263 न्याय और ताड़ना में देखा मैंने प्रेम परमेश्वर का
1
हे परमेश्वर!
भले ही कई इम्तहानों से होकर गुज़री हूँ मैं,
और मौत को करीब से देखा है मैंने,
इन सबसे जान पायी हूँ तुझे अच्छी तरह से,
और परम मुक्ति पायी है मैंने।
अगर दूर हो गयी मुझसे तेरी ताड़ना,
तेरा न्याय और तेरा अनुशासन,
तो अंधकार में जियूंगी मैं,
शैतान के अधिकार क्षेत्र में रहूँगी मैं।
2
क्या लाभ हैं इन्सान की देह के?
गर तेरी ताड़ना छोड़ जाये मुझे,
तो होगा ये ऐसा मानो,
तेरे आत्मा ने त्याग दिया मुझे,
मानो तू नहीं अब मेरे साथ में।
गर ले ले तू मेरी आज़ादी,
दे दे मुझे कोई बीमारी,
तो भी जी सकती हूँ मैं ये ज़िन्दगी।
लेकिन अगर तेरा न्याय मुझे छोड़ जाये,
तो ज़िन्दा न रह पाऊँगी मैं।
हे परमेश्वर! मैं करूँ अनुनय तुझसे।
न दूर कर मेरे सुकून मुझसे;
सुकून के कुछ वचन भी काफी हैं।
मैंने आनंद लिया है तेरे प्रेम का,
तुझसे अलग हो नहीं सकती मैं,
तो फिर कैसे तुझसे प्रेम नहीं कर सकती मैं?
3
गर मैं होती तेरी ताड़ना के बिन,
तो तेरा प्रेम दूर हो जाता मुझसे।
शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती मैं,
यह प्रेम बहुत गहरा है मेरे लिए।
तेरे प्रेम के बिना, शैतान के अधीन हो जाती मैं,
तेरे महिमामय मुखड़े को देख न पाती मैं।
ऐसे कैसे जी पाती मैं?
नहीं सह पाती इस अँधेरे जीवन को।
तेरा मेरे साथ होना, है तुझे देखने जैसा,
तो कैसे तुझे कभी छोड़ सकती हूँ मैं?
4
तेरे प्रेम में, दुःख के बहुत आँसू बहाए मैंने।
फिर भी अधिक गहराई है ऐसे जीवन में।
मुझे सम्पन्न बनाता,
बदलने में मदद करता है ये,
पाने देता है वो सत्य जो सभी जीवों में होना चाहिए,
पाने देता है वो सत्य जो सभी जीवों में होना चाहिए,
हे परमेश्वर! मैं करूँ अनुनय तुझसे।
न दूर कर मेरे सुकून मुझसे;
सुकून के कुछ वचन भी काफी हैं।
मैंने आनंद लिया है तेरे प्रेम का,
तुझसे अलग हो नहीं सकती मैं,
तो फिर कैसे तुझसे प्रेम नहीं कर सकती मैं?