जब मेरे परिवार ने मुझे परमेश्वर पर विश्वास करने से रोकने की कोशिश की
मार्च 2018 में, मैंने रिश्तेदारों से अंत के दिनों का सर्वशक्तिमान परमेश्वर का सुसमाचार सुना उन्होंने मुझे ऑनलाइन सभा में बुलाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर मैंने जाना कि वह, प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य के आधार पर न्याय का कार्य करता है, और लोगों को पूरी तरह से शुद्ध कर बचाने, पाप-मुक्त करने और परमेश्वर के राज्य में ले जाने के लिए आया है। हालाँकि मैं पहले भी प्रभु में विश्वास कर कलीसिया में सक्रियता से भाग लेती थी, फिर भी पाप कर उन्हें स्वीकारने के कुचक्र में जी रही थी, प्रभु के वचन पर चल नहीं पाती थी, और पीड़ा में जी रही थी। अब, मुझे अंततः भ्रष्टता से शुद्ध होने का मार्ग मिल गया था, इसलिए मैं बहुत खुश थी, मुझे यकीन था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर, प्रभु यीशु का दूसरा आगमन है। मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की ऑनलाइन सभाओं में भाग लेने लगी, और अपनी माँ को सभाओं से मिली रोशनी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि मैंने जो बताया वह लाभकारी है, और ऑनलाइन सुने गए उपदेशों में रुचि दिखाई, तो मैंने उन्हें ऑनलाइन सभाओं के लिए आमंत्रित किया। अचानक उन्होंने बीच में ही सुनना बंद कर मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने से रोकना चाहा।
एक दिन अचानक मेरी माँ ने मुझसे पूछा, "क्या उस दिन सभा में संगति चमकती पूर्वी बिजली का उपदेश था?" माँ के ऐसे अचानक सवाल करने पर सुनकर मुझे समझ नहीं आया कि क्या जवाब दूँ। मैंने सोचा, "मेरी माँ हमेशा पादरी की बात सुनती है। अगर वह मुझसे यह पूछ रही है, तो क्या वह पादरी की चमकती पूर्वी बिजली की निंदा करने वाली अफवाहों से धोखा खा गई है?" जैसा मैंने सोचा था, बात खत्म होते ही उन्होंने आरोप लगाने वाले स्वर में कहा, "सोचो, बाइबल क्या कहती है, 'उस समय यदि कोई तुम से कहे, "देखो, मसीह यहाँ है!" या "वहाँ है!" तो विश्वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें' (मत्ती 24:23-24)। पादरी ने कई बार इन पदों का उल्लेख किया है। अंत के दिनों में लोगों को ठगने के लिए कई झूठे मसीह प्रकट होंगे। खासकर चमकती पूर्वी बिजली वाले गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु देह में लौट आया है। यह पक्के से झूठ ही होगा। पादरी ने हमसे इस पर विश्वास न करने और उनके उपदेश न सुनने को कहा है! तुम्हें भी पादरी की बात माननी चाहिए। उपदेश सुनना बंद करो!" अपनी माँ को यह कहते सुनकर मुझे गुस्सा आ गया। पादरी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन नहीं सुने थे, न अंत के दिनों के उसके कार्य की जाँच की थी। वह इतनी आसानी से प्रभु की वापसी की निंदा कैसे कर सकता था? मेरी माँ ने भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन नहीं पढ़े थे। वह इतनी अविवेकी कैसे हो सकती हैं कि पादरी के कहने से इसे झूठा मान लिया? प्रभु के कई विश्वासियों ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़े हैं और उन्हें परमेश्वर की वाणी माना है। उसके वचन पढ़ने के बाद मैंने भी उनका अधिकार और शक्ति महसूस की। प्रभु यीशु और उसके वचनों के स्रोत समान हैं, यह स्वयं परमेश्वर की वाणी है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटा हुआ प्रभु यीशु है। वे कैसे कह सकते हैं कि वह धोखा देने वाला झूठा मसीह है?
सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई चेंग ने सत्य के इस पहलू पर संगति की, मुझे परमेश्वर के वचन सुनाए, "जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा। जिस देह में परमेश्वर का सार नहीं है, वह निश्चित रूप से देहधारी परमेश्वर नहीं है; इसमें कोई संदेह नहीं। अगर मनुष्य यह पता करना चाहता है कि क्या यह देहधारी परमेश्वर है, तो इसकी पुष्टि उसे उसके द्वारा अभिव्यक्त स्वभाव और उसके द्वारा बोले गए वचनों से करनी चाहिए। इसे ऐसे कहें, व्यक्ति को इस बात का निश्चय कि यह देहधारी परमेश्वर है या नहीं और कि यह सही मार्ग है या नहीं, उसके सार से करना चाहिए। और इसलिए, यह निर्धारित करने की कुंजी कि यह देहधारी परमेश्वर की देह है या नहीं, उसके बाहरी स्वरूप के बजाय उसके सार (उसका कार्य, उसके कथन, उसका स्वभाव और कई अन्य पहलू) में निहित है। यदि मनुष्य केवल उसके बाहरी स्वरूप की ही जाँच करता है, और परिणामस्वरूप उसके सार की अनदेखी करता है, तो इससे उसके अनाड़ी और अज्ञानी होने का पता चलता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। "यदि वर्तमान समय में ऐसा कोई व्यक्ति उभरे, जो चिह्न और चमत्कार प्रदर्शित करने, दुष्टात्माओं को निकालने, बीमारों को चंगा करने और कई चमत्कार दिखाने में समर्थ हो, और यदि वह व्यक्ति दावा करे कि वह यीशु है जो आ गया है, तो यह बुरी आत्माओं द्वारा उत्पन्न नकली व्यक्ति होगा, जो यीशु की नकल उतार रहा होगा। यह याद रखो! परमेश्वर वही कार्य नहीं दोहराता। कार्य का यीशु का चरण पहले ही पूरा हो चुका है, और परमेश्वर कार्य के उस चरण को पुनः कभी हाथ में नहीं लेगा। परमेश्वर का कार्य मनुष्य की धारणाओं के साथ मेल नहीं खाता; उदाहरण के लिए, पुराने नियम ने मसीहा के आगमन की भविष्यवाणी की, और इस भविष्यवाणी का परिणाम यीशु का आगमन था। चूँकि यह पहले ही घटित हो चुका है, इसलिए एक और मसीहा का पुनः आना ग़लत होगा। यीशु एक बार पहले ही आ चुका है, और यदि यीशु को इस समय फिर आना पड़ा, तो यह गलत होगा। प्रत्येक युग के लिए एक नाम है, और प्रत्येक नाम में उस युग का चरित्र-चित्रण होता है। मनुष्य की धारणाओं के अनुसार, परमेश्वर को सदैव चिह्न और चमत्कार दिखाने चाहिए, सदैव बीमारों को चंगा करना और दुष्टात्माओं को निकालना चाहिए, और सदैव ठीक यीशु के समान होना चाहिए। परंतु इस बार परमेश्वर इसके समान बिल्कुल नहीं है। यदि अंत के दिनों के दौरान, परमेश्वर अब भी चिह्नों और चमत्कारों को प्रदर्शित करे, और अब भी दुष्टात्माओं को निकाले और बीमारों को चंगा करे—यदि वह बिल्कुल यीशु की तरह करे—तो परमेश्वर वही कार्य दोहरा रहा होगा, और यीशु के कार्य का कोई महत्व या मूल्य नहीं रह जाएगा। इसलिए परमेश्वर प्रत्येक युग में कार्य का एक चरण पूरा करता है। ज्यों ही उसके कार्य का प्रत्येक चरण पूरा होता है, बुरी आत्माएँ शीघ्र ही उसकी नकल करने लगती हैं, और जब शैतान परमेश्वर के बिल्कुल पीछे-पीछे चलने लगता है, तब परमेश्वर तरीक़ा बदलकर भिन्न तरीक़ा अपना लेता है। ज्यों ही परमेश्वर ने अपने कार्य का एक चरण पूरा किया, बुरी आत्माएँ उसकी नकल कर लेती हैं। तुम लोगों को इस बारे में स्पष्ट होना चाहिए" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आज परमेश्वर के कार्य को जानना)। भाई चेंग ने परमेश्वर के वचनों पर मेरे साथ भी संगति कर कहा था, "सच्चे और झूठे मसीहों के बीच अंतर करने के लिए हमें पहले यह देखना चाहिए कि क्या वे सत्य, परमेश्वर का स्वभाव और उसके स्वरूप को व्यक्त कर मनुष्य को बचाने का कार्य कर सकते हैं। यह सबसे अहम और मूलभूत सिद्धांत है। केवल मसीह ही सत्य व्यक्त कर सकता है, जो ये नहीं कर सकता, वह यकीनन मसीह नहीं है। झूठे मसीहों में परमेश्वर का सार नहीं होता, वे सत्य व्यक्त नहीं कर सकते। वे सिर्फ प्रभु यीशु की नकल कर सकते हैं, साधारण चिह्न और चमत्कार दिखाकर भ्रमित और नासमझ लोगों को धोखा दे सकते हैं। इसलिए, अगर