मैंने खोली गई पुस्तक को देखा है

28 अक्टूबर, 2020

जब मैंने प्रभु को स्वीकार किया, तब बाइबल पढ़कर मैंने जाना कि सब कुछ कहां से आया है और मनुष्य की भ्रष्टता का स्रोत क्या है। मैंने यहोवा परमेश्वर द्वारा व्यवस्था और आदेश जारी करने, प्रभु यीशु द्वारा बीमारों को ठीक करने, राक्षसों का ख़ात्मा करने, समस्याओं को सुलझाने, मनुष्य को अपार अनुग्रह देने, और मनुष्य को पाप से छुटकारा दिलाने के लिए स्वयं पाप-बलि बन कर क्रूस पर चढ़ जाने के बारे में जाना। बाइबल से मुझे प्रभु के उद्धार को समझने में मदद मिली, मैं हर रोज़ बाइबल के कुछ अंश पढ़ता था। हमारे पादरी हमेशा कहते थे, पुराने और नये नियम परिपूर्ण हैं और उनमें परमेश्वर के सभी वचन मौजूद हैं, हम कभी भी बाइबल से अलग नहीं हो सकते। मैंने इस पर विश्वास किया।

मार्च 2016 में, अपने चचेरे भाई के साथ काम के दौरान मेरी मुलाक़ात प्रभु के विश्वासी एक भाई से हुई। बातचीत के दौरान, उसने मुझे बताया कि प्रभु यीशु वापस लौट आया है, वह देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर है और वह परमेश्वर के घर से शुरू होने वाला न्याय का कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहा है। अपनी बात कहते हुए, उसने बैग से एक किताब निकाली और बताया कि उसमें अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य मौजूद हैं। मैंने वो किताब देखी। उसके कवर पर लिखा था मेमने ने पुस्तक को खोला। मैं चौंक गया। मैंने वो किताब पहले कभी नहीं देखी थी, लेकिन उसने बताया कि इस किताब में मौजूद सभी वचन परमेश्वर के हैं। मैंने सोचा, "ऐसा कैसे हो सकता है? परमेश्वर के वचन तो सिर्फ़ बाइबल में मौजूद हैं। ये किसी और किताब में कैसे आ सकते हैं? पादरी कहते हैं कि परमेश्वर के सभी वचन बाइबल में हैं, इसके अलावा कोई भी किताब हमें प्रभु के मार्ग से भटकाएगी और वह पाखंड है।" तभी मुझे पादरी की एक और बात याद आयी कि अंत के दिनों में हर तरह के पाखंड उभरेंगे, हमारे लिए सबसे अच्छी सुरक्षा यही होगी कि हम उन पर ध्यान न दें और इनका प्रचार करने वालों से संबंध न रखें। ये खयाल आते ही, मैं उस भाई से अपनी सुरक्षा के बारे में सोचने लगा, मैंने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन उसकी सहभागिता और गवाही मेरे चचेरे भाई को काफ़ी पसंद आयी। उसने कहा कि वो मेमने ने पुस्तक को खोला को पढ़कर सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य के बारे में जानना चाहता है। ये सुनकर मुझे हैरानी हुई। मैंने सोचा, "तुम इस पर इतनी आसानी से हाँ कैसे कर सकते हो? क्या तुम्हें याद नहीं पादरी ने क्या कहा था, 'परमेश्वर के सभी वचन बाइबल में हैं?'" मैंने उसकी बात बिल्कुल नहीं सुनी। मैंने उससे कहा कि वो बिना कुछ सोचे-समझे इसकी छानबीन न करे, लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी। बल्कि, मुझे भी इस पर ध्यान देने को कहा। उसे विश्वासी बने 20 साल से ज्यादा हो गए, वह बाइबल का जानकार था और अपनी आस्था पर भरोसा रखता था। क्योंकि इसमें ध्यान देने का फ़ैसला उसका था, इसलिए मैंने अपनी टांग नहीं अड़ाई। वैसे भी, सबको अपना फ़ैसला लेने का हक़ है। इसके बाद से, वह उस प्रबुद्धता को साझा करने लगा जो उसे मेमने ने पुस्तक को खोला को पढ़कर मिलती थी, वह चाहता था कि मैं भी इस पर ध्यान दूँ। पादरी की चेतावनी याद आते ही, मैं इसे पढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। मैंने उसे दृढ़ता से कहा, "अब मुझे इसे पढ़ने के लिए मत कहना। तुम्हारी अपनी आस्था है और मेरी अपनी।" प्रभु के मार्ग पर आस्था दिखाते हुए, मैं अपने विचारों की ज़िद पर अड़ा रहा।

