59. एक सच्ची रिपोर्ट का इनाम

झाओ मिंग, चीन

अप्रैल 2011 में, मुझे देश के दूसरे हिस्से की एक कलीसिया में याओ लान नाम की अगुआ की जगह लेनी पड़ी। अपना पद मुझे सौंपने के दौरान, जब याओ लान मुझे कलीसिया की स्थिति के बारे में बता रही थीं, तो उन्होंने बताया कि उनकी बेटी शाओमिन सिंचन की जिम्मेदारी निभाने वाली उपयाजक है जो कलीसिया के कामों को समझने में मेरी मदद करेगी। जिस व्यवस्थित तरीके से वो सब कुछ समझा रही थीं, मैं उनकी सराहना किए बिना नहीं रह सकी। याओ लान को देखकर लगा कि वो कलीसिया का काम बहुत अच्छे से संभालती थीं और काफ़ी योग्य भी थीं, शायद अब वो बड़ी ज़िम्मेदारियाँ अपने कंधों पर लेने वाली थीं। मैंने मन ही मन परमेश्वर की इच्छा को समझकर कलीसिया का काम अच्छे से करने का संकल्प लिया।

अगले दिन, शाओमिन मुझे टीम अगुआ की बैठक में लेकर गयी। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, मैंने उनसे जुड़ा अपना अनुभव और समझ साझा की। इस पर बहन शिया ने नाराज़ होकर कहा, "हमारी पुरानी अगुआ याओ लान परमेश्वर के वचनों पर कभी इस तरह सहभागिता नहीं करती थीं। वो हमें सारी बातें एक-एक करके समझाती थीं, जैसे वो कहती कि 'ये प्रेरणा है,' और 'ये चेतावनी।'" दूसरे भाई-बहन भी उनकी बात से सहमत थे, उन्होंने कहा कि याओ लान बहुत स्पष्ट तरीके से सत्य पर सहभागिता करती थीं। मैं हैरान होकर सोचने लगी: "क्या परमेश्वर के वचनों पर सहभागिता करना, अपने निजी अनुभवों और उसके वचनों पर आधारित समझ के बारे में बात करना नहीं होता? याओ लान इस बारे में बात क्यों नहीं करती थीं कि वो खुद कैसे परमेश्वर के वचनों को अभ्यास में लाती हैं और उन्हें कैसे अनुभव करती हैं? आखिर वो भाई-बहनों को परमेश्वर के वचनों का शाब्दिक अर्थ क्यों समझा रही थीं? इस तरह से सहभागिता करने से क्या वो सत्य को और खुद को जान सकेंगे?" मैं उनके साथ सभाओं में परमेश्वर के वचनों पर सहभागिता करने के सिद्धांतों के बारे में बात करना चाहती थी, मगर फिर मैंने सोचा: "मैं इस कलीसिया में नयी आयी हूँ और मेरे काम की ज़िम्मेदारी याओ लान के ऊपर है। उनकी बेटी शाओमिन भी यहीं है। अगर मैंने परमेश्वर के वचनों पर याओ लान की सहभागिता के तरीके को सिर्फ़ शाब्दिक अर्थ समझाना कहा और ये बात उन्हें पता चली, तो वो मुझे गलत समझने लगेंगी और सोचेंगी कि मैं यहाँ आते ही उनकी गलतियाँ निकालने की कोशिश कर रही हूँ। अगर मैंने उन्हें नाराज़ कर दिया तो चीज़ें काफ़ी बिगड़ जायेंगी।" तो मैं चुप रह गयी और उस पर मैंने कुछ नहीं कहा।

एक दिन, शाओमिन से बचकर बहन शाओ मेरे लिए एक पत्र लेकर आयीं। उसमें लिखा था कि पिछली बार उन्होंने याओ लान को कुछ सुझाव दिये थे, मगर याओ लान ने उन्हें नहीं माना। याओ लान तो शाओ को अपना मेज़बानी का कर्तव्य भी निभाने नहीं दे रही थीं। मैं हैरान रह गई। मैंने सोचा: "बहन शाओ को ज़रूर कोई ग़लतफहमी हुई होगी। याओ लान भला कैसे किसी को सता सकती हैं?" बाद में, मैं शाओमिन से इस बारे में बात करने गयी। शाओमिन ने बताया कि बहन शाओ हमेशा उत्साहित रहती हैं, मगर कई बार चीज़ों को गलत समझ बैठती हैं। उन्होंने बताया कि बहन शाओ आम तौर पर एक विश्वासी की तरह जानी