147 हार्दिक लगाव का गीत
1
एक है देहधारी परमेश्वर।
जो भी वो कहता, जो भी वो करता, सब सत्य है।
उसकी धार्मिकता और बुद्धि से प्रेम है मुझे।
उसे देखना, उसकी बात मानना, एक आशीष है।
उसके दिल और प्यार ने जीत लिया है मुझे।
और नहीं खोजती, अब उसके पीछे दौड़ती हूँ मैं।
उसकी गवाही देने खातिर, सहती हूँ मुश्किलें मैं,
पर ये अच्छा लगता है मुझे।
उसके प्रति वफादार हूँ मैं, अपने प्रियतम से प्रेम है मुझे।
2
मेरा प्यार अब उसका है, और आनंदित हूँ मैं।
अपना सब कुछ देकर, उसके लिए जीना, मेरा जीवन है।
उसे प्यार कर पाना, उसकी सेवा करना, गौरव की बात है।
परमेश्वर की इच्छा है कि हम गवाही दें और घोषणा करें उसके लिए।
उसके विचारों के बारे में सोचती, उसकी परवाह का ख्याल करती,
उसके दिल के प्रति विचारशील हूँ मैं।
उसका अनुमोदन, उसकी संतुष्टि ही मेरी इच्छा है।
परमेश्वर के घर में सेवक बन कर्तव्य पूरा करूँगी मैं।
परमेश्वर की गवाही और उसे महिमा देना, सच्ची ख़ुशी है।
उसके दिल और प्यार ने जीत लिया है मुझे।
और नहीं खोजती, अब उसके पीछे दौड़ती हूँ मैं।