सावधान! मसीह-विरोधी आपके इर्द-गिर्द हैं!

07 दिसम्बर, 2022

मार्च 2021 में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकारा। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के बहुत-से वचन पढ़े, भाई-बहनों के साथ अक्सर सभा की, और जल्द ही मैं एक समूह अगुआ बन गई। कलीसिया में, क्लॉडिया से मेरी मुलाकात हुई। उसने मुझे बताया कि उसे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में डेढ़ साल से आस्था थी, वह अब सिंचन उपयाजिका थी और बहुत-से सभा-समूहों का प्रबंध करती थी, वह भाई-बहनों का बढ़िया सिंचन कर, उनका साथ देना जानती थी। मेरे साथ भी उसकी अच्छी मित्रता थी। वह हर दिन मेरा अभिवादन कर, मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन भेजती थी, मैं बहुत खुश थी, लगता कि उसे मेरी परवाह थी। उसने मुझसे यह भी कहा कि परमेश्वर में थोड़े दिनो पुरानी आस्था के कारण समूह अगुआ का काम मैं अकेली नहीं संभाल पाऊँगी, अगर मैंने परमेश्वर के वचन नहीं समझे, तो गलतियाँ कर सकती हूँ, इसलिए उसने मुझे हर सभा के बारे में सूचित करने को कहा। उसकी यह बात सुन मुझे बड़ी फिक्र हुई। डर था कि कहीं मैं गलतियाँ न कर डालूँ, इसलिए मैं जब भी सभा बुलाती, उसे सूचित कर देती। मुझे लगा, वह अच्छी संगति करती है और मुझे मदद चाहिए थी, क्योंकि मैं अकेले नहीं कर सकती थी। एक बार मैं सभा में नियमित न आने वाली बहन की मदद को जा रही थी, तब क्लॉडिया मुझसे बोली, "तुमने अभी-अभी विश्वास रखना शुरू किया है, तुम्हें बारीकियाँ नहीं मालूम। तुम नए सदस्य को अकेले सहारा नहीं दे सकोगी। मैं तुम्हें सहारा देने और रास्ता दिखाने के लिए हमेशा पास रहूँगी।" उसने यह भी कहा कि वह मुझे और ज्यादा सिखाना चाहती थी। मैंने सोचा, मेरे मुसीबत में होने पर वह मेरी मदद को आ जाती, इसलिए वह बहुत अच्छी बहन थी।

बाद में कलीसिया को नए अगुआओं और उपयाजकों का चुनाव करना था। चुनाव से पहले क्लॉडिया ने मुझसे कहा, "उच्च अगुआ सभाओं में ठीक से संगति नहीं करतीं। हमें उनके विरोध और प्रतिरोध मेंखड़े होना होगा। हम उन्हें अगुआ नहीं बने रहने दे सकते। अगर तुम्हें लगे कि वे कोई काम ठीक से नहीं कर पातीं, तो वे झूठी हैं। अगर तुम्हें ये चीजें पता चलें, तो मुझे बताना चाहिए। अगर मुझे नहीं बताओगी, तो तुम परमेश्वर को धोखा दोगी।" मैंने कहा, "मुझे नहीं लगता अगुआ में कुछ गलत है। मैं तुम्हारी नहीं मान सकती। मैं वह बात नहीं कह सकती जो मैं नहीं जानती।" साथ ही उसने कहा, "मैं कलीसिया में डेढ़ साल से काम कर रही हूँ, अगुआई करना जानती हूँ, मगर उच्च अगुआ ने मुझे कभी भी अगुआ नहीं चुना। तुम्हें उनके चुनाव का विरोध करना होगा। बस यही तरीका है जिससे तुम कभी अगुआ चुनी जा सकोगी।" मुझे लगा, वह सही नहीं थी। लोग सिर्फ अगुआ बनने की चाह से अगुआ नहीं बन सकते। अगुआओं का चुनाव भाई-बहन सिद्धांतों के आधार पर करते हैं, और अगुआई के लिए चुने जाएँ या नहीं, हम सबको परमेश्वर की व्यवस्थाओं का पालन करना होगा। जल्द ही मुझे एक उपयाजिका चुन लिया गया। क्लॉडिया को पता चला तो आग बबूला हो गई, कहने लगी अगुआओं ने गलती की है। उसने यह भी कहा, "तुम नई सदस्य हो, तुम अभी तक कुछ नहीं जानती। वे तुम्हें उपयाजिका कैसे बना सकते हैं?" उसकी बात सुनकर मैं समझ नहीं पाई कि क्या करूँ। मैं कर्तव्य ठुकराना नहीं चाहती थी, मगर ठीक से न कर पाने की चिंता थी। बड़ी उलझन थी।

बाद में क्लॉडिया ने कलीसिया उपयाजकों, समूह के अगुआओं और मेरा एक समूह बना दिया। कुल मिलाकर दर्जन भर लोग थे, और उसने हमसे कहा कि कभी अगुआओं को न बताएँ। मैंने उससे कारण पूछा, तो उसने बताया, "मैंने यह समूह आप सबको सिखाने के लिए बनाया है। मैं आप सबको और ज्यादा सत्य समझने का रास्ता दिखाकर कर्तव्य बेहतर ढंग से निभाने में आपकी मदद कर सकती हूँ। इस समूह का अगुआओं से कुछ लेना-देना नहीं है। मैं यह आपके भले के लिए कर रही हूँ।" तब मुझे लगा क्लॉडिया बहुत अच्छी थी, वह हमारी मदद को हमेशा बहुत तत्पर रहती थी। मैंने सोचा, "ठीक है, हमारे भले के लिए है, तो अगुआओं को न बताना ठीक ही है।" बाद में क्लॉडिया ने समूह में बताया कि अगुआ बुरे हैं, वे अपना काम करना नहीं जानते, वे सभी झूठे अगुआ हैं, हममें विवेक होना चाहिए, वगैरह-वगैरह। मुझे नहीं लगा, उसकी बात सच थी। हमारे अगुआ स्नेही थे, परमेश्वर के वचन समझने और कर्तव्य निभाने में हमारी मदद करते थे। उसने हमारे अगुआओं के बारे में जो कहा, वह सही नहीं था। तब एक भाई ने उसकी बात काटते हुए कहा, "तुम्हारी बात सच नहीं है, ऐसा कहना गलत है।" लेकिन यह सुनकर क्लॉडिया बहुत नाराज हुई और भाई के साथ बहस में उलझ गई। इसके बाद वह भाई दूसरी बहन को साथ लेकर समूह से अलग हो गया। बाद में मैं क्लॉडिया के पास गई, मैंने कहा, "अगुआओं के पीठ पीछे तुम्हारा उनकी आलोचना करना गलत था। जब भाई ने तुम्हें यह बताया, तो तुम नाराज क्यों हो गई? तुमने उसके साथ बहस क्यों की?" मानना तो दूर, क्लॉडिया और भी गुस्सा हो गई। बाद में मैंने भी समूह छोड़ दिया।

