222 मैंने परमेश्वर की मनोहरता देखी है
1
एक जानी-पहचानी आवाज,
मुझे रह-रह कर बुलाती थी।
मानो सपने से जागा,
मैं ढूँढ़ने लगा उसे जिसने पुकारा मुझे।
आवाज़ नम्र थी पर सख्त भी थी,
कितनी सुंदर छवि लिए थी।
मेरा दिल और आत्मा
मुझसे कहे गए वचनों से छलनी हो गए।
उन्होंने मेरी भ्रष्टता उजागर कर दी,
कहीं छिपने की जगह न छोड़ी।
खुद से तंग आकर, घृणा करके,
मैंने अपने किए पर विचार किया।
रुतबे के लिए ईश्वर से होड़ करके
मैंने दिखाई अपनी नीचता।
आखिर ईश्वर तो ईश्वर है,
वैसे ही जैसे इंसान इंसान है।
मुझे कोई समझ न थी, खुद को न जानता,
बेवकूफ और घमंडी था।
बेशर्म था, खुद को शर्मिंदा कर बैठा;
मेरा दिल पछतावे से भरा था।
शैतान ने मुझे इतनी गहराई तक भ्रष्ट किया था,
कि मैं बहुत दुष्ट हो गया था।
उस दुष्ट के विचारों के ज़हर में डूबा था,
इंसानियत खो गई थी मेरी।
उजागर हो गया कि मैं कितना भ्रष्ट था,
इंसान कहलाने लायक न था।
अगर मैंने अपना भ्रष्ट स्वभाव ठीक न किया,
तो मेरी सेवा निष्फल हो जाएगी।
ईश्वर के बारे में मेरी धारणाएँ थीं,
इसलिए मैंने उसका विरोध किया।
ईश्वर की ताड़ना और न्याय के कारण,
मैं शुद्ध किया और बचाया जाता हूँ।
2
मैं हारा हुआ हूँ, बहुत पीड़ित हूँ,
फिर भी एक हाथ मुझे सहलाए।
मेरे विद्रोह और अन्याय के कारण,
ईश्वर मेरा न्याय करे, मैं जानूँ।
सच में खुद से नफरत करूँ,
इतने समय से प्रभु का अनुयायी रहा
फिर भी सच्चे ईश्वर को न जान सका।
उसे पवित्र और धार्मिक देखकर,
मैं पूरी तरह समर्पण करता हूँ।
ईश्वर का न्याय और ताड़ना,
उसका प्रेम और आशीष हैं।
न्याय के जरिये उसके उद्धार से ही
मैं वो हो पाया हूँ जो मैं आज हूँ।
ईश्वर की वास्तविकता और सर्वशक्तिमत्ता
है पूरी तरह इंसानों को दिखाई जाती।
मैं जानूँ ईश्वर को, वो कितना प्यारा है,
अब मैं रोशनी में जीता हूँ।
ईश्वर इतना प्यारा है,
मैं तहे-दिल से कसम खाता हूँ।
मैं हमेशा उससे प्यार करूँगा,
उसकी गवाही दूँगा, गवाही दूँगा।