जाती थीं, और उनका घर सुरक्षित नहीं था, उनमें अपने घर के माहौल को सुरक्षित बनाये रखने का विवेक नहीं था। उन्होंने बहन शाओ के बारे में काफ़ी सारी बुरी बातें कहीं। मैंने मन ही मन सोचा: "अगर ये सब सच है, तो बहन शाओ वास्तव में मेज़बानी के काम के लिए सही नहीं हैं। मगर उन्होंने ऐसा क्यों कहा कि याओ लान उन्हें सताती थीं? हो सकता है उन्हें याओ लान से कोई शिकायत हो।" मुझे अब भी बेचैनी महसूस हो रही थी, इसलिए मैं बहन शाओ से मिलने उनके घर गयी। मैंने देखा कि उनका घर मेज़बानी के लिए बिलकुल ठीक था, और उनमें विवेक की भी कोई कमी नहीं थी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने सोचा: "शाओमिन ने जो कुछ भी बताया, वास्तविकता उससे इतनी अलग कैसे हो सकती है? क्या याओ लान वाकई बहन शाओ को सताती थीं?" जब मैंने बहन शाओ से और बातें बताने को कहा, तो मुझे पता चला कि याओ लान सुरक्षित माहौल की ज़रूरत को बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर रही थीं, उन्होंने कई और उपयाजकों को अपना कर्तव्य निभाने से रोका था, इसलिए भाई-बहनों के पास उन्हें सींचने के लिए कोई नहीं था। वो लोग कलीसिया की आम जिंदगी नहीं जी रहे थे। जब बहन शाओ ने याओ लान को इन समस्याओं के बारे में बताया कि ये व्यवस्थायें ठीक नहीं हैं, तब याओ लान ने न सिर्फ इसे स्वीकार करने से मना कर दिया बल्कि शाओ का काम भी उनसे छीन लिया। वो तो बहन शाओ की समस्याओं वाले पत्र को भी सबसे छिपाती रहीं। ये सुनकर मुझे ताज्जुब हुआ। ये कैसे हो सकता है? याओ लान पूरी तरह से ग़लत थीं, इसके बावजूद उन्होंने बहन शाओ की बात नहीं मानी, साथ ही उन्हें और उनके पत्र को दबा कर रखा। वो वास्तव में सत्य को स्वीकार करने वाली इंसान नहीं थीं! अब मुझे ये बात समझ आयी कि क्यों वो परमेश्वर के वचनों पर सहभागिता करते वक्त अपने निजी अनुभवों और समझ के बारे में बात करने के बजाय, परमेश्वर के वचनों की संदर्भ से हटकर चर्चा कर भाई-बहनों को गुमराह करती थीं। वो परमेश्वर के वचनों की सहभागिता के सिद्धांतों के बिलकुल ख़िलाफ़ चल रही थीं। मुझे एहसास हुआ कि उनमें ज़रूर कोई गंभीर समस्या है, और मुझे बड़े पादरियों को इस बारे में रिपोर्ट करनी चाहिए ताकि परमेश्वर के घर के काम में देरी न हो। मगर फिर मैंने सोचा: "बहन शाओ ने मुझे जो बातें कहीं उसके अनुसार, याओ लान में इंसानियत की कमी है। इस वक्त याओ लान मेरे काम की प्रभारी हैं, अगर उन्हें पता चला कि मैंने उनके बारे में रिपोर्ट की है, तो शायद वो मुझे सताकर, मेरा काम मुझसे छीन लें।" मन मसोसकर, मैंने अपना मुँह बंद रखने के साथ-साथ बहन शाओ को मेज़बानी की जिम्मेदारी वापस देने का फैसला किया।

अचानक, कुछ दिनों बाद, बहन शेन ने भी मुझसे याओ लान के कुछ बुरे बर्ताव के बारे में रिपोर्ट की। उन्होंने कहा कि भाई वांग और उनकी पत्नी ने हाल ही में धर्म परिवर्तन किया था, वो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ्तारी और अत्याचार से डरे हुए थे, उन्होंने मेज़बानी की जिम्मेदारी निभाने की हिम्मत नहीं की। याओ लान ने उनके साथ सत्य पर सहभागिता करने से इनकार ही नहीं किया बल्कि उन्हें प्रताड़ित भी किया और किसी को भी उन्हें सहारा देने से मना कर दिया। आखिर में, भाई वांग और उनकी पत्नी निराशा में डूब गए और सभा में आना बंद कर दिया। जब बहन शेन ने याओ लान को समझाना चाहा कि उन्हें भाई-बहनों के साथ ऐसा बर्ताव नहीं करना चाहिए, तो याओ लान ने आत्मचिंतन करने के बजाय, बहन शेन की सुरक्षा खतरे में होने की मनगढ़ंत कहानी बना डाली। फिर उन्होंने बहन शेन को कुछ महीनों के लिए कलीसिया से दूर कर दिया, वो उन्हें कलीसिया जीवन में हिस्सा नहीं लेने दे रही थीं। एक और बहन थीं जो सिंचन का काम कर रही थीं। सभाओं में, परमेश्वर के वचनों को अपनी सहभागिता में शामिल कर, वो ईमानदारी से अपने उन भ्रष्ट स्वभावों के बारे में बताया करती थीं जिन्हें वो प्रकट कर रही थीं। याओ लान ने इस बात का फ़ायदा उठाकर उन्हें उनके कर्तव्य से निकाल दिया। फिर उन्होंने सिंचाई के काम की जिम्मेदारी अपनी बेटी शाओमिन को दे दी और भाई-बहनों को उसे सब कुछ सिखाने को कहा, क्योंकि उनके मुताबिक भविष्य में परमेश्वर के घर के ज़रूरी काम उनकी बेटी ही करेगी। याओ लान ने अपने पति को भी टीम का अगुआ बना दिया, जबकि वे तो सच्चे विश्वासी भी नहीं थे, सभाओं के दौरान काम की बातों पर सहभागिता भी नहीं कर पाते थे। याओ लान भावनाओं में बहकर अपने पति को कलीसिया में ले आयीं और उन्हें टीम का अगुआ बना दिया—ये प्रशासनिक आदेशों का गंभीर उल्लंघन था। याओ लान के बुरे काम यहीं ख़त्म नहीं हुए। याओ लान और उनकी बेटी सम्राटों की तरह कलीसिया पर हुकुम चला रही थीं, वे मनमाने ढंग से भाई-बहनों को सताने और दबाने में लगी थीं, उन्होंने सबको इतना सताया कि सब उनसे डरने लगे और किसी ने उनके खिलाफ़ आवाज़ उठाने की हिम्मत नहीं की, बहन शेन की बातें सुनकर, मुझे हैरानी भी हुई और बुरा भी लगा। जब शुरुआत में याओ लान ने मुझे अपना काम सौंपा था, तब उनकी यह बात मुझे बहुत अच्छी लगी थी कि सारा काम काफ़ी अच्छा चल रहा है। मगर वो झूठ कह रही थीं। न सिर्फ़ वो सहभागिता के दौरान परमेश्वर के वचनों पर संदर्भ से बाहर की बात करती रहीं, बल्कि उनके शाब्दिक अर्थों और सिद्धांतों के बारे में बताकर भाई-बहनों को गुमराह भी किया, उन्होंने अपने पद के आशीषों का आनंद उठाते हुए भाई-बहनों पर रोब जमाने का भी काम किया। वो कलीसिया में तानाशाह बनकर राज करने लगीं, मनमाने ढंग से लोगों को सताती रहीं और उन्हें उनके काम से निकाल दिया। वो सिर्फ़ अपने करीबियों के बारे में सोचती थीं और सिर्फ़ अपनों का ही भला करती थीं। उनके मनमाने और लापरवाह बर्ताव और उनके बुरे कामों ने दिखाया कि वो कितनी बड़ी मसीह विरोधी थीं! अब उनके कर्तव्यों का दायरा पहले से काफ़ी बढ़ गया है, यानी अब ज़्यादा-से-ज़्यादा भाई-बहनों को चोट पहुँचेगी। मैं समझ गयी कि मुझे जल्द-से-जल्द किसी वरिष्ठ अगुआ को इस बारे में रिपोर्ट करके कलीसिया के काम को आगे बढ़ाना होगा। लेकिन उनके बारे में रिपोर्ट करने की बात सोचकर, मुझे चिंता होने लगी: "याओ लान मेरे काम की प्रभारी हैं। अगर उन्हें पता चला कि मैंने उनके बारे में रिपोर्ट की है, तो उनके बर्ताव के हिसाब से शायद वो मुझे कलीसिया की अगुआ के पद से बर्खास्त कर घर भेज दें। उनके पास तो मुझे सताने और दंड देने के कई बहाने भी होंगे। मेरा जीना बहुत मुश्किल हो जाएगा। अगर मुझे कलीसिया से निकाल दिया गया तो क्या होगा? परमेश्वर में आस्था की मेरी यात्रा यहीं खत्म हो जायेगी। मुझे व्यवहारिक रहना चाहिए। पहले कलीसिया का काम कर लेती हूँ, बाकी चीज़ें बाद में देखी जायेंगी।" इसलिए, खुद को बचाने के लिए, मैंने उनके बारे में रिपोर्ट नहीं करने और उन्हें उजागर नहीं करने का फैसला किया। मगर अगली सभा में जब मैंने उन सभी सताये गये भाई-बहनों के चेहरे पर मुझसे लगी उम्मीदें देखीं, तो मुझे बहुत चिंता हुई, अब मेरे विवेक का सवाल था। और तो और, जब मैंने उन्हें ये बातें करते सुना कि शाओमिन पूरी कलीसिया में याओ लान की सत्य पर सहभागिता करने की क्षमता की प्रशंसा कर रही है, साथ ही वो भाई-बहनों को नीचा दिखाने वाले ढंग से भाषण देकर उनको बेबस कर रही हैं, तो मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया। मैंने सोचा: "मुझे याओ लान और शाओमिन के बुरे कामों के बारे में किसी वरिष्ठ अगुआ को रिपोर्ट करनी ही होगी। मैं उन्हें मनमाने ढंग से भाई-बहनों के साथ बुरा बर्ताव करने और उन्हें सताने नहीं दे सकती।" इसलिए, मैंने भाई-बहनों की बतायी हुई सारी बातें लिख लीं। लेकिन, सभा के बाद, मैं फिर से सोचने लगी: अगर याओ लान को पता चला तो वो मुझे दंड देने के लिए क्या करेंगी? पर अगर मैंने उन दोनों को उजागर न करके खुद को बचाने का फैसला किया तो फिर मैं भी उन्हीं की तरह नहीं बन जाऊँगी? मैं बहुत मुश्किल हालात में फंस गयी थी, मुझे लगा जैसे मैं इस तरह से बंधी हुई हूँ कि सांस तक नहीं ली जा रही। रोते हुए, मैं परमेश्वर के सामने घुटने टेककर प्रार्थना करने लगी, मैंने कहा, "हे परमेश्वर, मैं याओ लान और उनकी बेटी के बारे में अपने अगुआओं को रिपोर्ट करना चाहती हूँ, मगर मुझे डर है कि वो मुझसे बदला लेने की कोशिश करेंगी। हे परमेश्वर, अँधेरे की ताकतों के अत्याचार से निकलने में मेरा मार्गदर्शन करो, ताकि मैं सत्य का अभ्यास करके कलीसिया के काम को आगे बढ़ा सकूँ।"

प्रार्थना के बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों में ये पढ़ा : "तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम में शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरी इच्छा को स्वयं में पूरा होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है? स्वयं से ये सवाल पूछो और अक्सर इनके बारे में सोचो" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के वचनों में इन प्रकाशनों को पढ़कर मुझे बहुत शर्मिंदगी महसूस होने लगी। मैंने परमेश्वर में विश्वास किया, मगर मेरे दिल में उसके लिए कोई जगह नहीं थी। समस्याओं का सामना होने पर परमेश्वर के आदेश को गंभीरता से लेने के बजाय मैं सिर्फ़ अपने हितों के बारे में सोच रही थी। मैं परमेश्वर के घर के काम की रक्षा नहीं कर रही थी। मुझे समझ आ गया था कि याओ लान परमेश्वर के वचनों को संदर्भ से बाहर जाकर समझा रही थीं, वो कलीसिया में हुकुम चला रही थीं और भाई-बहनों को दंडित करके सता रही थीं। अपने करीबियों को आगे बढ़ाने और खुद को मजबूत करने के लिए वो मनमर्ज़ी से लोगों को उनके कर्तव्यों से निकाल रही