करते। क्या तुम कुत्ते और सूअर से भिन्न नहीं हो? सूअर मनुष्य के जीवन की कामना नहीं करते, वे शुद्ध होने का प्रयास नहीं करते, और वे नहीं समझते कि जीवन क्या है। प्रतिदिन, उनका काम बस पेट भर खाना और सोना है। मैंने तुम्‍हें सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी तुमने उसे प्राप्त नहीं किया है : तुम्‍हारे हाथ खाली हैं। क्या तुम इस जीवन में एक सूअर का जीवन जीते रहना चाहते हो? ऐसे लोगों के जिंदा रहने का क्या अर्थ है? तुम्‍हारा जीवन घृणित और ग्लानिपूर्ण है, तुम गंदगी और व्यभिचार में जीते हो और किसी लक्ष्य को पाने का प्रयास नहीं करते हो; क्या तुम्‍हारा जीवन अत्यंत निकृष्ट नहीं है? क्या तुम परमेश्वर की ओर देखने का साहस कर सकते हो? यदि तुम इसी तरह अनुभव करते रहे, तो क्या केवल शून्य ही तुम्हारे हाथ नहीं लगेगा? तुम्हें एक सच्चा मार्ग दे दिया गया है, किंतु अंततः तुम उसे प्राप्त कर पाओगे या नहीं, यह तुम्हारी व्यक्तिगत खोज पर निर्भर करता है।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पतरस के अनुभव : ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान

अब वह समय है, जब मेरा आत्मा बड़ी चीजें करता है, और वह समय है, जब मैं अन्यजाति देशों के बीच कार्य आरंभ करता हूँ। इससे भी अधिक, यह वह समय है, जब मैं सभी सृजित प्राणियों को वर्गीकृत करता हूँ और उनमें से प्रत्येक को उसकी संबंधित श्रेणी में रख रहा हूँ, ताकि मेरा कार्य अधिक तेजी से और प्रभावशाली ढंग से आगे बढ़ सके। इसलिए, मैं तुम लोगों से जो माँग करता हूँ, वह अभी भी यही है कि तुम लोग मेरे संपूर्ण कार्य के लिए अपने पूरे अस्तित्व को अर्पित करो; और, इसके अतिरिक्त, तुम उस संपूर्ण कार्य को स्पष्ट रूप से जान लो और उसके बारे में निश्चित हो जाओ, जो मैंने तुम लोगों में किया है, और मेरे कार्य में अपनी पूरी ताक़त लगा दो, ताकि यह और अधिक प्रभावी हो सके। इसे तुम लोगों को अवश्य समझ लेना चाहिए। बहुत पीछे तक देखते हुए, या दैहिक सुख की खोज करते हुए, आपस में लड़ना बंद करो, उससे मेरे कार्य और तुम्हारे बेहतरीन भविष्य में विलंब होगा। ऐसा करने से तुम्हें सुरक्षा मिलनी तो दूर, तुम पर बरबादी और आ जाएगी। क्या यह तुम्हारी मूर्खता नहीं होगी? जिस चीज का तुम आज लालच के साथ आनंद उठा रहे हो, वही तुम्हारे भविष्य को बरबाद कर रही है, जबकि वह दर्द जिसे तुम आज सह रहे हो, वही तुम्हारी सुरक्षा कर रहा है। तुम्हें इन चीजों का स्पष्ट रूप से पता होना चाहिए, ताकि तुम उन प्रलोभनों से दूर रह सको जिनसे बाहर निकलने में तुम्हें मुश्किल होगी, और ताकि तुम घने कोहरे में डगमगाने और सूर्य को खोज पाने में असमर्थ होने से बच सको। जब घना कोहरा छँटेगा, तुम अपने आपको महान दिन के न्याय के मध्य पाओगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्य को बचाने का कार्य भी है