जल्दी ही, मेरे एक ईसाई दोस्त ने ख़ुशी से मुझसे कहा कि उसे पवित्र आत्मा के कार्य वाला एक कलीसिया मिला है और उनके उपदेशों में प्रबुद्धता है। उसकी आस्था में काफ़ी समय से मौजूद उलझनें सुलझ गयी थीं, वो मुझे भी साथ ले जाना चाहता था। मुझे उस कलीसिया के बारे में जानना था, इसलिए मैंने पूछा, "उस कलीसिया का नाम क्या है?" उसने कहा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया।" मुझे ये सुनकर बहुत हैरानी हुई। मैंने सोचा, "क्या पता उस कलीसिया में वाकई सत्य हो? मेरे आसपास सभी लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास क्यों करने लगे हैं? क्या परमेश्वर चाहता है मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की छानबीन करूँ? क्या मेरे विचार गलत हो सकते हैं?" मैंने मार्गदर्शन पाने के लिए प्रभु से प्रार्थना की।

बाद में मेरे चचेरे भाई ने मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के बारे में फिर से बताया, उसने कहा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत से सत्य व्यक्त किये हैं, हर प्रकार के सत्यों और रहस्यों का ख़ुलासा किया है जिनके बारे में हमने पहले कभी नहीं सुना, उसने बताया है कि कैसे शैतान लोगों को भ्रष्ट करता है, कैसे परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए चरणबद्ध तरीके से काम करता है, मानवजाति द्वारा परमेश्वर के विरोध की जड़ क्या है, कैसे अपनी पापी प्रकृति को ठीक करके शुद्ध बनें, आदि‌। उसने कहा कि प्रभु में अपनी 20 सालों की आस्था में उसे जो भी मिला है उससे कहीं ज़्यादा उन वचनों से मिला है। उसने ये भी बताया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन प्रकाशित-वाक्य में पवित्र आत्मा द्वारा कलीसियाओं से बात करने की भविष्यवाणियों को पूरा करते हैं और वह पुस्तक को खोलने वाला मेमना है। उसने कहा कि मुझे ख़ुद जाकर ये सब समझना चाहिए। अपनी सहभागिता को साझा करते हुए वो बहुत खुश था, मानो उसे कोई खज़ाना मिल गया हो। मुझे लगा सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया में कुछ तो सत्य है, इसलिए मैंने वहाँ जाने का फ़ैसला किया।

अगले दिन मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के सदस्यों से मिला। मैंने सीधा मुद्दे पर आकर अपनी उलझन के बारे में बताया : "मेरे पादरी हमेशा कहते हैं कि बाइबल के बाहर किसी भी चीज़ में परमेश्वर के वचन मौजूद नहीं हैं, सब कुछ बाइबल में लिखा है और इसके बाहर की हर बात पाखंड है। इस किताब में लिखी सभी बातों को आप परमेश्वर का वचन कैसे बता सकते हैं?"

