737 मनुष्य के पास परमेश्वर का भय मानने वाला हृदय होना चाहिए
ईश-सार में है प्रेम, वो हर इंसान
के प्रति दया दिखाए।
लेकिन लोग भूल गए कि उसके सार में गरिमा भी है।
ईश्वर के प्रेम का ये मतलब नहीं
इंसान उसका अपमान करे तो उसकी भावनाएँ न भड़कें
उसकी दया का ये मतलब नहीं कि लोगों के प्रति
उसके व्यवहार का कोई सिद्धांत नहीं।
1
ईश्वर जीवित है, असल है।
इसलिए हमें हमेशा उसकी वाणी सुननी चाहिए,
उसके रवैये को ध्यान से देखना चाहिए।
इंसानी कल्पनाओं से उसे परिभाषित मत करो,
उस पर इंसानी सोच मत थोपो,
उसे लोगों से इंसानी व्यवहार करने पर मजबूर मत करो।
ऐसी हरकतों से ईश्वर क्रोधित हो जाएगा,
उसकी गरिमा को चुनौती देना, उसका क्रोध बुलाना है।
जान लो ये मामला बड़ा गंभीर है।
तुम सबसे ईश्वर आग्रह करे कि तुम अपने कार्यों और
अपनी बातों को लेकर सचेत रहो।
ईश्वर के प्रति अपने व्यवहार में
जितने सतर्क होगे, उतना ही अच्छा होगा।
जब ईश्वर का रवैया समझ न आए,
तो बिना सोचे न कुछ बोलो, न करो।
बस यूँ ही कोई ठप्पा न लगाओ।
अचानक किसी निष्कर्ष पर न पहुँचो।
तुम्हें इंतजार करना और खोजना सीखना चाहिए,
जो दिखाए तुम ईश्वर का भय मानते, बुराई से दूर रहते।
2
अगर ये चीज़ें हासिल कर सको तुम,
अगर तुम्हारा रवैया ऐसा हो,
तो ईश्वर तुम्हें दोष नहीं देगा
तुम्हारी मूर्खता और अज्ञानता के लिए
या जो भी होता है उसकी वजह न समझने के लिए।
चूँकि तुम ईश्वर का अपमान करने से डरते हो,
उसकी इच्छा का आदर करते हो,
ईश्वर तुम्हें याद रखेगा,
राह दिखाएगा और प्रबुद्ध करेगा।
तुम्हारी अज्ञानता सहेगा
और समझेगा कि तुम्हें अभी भी बढ़ना है।
पर अगर तुम ईश्वर पर श्रद्धा नहीं रखते,
उसकी आलोचना करते,
उसके विचारों को मन से परिभाषित करते,
तो वो तुम्हें निंदित और दंडित करेगा,
या तुम्हारे नतीजे को लेकर कुछ कहेगा।
3
ईश्वर इस पर जोर दे:
ईश्वर से जो भी आए उसके प्रति सचेत रहो,
अपनी कथनी-करनी का ध्यान रखो।
बोलने से पहले ये सोचो:
क्या मेरे काम से ईश्वर क्रोधित होगा?
क्या ईश्वर के लिए मुझमें श्रद्धा है?
सबसे सरल चीजों में भी इन सवालों के जवाब खोजो,
इनके बारे में ध्यान से सोचो।
अगर इन सिद्धांतों का हमेशा अभ्यास करोगे,
खासकर तब जब कोई बात समझ न आए,
तो ईश्वर राह दिखाएगा, अनुसरण का मार्ग देगा।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, परमेश्वर का स्वभाव और उसका कार्य जो परिणाम हासिल करेगा, उसे कैसे जानें से रूपांतरित