आज, मुझे वह आदमी पसंद है, जो मेरी इच्छा के अनुसार चल सके, जो मेरी ज़िम्मेदारियों का ध्यान रख सके, और जो मेरे लिए सच्चे दिल और ईमानदारी से अपना सब-कुछ दे सके। मैं उन्हें लगातार प्रबुद्ध करूँगा, उन्हें अपने से दूर नहीं जाने दूँगा। मैं अकसर कहता हूँ, “जो ईमानदारी से मेरे लिए स्वयं को खपाता है, मैं निश्चित रूप से तुझे बहुत आशीष दूँगा।” “आशीष” किस चीज़ का संकेत करता है? क्या तुम जानते हो? पवित्र आत्मा के वर्तमान कार्य के संदर्भ में, यह उन ज़िम्मेदारियों का संकेत करता है, जो मैं तुम्हें देता हूँ। वे सभी, जो कलीसिया के लिए ज़िम्मेदारी वहन कर पाते हैं, और जो ईमानदारी से मेरे लिए खुद को अर्पित करते हैं, उनकी ज़िम्मेदारियाँ और उनकी ईमानदारी दोनों आशीष हैं, जो मुझसे आते हैं। इसके अलावा, उनके लिए मेरे प्रकटन भी मेरे आशीष हैं।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 82

अब मैं अपने लोगों के मध्य चल रहा हूँ, और उनके मध्य रह रहा हूँ। आज जो लोग मेरे लिए वास्तविक प्रेम रखते हैं, ऐसे लोग धन्य हैं। धन्य हैं वे लोग जो मुझे समर्पित हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में रहेंगे। धन्य हैं वे लोग जो मुझे जानते हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में शक्ति प्राप्त करेंगे। धन्य हैं वे जो मुझे खोजते हैं, वे निश्चय ही शैतान के बंधनों से स्वतंत्र होंगे और मेरे आशीषों का आनन्द लेंगे। धन्य हैं वे लोग जो खुद की इच्छाओं के खिलाफ विद्रोह करते हैं, वे निश्चय ही मेरे राज्य में प्रवेश करेंगे और मेरे राज्य की प्रचुरता पाएंगे। जो लोग मेरी खातिर दौड़-भाग करते हैं उन्हें मैं याद रखूंगा, जो लोग मेरे लिए व्यय करते हैं, मैं उन्हें आनन्द से गले लगाऊंगा, और जो लोग मुझे भेंट देते हैं, मैं उन्हें आनन्द दूंगा। जो लोग मेरे वचनों में आनन्द प्राप्त करते हैं, उन्हें मैं आशीष दूंगा; वे निश्चय ही ऐसे खम्भे होंगे जो मेरे राज्य में शहतीर को थामेंगे, वे निश्चय ही मेरे घर में अतुलनीय प्रचुरता को प्राप्त करेंगे और उनके साथ कोई तुलना नहीं कर पाएगा। क्या तुम लोगों ने कभी मिलने वाले आशीषों को स्वीकार किया है? क्या कभी तुमने उन वादों को खोजा जो तुम्हारे लिए किए गए थे? तुम लोग निश्चय ही मेरी रोशनी के नेतृत्व में, अंधकार की शक्तियों के गढ़ को तोड़ोगे। तुम अंधकार के मध्य निश्चय ही मार्गदर्शन करने वाली ज्योति को नहीं खोओगे। तुम सब निश्चय ही सम्पूर्ण सृष्टि के स्वामी होगे। तुम लोग निश्चय ही शैतान के सामने विजेता बनोगे। तुम सब निश्चय ही बड़े लाल अजगर के राज्य के पतन के समय, मेरी विजय की गवाही देने के लिए असंख्य लोगों की भीड़ में खड़े होगे। तुम लोग निश्चय ही सिनिम के देश में दृढ़ और अटूट खड़े रहोगे। तुम लोग जो कष्ट सह रहे हो, उनसे तुम मेरे आशीष प्राप्त करोगे और निश्चय ही सकल ब्रह्माण्ड में मेरी महिमा का विस्तार करोगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 19

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परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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