कोई खुद को मसीह का आगमन बताता है, पर सत्य व्यक्त न करके केवल चिह्न और चमत्कार दिखाता है, तो वह लोगों को ठगने के लिए दुष्टात्मा की नकल और झूठा मसीह है। केवल मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन है, केवल वही सत्य व्यक्त कर मनुष्य को बचाने का कार्य कर सकता है। प्रभु यीशु मसीह ने प्रकट होकर और कार्य करके कई सत्य व्यक्त किए, उसने लोगों को पश्चात्ताप का मार्ग दिया और सभी मनुष्यों को छुड़ाया, अनुग्रह का युग शुरू कर व्यवस्था का युग समाप्त किया। इसीलिए हम सभी पहचान सकते हैं कि प्रभु यीशु देहधारी परमेश्वर था, मसीह था। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर भ्रष्ट मनुष्य के उद्धार के लिए जरूरी सभी सत्य व्यक्त करने आया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में अधिकार और शक्ति है, वे परमेश्वर का स्वभाव और वह सब प्रकट करते हैं जो उसके पास है और जो वह है। वह पुस्तक, सात मुहरें और बाइबल के रहस्य खोलता है, अनुग्रह का युग समाप्त कर राज्य का युग शुरू करता है, मनुष्य को पूरी तरह से बचाने के लिए न्याय का कार्य करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और कार्य से साबित होते है कि वह देहधारी परमेश्वर है, अंत के दिनों में मसीह का प्रकटन है।" यह सोचकर मेरा दिल खिल उठा। मैंने अपनी माँ से कहा, "आप पादरी की बातों पर इतना विश्वास क्यों करती हैं? हम प्रभु में विश्वास करते हैं, तो उसके वचन सुनने चाहिए। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था, 'मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं' (यूहन्ना 10:27)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सच्चे और झूठे मसीहों के सत्य पर स्पष्ट रूप से संगति करते हैं। मसीह मनुष्य के पुत्र के रूप में देहधारी परमेश्वर है। चूँकि मसीह स्वयं परमेश्वर है, वह सत्य व्यक्त कर लोगों को बचाने का कार्य कर सकता है। झूठे मसीह भ्रष्ट और नकलची लोग हैं, जो सत्य व्यक्त कर मनुष्य को बचा नहीं सकते, सिर्फ ठगने के लिए संकेत और चमत्कार दिखा सकते हैं। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर न्याय-कार्य करने आया है, वह लोगों को पूरी तरह शुद्ध कर बचाने के लिए सत्य व्यक्त करता है। उसके ज्यादा वचन पढ़कर, हम सच्चे और झूठे मसीहों में अंतर कर सकते हैं, परमेश्वर की वाणी सुनकर प्रभु की वापसी का स्वागत कर सकते हैं। ..." मेरी बात पूरी होने से पहले ही माँ उठ गईं। मैं उन्हें सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सुनाना चाहती थी, पर वो गुस्से से चली गईं। यह सुनकर भाई-बहनों ने मुझसे कहा कि मेरी माँ पादरी की बातों में आ गई है सच्चे और झूठे मसीहों को पहचानने का सत्य नहीं समझ पाई, इसीलिए उन्होंने ईश-कार्य को गलत समझा। उन्होंने मुझसे उनके साथ सत्य पर और संगति करने और प्यार से धारणाएँ और भ्रम दूर करने के लिए भी कहा। इसके बाद, मुझे उनके साथ सच्चे और झूठे मसीहों की पहचान पर संगति करने का मौका मिला। मेरी बात उन्हें सही और बाइबल के अनुरूप लगीं, फिर वे मेरी ऑनलाइन सभाओं की उतनी विरोध नहीं रहीं, बोलीं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ना चाहती है। इससे मुझे बहुत खुशी हुई, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की एप डाउनलोड कर सभा में आने को कहा। पर सभा से पहले, पादरी द्वारा पोस्ट की गई अफवाहें देखकर वे मुझे फिर से रोकने लगीं।
