803  मसीह का सार प्रेम है

1 मनुष्यों के लिए, मसीह का सार प्रेम है; जो लोग उसका अनुसरण करते हैं, उनके लिए यह असीम प्रेम है। अगर उसमें कोई प्यार न होता या दया नहीं होती, तो लोग अभी भी उसका अनुसरण नहीं कर रहे होते। परमेश्वर देहधारण के दरम्यान मानवजाति के लिए जो काम करता है, उसमें उसका सबसे स्पष्ट और प्रमुख सार प्रेम है; यह असीम सहिष्णुता है। यदि प्रेम की जगह वैसा होता जैसी तुम लोग कल्पना करते हो, जब परमेश्वर किसी को मार गिराना चाहता है, तो वह ऐसा करता है; जब वह किसी से घृणा करता है, तो वह उस व्यक्ति को दंड देता है, शाप देता है, उसका न्याय करता है और उसे ताड़ना देता है—वह इतना सख्त है! तब तो वह होगा ही! यदि वह लोगों पर क्रोधित होता है, तो लोग डर से कांप जाएँगे और उसके सामने टिक नहीं पाएँगे...। यह केवल एक तरीक़ा है जिससे परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त किया जाता है। अंततः, अभी भी उसका लक्ष्य उद्धार करना है और उसका प्यार उसके स्वभाव के सभी प्रकटनों में बना रहता है।

2 देह में काम करते समय, परमेश्वर लोगों के सामने जो सबसे अधिक प्रकट करता है, वह प्रेम है। भीतर के प्रेम से करुणा उत्पन्न होती है जो धैर्य है, और तब भी इसका उद्देश्य लोगों को बचाना है। परमेश्वर लोगों पर करुणा दिखाने में सक्षम है क्योंकि उसके पास प्रेम है। यदि परमेश्वर में मात्र नफ़रत होती, रोष होता और वह बिना किसी प्रेम के केवल न्याय करता और ताड़ना ही देता, तो तुम लोगों पर विपत्ति आ पड़ती। क्या वह तुम्हें सच्चाई प्रदान करता? अगर न्याय और ताड़ना दिये जाने के बाद लोगों को शाप दिया जाता, तो फिर आज तक इंसान कैसे जीवित रहता? परमेश्वर की नफ़रत, क्रोध और धार्मिकता, ये सभी, लोगों के इस समूह को उद्धार देने की बुनियाद द्वारा अभिव्यक्त किये जाते हैं। इस स्वभाव में प्रेम और दया के साथ-साथ असीम धैर्य भी शामिल है। इस नफ़रत में कोई और विकल्प न होने का भाव निहित है, और इसमें परमेश्वर की असीम चिंता और मानवजाति के लिये प्रत्याशा शामिल है!

3 परमेश्वर की नफ़रत मानवजाति की भ्रष्टता पर लक्षित है; यह लोगों के विद्रोह और पापों पर लक्षित है, यह एक पक्ष से जुड़ा है और यह प्रेम की बुनियाद पर बना है। जहाँ प्रेम होगा वहीं नफ़रत भी होगी। इंसानों के प्रति परमेश्वर की नफ़रत शैतान के प्रति उसकी नफ़रत से अलग है, क्योंकि परमेश्वर लोगों को बचाता है और वह शैतान को नहीं बचाता है। परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव हमेशा से ही विद्यमान है; उसके पास शुरू से ही क्रोध, धार्मिकता और न्याय रहा है। ये चीजें उस क्षण अस्तित्व में नहीं आईं जिस क्षण परमेश्वर ने उन्हें मानव जाति की ओर निर्देशित किया। वास्तव में, चाहे परमेश्वर धार्मिक हो, प्रतापी हो, या क्रोधी हो, इंसान के उद्धार के लिए वह जो भी कार्य करता है, वह प्रेम के परिणामस्वरूप होता है। उसके पास लोगों के लिए प्रेम के कुछ एक बताशे नहीं हैं; उसके पास सौ प्रतिशत प्रेम है। इससे अगर थोड़ा भी कम होता मनुष्यों को बचाया नहीं जाता। परमेश्वर अपना सारा प्रेम लोगों को समर्पित करता है।

—वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, मसीह का सार प्रेम है से रूपांतरित

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