भाई झांग ने मेरे साथ सहभागिता की : "बहुत से धार्मिक लोगों का मानना है कि परमेश्वर के सभी वचन बाइबल में मौजूद हैं और सिर्फ़ बाइबल में ही हो सकते हैं। लेकिन क्या यह तथ्यों के अनुरूप है? क्या परमेश्वर ने कभी कहा कि उसके सभी वचन सिर्फ़ बाइबल में हैं? क्या परमेश्वर ने कहा कि बाइबल से बाहर निकलना पाखंड है? जो लोग बाइबल को समझते हैं उन्हें पता है कि पुराने और नये नियम को प्रभु के जाने के 300 साल बाद एक साथ मिला दिया गया था। परमेश्वर का कार्य पहले आया है और बाइबल बाद में। यानी, हर युग में परमेश्वर का कार्य मौजूदा बाइबल पर आधारित नहीं है। पहले जब यहोवा परमेश्वर ने इस्राएलियों को मिस्र से बाहर निकाला था, तब क्या उसने अपनी व्यवस्थाएं, आज्ञाएं और आदेश बाइबल के आधार पर जारी किये थे? बिल्कुल नहीं। उस समय कोई बाइबल नहीं थी। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु का कार्य पाप को स्वीकार करना और पश्चाताप के मार्ग का प्रचार करना था, लोगों को दूसरों से स्वयं के जितना स्नेह करना, अपने दुश्मनों से प्रेम करना और सत्तर गुना सात बार क्षमा करना सिखाना था। उसने सब्त पर बीमारों को भी ठीक किया। क्या ये सभी काम पुराने नियम पर आधारित थे? प्रभु यीशु के कार्य और वचन पुराने नियम में दर्ज नहीं किये गए थे, व्यवस्थाओं और आदेशों के मामले में, इंसान से परमेश्वर की अपेक्षाओं को लेकर मतभेद था, जैसे 'आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत' (निर्गमन 21:24), पाप करने के बाद त्याग करना और सब्त पर काम नहीं करना। अगर हम इस इंसानी नज़रिये को लेते हैं कि परमेश्वर के कार्य और वचन बाइबल के बाहर मौजूद नहीं हैं और इसके बाहर की हर चीज़ पाखंड है, तो क्या ये प्रभु यीशु के कार्य की निंदा नहीं हुई? परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं होता, उसका कार्य हमेशा आगे बढ़ता रहता है। वह अपने कार्य बाइबल के आधार पर या उससे राय लेने के बाद नहीं करता। वह खास तौर पर अपने अनुयायियों के मार्गदर्शन के लिए कोई मार्ग नहीं खोजता, बल्कि नए कार्य करने के लिए बाइबल से परे जाता है और नए मार्ग की ओर लोगों का मार्गदर्शन करता है। परमेश्वर केवल सब्त का ही प्रभु नहीं है, बल्कि बाइबल का भी प्रभु है। उसके पास बाइबल से परे जाकर, अपनी प्रबंधन योजना और इंसान की ज़रूरतों के अनुसार नए कार्य करते हुए मानवजाति को राह दिखाने और बचाने का पूरा अधिकार है। हम अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर के कार्य और वचनों को बाइबल तक ही सीमित कैसे कर सकते हैं? हम ये कैसे कह सकते हैं कि परमेश्वर बाइबल से बाहर की बात नहीं बोल सकता या कार्य नहीं कर सकता?"

मैं भाई झांग की सहभागिता से हैरान रह गया। इतने सालों तक विश्वासी रहने के बावजूद मैंने आज तक कभी ऐसी प्रबुद्ध करने वाली सहभागिता नहीं सुनी। परमेश्वर हमेशा नया रहता है और कभी पुराना नहीं होता। उसके कार्य और वचन बाइबल के बजाय उसके प्रबंधन कार्य की ज़रूरतों पर आधारित होते हैं। वह सहभागिता बाइबल और परमेश्वर के कार्य के तथ्यों के अनुरूप थी। मैं उलझ गया था। उन्हें इतनी समझ कैसे हो सकती है?