एक दिन, जब मैं काम पर थी, मेरी माँ ने मुझे पादरियों द्वारा कलीसिया की निंदा करने वाली वीडियो का स्क्रीनशॉट भेजकर मुझे वीडियो देखने के लिए कहा। स्क्रीनशॉट देखकर मुझे बहुत गुस्सा आया। इन पादरियों को परमेश्वर का जरा-सा भी भय क्यों नहीं है? वे अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य की निंदा के लिए झूठ और अफवाहें फैलाते हैं विश्वासियों को सच्चे मार्ग की जाँच करने से रोकते हैं। वे बहुत दुष्ट हैं! मैं समझ नहीं पाई। बतौर धार्मिक अगुआ, पादरी कलीसिया में परमेश्वर की सेवा करते हैं। फिर क्यों प्रभु यीशु के लौटने पर वे उसका स्वागत नहीं करते, बल्कि इस तरह उसकी वापसी का विरोध करते हैं? जानने के लिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की। प्रार्थना के बाद मुझे यह वाक्यांश याद आया, "प्राचीन काल से ही सच्चे मार्ग को सताया गया है।" मुझे तुरंत समझ आ गया कि, अनुग्रह के युग में जब प्रभु यीशु काम करने आया, तो यहूदी धर्म के मुख्य याजकों, शास्त्रियों और फरीसियों द्वारा उसका भी उत्पीड़न और निंदा की गई थी। ये पवित्रशास्त्र की व्याख्या और मंदिरों में परमेश्वर की सेवा करने वाले लोग थे। इस पर मैंने परमेश्वर के वचनों का एक अंश पढ़ा। "क्या तुम लोग कारण जानना चाहते हो कि फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे भी ज़्यादा, उन्होंने केवल इस पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, फिर भी जीवन का सत्य अनुसरण नहीं किया। इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं क्योंकि उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग क्या कहते हो, ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर का आशीष कैसे प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? उन्होंने यीशु का विरोध किया क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु द्वारा बताए गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे और इसके अलावा क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और चूँकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था और कभी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने मसीहा के बस नाम के साथ चिपके रहने की ग़लती की, जबकि हर मुमकिन ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी सार रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का पालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत था : इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता, तुम मसीह नहीं हो। क्या यह सोच हास्यास्पद और बेतुकी नहीं है?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जब तक तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देखोगे, परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नया बना चुका होगा)। परमेश्वर के वचनों से मैंने समझा कि फरीसियों द्वारा प्रभु यीशु के प्रतिरोध और निंदा का मूल कारण सत्य से नफरत और परमेश्वर के प्रति शत्रुता रखने की उनकी प्रकृति और सार था। वे परमेश्वर का भय नहीं मानते थे, सत्य की खोज नहीं करते थे। उन्होंने स्पष्ट देखा कि प्रभु यीशु के वचनों और कार्य में अधिकार और शक्ति है, पर चूँकि यह उनकी धारणाओं से मेल नहीं खाता था, इसलिए उन्होंने प्रभु यीशु को नकारा, बदनाम किया, उसकी निंदा की, और अंत में प्रभु को सूली पर चढ़ा दिया। अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को लेकर आज भी धार्मिक संसार के पादरी और एल्डर धार्मिक धारणाओं से हठपूर्वक चिपके रहते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर चाहे जितना भी सत्य व्यक्त करे, या उसके वचन जितने भी अधिकारपूर्ण हों, अगर यह उनकी धारणाओं से मेल न खाए, तो वे उन्मत्त होकर इसका विरोध और निंदा करते हैं, हमें जाँच करने से रोकने के लिए अफवाहें फैलाते हैं और हमें पूरी तरह नियंत्रित कर परमेश्वर की वाणी सुनने और प्रभु का स्वागत करने से रोकना चाहते हैं। वे बहुत शातिर हैं! क्या यह फरीसियों द्वारा प्रभु यीशु का विरोध और निंदा करने वाला सार नहीं है? वे फरीसियों से भी ज्यादा परमेश्वर का विरोध करते हैं! मैंने यह भी देखा है कि चूँकि धार्मिक दुनिया के मसीह-विरोधियों का सार सत्य से घृणा करना है, इसलिए परमेश्वर जिस भी युग या जगह में कार्य करे, वे हमेशा उसे नकारेंगे और उसका विरोध करेंगे। इससे प्रभु यीशु की यह भविष्यवाणी पूरा होती है, "क्योंकि जैसे बिजली आकाश के एक छोर से कौंध कर आकाश के दूसरे छोर तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी अपने दिन में प्रगट होगा। परन्तु पहले अवश्य है कि वह बहुत दु:ख उठाए, और इस युग के लोग उसे तुच्छ ठहराएँ" (लूका 17:24-25)। मैं यह बात समझ गई और अब भ्रमित नहीं रही, मैंने घर जाकर माँ कए साथ संगति करने का फैसला किया।
