प्रश्न 5: बाइबल कहती है, "हर एक व्यक्ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे, क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं। इसलिये जो कोई अधिकार का विरोध करता है, वह परमेश्वर की विधि का सामना करता है, और सामना करनेवाले दण्ड पाएँगे" (रोमियों 13:1-2)। कई सालों तक प्रभु में विश्वास करने के बाद, आपको इस कथन का अर्थ समझना चाहिए। आखिरकार बाइबल परमेश्वर से प्रेरित थी। मेरा मानना है कि हम प्रभु के विश्वासियों को शासकीय अधिकारियों और सत्ताधारियों का आज्ञा-पालन करना चाहिए। मुझे नहीं पता कि आप इससे क्या समझती हैं। चीन में अधिकारियों की अवहेलना करने से काम नहीं बनता। आपको यह जानना होगा कि कम्युनिस्ट पार्टी एक क्रांतिकारी पार्टी है। यदि आप अवज्ञा करती हैं, तो यह आपके जीवन को मिटा देगी। चीन में प्रभु में विश्वास करने के लिए, किसी के लिए भी कम्युनिस्ट पार्टी के संयुक्त मोर्चे को स्वीकार कर थ्री-सेल्फ-चर्च में शामिल होना आवश्यक है। और कोई दूसरा रास्ता नहीं है! प्रभु में हमारा विश्वास क्या, पूरी तरह से एक अच्छे तालमेल वाले परिवार और शांतिपूर्ण जीवन की हमारी चाह के बारे में नहीं है? देखें कि थ्री-सेल्फ-चर्च के लोग कैसे समझदार हैं। हम एक देशभक्त और कलीसिया-प्रेमी संगठन हैं जो परमेश्वर का गुणगान करते और लोगों को लाभ देते हैं। हम न तो सत्तारूढ़ अधिकारियों का अपमान करते हैं और न ही बाइबल को धोखा देते हैं। हम डर के मारे छुपने के बजाय कलीसिया में खुलकर प्रभु की आराधना कर सकते हैं। क्या यह दोनों हाथों में लड्डू रखने जैसा नहीं है?
उत्तर: ऐसा लगता है कि आपके पास पौलुस के वचन की एक अनूठी ही व्याख्या है, जो हमारी समझ से अलग है। जब से मैंने प्रभु में विश्वास किया है, मैंने चीनी कम्युनिस्ट सरकार के दबाव और उत्पीड़न का अनुभव किया है, मैं पौलुस के शब्दों को समझने में असमर्थ हूं "हर एक व्यक्ति शासकीय अधिकारियों के अधीन रहे।" मुझे लगता है कि पौलुस के वचन प्रभु यीशु के निहितार्थ का वर्णन नहीं करते क्योंकि प्रभु यीशु ने कभी भी "शासकीय अधिकारियों के अधीन होने" के बारे में कुछ भी नहीं कहा था। और न ही पवित्र आत्मा ने ऐसा कुछ कहा था। मुझे लगता है कि प्रभु में विश्वास करने का अर्थ प्रभु के वचन का पालन करना होना चाहिए। मनुष्य के शब्दों को सत्य और परमेश्वर के वचन के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। वर्षों की प्रार्थना और खोज के बाद, आखिरकार मैं यह समझ पाई हूं कि सीसीपी एक दुष्ट समूह है जो परमेश्वर का विरोध करता है। यदि कोई सीसीपी का आज्ञा-पालन करता है, तो वह परमेश्वर के साथ विश्वासघात कर रहा है। हम सभी जानते हैं कि सीसीपी एक नास्तिक पार्टी है जो सत्ता प्राप्ति के बाद से खुले तौर पर परमेश्वर को अस्वीकार कर रही है और उनका विरोध कर रही है। यह ईसाई और कैथोलिक धर्म को कुपंथ और बाइबल को कुपंथी पुस्तक कहती है, उसने बाइबल की अनगिनत प्रतियों को ज़ब्त कर जला दिया है, और यहां तक कि वह ईसाइयों को अकारण गिरफ़्तार कर सताती है। अनगिनत मसीहियों को पीट-पीट कर अपाहिज कर दिया या मार डाला गया, और अनगिनत परिवार बिखर गए। सीसीपी आर्थिक प्रोत्साहनों, राजनीतिक दबाव और, अन्य साधनों का उपयोग करके विभिन्न देशों में भागे हुए ईसाइयों को प्रत्यर्पित करने के लिए विदेशों में भी काम करती है। सीसीपी के परमेश्वर के प्रति अन्यायपूर्ण प्रतिरोध और ईसाइयों पर किए गए बेहिसाब अत्याचार घृणा की हर सीमा के परे है! क्या परमेश्वर अपने चुने हुए लोगों को शैतान के ऐसे विकृत और धर्मद्रोही दुष्ट शासन का आज्ञा-पालन करने की अनुमति दे सकते हैं जो इतने खुल्लम-खुल्ला तौर पर परमेश्वर के खिलाफ है? अगर हम