मुझे लगा जैसे वो मेरा दिमाग पढ़ रहे हैं, भाई झांग ने अपनी बात जारी रखी, "हमारी ये थोड़ी-बहुत समझ हमें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से ही मिली है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के वचन परमेश्वर के कार्य के सभी सत्यों और रहस्यों को प्रकट करते हैं।" फिर उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। "यीशु के समय में, यीशु ने अपने भीतर पवित्र आत्मा के कार्य के अनुसार यहूदियों की और उन सबकी अगुआई की थी, जिन्होंने उस समय उसका अनुसरण किया था। उसने जो कुछ किया, उसमें उसने बाइबल को आधार नहीं बनाया, बल्कि वह अपने कार्य के अनुसार बोला; उसने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया कि बाइबल क्या कहती है, और न ही उसने अपने अनुयायियों की अगुआई करने के लिए बाइबल में कोई मार्ग ढूँढ़ा। ठीक अपना कार्य आरंभ करने के समय से ही उसने पश्चात्ताप के मार्ग को फैलाया—एक ऐसा मार्ग, जिसका पुराने विधान की भविष्यवाणियों में बिलकुल भी उल्लेख नहीं किया गया था। उसने न केवल बाइबल के अनुसार कार्य नहीं किया, बल्कि एक नए मार्ग की अगुआई भी की, और नया कार्य किया। उपदेश देते समय उसने कभी बाइबल का उल्लेख नहीं किया। व्यवस्था के युग के दौरान, बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने के उसके चमत्कार करने में कभी कोई सक्षम नहीं हो पाया था। इसी तरह उसका कार्य, उसकी शिक्षाएँ, उसका अधिकार और उसके वचनों का सामर्थ्य भी व्यवस्था के युग में किसी भी मनुष्य से परे था। यीशु ने मात्र अपना नया काम किया, और भले ही बहुत-से लोगों ने बाइबल का उपयोग करते हुए उसकी निंदा की—और यहाँ तक कि उसे सलीब पर चढ़ाने के लिए पुराने विधान का उपयोग किया—फिर भी उसका कार्य पुराने विधान से आगे निकल गया; यदि ऐसा न होता, तो लोग उसे सलीब पर क्यों चढ़ाते? क्या यह इसलिए नहीं था, क्योंकि पुराने विधान में उसकी शिक्षाओं, और बीमारों को चंगा करने और दुष्टात्माओं को निकालने की उसकी योग्यता के बारे में कुछ नहीं कहा गया था? ... लोगों को ऐसा प्रतीत हुआ, मानो उसके कार्य का कोई आधार नहीं था, और उसमें बहुत-कुछ ऐसा था, जो पुराने विधान के अभिलेखों से मेल नहीं खाता था। क्या यह मनुष्य की ग़लती नहीं थी? क्या परमेश्वर के कार्य पर सिद्धांत लागू किए जाने आवश्यक हैं? और क्या परमेश्वर के कार्य का नबियों के पूर्वकथनों के अनुसार होना आवश्यक है? आख़िरकार, कौन बड़ा है : परमेश्वर या बाइबल? परमेश्वर का कार्य बाइबल के अनुसार क्यों होना चहिए? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर को बाइबल से आगे निकलने का कोई अधिकार न हो? क्या परमेश्वर बाइबल से दूर नहीं जा सकता और अन्य काम नहीं कर सकता? यीशु और उनके शिष्यों ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया? यदि उसे सब्त का पालन करना होता और पुराने विधान की आज्ञाओं के अनुसार अभ्यास करना होता, तो आने के बाद यीशु ने सब्त का पालन क्यों नहीं किया, बल्कि इसके बजाय क्यों उसने पाँव धोए, सिर ढका, रोटी तोड़ी और दाखरस पीया? क्या यह सब पुराने विधान की आज्ञाओं में अनुपस्थित नहीं है? यदि यीशु पुराने विधान का सम्मान करता, तो उसने इन सिद्धांतों को क्यों तोड़ा? तुम्हें पता होना चाहिए कि पहले कौन आया, परमेश्वर या बाइबल! सब्त का प्रभु होते हुए, क्या वह बाइबल का भी प्रभु नहीं हो सकता?" (वचन देह में प्रकट होता है)

मैं परमेश्वर के वचनों से पूरी तरह सहमत था। "परमेश्वर ने सभी चीज़ों को बनाया है और सब पर उसका ही राज है। वह जैसे चाहे वैसे कार्य कर सकता है। इंसान होने के नाते, हमें उसके कार्य को बाइबल तक सीमित करने का कोई हक़ नहीं बनता।" हालांकि मेरा भी यही विचार था, लेकिन मैं अपनी धारणाएं नहीं बदल सका, मेरी आस्था अब भी बाइबल में ही थी। फिर, उन्होंने सब्र के साथ परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य से जुड़े बाइबल के बहुत से पद खोज निकाले, जैसे कि प्रभु यीशु की ये भविष्यवाणी : "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। फिर यहून्ना 12:47-48: "यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता; क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूँ। जो मुझे तुच्छ जानता है और मेरी बातें ग्रहण नहीं करता है उसको दोषी ठहरानेवाला तो एक है: अर्थात् जो वचन मैं ने कहा है, वही पिछले दिन में उसे दोषी ठहराएगा।" प्रभु यीशु ने साफ़ तौर पर कहा था कि वह अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त करेगा और बाइबल में ये भविष्यवाणी भी है : "क्योंकि वह समय आ पहुँचा है कि पहले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय किया जाए" (1 पतरस 4:17)। उनकी पूरी सहभागिता अच्छी तरह से जांची-परखी थी और मैं उनसे पूरी तरह सहमत था, लेकिन मैं अपनी गलती नहीं मानना चाहता था। घर आकर, मैंने तुरंत अपनी बाइबल खोली और ध्यान से उनकी सभी बातों की जाँच-पड़ताल की। मुझे पता चला कि परमेश्वर के अंत के दिनों के जिस न्याय कार्य की वे गवाही देते हैं, उसके बारे में वाकई बाइबल में भविष्यवाणी की गयी है। मुझे बहुत ताज्जुब हुआ और मैंने खुद से पूछा, "अगर सचमुच सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु हुआ तो?" फिर मैंने प्रभु से ये प्रार्थना की : "हे प्रभु! मुझे भाई-बहनों की आज की सहभागिता में बहुत प्रबुद्धता नज़र आयी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों की जो बातें उन्होंने पढ़ीं, वो अधिकारपूर्ण थीं। ये किसी इंसान के शब्द नहीं हो सकते। और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य के उन रहस्यों को प्रकट करते हैं जिन्हें मैंने इतने सालों तक बाइबल पढ़कर भी नहीं समझा। प्रभु, मुझे पूरा यकीन नहीं है कि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर बनकर लौटे हो या नहीं। मेरा मार्गदर्शन करो।"

अगले दिन, भाई-बहनों ने मुझे ये फ़िल्म दिखाई, बाइबल के बारे में रहस्य का खुलासा। इसमें, कलीसिया का एक भाई मुख्य किरदार के विचार पर सहभागिता करता है कि "परमेश्वर के वचन बाइबल के बाहर मौजूद नहीं हैं और इससे अलग हर चीज़ पाखंड है," यह बात मुझे खास तौर पर ठीक लगी। उसने कहा, "बाइबल का संकलन करते समय नबियों द्वारा बताये गए परमेश्वर के कुछ वचनों को पुराने नियम में जगह नहीं दी गई, ऐसा संपादकों की भूल और मतभेद के कारण हुआ। ये बात सब जानते हैं। तो फिर आप कैसे कह सकते हैं कि परमेश्वर के कार्य और उसके वचन बाइबल से बाहर नहीं हैं? क्या नबियों की छूटी हुई भविष्यवाणियाँ परमेश्वर के वचन नहीं हैं? प्रभु यीशु ने नये नियम में मौजूद बातों के अलावा भी बहुत कुछ कहा था। प्रभु यीशु के कार्य करने के तीन सालों से अधिक का हमें कोई अंदाज़ा नहीं है कि उसने क्या वचन बोले या क्या उपदेश दिए, चार सुसमाचारों में ये कितनी बार दर्ज है। जैसा कि यूहन्ना के सुसमाचार में कहा गया है, 'और भी बहुत से काम हैं, जो यीशु ने किए; यदि वे एक एक करके लिखे जाते, तो मैं समझता हूँ कि पुस्तकें जो लिखी जातीं वे संसार में भी न समातीं' (यूहन्ना 21:25)। यह इस बात की पुष्टि करता है कि प्रभु यीशु के कार्य और वचन भी नये नियम में पूरी तरह से दर्ज नहीं किये गए थे। बाइबल में जो लिखा है वो परमेश्वर के वचनों का बहुत ही सीमित हिस्सा है, इसमें बेशक उसके सभी वचन मौजूद नहीं हैं। इसलिए, ऐसा कहना कि बाइबल से बाहर परमेश्वर के कोई कार्य या वचन मौजूद नहीं हैं और बाइबल से बाहर की हर चीज़ पाखंड है, तथ्यों के विरुद्ध होगा। यह निराधार है।"