मुझे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि सहकर्मियों की हर बैठक में वह अगुआओं की समस्याओं को लेकर कोंचेगी। सहकर्मियों की एक बैठक में, उसने एक उपयाजिका को समूह में संदेश भेजने के लिए मना लिया कि कलीसिया अगुआ नोएलिया का काम अच्छा नहीं था, कि वह न भाई-बहनों की समस्याएँ सुलझाती थी, न समूह अगुआओं को विकसित करती थी, उसे इस्तीफा दे देना चाहिए, और दूसरे के लिए पद छोड़ देना चाहिए। उच्च अगुआ ने कहा, "नोएलिया कुछ काम इसलिए नहीं कर पाती, क्योंकि कुछ समय पहले वह बीमार थी, मगर आम तौर पर वह अपने कर्तव्य में बहुत जिम्मेदार है।" लेकिन यह सुनकर भी क्लॉडिया ने बात का पीछा नहीं छोड़ा, बोली, "वह अगुआ है, तो उसे हमसे ज्यादा कड़ी मेहनत करनी चाहिए।" फिर उसने यह संदेश भेजा, "मैं कलीसिया के कार्य को बचा रही हूँ। पहले, अगुआ ने यूँ ही काम निपटाने और व्यावहारिक कार्य न करने पर मेरा निपटान किया था। इसने मेरा दिल दुखाया, मगर परमेश्वर को मेरे मन का पता है, सब-कुछ साफ हो जाएगा।" बाद में क्लॉडिया हमेशा कहती कि हमारी कलीसिया अच्छी नहीं थी, हमारे अगुआ झूठे थे, और वह किसी दूसरी कलीसिया में काम करना चाहती थी। सभाओं में मैंने उसे हमेशा यह कहते देखा कि यह ठीक नहीं है, या वह सही नहीं है, और इससे खुद को शांत रखना और परमेश्वर के वचनों पर मनन करना हरेक के लिए नामुमकिन हो जाता। मुझे यह सब बहुत बुरा लगता था, और यह माहौल पसंद नहीं था। कलीसिया को परमेश्वर का आराधना-स्थल होना चाहिए, एक ऐसी जगह जहाँ भाई-बहन परमेश्वर के वचनों का खान-पान करने के लिए इकट्ठा हों, मगर फिलहाल यह पूरी तरह बिगड़ चुका था। मैं अगुआ से इसकी शिकायत करना चाहती थी, मगर मुझे फिक्र थी कि अगर क्लॉडिया को पता चला, तो वह मेरे बारे में राय बना लेगी, और सोचेगी मैं उसके बारे में अफवाहें फैला रही थी। मैं किसी को आहत नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। बाद में क्लॉडिया दोबारा मेरे पास आई, और बोली कि कलीसिया के अगुआ झूठे हैं, और हमें उनके खिलाफ खड़े होना होगा। तब मुझमें विवेक नहीं था, और समझ नहीं आया क्या करूँ, तो मैं बड़ी परेशान हुई। ये बातें मैंने परमेश्वर के सामने रखीं, और उससे मेरी अगुआई करने की विनती की। बाद में मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े। "अपने हृदय को मेरे सम्मुख रखने हेतु पूरा प्रयास करो, मैं तुम्हें आराम दूँगा, तुम्हें शान्ति और आनंद प्रदान करूँगा। दूसरों के सामने एक विशेष तरह का होने का प्रयास मत करो; क्या मुझे संतुष्ट करना अधिक मूल्य और महत्व नहीं रखता? मुझे संतुष्ट करने से क्या तुम और भी अनंत और जीवनपर्यंत शान्ति या आनंद से नहीं भर जाओगे?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद मैं समझ गई। मैंने देखा कि क्लॉडिया कलीसिया के जीवन को बाधित कर रही थी, मगर शिकायत करने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि मुझे अपनी छवि और रुतबे की बड़ी परवाह थी और मैं लोगों का दिल दुखाने से डरती थी। हालाँकि मैंने कभी नहीं सोचा कि अगर मैंने कलीसिया के जीवन की रक्षा न की, तो मैं शैतान की तरफ खड़ी रहूँगी, जिससे परमेश्वर घृणा करता है। मेरे दिल में सुकून और आनंद नहीं था, सिर्फ दर्द और दुख था, सब इसलिए क्योंकि मैंने सत्य पर अमल नहीं किया था। मैं लोगों के साथ अपने रिश्ते नहीं बचा पाई। मुझे परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास कर कलीसिया के जीवन की रक्षा करनी थी। एक दिन उच्च अगुआ ने मुझसे पूछा, कि सभाओं में क्लॉडिया के बर्ताव को लेकर मेरा क्या ख्याल था। मैंने कहा, "उसकी करनी ठीक नहीं थी। ऐसी चीज कलीसिया में नहीं होनी चाहिए।" मैंने क्लॉडिया के कुछ दूसरे बर्ताव के बारे में भी अगुआ को बताया।

बाद में, कलीसिया की अगुआ ने क्लॉडिया को परखने के लिए हमारे साथ संगति की, और हमने परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ा। "धोखा देने और फुसलाने का अर्थ लगभग समान होता है, लेकिन उनके सार और तकनीकों में अंतर होता है। धोखा देना यानी कल्पनाओं का उपयोग करके लोगों को गुमराह करना और उन कल्पनाओं को उनसे ऐसे स्वीकार करवाना मानो वे सत्य हों; फुसलाना यानी जानबूझकर कुछ तकनीकों के उपयोग से लोगों से अपना कहा मनवाना और अपने पथ का अनुसरण करवाना और यह प्रेरणा एकदम स्पष्ट होती है। धोखा देना और फुसलाना सही भाषा का इस्तेमाल करना है ताकि लोग भ्रमित हो जाएँ। यह ऐसी बातें कहना है जो लोगों को एकदम सही लगती हैं, जिन्हें वे आसानी से स्वीकार सकते हैं, जिसके कारण वे अनजाने ही वक्ता पर विश्वास कर उसका अनुसरण करने लगते हैं, उसके अनुरूप बन जाते हैं और फिर उसके पट्ठों के गिरोह का हिस्सा बन जाते हैं। यह सही समूह के लोगों को फुसलाकर अपने गुट में लाना है। संक्षेप में, यदि लोग एक मसीह-विरोधी के ऐसे दृष्टिकोण को स्वीकार कर लेते हैं, तो फिर वे मसीह-विरोधी में विश्वास और उसका अनुसरण करने लगेंगे और उसके बाद तो, वे मसीह-विरोधी की हर बात मानेंगे और उसकी आज्ञा का पालन करेंगे। और अनजाने में, वे मसीह-विरोधी के पीछे-पीछे चलने लगेंगे। क्या उन्हें ठगा नहीं गया है? लोगों को धोखा देने और उन्हें फुसलाने के अपने मकसद को हासिल करने की खातिर, कुछ मसीह-विरोधी अक्सर लोगों से संपर्क करने में और अपनी बातचीत में कुछ विशेष तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। इससे कलीसिया में गुट, दल और वर्ग बन जाते हैं। ... इस तरह, मसीह-विरोधी बिना किसी संकोच के लोगों को धोखा देते और फुसलाते हैं, गुटबाजी करते हैं और दल बनाते हैं। वे इन तकनीकों का उपयोग कलीसिया को विभाजित और नियंत्रित करने के लिए करते हैं। ऐसा करने का उनका मकसद क्या होता है? (स्वतंत्र राज्य बनाना।) एक स्वतंत्र राज्य बनाने का सार क्या होता है? इसका सार अपने आप को मसीह के विरोध में स्थापित करना, परमेश्वर के चुने हुए लोगों पर जबरन प्रभुत्व जमाना और स्वयं को परमेश्वर के विरुद्ध खड़ा करना होता है। क्या यह परमेश्वर से प्रतिस्पर्धा करने का प्रयास नहीं है? (हाँ, है।) हाँ, यह वही है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पाँच : वे लोगों को भ्रमित करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं)। अगुआ ने क्लॉडिया के बर्ताव के बारे में संगति करने के लिए परमेश्वर के वचनों का प्रयोग किया, कहा कि वह दूसरों के सामने खुद की ऐसी गवाही देती थी मानो उसे सत्य की बड़ी समझ हो, और वह अगुआओं और उपयाजकों का काम करने में समर्थ हो, जिससे बहुत-से नए सदस्य धोखा खाकर उसकी आराधना करते थे, और दलील देते कि उसे अगुआ न बनाना अन्याय था। असल में उपयाजिका के अपने समय में वह हमेशा यूँ ही काम निपटा देती थी, कभी व्यावहारिक कार्य नहीं करती थी, और उससे सिंचन पाए बहुत-से नए सदस्य सभाओं में अनियमित रहते थे। उच्च अगुआ की उसके साथ समस्याओं के बारे में संगति के बाद भी, उसने न सिर्फ आत्मचिंतन नहीं किया, बल्कि दावा किया कि उसे न्याय नहीं मिला और परमेश्वर उसके दिल को जानता था। इसके अलावा वह कलीसिया में अक्सर शोहरत और लाभ के लिए होड़ लगाती थी। जब कलीसिया ने उसे अगुआ के रूप में नहीं चुना, तो उसने फैलाना शुरू किया कि चुने हुए अगुआ अनुभवी नहीं हैं, और काम नहीं कर सकते। उच्च अगुआ ने उसके साथ अगुआओं के चुनाव के सिद्धांतों पर संगति की, कहा कि सिर्फ बहुत ज्यादा कार्य अनुभव वालों को नहीं, बल्कि सत्य का अनुसरण करने वाले, अच्छी मानवता वाले लोगों को चुना जाता है, लेकिन उसने बिल्कुल नहीं माना, और चुपचाप एक समूह भी बना डाला। यहाँ उसने अपने सभी करीबी लोगों को इकट्ठा कर लिया, और चुपके से दावा किया कि उच्च अगुआ काम की व्यवस्था नहीं कर पाती हैं, और अगुआ और भाई-बहनों के बीच संघर्ष भड़काया। उसने कुछ उपयाजकों को नए अगुआओं पर हमला करके उन्हें पद छोड़ने को कहने के लिए भी मनाया। उसने कलीसिया में अफरातफरी मचाई, ताकि कलीसिया कार्य सामान्य ढंग से न चले। क्लॉडिया एक मसीह-विरोधी थी जिसने कलीसिया के जीवन को जान-बूझकर बाधित किया और कलीसिया को विभाजित किया। थोड़े समय के लिए मुझे अगुआ की बात मानना मुश्किल लगा। मुझे यकीन नहीं हुआ। क्लॉडिया मसीह-विरोधी कैसे हो सकती थी? ज्यादातर वह अच्छी लगती थी, हमेशा लोगों की मदद को तैयार रहती थी। हालाँकि उसने कुछ काम गलत किए थे, मगर इनसे वह मसीह-विरोधी कैसे हो गई, है न? क्या उसे प्रायश्चित्त का एक और मौका नहीं मिलना चाहिए? ऐसा सोचकर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, उससे उसकी इच्छा समझने की राह दिखाने और क्लॉडिया को परखने में मदद की विनती की।

अगुआ ने जब मसीह-विरोधियों की कथनी और करनी के इरादों और लक्ष्यों पर संगति के लिए परमेश्वर के वचन प्रयोग किए, तब आखिरकार मैं क्लॉडिया को थोड़ा जान सकी। परमेश्वर के वचन कहते हैं, "मसीह-विरोधियों के व्यवहार का सार यह है कि वे लगातार ऐसे बहुत-से साधनों और तरीकों का इस्तेमाल करते रहते हैं, जिनसे वे रुतबा हासिल करने और लोगों को जीतने के अपने लक्ष्य को पूरा कर सकें, ताकि लोग उनका अनुसरण करें और उनका स्तुतिगान करें। संभव है कि अपने दिल की गहराइयों में वे जानबूझकर मानवता को लेकर परमेश्वर से होड़ न कर रहे हों, पर एक बात तो पक्की है, अगर मनुष्यों को लेकर वे परमेश्वर के साथ होड़ न भी कर रहे हों तो भी वे मनुष्यों के बीच रुतबा और शक्ति पाना चाहते हैं। अगर वह दिन आ भी जाए जब उन्हें यह अहसास होने लगे कि वे रुतबे के लिए परमेश्वर के साथ होड़ कर रहे हैं और वे अपने-आप पर थोड़ी-बहुत लगाम लगा लें, तो भी वे रुतबे और प्रतिष्ठा के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं; उन्हें पूरा विश्वास होता है कि वे दूसरों की स्वीकृति और सराहना प्राप्त करके वैध रुतबा प्राप्त कर लेंगे। संक्षेप में, भले ही मसीह-विरोधी जो कुछ भी करते हैं उससे वे अपने कर्तव्यों का पालन करते प्रतीत होते हैं, लेकिन उनका लक्ष्य लोगों को मूर्ख बनाना होता है, उनसे अपनी पूजा और अनुसरण करवाना होता है—ऐसे में, इस तरह अपने कर्तव्य का पालन करना उनके लिए अपना उत्कर्ष करना और गवाही देना होता है। लोगों को नियंत्रित करने और कलीसिया में सत्ता हासिल करने की उनकी महत्वाकांक्षा कभी नहीं बदलती। ऐसे लोग पूरी तरह से मसीह-विरोधी होते हैं। चाहे परमेश्वर कुछ भी कहे या करे, चाहे वह लोगों से कुछ भी चाहता हो, मसीह-विरोधी वह नहीं करते जो उन्हें करना चाहिए या अपने कर्तव्य उस तरह से नहीं निभाते कि वे परमेश्वर के वचनों और जरूरतों के अनुरूप हों, न ही वे उसके कथनों और सत्य को जरा-सा भी समझते हुए शक्ति और रुतबे का मोह ही त्यागते हैं। उनकी महत्वाकांक्षा और वासनाएँ तब भी बनी रहती हैं, उन पर सवार रहती हैं, उनके पूरे अस्तित्व को नियंत्रित करती हैं, उनके व्यवहार और विचारों को निर्देशित करती हैं, और उस रास्ते को तय करती है जिस पर वे चलते हैं। यही एक मसीह-विरोधी का असली रूप है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद पाँच : वे लोगों को भ्रमित करने, फुसलाने, धमकाने और नियंत्रित करने का काम करते हैं)। अगुआ ने संगति की, "मसीह-विरोधियों का खुलासा करनेवाले परमेश्वर के वचनों से, हम देख सकते हैं कि वे परमेश्वर में विश्वास रुतबे और सत्ता में टिके रहने की आकांक्षा पूरी करने के लिए रखते हैं। रुतबा हासिल करने के लिए वे अक्सर खुद का उत्कर्ष कर अपनी ही गवाही देते हैं, ताकि दूसरे उन्हें आदर से देखें और उनकी सराहना करें, या कभी-कभी वे गुट बनाकर भी कलीसिया में फूट डालते हैं। अब हम क्लॉडिया को समझने के लिए मसीह-विरोधियों के बर्ताव का प्रयोग कर सकते हैं। सिंचन उपयाजिका बनाने के बाद से ही वह हमेशा से अगुआ बनना चाहती थी। भाई-बहनों की स्वीकृति पाने के लिए, ताकि वे उसे अगुआ के रूप में चुनें, वह अक्सर उत्कर्षित होकर गवाही देती कि उसका परमेश्वर में लंबे समय से विश्वास है, उसने बहुत-से समूहों की अगुआई की थी, उसे कार्य अनुभव था, और बहुत-से सत्य जानती थी। वह नए सदस्यों पर भी हमले करती, कहती कि वे कुछ भी नहीं समझते, और दावा करती कि उन्हें अपना कर्तव्य ठीक से निभाने के लिए उसकी मदद और सहारा चाहिए, जिससे कुछ लोग उसकी आराधना कर उसकी आज्ञा मानने लगे। जब उसने देखा कि कलीसिया ने उससे कम समय तक परमेश्वर में विश्वास रखने वालों को अगुआओं और उपयाजकों के रूप में चुना, तो वह नाखुश हो गई। उसने कलीसिया में आरोप फैलाए कि ये सब झूठे अगुआ थे, और उसने सबसे इन अगुआओं को ठुकराने, उसका साथ देने, उसकी बात मानने को कहा, ताकि वह अगुआ के रूप में चुनी जा सके। उसने कुछ लोगों को अपनी तरफ खींचा ताकि वे नवनिर्वाचित अगुआओं पर हमले कर उनकी निंदा करें, इससे नवनिर्वाचित अगुआओं ने लाचार और निराश महसूस किया। कलीसिया को परमेश्वर के वचन के खान-पान और परमेश्वर का आराधना-स्थल होना चाहिए, लेकिन क्लॉडिया ने फूट डाली और सबको परेशान किया, जिससे भाई-बहन सामान्य कलीसिया जीवन से वंचित हो गए। उसने रुतबा हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। उसकी प्रकृति और सार विशेष रूप से कपटी और बुरे हैं, वह एक मसीह-विरोधी है जो सत्य से घृणा करती है और परमेश्वर की विरोधी है।" परमेश्वर के वचन पढ़कर और अगुआ की संगति सुनकर, आखिरकार मैं क्लॉडिया को थोड़ा जान पाई। मेरा ख्याल था कि वह दयालु थी, उसमें अपने कर्तव्य और लोगों की मदद करने के प्रति जोश था। मुझे लगता था वह ये सब कलीसिया के भले के लिए करती है। हालाँकि वह हमेशा अगुआओं की पीठ पीछे आलोचना करती थी, और अक्सर भाई-बहनों से झगड़े करती थी, मैं उसकी कथनी और करनी के पीछे के लक्ष्यों और इरादों को नहीं समझ पाई थी। अब मुझे एहसास हो गया था कि क्लॉडिया ये सब अगुआ बनने की खातिर कर रही थी। वह हर दिन मेरा अभिनंदन करती थी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन भेजती थी। उसने मुझे बताया कि वह एक साल से ज्यादा से अपना कर्तव्य निभा रही थी, परमेश्वर के बहुत-से वचन जानती थी, और उसे पवित्र आत्मा का कार्य हासिल था। उसने यह भी कहा कि सभी नवनिर्वाचित सदस्य और उच्च अगुआ झूठे हैं। उसकी सारी कथनी और करनी खुद को उत्कर्षित करने और अगुआओं को नीचा दिखाने के लिए थी, क्योंकि वह चाहती थी कि दूसरे उसे अगुआ के रूप में चुनें। उसने चोरी-छिपे एक समूह बनाया, अगुआओं पर हमले कर उनकी आलोचना की, और सबको अगुआओं को ठुकराने के लिए उकसाया, और जब दूसरों ने उसे गलत बातें कहने के लिए दोष दिया, तो न सिर्फ उसने नहीं माना, प्रायश्चित्त नहीं किया, बल्कि उनसे अंतहीन बहस की। अब मैंने साफ तौर पर देखा कि रुतबा हासिल करने के लिए उसने एक गुट बना लिया था, अगुआओं के साथ संघर्ष भड़काया था, और कलीसिया को बाँटने की कोशिश की थी। वह सच में मसीह-विरोधी थी।

अगुआ ने आगे कहा, "क्लॉडिया के इन कामों के जवाब में, उच्च अगुआ ने उसकी मदद के लिए सत्य से सबंधित सिद्धांतों पर कई बार संगति की, लेकिन उसने बिल्कुल नहीं माना। इसके बजाय उसने कलीसिया में फूट डालना, गुट बनाना और बँटवारा करना जारी रखा, जिससे कलीसिया का कार्य गंभीर रूप से बाधित हुआ।" अगुआ ने हमें परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़कर सुनाया, "भाइयों और बहनों के बीच जो लोग हमेशा अपनी नकारात्मकता का गुबार निकालते रहते हैं, वे शैतान के अनुचर हैं और वे कलीसिया को परेशान करते हैं। ऐसे लोगों को अवश्य ही एक दिन निकाल और हटा दिया जाना चाहिए। ... जो लोग कलीसिया के भीतर विषैली, दुर्भावनापूर्ण बातों का गुबार निकालते हैं, भाइयों और बहनों के बीच अफवाहें व अशांति फैलाते हैं और गुटबाजी करते हैं, तो ऐसे सभी लोगों को कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिए था। अब चूँकि यह परमेश्वर के कार्य का एक भिन्न युग है, इसलिए ऐसे लोग नियंत्रित हैं, क्योंकि उन्हें निश्चित रूप से बाहर निकाला जाना है। शैतान द्वारा भ्रष्ट ऐसे सभी लोगों के स्वभाव भ्रष्ट हैं। कुछ के स्वभाव पूरी तरह से भ्रष्ट हैं, जबकि अन्य लोग इनसे भिन्न हैं : न केवल उनके स्वभाव शैतानी हैं, बल्कि उनकी प्रकृति भी बेहद विद्वेषपूर्ण है। उनके शब्द और कृत्य न केवल उनके भ्रष्ट, शैतानी स्वभाव को प्रकट करते हैं, बल्कि ये लोग असली पैशाचिक शैतान हैं। उनके आचरण से परमेश्वर के कार्य में बाधा पहुंचती है; उनके सभी कृत्य भाई-बहनों को अपने जीवन में प्रवेश करने में व्यवधान उपस्थित करते हैं और कलीसिया के सामान्य कार्यकलापों को क्षति पहुंचाते हैं। आज नहीं तो कल, भेड़ की खाल में छिपे इन भेड़ियों का सफाया किया जाना चाहिए, और शैतान के इन अनुचरों के प्रति एक सख्त और अस्वीकृति का रवैया अपनाया जाना चाहिए। केवल ऐसा करना ही परमेश्वर के पक्ष में खड़ा होना है; और जो ऐसा करने में विफल हैं वे शैतान के साथ कीचड़ में लोट रहे हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, अगुआ ने संगति की, "परमेश्वर के वचन हमें स्पष्ट बताते हैं कि जो लोग कलीसिया में अक्सर नकारात्मकता फैलाते हैं, फूट डालते हैं, और गुट बनाते हैं—वे आदतन बाधा पैदा करते हैं, कभी सकारात्मक भूमिका नहीं निभाते, और प्रायश्चित्त करने से मना करते हैं। ये सब ऐसे लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर त्याग देगा, इन सबको कलीसिया से