सीसीपी का आज्ञा-पालन करते हैं, तो क्या हम शैतान के पक्ष में नहीं खड़े हैं? चूंकि सीसीपी इतने पागलपन से परमेश्वर का विरोध और अनादर करते हुए उन्हें कोसती है, और हमें परमेश्वर पर विश्वास करने से रोकने की कोशिश करती है, वह परमेश्वर की दुश्मन है। अगर हम सीसीपी की आज्ञा मानते हैं, तो क्या हम परमेश्वर का विरोध नहीं कर रहे? पिछली पीढ़ियों के कई ईसाइयों को प्रभु की गवाही देने और उनका अनुसरण करने के लिए सताया और शहीद कर दिया गया। क्या उन्होंने शासकीय अधिकारियों और सत्ताधारियों का पालन किया था? क्या सत्ताधारियों का विरोध करने के लिए उनकी शहादत उनका स्व-प्रेरित दंड हो सकता है? क्या पौलुस ने प्रभु के शहीदों की निंदा की होती? मेरे विचार से पौलुस ने नहीं की होती। तो पौलुस के वचन का आधार क्या था? क्या ऐसा हो सकता है कि पौलुस यह पहचान ही नहीं पाते थे कि अधिकांश सत्ताधारी और अधिकारी ऐसे राक्षस थे जो परमेश्वर का विरोध करते थे? यही कारण है कि मुझे पौलुस के वचन के बारे में संदेह है। मुझे पौलुस के इस वचन को लेकर भी संदेह है कि "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है" क्योंकि न तो प्रभु यीशु और न ही पवित्र आत्मा ने बाइबल के बारे में यह गवाही दी है। इससे मुझे संदेह होता है कि पौलुस के कई वचन मनुष्य के इरादों से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए मैं उन्हें सत्य के रूप में स्वीकार नहीं करती। जब मैं परमेश्वर पर विश्वास करती हूं, तो मैं केवल परमेश्वर के वचन का आज्ञापालन करती हूं और उनके वचनानुसार अनुपालन करने के मार्ग का चुनाव करती हूं। मनुष्य के शब्दों का, जिनमें प्रेरितों के वचन भी शामिल हैं, मैं केवल संदर्भ के रूप में इस्तेमाल करती हूं, भले ही वे बाइबल में लिखित हों। यदि वे परमेश्वर के वचन और सत्य के अनुरूप होंगे, तो ही मैं उन्हें स्वीकार करूँगी। अन्यथा, मैं उन्हें स्वीकार नहीं करूँगी। यह मेरा दृष्टिकोण है।
चीन में हमारे लिए प्रभु में विश्वास करना वास्तव में खतरनाक और मुश्किल है। हालांकि, अगर हम पौलुस के वचन के अनुसार शैतानी सीसीपी शासन की आज्ञा मानते और थ्री-सेल्फ-चर्च का मार्ग अपनाते हैं, तो क्या हमारी शारीरिक सुरक्षा के बावजूद हम प्रभु की प्रशंसा प्राप्त करेंगे? क्या यह प्रभु के लौटने पर हमें स्वर्ग के राज्य में ले जाये जाने की गारंटी देता है? मुझे नहीं लगता कि यह संभव है। प्रभु यीशु ने कहा था: "सकेत फाटक से प्रवेश करो, क्योंकि चौड़ा है वह फाटक और सरल है वह मार्ग जो विनाश को पहुँचाता है; और बहुत से हैं जो उस से प्रवेश करते हैं। क्योंकि सकेत है वह फाटक और कठिन है वह मार्ग जो जीवन को पहुँचाता है; और थोड़े हैं जो उसे पाते हैं" (मत्ती 7:13-14)। "जो कटोरा मैं पीने पर हूँ, तुम पीओगे; और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूँ, उसे लोगे" (मरकुस 10:39)। "और जो अपना क्रूस लेकर मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं। जो अपने प्राण बचाता है, वह उसे खोएगा; और जो मेरे कारण अपना प्राण खोता है, वह उसे पाएगा" (मत्ती 10:38-39)। प्रभु के वचन स्पष्ट रूप से हमें बताते हैं कि हमें सकेत फाटक और कठिन मार्ग से प्रवेश करना चाहिए क्योंकि सकेत है वह फाटक जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है। प्रभु ने यह भी कहा था: "और जो अपना क्रूस लेकर मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं" (मत्ती 10:38)। अगर हम पौलुस के वचन पर चलकर सत्तारूढ़ अधिकारियों की आज्ञा मानते हैं, तो क्या यह सकेत फाटक से प्रवेश करना और कठिन मार्ग को चुनना होगा? क्या यही प्रभु के अनुसरण में क्रूस को उठाना है? प्रभु में विश्वास करते