थीं, जिससे कलीसिया जीवन में बहुत रुकावटें और अड़चनें आयीं, भाई-बहनों का दम घुटने लगा और उनका काफ़ी नुकसान भी हुआ। खासकर अब जबकि उनके काम का दायरा बढ़ गया है, वो और भी ज़्यादा भाई-बहनों को नुकसान पहुँचा सकती हैं। मगर मैं याओ लान के रुतबे और प्रभाव से डरी हुई थी, मुझे डर था कि वो मुझे सतायेंगी, काम से निकाल देंगी, मुझसे मेरा पद और भविष्य के काम छीन लिए जायेंगे, साथ ही वो और उनकी बेटी मुझे नुकसान पहुँचकर अपना बदला लेना चाहेंगी, इसलिए मुझे सिद्धांतों के आधार पर चलकर उनके बारे में रिपोर्ट करके उन्हें उजागर करने की हिम्मत नहीं हुई। इसलिए, मुझे न चाहते हुए भी, मसीह विरोधियों और बुरे लोगों को कलीसिया में स्वच्छंद बर्ताव करते देखना पड़ा। भाई-बहनों को सताया जा रहा था और उनके जीवन को नुकसान भी पहुँच रहा था, इसके बावजूद मैं चाह कर भी शैतान को उजागर नहीं कर सकी। मैं कितनी कायर, स्वार्थी और नीच इंसान थी! फिर मैंने परमेश्वर के वचन पढ़े जिनमें लिखा है : "शैतान ने मनुष्य को गंभीर ढंग से दूषित कर दिया है। शैतान का विष हर व्यक्ति के रक्त में बहता है, और यह देखा जा सकता है कि मनुष्य की प्रकृति दूषित, बुरी और प्रतिक्रियावादी है, शैतान के दर्शन से भरी हुई और उसमें डूबी हुई है—अपनी समग्रता में यह प्रकृति परमेश्वर के साथ विश्वासघात करती है। इसीलिए लोग परमेश्वर का विरोध करते हैं और परमेश्वर के विरूद्ध खड़े रहते हैं"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें')। "जहाँ तक इस बात का प्रश्न है कि शैतान का जहर क्या है, इसे वचनों के माध्यम से पूरी तरह से व्यक्त किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि तुम कुछ कुकर्मियों से पूछते हो उन्होंने बुरे कर्म क्यों किए, तो वे जवाब देंगे: 'हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये।' यह अकेला वाक्यांश समस्या की जड़ को व्यक्त करता है। शैतान का तर्क लोगों का जीवन बन गया है। भले वे चीज़ों को इस या उस उद्देश्य से करें, वे इसे केवल अपने लिए ही कर रहे होते हैं। सब लोग सोचते हैं चूँकि जीवन का नियम, हर कोई बस अपना सोचे, और बाकियों को शैतान ले जाए, यही है, इसलिए उन्हें बस अपने लिए ही जीना चाहिए, एक अच्छा पद और ज़रूरत के खाने-कपड़े हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देनी चाहिए। 'हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये'—यही मनुष्य का जीवन और फ़लसफ़ा है, और इंसानी प्रकृति का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह कथन वास्तव में शैतान का जहर है और जब इसे मनुष्य के द्वारा आत्मसात कर लिया जाता है तो यह उनकी प्रकृति बन जाता है। इन वचनों के माध्यम से शैतान की प्रकृति उजागर होती है; ये पूरी तरह से इसका प्रतिनिधित्व करते हैं। और यही ज़हर मनुष्य के अस्तित्व की नींव बन जाता है और उसका जीवन भी, यह भ्रष्ट मानवजाति पर लगातार हजारों सालों से इस ज़हर के द्वारा हावी रहा है"("अंत के दिनों के मसीह की बातचीत के अभिलेख" में 'पतरस के मार्ग पर कैसे चलें')। परमेश्वर के वचनों से मुझे पता चला कि मुझे शैतान ने भ्रष्ट करके कुचल दिया है, जब तक मैं खुद बुरी और स्वार्थी बनी रहूंगी, तब तक मेरे खून और मेरी हड्डियों में सिर्फ़ शैतान का विष, उसके फ़लसफ़े और नियम ही रहेंगे। मैं इन शैतानी विषों के प्रभाव में जी रही थी, जैसे कि "हर व्यक्ति अपनी सोचे बाकियों को शैतान ले जाये," "जब पता हो कि कुछ गड़बड़ है, तो चुप रहना ही बेहतर है," और "ज्ञानी लोग आत्म-रक्षा में अच्छे होते हैं वे बस गलतियाँ करने से बचते हैं"। मेरे विचार बदल गए थे और जीवन को लेकर मेरा दृष्टिकोण और मेरी मान्यताएँ बेतुकी थीं। मैंने अपने हितों, भविष्य की संभावनाओं और अपनी नियति को सबसे ज़्यादा महत्व दिया। याओ लान और उनके बुरे, मसीह विरोधी साथियों को कलीसिया में भाई-बहनों को नुकसान पहुँचाते देखकर, मैं जानती थी मुझे उनके बारे में रिपोर्ट करके उन्हें उजागर करना चाहिए। मगर मुझे अपने सताये जाने, अपना पद और भविष्य की संभावनाएं खो जाने का डर था, अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद मैं ऐसा करने की हिम्मत नहीं जुटा पायी। इस तरह मैंने खुशामदी इंसान बनकर मसीह विरोधियों को कलीसिया के काम में रुकावट डालने दी, क्योंकि मुझमें कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं थी। मुझे एहसास हुआ कि मैं शैतान के विषों से पूरी तरह बंधी और जकड़ी हुई हूँ इतनी ज़्यादा कि मैं उसके लिए काम करने लगी थी, उसी की बातें सुनती थी; ऐसे बर्ताव से परमेश्वर बहुत नफ़रत करता है, मैं उसके सामने रहने लायक नहीं हूँ। मैंने कई सालों तक परमेश्वर के कार्य और मार्गदर्शन का आनंद उठाया, उसने मुझे ऊँचा उठाया ताकि मैं कलीसिया की अगुआ का काम संभाल सकूँ। लेकिन, मैं इसे संभाल नहीं पा रही थी, मैंने भाई-बहनों की देखभाल करने और कलीसिया के काम को आगे बढ़ाने पर भी ध्यान नहीं दिया। मैं पूरी तरह अपने निजी स्वार्थी इरादों में लिपटी हुई थी, मुझमें जरा-सी भी गरिमा या निष्ठा नहीं थी। भाई-बहनों ने मुझ पर जो भरोसा दिखाया था, मैं उस पर खरी नहीं उतर सकी, यहाँ तक कि परमेश्वर ने मुझे जो आदेश दिया, मैं उसका भी पालन नहीं कर पायी। यह सोचकर, मुझे खुद से नफ़रत होने लगी, मैं कितनी स्वार्थी और नीच थी, मैंने पश्चाताप करने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। मैंने कहा, हे परमेश्वर, मुझे हिम्मत और ताकत दो, मुझे राह दिखाओ, ताकि मैं अंधकार की ताकतों के प्रभाव से निकलकर सत्य का अभ्यास कर पाऊं।

फिर, मैंने परमेश्वर के वचनों में ये पढ़ा : "परमेश्वर का स्वभाव सभी चीज़ों और जीवित प्राणियों के शासक, सारी सृष्टि के प्रभु का स्वभाव है। उसका स्वभाव सम्मान, सामर्थ, कुलीनता, महानता, और सब से बढ़कर, सर्वोच्चता को दर्शाता है। उसका स्वभाव अधिकार का प्रतीक है, उन सबका प्रतीक है जो धर्मी, सुन्दर, और अच्छा है। इस के अतिरिक्त, यह उस परमेश्वर का भी प्रतीक है जिसे अंधकार और शत्रु बल के द्वारा हराया या आक्रमण नहीं किया जा सकता है,[क] साथ ही उस परमेश्वर का प्रतीक भी है जिसे किसी भी सृजे गए प्राणी के द्वारा ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती है (न ही वह ठेस पहुंचाया जाना बर्दाश्त करेगा)।