538 इंसान जब शैतान के प्रभाव को त्याग देता है, तो उसे बचा लिया जाता है
1
इंसान की देह शैतान की है, मलिनता और अवज्ञा से भरी हुई है बुरी तरह।
देह-सुख का लालची, देह को ही दर्शाता है।
इसलिए ईश्वर इससे घृणा करता है।
जब तुम ख़ुद को आज़ाद करोगे,
देह की भ्रष्टता से, उसकी पकड़ से तो क्या बचाए नहीं जाओगे?
तुम कर न सको प्रकट ईश्वर को शैतान के अधीन मलिनता में,
न पा सको उसकी विरासत को।
शुद्ध और पूर्ण होकर, तुम पवित्र और सामान्य हो जाओगे,
ईश्वर द्वारा आशीषित होगे, उसे प्रसन्न करोगे।
2
इंसान जब शैतान की मलिनता त्याग देता है, तो वो ईश्वर का उद्धार पाता है।
अगर नहीं त्यागता वो मलिनता और भ्रष्टता,
तो वो शैतान के कब्ज़े में ही रहता है।
जब तुम ख़ुद को आज़ाद करोगे,
देह की भ्रष्टता से, उसकी पकड़ से तो क्या बचाए नहीं जाओगे?
तुम कर न सको प्रकट ईश्वर को शैतान के अधीन मलिनता में,
न पा सको उसकी विरासत को।
शुद्ध और पूर्ण होकर, तुम पवित्र और सामान्य हो जाओगे,
ईश्वर द्वारा आशीषित होगे, उसे प्रसन्न करोगे।
3
धोखा और षड्यंत्र हैं शैतान की चीज़ें;
उद्धार इन चीज़ों से मुक्त करता है तुम्हें।
ईश्वर-कार्य गलत हो नहीं सकता, ये इंसान को अंधेरे से बचाएगा।
जब तुम ख़ुद को आज़ाद करोगे,
देह की भ्रष्टता से, उसकी पकड़ से तो क्या बचाए नहीं जाओगे?
तुम कर न सको प्रकट ईश्वर को शैतान के अधीन मलिनता में,
न पा सको उसकी विरासत को।
शुद्ध और पूर्ण होकर, तुम पवित्र और सामान्य हो जाओगे,
ईश्वर द्वारा आशीषित होगे, उसे प्रसन्न करोगे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2) से रूपांतरित