740 जो परमेश्वर का सम्मान करते हैं केवल वही परीक्षाओं में गवाह बन सकते हैं

1 परमेश्वर के प्रति अय्यूब का भय और आज्ञाकारिता मनुष्यजाति के लिए एक उदाहरण है, और उसकी पूर्णता और खरापन मानवता की पराकाष्ठा थी जो मनुष्य को धारण करना ही चाहिए। यद्यपि उसने परमेश्वर को नहीं देखा था, फिर भी उसे एहसास हुआ कि परमेश्वर सचमुच विद्यमान था, और इस एहसास के कारण वह परमेश्वर का भय मानता था, और परमेश्वर के अपने इसी भय के कारण, वह परमेश्वर का आज्ञापालन कर पाया था। उसने परमेश्वर को वह सब जो उसका था लेने की खुली छूट दे दी, फिर भी उसे कोई शिकायत नहीं थी, और वह परमेश्वर के समक्ष गिर गया और उसने उससे कहा कि, बिल्कुल इसी क्षण, यदि परमेश्वर उसकी देह भी ले ले, तो वह, शिकायत किए बिना, ख़ुशी-ख़ुशी उसे ऐसा करने देगा। उसका समूचा आचरण उसकी अचूक और खरी मानवता के कारण था।

2 अपनी निश्छलता, ईमानदारी, और दयालुता के फलस्वरूप, अय्यूब परमेश्वर के अस्तित्व के अपने अहसास और अनुभव में अटल था, और इस स्थापना के आधार पर उसने स्वयं अपने से भारी-भरकम अपेक्षाएँ की थीं और परमेश्वर के समक्ष अपनी सोच, व्यवहार, आचरण और क्रियाकलापों के सिद्धांतों को उसने अन्य बातों के अलावा परमेश्वर द्वारा अपने मार्गदर्शन और परमेश्वर के जो कर्म वह देख चुका था उनके अनुसार आदर्श ढँग से ढाला था। समय के साथ, उसके अनुभवों ने उसमें परमेश्वर का सच्चा और वास्तविक भय उत्पन्न किया और उसे बुराई से दूर रखा। यही उस अखंडता का स्रोत था जिसे अय्यूब ने दृढ़ता से थामे रखा था।

3 अय्यूब सत्यनिष्ठ, निश्छल, और दयालु मानवता से युक्त था, और उसने परमेश्वर का भय मानने, परमेश्वर का आज्ञापालन करने, और बुराई से दूर रहने का, साथ ही इस ज्ञान का कि "यहोवा ने दिया और यहोवा ही ने लिया" का वास्तविक अनुभव प्राप्त किया था। केवल इन्हीं चीज़ों के कारण वह शैतान के ऐसे शातिर हमलों के बीच अपनी गवाही पर डटा रह पाया, और जब परमेश्वर की परीक्षाएँ उसके ऊपर आ पड़ीं, तब केवल उन्हीं के कारण वह परमेश्वर को निराश नहीं करने और परमेश्वर को संतोषजनक उत्तर देने में समर्थ हो पाया।

—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का कार्य, परमेश्वर का स्वभाव और स्वयं परमेश्वर II से रूपांतरित

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