[ख] उसका स्वभाव सब से ऊँची सामर्थ का प्रतीक है। कोई भी मनुष्य या लोग उसके कार्य और उसके स्वभाव को बाधित नहीं कर सकते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के स्वभाव को समझना बहुत महत्वपूर्ण है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आया कि सभी चीज़ों पर परमेश्वर की सत्ता है, उसका स्वभाव सर्वोच्च अधिकार का प्रतीक है, कोई भी दुश्मन या अंधकार की ताकत उसका अपमान नहीं कर सकती। परमेश्वर शैतान की सभी बुरी और बाधक शक्तियों को कलीसिया से निकालकर खत्म कर देगा। ये परमेश्वर के काम करने का तरीका और यह सच है कि वह उसे हर हाल में पूरा करेगा। याओ लान किसी तानाशाह की तरह कलीसिया पर राज कर रही थीं, भाई-बहनों को बेबस करके सता रही थीं, वो अपने करीबियों का सिंचन करके अपना राज्य स्थापित कर रही थीं। उन्होंने परमेश्वर के काम में रुकावट डाली, उसमें टांग अड़ाई, सभी तरह के बुरे काम किये, परमेश्वर के स्वभाव का गंभीर अपमान किया। वो एक ऐसी मसीह विरोधी दानव थीं जिन्हें आज नहीं तो कल कलीसिया से निकाल ही दिया जाता। मैंने सोचा कि कैसे पहले भी परमेश्वर के घर ने कई बुरे लोगों और मसीह विरोधियों को निकाल फेंका है: चाहे वो कितने ही दुष्ट क्यों न रहे हों, उनकी कामयाबी बस कुछ देर ही टिकी, आखिर में वे परमेश्वर के दंड से बच नहीं पाए। क्या ये परमेश्वर की धार्मिकता नहीं है? फिर भी मैं परमेश्वर की धार्मिकता को नहीं समझ सकी, मुझे इस सच पर भी भरोसा नहीं रहा कि परमेश्वर के घर में सिर्फ़, सत्य और धार्मिकता की जगह है, जिस पर परमेश्वर राज करता है। मैंने परमेश्वर के घर को बाकी दुनिया के जैसा समझ लिया, मानो जिसके पास रुतबा और ताकत है, उसी के हाथों में है मेरी किस्मत, मैंने सोचा अगर मैं याओ लान और उनकी बेटी के खिलाफ़ गयी, तो अपने भविष्य की संभावनाओं और मंज़िल से हाथ धो बैठूँगी। मुझे इस बात का भी डर था कि वो दोनों मुझसे बदला लेंगी—मैंने सभी चीज़ों पर परमेश्वर की सत्ता का भी भरोसा नहीं किया। ऐसी आस्था परमेश्वर के लिए अपमानजनक है! इसके बाद मैंने परमेश्वर के वचनों में ये पढ़ा : "मेरे वचन इंसान के अंधकार के प्रभावों से बचने का आधार हैं, और जो लोग मेरे वचनों के अनुसार अभ्यास नहीं कर सकते, वे अंधकार के प्रभाव के बंधन से बच नहीं सकते। सही अवस्था में जीने का अर्थ है परमेश्वर के वचनों के मार्गदर्शन में जीना, परमेश्वर के प्रति वफादार होने की अवस्था में जीना, सत्य खोजने की अवस्था में जीना, ईमानदारी से परमेश्वर के लिए खुद को खपाने की वास्तविकता में जीना, और वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करने की अवस्था में जीना। जो लोग इन अवस्थाओं में और इस वास्तविकता में जीते हैं, वे जैसे-जैसे सत्य में अधिक गहराई से प्रवेश करेंगे, वैसे-वैसे वे रूपांतरित होते जाएँगे, और जैसे-जैसे काम गहन होता जाएगा, वे रूपांतरित हो जाएँगे; और अंत में, वे ऐसे इंसान बन जाएँगे जो यकीनन परमेश्वर को प्राप्त हो जाएँगे और उससे प्रेम करेंगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अंधकार के प्रभाव से बच निकलो और तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाओगे)। परमेश्वर के वचनों ने मुझे सही मार्ग दिखाया। अगर मैं शैतान की काली शक्तियों की बेड़ियों से मुक्त होना