साफ कर देना चाहिए। यही है परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव। कलीसिया कुकर्मियों के साथ सिद्धांतों के अनुसार पेश आती है। कुछ लोग भ्रष्ट स्वभाव के जरूर होते हैं, मगर सार रूप में वे बुरे नहीं होते। वे सत्य को स्वीकार सकते हैं, और बुराई के बाद, वे संगति करके प्रायश्चित्त कर सकते हैं। कलीसिया ऐसे लोगों को एक और मौका देती है। लेकिन कुछ लोग प्रकृति से ही दुष्ट होते हैं और सत्य को स्वीकार ही नहीं करते। वे अपने साथ सत्य पर संगति करनेवाले से भी घृणा करते हैं, और बाद में भी बुराई करते रहते हैं। वो जो दर्शाते हैं वह भ्रष्टता की क्षणिक अभिव्यक्ति नहीं होती। उनका सार सत्य से घृणा और परमेश्वर से प्रतिरोध का होता है। ये असली मसीह-विरोधी हैं, वे जहाँ भी मिलें, उन्हें निकाल दिया जाता है।" परमेश्वर के वचनों और अगुआ की संगति से मैं समझ गई कि क्लॉडिया भाई-बहनों के बीच हमेशा फूट डालती थी, अगुआओं पर हमले और आलोचना करती थी, कलीसियाई जीवन को बाधित करती थी, और भाई-बहनों को कलीसिया छोड़ उसके पीछे चलने के लिए खींचती थी, इन सबसे वह एक असली मसीह-विरोधी बन गई। पहले मुझमें विवेक नहीं था। मैं सोचती थी, "क्लॉडिया को प्रायश्चित्त का मौका क्यों न दें?" दरअसल, उसे कई बार संगति और मदद मिली थी और बहुत-से मौके दिए गए थे, मगर तब भी उसने सत्य स्वीकार नहीं किया और प्रायश्चित्त करने से मना किया। उसकी प्रकृति सत्य से घृणा करने और परमेश्वर की विरोधी होने की थी। उसे जितने भी मौके मिले, उसने कभी सच्चे दिल से प्रायश्चित्त नहीं किया, इसलिए उसका सफाया जरूरी था। एक बार इसका एहसास होने पर मैं यह सोचे बिना नहीं रह सकी, "परमेश्वर में विश्वास रखने के तुरंत बाद मेरी मुलाकात ऐसे इंसान से कैसे हो गई? मसीह-विरोधी कलीसिया में कैसे प्रकट हो जाते हैं?"

अगुआ ने जब परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े, तब जाकर मैं परमेश्वर की इच्छा समझ सकी। "जब मसीह-विरोधी प्रकट होते हैं और कलीसिया को अस्त-व्यस्त करते हैं, तो यह अच्छी बात है या बुरी बात? (बुरी बात है।) यह बुरी बात कैसे है? क्या परमेश्वर ने गलती कर दी है? क्या परमेश्वर ने ध्यान से नहीं देखा और मसीह-विरोधियों को परमेश्वर के घर में घुसपैठ करने दी? (नहीं।) तो फिर बात क्या है? (परमेश्वर मसीह-विरोधियों को उजागर करता है, ताकि हमारी समझ बढ़े, हम उनकी प्रकृति और सार की असलियत देखना सीखें, शैतान हमें फिर कभी मूर्ख न बना पाए, और हम परमेश्वर के प्रति अपनी गवाही में दृढ़ रह पाएँ। यह हमारे लिए परमेश्वर का उद्धार है।) हम हमेशा बोलते हैं कि शैतान कितना दुष्ट, शातिर, और द्वेषपूर्ण है, कि शैतान सत्य से चिढ़ता और घृणा करता है। क्या तुम इसे देख सकते हो? क्या तुम देख सकते हो कि शैतान आध्यात्मिक दुनिया में क्या करता है? वह कैसे बोलता और कार्य करता है, सत्य और परमेश्वर के प्रति उसका क्या दृष्टिकोण है, उसकी बुराई कहाँ है—तुम इनमें से कुछ नहीं देख सकते। इसलिए, चाहे हम कितना भी कहें कि शैतान दुष्ट है, वह परमेश्वर का प्रतिरोध करता है और सत्य से चिढ़ता है, लेकिन तुम्हारे दिमाग में यह केवल एक कथन होता है। इसकी कोई सच्ची छवि नहीं होती। यह बहुत खोखला और अव्यावहारिक होता है; यह एक व्यावहारिक संदर्भ नहीं हो सकता। लेकिन जब कोई किसी मसीह-विरोधी के संपर्क में आता है, तो वह शैतान का बुरा, शातिर स्वभाव और सत्य से चिढ़ने का उसका सार थोड़ा और अधिक स्पष्ट रूप से देख लेता है, और शैतान के बारे में उसकी समझ थोड़ी और अधिक तीक्ष्ण और व्यावहारिक हो जाती है। इन वास्तविक उदाहरणों और घटनाओं के संपर्क में आए बिना और इन्हें देखे बिना लोगों द्वारा समझे जाने वाले सत्य अस्पष्ट, खोखले और अव्यावहारिक होंगे। लेकिन जब लोग इन मसीह-विरोधियों और दुष्ट लोगों के वास्तविक संपर्क में आते हैं, तो वे देख सकते हैं कि वे किस प्रकार बुराई और परमेश्वर का विरोध करते हैं, और वे शैतान के स्वभाव और सार की पहचान कर सकते हैं। वे देखते हैं कि ये दुष्ट लोग और मसीह-विरोधी देहधारी शैतान हैं—कि वे जीवित शैतान, जीवित दानव हैं। मसीह-विरोधियों और दुष्ट लोगों के संपर्क का ऐसा प्रभाव हो सकता है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद नौ : वे अपना कर्तव्य केवल खुद को अलग दिखाने और अपने हितों और महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए निभाते हैं; वे कभी परमेश्वर के घर के हितों