हुए, अगर हम सब दुष्ट शैतान सीसीपी के शासनकाल में सत्ताधारियों और अधिकारियों की आज्ञा मानते हैं, तो क्या हम ऐसे लोग नहीं बन रहे जो परमेश्वर का विरोध करते और उन्हें धोखा देते हैं? तब सुसमाचार फैलाने के लिए, प्रभु की गवाही देने और परमेश्वर की इच्छा का पालन करने के लिए कौन बचा रह जायेगा? क्या हम प्रभु की प्रशंसा प्राप्त करते हुए, इस तरह प्रभु में विश्वास करके एक अच्छी मंजिल और नतीजे तक पहुंच सकते हैं? थ्री-सेल्फ-चर्च चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा जालसाजी से बनाई गई धार्मिक विश्वास का एक पिटारा है जो कि पूरी तरह से चीनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा नियंत्रित है। यह बाइबल के शुद्ध सत्य के बारे में या परमेश्वर से प्रेम करने और उनकी आज्ञा मानने के बारे में नहीं बोलती है। यह केवल देशप्रेमी संगठन के बारे, अपने परिवार को समृद्ध और सफल करने, परमेश्वर को महिमामंडित करने और लोगों का फायदा कराने के बारे में बोलती है। यह इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि थ्री-सेल्फ-चर्च वास्तव में एक झूठी कलीसिया है जो सीसीपी के अधीन एक सहयोगी के रूप में भूमिगत गृह कलीसियाओं को दबाने और उनकी गतिविधियों की निगरानी के लिए समर्पित है। परमेश्वर की गवाही देने के लिए सुसमाचार फैलाने वाले भाइयों और बहनों को गिरफ्तार कराने और सताने के लिए, वे चीनी कम्युनिस्ट सरकार के साथ मिलीभगत भी करते हैं। क्या यह शैतान के राजनीतिक-धार्मिक गठबंधन का साधन नहीं है? मैं पूछना चाहती हूं: जब थ्री-सेल्फ-चर्च के लोग चीनी कम्युनिस्ट सरकार का आज्ञापालन करते हैं, तो वास्तविकता में वे परमेश्वर का आज्ञापालन कर रहे हैं या शैतान का? क्या परमेश्वर उन दासों और कठपुतलियों की प्रशंसा करेंगे जो शैतान की शरण में जाते हैं? क्या परमेश्वर स्वर्ग के राज्य में ऐसे कायरों को स्वीकार करेंगे जो शैतान के प्रभाव क्षेत्र में एक नीच जीवन जीते हैं? अब प्रभु यीशु वापस आ गये हैं। वे देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं जो अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए सत्य को व्यक्त करते हैं ताकि मनुष्य को परमेश्वर के राज्य में लाने के लिए उसका शुद्धिकरण और उद्धार करके उसे पूर्ण किया जा सके। अंत के दिनों के परमेश्वर के प्रकटन और कार्य के बीच, सभी विश्वासियों को एक बड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ता है, जिसमें वे अपने स्वयं के वर्ग के द्वारा उजागर किए जाएंगे, जैसी कि प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की थी: "जैसे नूह के दिन थे, वैसा ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा। …उस समय दो जन खेत में होंगे, एक ले लिया जाएगा और दूसरा छोड़ दिया जाएगा। दो स्त्रियाँ चक्की पीसती रहेंगी, एक ले ली जाएगी और दूसरी छोड़ दी जाएगी" (मत्ती 24:37, 40-41)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य ने सभी लोगों को उनके वर्गों के अनुसार उजागर किया है। गेहूं और जंगली दाने के पौधे, अच्छे सेवक और बुरे सेवक, सत्य से प्रेम करने वाले और उससे घृणा करने वाले, ऐसे सभी लोग अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य से उजागर हुए हैं। अब समय मनुष्य के परिणाम और मंजि़ल को निर्धारित करने का है। अगर सीसीपी शैतानी शासन के दबाव और उत्पीड़न के डर से अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने की हिम्मत किये बिना मनुष्य एक नीच जीवन जीता है तो उसका परिणाम क्या होगा? इस तरह के मनुष्य क्या प्रभु की प्रशंसा प्राप्त कर सकते हैं?
"वार्तालाप" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश