815 तुम्हें ईश्वर की इच्छा समझनी चाहिए
आज तुम्हें जो विरासत मिली है
वो उससे बड़ी है जो मिली
युगों-युगों के नबियों, प्रेरितों को
जो मिली मूसा और पतरस को।
1
आशीष नहीं मिलते एक-दो दिन में;
पाना होता है उन्हें त्याग से।
तुम्हारे पास होना चाहिए शोधित प्रेम,
होनी चाहिए आस्था और सत्य बहुत-से
जिन्हें पाने की अपेक्षा करे ईश्वर तुमसे।
न्याय का सामना करो, अटल रहो,
तुम्हारा ईश-प्रेम स्थायी हो,
दृढ़ संकल्प रखो, अपना स्वभाव बदलो,
अपनी भ्रष्टता दूर करो, ईश-योजना स्वीकारो,
गिला न करो, अंत तक आज्ञा मानो।
इसे पाओ; ये ईश्वर का अंतिम लक्ष्य है,
ईश्वर तुमसे यही चाहे।
सारा ईश-कार्य किया जाता तुम्हारी खातिर,
ताकि बनो तुम उसके दान के योग्य।
ये नहीं ईश-महिमा के लिए
ये है तुम्हारे उद्धार के लिए,
और उन लोगों को पूर्ण करने को
जो बड़े सताये गए हैं अशुद्ध भूमि में।
तुम्हें समझनी चाहिए ईश्वर की इच्छा।
2
ईश्वर देता तुम्हें, तो बदले में माँगेगा भी,
और वो उचित माँग करेगा।
ये दिखाये कि क्यों बार-बार, ईश-कार्य
इतना कठोर और सख्त होता।
इसलिए तुममें आस्था होनी चाहिए।
सारा ईश-कार्य किया जाता तुम्हारी खातिर,
ताकि बनो तुम उसके दान के योग्य।
ये नहीं ईश-महिमा के लिए
ये है तुम्हारे उद्धार के लिए,
और उन लोगों को पूर्ण करने को
जो बड़े सताये गए हैं अशुद्ध भूमि में।
तुम्हें समझनी चाहिए ईश्वर की इच्छा।
3
जिनमें समझ या अंतर्दृष्टि नहीं,
उन अज्ञानी लोगों को वो समझाये :
ईश्वर की परीक्षा न लो, और विरोध न करो।
ईश्वर ने वो पीड़ा झेली जो
किसी इंसान ने नहीं झेली,
इंसान के बदले बहुत अपमान सहा।
और क्या है जो तुम छोड़ नहीं पाते?
ईश्वर की इच्छा से ज़्यादा ज़रूरी क्या है?
ईश-प्रेम से ऊँचा क्या हो सके?
इस गंदी भूमि में ईश-कार्य वैसे ही मुश्किल है,
पर अगर इंसान भी अपराध करे,
तो ईश-कार्य में और समय लगेगा।
ईश्वर पर नहीं है समय का पहरा;
उसकी महिमा और काम आएँ पहले।
ईश्वर अपने काम के लिए कोई भी दाम देगा,
चाहे जितना समय क्यों न लगे।
ये है स्वभाव ईश्वर का :
काम खत्म होने तक वो आराम न करेगा।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है? से रूपांतरित