जब मैं पहुँची, तो यह सुनकर मेरी माँ बहुत गुस्सा करने लगीं कि मैंने उनकी वीडियो नहीं देखी, मेरी न सुनकर मुझसे बार-बार पूछने लगीं कि मैंने उसे क्यों नहीं देखा। इस पर मैंने उनसे पूछा, "सर्वशक्तिमान परमेश्वर इतना स्पष्ट बोलता है, पर आप खोज या जाँच नहीं करतीं। आप ये ईशनिंदा वाले वीडियो क्यों देखती हैं?" इस पर उन्होंने गुस्सा होकर मुझ पर गलत विश्वास करने का आरोप लगाया। उन्हें इतना गुस्सा देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। मेरी माँ मुझे सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करने से रोकती थीं क्योंकि वह पादरी की अफवाहों से धोखा खा गई थीं। इससे मुझे पादरियों से और भी ज्यादा घृणा हो गई। वे ठीक वैसे ही थे, जैसा प्रभु यीशु ने फरीसियों को शाप देते समय कहा था, "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्ती 23:13)। इसके बाद, मैंने अपनी माँ से आग्रह किया कि वह परमेश्वर के वचन सुनें, लोगों के नहीं, वरना वह परमेश्वर का उद्धार खो सकती हैं, और बताया कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास नहीं छोडूँगी। यह देखकर कि मेरा हार मानने का कोई इरादा नहीं, माँ चिंतित स्वर में बोलीं, कि मैं सभाओं में शामिल होना और सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करना बंद कर दूँ। मैंने माँ के साथ संगति करने के तमाम तरीके आजमाए, पर उन्होंने मेरी कोई बात नहीं सुनी, और बोलीं कि वह यह तथ्य नहीं स्वीकार सकती कि प्रभु वापस आ गया है। कुछ क्षण बाद वह मुँह छिपाकर रोने लगीं। उन्हें रोता देख मैं बहुत परेशान हुई। मैं उन्हें रुलाने और दुखी करने से ज्यादा किसी चीज से नहीं डरती थी। अपनी माँ की नजर में मैं हमेशा से एक आज्ञाकारी बच्ची रही हूँ, पर अब मैं उन्हें बहुत चिंतित और परेशान कर रही थी। मैंने सोचा, अच्छा होगा कि मैं उनकी बात सुनकर कुछ समय के लिए सभाओं में शामिल होना बंद कर दूँ। लेकिन फिर मैंने सोचा, प्रभु में विश्वास करते समय, मैं हमेशा कलीसिया की सेवा पहले और अपने मामले दूसरे स्थान पर रखती थी। अब मैंने परमेश्वर का नया कार्य स्वीकारा है, तो उसे पहला स्थान देना और अहम है। मैं ज्यादा सत्य नहीं समझती, इसलिए मेरा सभाओं में जाना खास तौर से जरूरी है। सभाओं के बिना भाई-बहनों की सहायता और सहारा नहीं मिलेगा। प्रलोभन में पड़ी या परेशान होकर दृढ़ न रही, तो क्या करूँगी? लेकिन अगर मैंने सभाओं में जाना बंद नहीं किया, तो अपनी माँ को रोज इतना उदास देखना मेरे लिए पीड़ादायक होगा! मैं फँस गई थी, इसलिए मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की कि वह सही चुनाव करने में मेरा मार्गदर्शन करे।
शाम की सभा में मैंने एक बहन को अपनी हालत बताई, उसने मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश भेजा। "जब परमेश्वर कार्य करता है, किसी की देखभाल करता है, उस पर नजर रखता है, और जब वह उस व्यक्ति पर अनुग्रह करता और उसे स्वीकृति देता है, तब शैतान करीब से उसका पीछा करता है, उस व्यक्ति को धोखा देने और नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता है। अगर परमेश्वर इस व्यक्ति को पाना चाहता है, तो शैतान परमेश्वर को रोकने के लिए अपने सामर्थ्य में सब-कुछ करता है, वह परमेश्वर के कार्य को भ्रमित, बाधित और खराब करने के लिए विभिन्न बुरे हथकंडों का इस्तेमाल करता है, ताकि वह अपना छिपा हुआ उद्देश्य हासिल कर सके। क्या है वह उद्देश्य? वह नहीं चाहता कि परमेश्वर किसी भी मनुष्य को प्राप्त कर सके; परमेश्वर