की नहीं सोचते, और अपने व्यक्तिगत यश के बदले उन हितों के साथ धोखा तक कर देते हैं (भाग आठ))। "कलीसिया में मसीह-विरोधी न केवल परमेश्वर का शत्रु होता है, बल्कि परमेश्वर के चुने हुए लोगों का भी शत्रु होता है। अगर तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो तुम्हारे धोखा खाने और उनकी बातों में आ जाने, मसीह-विरोधी के मार्ग पर चलने, और परमेश्वर द्वारा शापित और दंडित किए जाने की संभावना है। अगर ऐसा होता है, तो परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास पूरी तरह से विफल हो गया है। उद्धार प्रदान किए जाने के लिए लोगों में क्या होना चाहिए? पहले, उन्हें कई सत्य समझने चाहिए, और मसीह-विरोधी का सार, स्वभाव और मार्ग पहचानने में सक्षम होना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास करते हुए लोगों की आराधना या अनुसरण न करना सुनिश्चित करने का यह एकमात्र तरीका है, और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करने का भी यही एकमात्र तरीका है। मसीह-विरोधी की पहचान करने में सक्षम लोग ही वास्तव में परमेश्वर में विश्वास कर सकते हैं, उसका अनुसरण कर सकते हैं और उसकी गवाही दे सकते हैं। मसीह-विरोधी की पहचान करना कोई आसान बात नहीं है, इसके लिए उनका सार स्पष्ट रूप से देखने और उनके हर काम के पीछे की साजिशें, चालें और अभिप्रेत लक्ष्य देख पाने की क्षमता होनी आवश्यक है। इस तरह तुम उनसे धोखा नहीं खाओगे या उनके काबू में नहीं आओगे, और तुम अडिग होकर, सुरक्षित रूप से सत्य का अनुसरण कर सकते हो, और सत्य का अनुसरण करने और उद्धार प्राप्त करने के मार्ग पर दृढ़ रह सकते हो। यदि तुम मसीह-विरोधी को नहीं पहचान सकते, तो यह कहा जा सकता है कि तुम एक बड़े ख़तरे में हो, और तुम्हें मसीह-विरोधी द्वारा धोखा देकर अपने कब्जे में किया जा सकता है और तुम्हें शैतान के प्रभाव में जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। ... इसलिए, यदि तुम उस जगह पहुँचना चाहते हो जहाँ पर तुम्हें उद्धार प्राप्त हो सके, तो पहली परीक्षा जो तुम्हें पास करनी होगी वह है शैतान की पहचान करने में सक्षम होना, और तुम्हारे अंदर शैतान के विरुद्ध खड़ा होने, उसे बेनकाब करने और उसे छोड़ देने का साहस भी होना चाहिए। फिर, शैतान कहाँ है? शैतान तुम्हारे बाजू में और तुम्हारे चारों तरफ़ है; हो सकता है कि वह तुम्हारे हृदय के भीतर भी रह रहा हो। यदि तुम शैतान के स्वभाव के अधीन रह रहे हो, तो यह कहा जा सकता है कि तुम शैतान के हो। तुम आध्यात्मिक क्षेत्र के शैतान और दुष्ट आत्माओं को देख या छू नहीं सकते, लेकिन व्यावहारिक जीवन में मौजूद शैतान और दुष्ट आत्माएँ हर जगह हैं। जो भी व्यक्ति सत्य से चिढ़ता है, वह बुरा है, और जो भी अगुआ या कार्यकर्ता सत्य को स्वीकार नहीं करता, वह मसीह-विरोधी या नकली अगुआ है। क्या ऐसे लोग शैतान और जीवित दानव नहीं हैं? हो सकता है कि ये लोग वही हों, जिनकी तुम आराधना करते हो और जिनका सम्मान करते हो; ये वही लोग हो सकते हैं जो तुम्हारी अगुआई कर रहे हैं या वे लोग जिन्हें तुमने लंबे समय से अपने हृदय में सराहा है, जिन पर भरोसा किया है, जिन पर निर्भर रहे हो और जिनकी आशा की है। जबकि वास्तव में, वे तुम्हारे रास्ते में खड़ी बाधाएँ हैं और तुम्हें सत्य का अनुसरण करने और उद्धार पाने से रोक रहे हैं; वे नकली अगुआ और मसीह-विरोधी हैं। वे तुम्हारे जीवन और तुम्हारे मार्ग पर नियंत्रण कर सकते हैं, और वे तुम्हारे उद्धार के अवसर को बर्बाद कर सकते हैं। यदि तुम उन्हें पहचानने और उनकी वास्तविकता को समझने में विफल रहते हो, तो किसी भी क्षण तुम उनके जाल में फँस सकते हो या उनके द्वारा पकड़े और दूर ले जाए जा सकते हो। इस प्रकार, तुम बहुत बड़े ख़तरे में हो। अगर तुम इस खतरे से खुद को मुक्त नहीं कर सकते, तो तुम शैतान के बलि के बकरे हो। वैसे भी, जो लोग धोखे खाए हुए और नियंत्रित होते हैं, और मसीह-विरोधी के अनुयायी बन जाते हैं, वे कभी उद्धार प्राप्त नहीं कर सकते। चूँकि वे सत्य से प्रेम और उसका अनुसरण नहीं करते, इसलिए वे धोखा खा सकते हैं और मसीह-विरोधी का अनुसरण कर सकते हैं। यह परिणाम अपरिहार्य है" (वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद तीन : सत्य का अनुसरण करने वालों को वे निकाल देते हैं और उन पर आक्रमण करते हैं)। अगुआ ने संगति की, "परमेश्वर मसीह-विरोधियों को कलीसिया में प्रकट होने देता है ताकि हम