505 सत्य का अभ्यास करने के लिए कष्ट उठाने पर ईश्वर की प्रशंसा प्राप्त होती है

1

जब भी लोग सत्य का अभ्यास करते या शुद्धिकरण से गुज़रते हैं,

जब भी आता ईश-कार्य, वे भयंकर दर्द सहते हैं।

जब भी उनका इम्तहान हो, एक युद्ध अंदर चलता है।

यही वो असली कीमत है जो वो चुकाते हैं।

ईश-वचनों को पढ़ के, सफर करके वो कीमत चुकाते हैं;

यही इंसान को करना चाहिए, यही उनका कर्तव्य है।

अपने अंदर की चीज़ों को : विचारों, योजनाओं,

धारणाओं, मंशाओं को दूर करना सीखना चाहिए।

वे न करें ऐसा अगर, तो कितना कष्ट सह लें,

काम कर लें, व्यर्थ हो जाएगा सब।


तुम्हारी चुकाई कीमत को ईश्वर ने स्वीकारा है या नहीं,

इस बात से तय होता कि तुममें बदलाव आया या नहीं,

तुमने सत्य पर अमल किया या नहीं,

अपनी मंशाओं की ख़िलाफ़त की या नहीं,

ईश-इच्छा की संतुष्टि पाने की खातिर,

उसका ज्ञान, उसके प्रति निष्ठा पाने की खातिर।


2

तुम्हारे भीतर के बदलाव ही तय करेंगे तुम्हारी मुश्किलों की कीमत।

जब बदलेगा स्वभाव, सत्य पर अमल करोगे,

तो तुम्हारे सारे कष्ट ईश्वर की स्वीकृति प्राप्त करेंगे।

अगर न बदला अंदर का स्वभाव तुम्हारा,

तो बाहर चाहे कितनी भी भाग-दौड़ की हो;

तुमने चाहे कितने भी कष्ट सहे हों,

तो व्यर्थ हो जाएगा सब, अगर पुष्टि न की ईश्वर ने।


तुम्हारी चुकाई कीमत को ईश्वर ने स्वीकारा है या नहीं,

इस बात से तय होता कि तुममें बदलाव आया या नहीं,

तुमने सत्य पर अमल किया या नहीं,

अपनी मंशाओं की ख़िलाफ़त की या नहीं,

ईश-इच्छा की संतुष्टि पाने की खातिर,

उसका ज्ञान, उसके प्रति निष्ठा पाने की खातिर।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है से रूपांतरित

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