जिन्हें पाना चाहता है, वह उसकी संपत्ति छीन लेना चाहता है, वह उन पर नियंत्रण करना, उनको अपने अधिकार में लेना चाहता है, ताकि वे उसकी आराधना करें, ताकि वे बुरे कार्य करने और परमेश्वर का प्रतिरोध करने में उसका साथ दें। क्या यह शैतान का भयानक उद्देश्य नहीं है?" (वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है IV)। उसने संगति की, "तुम्हारे साथ जो हो रहा है, उसे देखने से शायद लगे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने पर परिवार बाधित कर रहा है, पर इसके पीछे शैतान की चालाकी है। यह एक आध्यात्मिक लड़ाई है। लोगों को बचाने के लिए परमेश्वर ने अंत के दिनों में देहधारण किया है, पर शैतान नहीं चाहता कि लोग परमेश्वर का उद्धार प्राप्त करें, इसलिए वह हमारे आसपास के लोगों से हमें बाधित करवाता है, हमसे परमेश्वर को खारिज कर धोखा दिलवाता है, अंत में हमें नियंत्रित कर अपने साथ नरक में घसीट ले जाता है। तुमने अभी-अभी अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य स्वीकारा है, शैतान तुम्हारी माँ के जरिये तुम्हें परेशान कर रहा है, ताकि तुम उनकी बात मान परमेश्वर में अपना विश्वास त्याग दो, उसका उद्धार खो दो। यह शैतान की कुटिल मंशा है। हमें शैतान की चालें समझकर दृढ़ रहने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना चाहिए। अय्यूब के बारे में सोचो। जब शैतान ने उससे परमेश्वर का त्याग करवाने के लिए उसकी पत्नी से शिकायतें करवाईं, तो अय्यूब परमेश्वर के प्रति आस्थावान और आज्ञाकारीबना रहा, अपनी गवाही में दृढ़ रह शैतान को अपमानित किया। अंत में, अय्यूब की आस्था ने परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त की। हमें भी दृढ़ रहने और शैतान की चालों में न पड़ने के लिए आस्था रखनी जरूरी है!" परमेश्वर के वचनों पर उस बहन की संगति बहुत मार्मिक थी। अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य स्वीकारने के बाद हर कदम पर मेरे सामने कई बाधाएँ आईं, अब समझ आया कि इसके पीछे एक आध्यात्मिक लड़ाई है। शैतान जानता था किमुझे अपनी माँ की परवाह है, मैं उनकी सुनती हूँ, इसलिए उसने इसके द्वारा मुझे बार-बार परेशान किया, मुझे धारणाओं और भ्रांतियों से भर दिया, ठगने के लिए अफवाहें फैलाईं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने से रोका। शैतान के इरादे वास्तव में कपटी और बुरे होते हैं। मैं शैतान के बहकावे में नहीं आ सकती थी। मैंने ठान लिया कि मेरी माँ मुझे कितना भी परेशान करे, मैं परमेश्वर में विश्वास करती रहूँगी सत्य को और ज्यादा जानने-समझने के लिए सभा में जाती रहूँगी।
अगले कुछ दिन, मेरी माँ रोज उदासी से आहें भरती दिखतीं, जब मुझे ऑनलाइन सभा करते देखतीं, तो रूठ जातीं। अपनी माँ को इस तरह देख मैं अभी भी थोड़ी विवश महसूस करती, पर मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास के मामले में समझौता नहीं कर सकती थी। मुझे परमेश्वर के वचन याद आ गए, "तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अन्धकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज़ न होने दो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर के वचनों ने मेरा दिमाग काफी हद तक साफ कर दिया। मैं जान गई कि शैतान मेरे साथ फिर षड्यंत्र कर रहा है। उसने देखा कि मैंने अपना विश्वास नहीं छोड़ा, इसलिए माँ की आड़ से हमला कर रहा था, ताकि मुझे सभाओं में शामिल होने के लिए शांति न मिल पाए। शैतान के प्रलोभन पर विजय पाने और उसे अपमानित करने के लिए मुझे परमेश्वर पर निर्भर रहना था। इसके बाद, मैं अपनी माँ से रोज बात करती उनके लिए अपनी चिंता और परवाह दिखाती, पर सभाओं और परमेश्वर के वचन पढ़ने के समय उनसे बचती। धीरे-धीरे माँ ने परमेश्वर पर मेरे विश्वास में दखल देना बंद कर दिया, ऑनलाइन सभाओं में भाग लेने पर वह कुछ न कहतीं। शैतान के प्रलोभन पर काबू पाने में परमेश्वर के मार्गदर्शन के लिए मैं बहुत आभारी हुई।