सबक सीख सकें, समझ पा सकें, और हर किस्म के लोगों का खुलासा कर सकें। अगर हम मसीह-विरोधियों को न पहचान पाए, तो जब मसीह-विरोधी हमें धोखा देकर परेशान करेंगे, तो हम आँखें मूँद कर उनकी आराधना करेंगे, उनकी आज्ञा मानेंगे, और उनके हाथों बेवकूफ बनना और उनके काबू में आना आसान हो जाएगा। हो सकता है हम बुराई और परमेश्वर के प्रतिरोध में उनके पीछे चलें, और परमेश्वर हमें त्याग दे, या जब मसीह-विरोधी हमें दबाएँ, दंड दें, तो हम उनका प्रतिरोध करने या ठुकराने की हिम्मत न करें, और हमारे दिलों में अंधेरा और दर्द महसूस हो, या ज्यादा गंभीर हालत में, हम परमेश्वर को छोड़कर धोखा दे दें, और परमेश्वर से मिला बचाए जाने का मौका खो दें।" अगुआ ने आगे कहा, "इस अनुभव से हम सत्य खोजते हैं, और तरह-तरह के लोगों को पहचानना सीखते हैं, हम जान पाते हैं कि मसीह-विरोधी कौन हैं, और कैसा व्यवहार करते हैं, हम मसीह-विरोधियों की प्रकृति और सार को स्पष्ट देख पाते हैं, सत्य के सिद्धांतों के अनुसार मसीह-विरोधियों को जानकर, उनकी शिकायत कर उन्हें ठुकरा सकते हैं, और हम अपने और मसीह-विरोधियों के बीच लकीर खींच सकते हैं। सिर्फ इसी तरह हम शैतान के धोखे और नियंत्रण से बच सकते हैं। अगर हममें विवेक न हो और हम मसीह-विरोधियों को ठुकरा न सके, तो मसीह-विरोधी हमें धोखा देंगे और हम बचाए जाने और पूर्ण होने का मौका गँवा देंगे।" अगुआ की संगति के बाद मैं समझ गई कि परमेश्वर मसीह-विरोधियों को कलीसिया में इसलिए प्रकट होने देता है ताकि हम सत्य और विवेक हासिल कर सकें, और खुद को शैतान के धोखे और नियंत्रण से आजाद कर सकें। मसीह-विरोधियों से असली संपर्क के बिना, हम लोगों को जान नहीं सकेंगे, और हम तब भी मसीह-विरोधियों से धोखा खाकर उनके पीछे चलेंगे। इस मसीह-विरोधी से धोखा खाकर और परेशान होकर, मैं यह भी समझ सकी कि चीजों के घटने पर हमें परमेश्वर के वचनों के सिद्धांतों के आधार पर सत्य खोजना चाहिए और चीजों को देखना चाहिए। अगर हम किसी को सिद्धांतों की अवहेलना करते देखें, तो हमें सत्य पर अमल कर उसे उजागर करना चाहिए, और समय रहते अगुआओं से शिकायत करनी चाहिए। साथ ही मैं खुशामदी थी, हमेशा लोगों का दिल दुखाने से डरती थी, हमेशा उनसे अपना रिश्ता बनाए रखती थी। अब मैं समझ गई कि यह एक शैतानी फलसफा है। जब हम सत्य के खिलाफ कुछ होता देखें, तो हमें मुँह पर कह देना चाहिए, हमें कलीसिया के कार्य की रक्षा करनी चाहिए, न कि लोगों के साथ अपने रिश्तों की, जो परमेश्वर के लिए अपमानजनक और घिनौना है।

इसके बाद सभी भाई-बहनों को क्लॉडिया के बारे में समझ आ गई, और सब उसे कलीसिया से निष्कासित करने पर राजी हो गए। समूह छोड़ देने के बाद उसने मुझे फोन किया। वह रोते हुए बोली, "कलीसिया के लोग मुझे मसीह-विरोधी कहते हैं। मेरे बारे में वे ऐसा कैसे कह सकते हैं! बहन, तुम्हें कलीसिया छोड़ देनी चाहिए। सारे कलीसिया अगुआ झूठे हैं। वे सब झूठ बोलते हैं, तुम वहां रहकर उनके झूठ का साथ दे रही हो।" मैंने उससे कहा, "परमेश्वर में विश्वासी के तौर पर, हमें परमेश्वर के वचनों का पालन करना चाहिए। अगुआ की संगति परमेश्वर के वचनों के अनुरूप है, इसलिए जाहिर है हमें उनकी बात मानकर वही करना चाहिए। तुम नहीं सुनना चाहती थी, तो तुम्हारी अपनी बात है। मुझे मनाने की कोशिश मत करो। तुमने बचाए जाने का अपना मौका गँवा दिया है। मैं अपना मौका नहीं गँवा सकती।" इसके बाद मैं और ज्यादा कुछ नहीं बोली, और उसने फिर मुझसे बात करने की कभी कोशिश नहीं की। क्लॉडिया के कलीसिया छोड़ने के बाद, दो लोग रह गए थे जो उसे नहीं जान पाए थे, और संगति सुनने के बावजूद अड़ियल होकर उसके पीछे हो लिए थे, आखिरकार वे भी कलीसिया छोड़कर चले गए। इस अनुभव से मैंने अपने लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर का मार्गदर्शन और उद्धार देखा। परमेश्वर के वचन ने ही मुझे बचाया था, मसीह-विरोधियों को जान पाने की सीख का मुझे रास्ता दिखाया था, और मसीह-विरोधयों से धोखा खाए बिना, सही मार्ग पर बने रहने में मेरी मदद की थी। जानती हूँ, मुझमें अभी भी बहुत-सी कमियाँ हैं, मुझे अभी भी बहुत-से सत्य हासिल करने हैं, लेकिन मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के और वचन पढ़ूँगी, परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करूँगी।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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