264 परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के बिना नहीं रह सकती मैं

1

ईश्वर का न्याय न होता,

तो मैं कभी उससे प्यार न करती,

अब भी शैतान के अधिकार-क्षेत्र में,

उसके वश और हुकूमत में जीती।

कभी एक असल इंसान न बन पाती,

क्योंकि ईश्वर के दिल को संतुष्ट न कर पाती,

कभी खुद को पूरी तरह उसे न दे पाती।


ईश्वर मुझे आशीष न भी दे, खुशी या शांति न हो,

तो भी लगे जैसे मेरे अंदर आग जले,

कोई सुकून न हो, फिर भी खुश हूँ मैं।

क्योंकि ईश्वर की ताड़ना

और न्याय हमेशा मेरे साथ रहते,

इसलिए मैं उसका धार्मिक स्वभाव देख पाती।

जीवन का मूल्य यही है, अर्थ यही है।


ईश्वर की ताड़ना और न्याय ने ही बचाया मुझे।

ईश्वर की ताड़ना और न्याय

के बिना नहीं जी सकती मैं।


2

भले ही उसकी देखभाल और सुरक्षा

अब बन गए हैं निर्मम न्याय,

शाप और प्रहार, फिर भी मुझे इनसे आनंद मिले,

वे मुझे ईश्वर के पास लाएँ, मुझे और

उसके लिए मेरे प्रेम को शुद्ध करें,

जिससे एक प्राणी का कर्तव्य निभा सकूँ मैं,

शैतान के प्रभाव से निकलूँ,

अब उसकी सेवा न करूँ।


मेरे सांसारिक जीवन पर शैतान राज करे।

ईश-न्याय की देखभाल के बिना,

मैं शैतान के अधिकार-क्षेत्र में जीती,

कभी सार्थक जीवन न जीती।

ईश-न्याय अगर सदा मेरे साथ रहे,

तभी मैं उसके द्वारा शुद्ध की जाऊँगी।

उसके कठोर वचन, धार्मिक स्वभाव

मुझे रोशनी में लाते, मैं ईश-आशीष पाती।


ईश्वर की ताड़ना और न्याय ने ही बचाया मुझे।

ईश्वर की ताड़ना और न्याय

के बिना नहीं जी सकती मैं।


3

शैतान से मुक्ति पाना, शुद्ध हो पाना,

ईश्वर के प्रभुत्व में जीना, प्रभुत्व में जीना,

यही सबसे बड़ा आशीष है आज मेरे जीवन में।


ईश्वर की ताड़ना और न्याय ने ही बचाया मुझे।

ईश्वर की ताड़ना और न्याय

के बिना नहीं जी सकती मैं।

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