पर अचानक, कुछ समय बाद, मेरे पिता और भाई को सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरे विश्वास का पता चला, उन्होंने मुझे रोकने और धर्म में वापस लाने की कोशिश की। एक दिन मेरे भाई ने गुस्सा होकर मुझ पर आरोप लगाया, "तुम इतनी जिद्दी क्यों हो? तुम्हारे विश्वास को लेकर माँ चिंतित और दुखी हैं। तुम्हें नींद कैसे आती है? पूरा परिवार सर्वशक्तिमान परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास से असहमत है। क्या तुम माँ-पिताजी की खुशी के लिए इसे छोड़ नहीं सकती?" अपने परिवार की गलतफहमियों और आरोपों का सामना कर मुझे बुरा लगा, और मैं अपने आँसू बहने से नहीं रोक पाई। मैं उन्हें वह सब बताना चाहती थी, जो मैंने अपने विश्वास से पाया था, पर उन्होंने अपने हर शब्द से मुझ पर आरोप लगाया, मुझे डाँटा। मैं थोड़ी कमजोर महसूस करने लगी। मैंने चुपचाप परमेश्वर को पुकारकर आस्था देने के लिए कहा, ताकि मैं दृढ़ रह सकूँ। प्रार्थना के बाद मुझे याद आया कि प्रभु यीशु ने कहा था, "जो माता या पिता को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं" (मत्ती 10:37)। "मैं तुम से सच कहता हूँ कि ऐसा कोई नहीं जिसने परमेश्वर के राज्य के लिए घर,या पत्नी, या भाइयों, या माता-पिता, या बाल-बच्चों को छोड़ दिया हो; और इस समय कई गुणा अधिक न पाए और आने वाले युग में अनन्त जीवन" (लूका 18:29-30)। मेरा परिवार मुझे परमेश्वर पर विश्वास करने से रोक रहा था। उसका अनुसरण करना है तो मुझे चुनाव करना होगा। परिवार के बाधा और मुझे न समझ पाने के कारण मैं परमेश्वर का अनुसरण छोड़ नहीं सकती। मैंने पतरस के बारे में सोचा। प्रभु यीशु का अनुसरण करते हुए उसे भी उसके माता-पिता ने बाधित किया था, फिर भी उसने बेझिझक प्रभु का अनुसरण करना चुना। वह परमेश्वर से सबसे ज्यादा प्रेम करता था, मुझे उसकी मिसाल पर चलना चाहिए। यह सोचकर मैं थोड़ी शांत हो गई। मैं उनसे अच्छे से बात करना चाहती थी, ताकि उन्हें पता चल सके कि मैं जिस सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करती हूँ, वह लौटा हुआ प्रभु यीशु है, पर मेरे पिता और भाई कुछ कहने नहीं दिया, बल्कि मेरे कलीसिया में लौटने पर जोर दिया। मैंने असहाय महसूस किया। मेरे परिवार ने मुझे परमेश्वर में विश्वास करने से रोका था, पर बचपन से मेरे माता-पिता और भाई ने मेरी परवाह और मुझसे प्यार किया था। अब वे मुझे डाँटते और रोकते थे, और यह सहना कठिन था। मेरी आस्था का अभ्यास इतना कठिन क्यों था? मैं वाकई नहीं जानती थी कि वे मुझे रोकने के लिए आगे क्या करेंगे। मुझे क्या करना चाहिए? मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया। "कार्य के इस चरण में हमसे परम आस्था और प्रेम की अपेक्षा की जाती है। थोड़ी-सी लापरवाही से हम लड़खड़ा सकते हैं, क्योंकि कार्य का यह चरण पिछले सभी चरणों से अलग है : परमेश्वर मानवजाति की आस्था को पूर्ण कर रहा है—जो कि अदृश्य और अमूर्त दोनों है। इस चरण में परमेश्वर वचनों को आस्था में, प्रेम में और जीवन में परिवर्तित करता है। लोगों को उस बिंदु तक पहुँचने की आवश्यकता है जहाँ वे सैकड़ों बार शुद्धिकरणों का सामना कर चुके हैं और अय्यूब से भी ज़्यादा आस्था रखते हैं। किसी भी समय परमेश्वर से दूर जाए बिना उन्हें अविश्वसनीय पीड़ा और सभी प्रकार की यातनाओं को सहना आवश्यक है। जब वे मृत्यु तक आज्ञाकारी रहते हैं, और परमेश्वर में अत्यंत विश्वास रखते हैं, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा हो जाता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मार्ग ... (8))। परमेश्वर के वचन से मैं समझी। मुझे मेरे परिवार ने घेर लिया था, परमेश्वर ने मुझे सत्य और समझ से लैस करने, मेरी आस्था पूर्ण करने के लिए यह परिस्थिति तैयार की थी। मेरे परिवार ने मुझे परमेश्वर में विश्वास करने से रोका, हालाँकि मैं उदास और कमजोर महसूस कर रही थी, पर परमेश्वर ने मुझे