इसे देखते हुए, मैंने सोचा, "ये सच है। यहोवा परमेश्वर के सभी वचन पुराने नियम में मौजूद नहीं हैं। उसने हज़ार सालों तक पृथ्वी पर लोगों के जीवन का मार्गदर्शन किया। ये मुमकिन नहीं कि नबियों से कही उसकी सारी बातें बाइबल में ही मौजूद हों। प्रभु यीशु ने साढ़े तीन साल तक लोगों को उपदेश दिया। ये कैसे मुमकिन है कि उसके सभी वचन सिर्फ़ चार सुसमाचारों में ही दर्ज होंगे? शायद मुझे इतनी जल्दी फ़ैसला नहीं करना चाहिए। मुझे ध्यान से इसकी जाँच करनी होगी।" इसलिए मैं और जानने के लिए फ़िल्म देखता रहा।

फ़िल्म वाले भाई ने अपनी सहभागिता जारी रखी : "हम सभी ने पहले अपनी आस्था में बाइबल पढ़ी है, लेकिन बाइबल की वास्तविकता के बारे में हमें साफ़ तौर पर पता नहीं है। अब सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने हमें इसका खुलासा कर दिया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, 'बाइबल की इस वास्तविकता को कोई नहीं जानता कि यह परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेख और उसके कार्य के पिछले दो चरणों की गवाही से बढ़कर और कुछ नहीं है, और इससे तुम्हें परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों की कोई समझ हासिल नहीं होती। बाइबल पढ़ने वाला हर व्यक्ति जानता है कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के दो चरणों को लिखित रूप में प्रस्तुत करता है। पुराने नियम सृष्टि के समय से लेकर व्यवस्था के युग के अंत तक इस्राएल के इतिहास और यहोवा के कार्य को लिपिबद्ध करता है। पृथ्वी पर यीशु के कार्य को, जो चार सुसमाचारों में है, और पौलुस के कार्य नए नियम में दर्ज किए गए हैं; क्या ये ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं? अतीत की चीज़ों को आज सामने लाना उन्हें इतिहास बना देता है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी सच्ची और यथार्थ हैं, वे हैं तो इतिहास ही—और इतिहास वर्तमान को संबोधित नहीं कर सकता, क्योंकि परमेश्वर पीछे मुड़कर इतिहास नहीं देखता! तो यदि तुम केवल बाइबल को समझते हो और परमेश्वर आज जो कार्य करना चाहता है, उसके बारे में कुछ नहीं समझते और यदि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, किन्तु पवित्र आत्मा के कार्य की खोज नहीं करते, तो तुम्हें पता ही नहीं कि परमेश्वर को खोजने का क्या अर्थ है। यदि तुम इस्राएल के इतिहास का अध्ययन करने के लिए, परमेश्वर द्वारा समस्त लोकों और पृथ्वी की सृष्टि के इतिहास की खोज करने के लिए बाइबल पढ़ते हो, तो तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते। किन्तु आज, चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो और जीवन का अनुसरण करते हो, चूँकि तुम परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण करते हो और मृत पत्रों और सिद्धांतों या इतिहास की समझ का अनुसरण नहीं करते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर की आज की इच्छा को खोजना चाहिए और पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा की तलाश करनी चाहिए। यदि तुम पुरातत्ववेत्ता होते तो तुम बाइबल पढ़ सकते थे—लेकिन तुम नहीं हो, तुम उनमें से एक हो जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं। अच्छा होगा तुम परमेश्वर की आज की इच्छा की खोज करो'" (वचन देह में प्रकट होता है)।" फिर उसने ये सहभागिता की : "लोगों ने परमेश्वर के कार्य और वचनों को सहेज कर रखा, फिर उसके कार्य के ख़त्म होने पर उन्हें बाइबल में संकलित कर लिया। यह परमेश्वर के बीते हुए कार्यों का सहेजा हुआ इतिहास और उसके कार्य की गवाही से ज्यादा कुछ नहीं है। ये परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं करता, न ही ये इंसान को बचाने में परमेश्वर की जगह ले सकता है। बाइबल का परमेश्वर से कोई मेल नहीं है। परमेश्वर जीवन का स्रोत है, उसके वचन जीवन जल का विशाल झरना हैं, जबकि बाइबल परमेश्वर के कार्य का एक इतिहास मात्र है। इसमें परमेश्वर के वचनों का सीमित भाग दर्ज है। परमेश्वर की तुलना बाइबल से कैसे की जा सकती है? परमेश्वर हमेशा नया होता है और कभी पुराना नहीं पड़ता। वह हर युग में नया कार्य करता है और नये वचन व्यक्त करता है। अगर हम परमेश्वर के नए युग के कार्य और वचनों की निंदा करते हुए उसके पुराने वचनों से चिपके रहे, तो हम परमेश्वर के विरोधी बन जायेंगे। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने नया कार्य किया और नये वचन व्यक्त किये, यहूदी याजक और फ़रीसी अपनी पुरानी बाइबल से ही चिपके हुए थे, उनका मानना था कि उसमें परमेश्वर के सभी कार्य और वचन मौजूद हैं, इसलिए उन्होंने प्रभु यीशु का विरोध और निंदा की। उन्होंने सांठ-गांठ करके उसे क्रूस पर चढ़ा दिया, जो एक महापाप था। अब अंत के दिनों का मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर सत्य व्यक्त करने के साथ न्याय का कार्य कर रहा है, जिसके बारे में बाइबल में कुछ नहीं बताया गया है। क्योंकि ये बाइबल में नहीं है, इसलिए बाइबल परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य और वचनों की जगह नहीं ले सकती। अगर लोग परमेश्वर के मौजूदा कार्य और वचनों को स्वीकार किये बिना सिर्फ़ बाइबल पर ही अड़े रहे, तो उन्हें परमेश्वर का अंत के दिनों का उद्धार नहीं मिलेगा। उन्हें उसके नए युग के कार्य और वचनों द्वारा हटा दिया जायेगा।"

मैंने इस बात पर अच्छे से विचार किया। बाइबल परमेश्वर के कार्य की सिर्फ़ एक गवाही है और इसमें परमेश्वर के सीमित वचन ही दर्ज हैं। मैं पहले हमेशा पादरियों और एल्डरों की बातें सुनता था, ये मानकर कि परमेश्वर के सभी वचन सिर्फ़ बाइबल में ही हैं, और कहीं नहीं। लेकिन ये एक बेकार, बेतुकी धारणा है। मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य हमेशा आगे बढ़ता रहता है। अगर परमेश्वर के कार्य और वचन सिर्फ़ पुराने नियम तक ही सीमित रहते और उसने अनुग्रह के युग में छुटकारे का कार्य नहीं किया होता, तो हर कोई आज व्यवस्था में जीवन जी रहा होता, व्यवस्था का उल्लंघन करने पर उसे सजा देकर मौत के घाट उतार दिया जाता। ऐसा होने पर मानवता आज ख़त्म हो गयी होती। अंत के दिनों में प्रभु की वापसी के बिना और इंसान का न्याय करके उसे शुद्ध किये बिना, हम पाप में जीवन बिताते रहते, हम इससे बच नहीं पाते। परमेश्वर पवित्र है, तो फिर गंदगी में आकंठ डूबे, हम लोग प्रभु का चेहरा कैसे देख पाते या उसके राज्य में कैसे प्रवेश कर पाते? बाइबल के बारे में रहस्य का खुलासा पूरा होने के बाद, मैंने इस मुद्दे पर दोबारा गौर किया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मेरे पुराने दृष्टिकोण को बदल दिया। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य पर ठीक से ध्यान देने का फ़ैसला किया।