नहीं छोड़ा था, वह अपने वचनों से मेरी अगुआई और मार्गदर्शन कर रहा था, जिससे मैं अपने परिवार के व्यवधान और बाधा के सामने दृढ़ता से खड़ी रह पाई। इससे गुजरकर मुझे कुछ सत्य समझ आया, मैंने धार्मिक पादरियों द्वारा परमेश्वर के विरोध और शैतान के इरादों का सार समझ लिया, और परमेश्वर में मेरी आस्था बढ़ गई। परमेश्वर का कार्य बहुत बुद्धिमत्तापूर्ण और व्यावहारिक है। भविष्य में मुझे चाहे किसी भी मुश्किल का सामना करना पड़े, मुझे चिंतित होने या डरने की जरूरत नहीं। मुझे विश्वास था कि भरोसा करने पर परमेश्वर मेरी अगुआई और मार्गदर्शन करेगा। इससे परमेश्वर के अनुसरण की मेरी इच्छा और प्रबल हो गई।
एक दिन मेरे पिता ने दरवाजा खटखटाया, जैसे ही मैंने दरवाजा खोला, मेरी माँ ने रोते हुए कहा, "बेटी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर में आस्था रखना छोड़ दो। पादरी की सुनो, अगर तुम कलीसिया में प्रभु पर विश्वास करो, तो क्या यह वैसा ही नहीं है?" उन्हें इस तरह देख मुझे गुस्सा भी आया और दुख भी हुआ। मेरी माँ, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य को खोजने या स्वीकारने का रवैया नहीं दिखा रही थीं। वह पूरी तरह पादरी की बात सुनती और उसे सच मानती थीं। उन्होंने अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार अस्वीकार कर दिया था, मुझे परमेश्वर का अनुसरण करने से रोकने की पूरी कोशिश की। मैंने देखा, माँ असल में परमेश्वर में विश्वास करने वाली इंसान नहीं है, वह लोगों का अनुसरण करती है। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त सत्य लोगों को उजागर करता है। सच्चे और झूठे विश्वासी गेहूँ और मोठ-घास की तरह अलग कर दिए जाते हैं। हालाँकि हम एक परिवार थे, पर सत्य के प्रति अपने भिन्न रवैयों के कारण हमने भिन्न मार्ग अपनाए। अगर मेरी माँ ने अभी भी अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य नकारा, तो वह और मैं अलग-अलग रास्तों पर चल देंगे। अब मुझे अडिग रहना था, अपनी भावनाओं से शासित नहीं होना था, अपनी गवाही में दृढ़ रहने के लिए परमेश्वर पर भरोसा करना था। इसलिए मैंने शांत होकर अपनी माँ से कहा, "विश्वासियों के नाते, क्या हम प्रभु के आने की प्रतीक्षा नहीं करते? अब प्रभु वापस आ गया है, अंत के दिनों में परमेश्वर का न्याय-कार्य शुरू हो गया है, इसलिए मुझे आशा है कि आप भी इसकी ध्यान से जाँच करेंगी, हमेशा पादरी की नहीं सुनेंगी। अगर हमने अंत के दिनों में परमेश्वर का उद्धार खोया, तो हम उद्धार का अवसर पूरा खो देंगे।" मेरी माँ पल भर के लिए चुप हो गई, पर मेरे पिता ने क्रोधित होकर कहा, "मैं सिर्फ इतना पूछता हूँ कि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास छोड़ोगी या नहीं?" मैंने उनकी ओर देखा और दृढ़ता से कहा, "नहीं।" यह कहकर मुझे शांति और सुरक्षा की गहरी अनुभूति हुई। अंतत: मैंने अपना दृढ़ रुख दिखा दिया था। मेरे पिताजी और भी गुस्सा हो गए और बहुत गंभीरता से बोले, "तुम इतनी बड़ी हो गई हो कि अब मेरे हाथ से बाहर हो। तुम अपना रास्ता खुद चुन सकती हो। देखना, बाद में पछताना न पड़े।" मेरे पिता के शब्दों ने मुझे एहसास दिलाया कि मैं बड़ी हो गई हूँ, और यह अपने जीवन की जिम्मेदारी लेने का वक्त है। अब, मैं अंत के दिनों का परमेश्वर का कार्य स्वीकार कर उसके नक्शे-कदम पर चल रही थी, इसलिए मुझे बेझिझक इसपर चलना चाहिए।
इसके बाद, मेरे माता-पिता ने परमेश्वर पर मेरे विश्वास में दखल देना बंद कर दिया। अपने परिवार की इस बाधा द्वारा मैंने कुछ विवेक हासिल किया, और कुछ सत्य समझ पाई। मुझे वाकई लगा कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान और बुद्धिमान है, मैंने देखा कि शैतान नीच और दुष्ट है, और मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मेरा स्तंभ है। अब, मैं सत्य का और परमेश्वर का अंत तक अनुसरण करना चाहती हूँ!
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?