फिर भाई-बहनों ने मुझे मेमने ने पुस्तक को खोला की एक प्रति भेजी। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने मेरे विचारों, आशीष पाने की मेरी इच्छा और मेरे भ्रष्ट स्वभाव—अहंकार, कपट, दुष्टता, और सत्य से घृणा करने की सोच को पूरी तरह से उजागर कर दिया। मैं जितना अधिक पढ़ता, मुझे उतना ही यकीन होता जाता कि ये वचन पवित्र आत्मा के हैं, परमेश्वर के हैं। सिर्फ़ परमेश्वर ही लोगों के दिल और दिमाग में झाँक कर, हमारे सभी गलत इरादों और अंदर की भ्रष्टता को उजागर कर सकता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत से सत्यों को व्यक्त किया है, जैसे मानवजाति को प्रबंधित करने का उसका लक्ष्य, बाइबल की भीतरी कहानी और मानवजाति को बचाने के उसके कार्य के तीन चरण, परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था और समर्पण क्या है, कौन उसके राज्य में प्रवेश कर सकता है, ऐसे ही और सत्य जिनके बारे में मैंने अपनी सालों की धार्मिक आस्था में कभी नहीं सुना। इसने वाकई मेरी आखें खोल दी। मैंने जाना कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य और वचन प्रभु यीशु के इन वचनों के अनुरूप हैं : "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। प्रकाशित-वाक्य में ये भविष्यवाणी भी है : "परन्तु न स्वर्ग में, न पृथ्वी पर, न पृथ्वी के नीचे कोई उस पुस्तक को खोलने या उस पर दृष्‍टि डालने के योग्य निकला।" "देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है" (प्रकाशितवाक्य 5:3, 5)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अब इंसान के सामने सभी सत्यों का ख़ुलासा कर दिया है कि शुद्ध करके पूरी तरह बचाये जाने के लिये क्या ज़रूरी है। मैंने जाना कि यही बात अंत के दिनों की पुस्तक में भी लिखी गयी है, और यह परमेश्वर का न्याय का कार्य है जो उसके घर से शुरू होता है।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के कुछ ही महीनों में, मैंने इतना कुछ समझ लिया जितना मैंने अपनी धार्मिक आस्था के 10 सालों में नहीं सीखा था। मैंने सचमुच ये जाना कि परमेश्वर के वचन जीवन जल का झरना हैं, एक अनंत स्रोत जो हमें पोषण देता है। मुझे पूरा यकीन हो गया कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आया प्रभु यीशु है। मैं उत्साह से भरा था, लेकिन बहुत दुख भी हो रहा था। मैं सोच रहा था, कैसे मैं आँखें बंद करके बाइबल की आराधना करता रहा और पादरी की बात सुनता रहा, मैंने अपनी धारणाओं और कल्पनाओं के आधार पर परमेश्वर के वचनों को बाइबल तक सीमित कर लिया था। मैं एकदम गलत था। लेकिन परमेश्वर ने मुझे निकाला नहीं। उसने भाई-बहनों के ज़रिए मेरे दरवाज़े पर बार-बार दस्तक दी, अपनी वाणी को सुनने के लिए मेरा मार्गदर्शन किया, ताकि मुझसे प्रभु की वापसी का मौका न छूटे। मैं अपने उद्धार के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर का धन्यवाद करता हूँ।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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