चाहती हूँ, तो मुझे परमेश्वर के वचनों के अनुसार अभ्यास करना होगा। मुझे अपने निजी हितों और भविष्य की चिंताओं के बारे में सोचना बंद करके, सत्य का अभ्यास करना होगा, उन मसीह विरोधियों की रिपोर्ट करके उन्हें उजागर करना होगा और परमेश्वर के घर के काम को आगे बढ़ाना होगा। चाहे मुझे मेरे कर्तव्य से निकाल दिया जाये और चाहे मुझसे मेरा पद और काम छीन लिया जाये, मुझे सत्य सिद्धांतों पर ही चलना होगा। ये बात समझ में आते ही, मुझमें हिम्मत आ गयी, फिर मैंने याओ लान और शाओमिन की रिपोर्ट करते हुए अपने अगुआओं को पत्र लिखा।

कुछ दिनों बाद, अगुआओं ने सभी भाई-बहनों को बुलाकर याओ लान और शाओमिन के बुरे कर्मों की सच्चाई पर से पर्दा उठा दिया। सिद्धांतों के अनुसार, याओ लान, उनके पति और शाओमिन, तीनों को उनकी जिम्मेदारियों से निकाल दिया गया। याओ लान और उनकी बेटी ने आत्मचिंतन करने या खुद को जानने की कोशिश नहीं की, बल्कि वो तो भाई-बहनों के घर जाकर पछतावे का नाटक करने लगीं, रो-रोकर कहने लगीं कि उनके साथ भाई-बहनों को धोखा देने की कोशिश को लेकर गलत तरह से बर्ताव किया गया है। वो बिल्कुल भी पश्चाताप नहीं करना चाहती थीं, अंत में अपने बुरे कर्मों के कारण, वो ऐसी मसीह विरोधी और दुष्टात्मा बनकर रह गयीं जिन्होंने हर तरह के बुरे काम किये और उन्हें कलीसिया से निकाल दिया गया। कलीसिया की जिंदगी सामान्य हो गयी, सभी भाई-बहन तालियाँ बजा रहे थे, खुश थे और परमेश्वर की धार्मिकता और पवित्रता की प्रशंसा कर रहे थे। इससे मुझे और भी स्पष्ट हो गया कि परमेश्वर के घर में धार्मिकता और सत्य का राज है, वहां मसीह की सत्ता है, मसीह विरोधी बुरी ताकतें चाहे कितनी भी दुष्ट और अनियंत्रित हों, वे कितनी भी ताकतवर हों, वो कभी भी परमेश्वर के अधिकार की बराबरी नहीं कर सकतीं या परमेश्वर के कार्य में रुकावट नहीं डाल सकतीं, किसी की किस्मत पर काबू पाना तो मुमकिन ही नहीं है। वो तो बस परमेश्वर के उन मोहरों की तरह हैं, जिनका इस्तेमाल परमेश्वर चुने गए लोगों में विवेक जगाने के लिए करता है। उनका काम दूसरों को मसीह विरोधियों और दुष्ट लोगों की असलियत देखने में मदद करता है, ताकि वो गुमराह होने से बच सकें। इन मसीह विरोधियों की रिपोर्ट करने के इस अनुभव से मैंने जाना कि वो परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता, मार्गदर्शन और अगुआई ही थी जिसने मुझे अंधकार की बेड़ियों को तोड़कर सत्य का अभ्यास करने में सक्षम बनाया। मेरा मन बिलकुल शांत हो गया, मुझे एहसास हुआ कि इस तरह का व्यवहार ही मेरे लिए गरिमा और निष्ठा से जीवन जीने का एकमात्र तरीका है; मैं आज़ाद महसूस करने लगी। ये एक सच्ची रिपोर्ट लिखने का इनाम है।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की जय हो! आमीन!

फुटनोट :

क. मूल पाठ में "यह असमर्थ होने का प्रतीक है" लिखा है।

ख. मूल पाठ में "साथ ही अपमान के अयोग्य (और अपमान सहन न करने) होने का भी प्रतीक है" लिखा है।

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18. मुझे अपनी गलतफहमियों और रक्षात्मक-प्रवृत्ति से नुकसान हुआ

सुशिंग, चीनकुछ समय पहले, हमारी कलीसिया की अगुआ ने अपना पद गँवा दिया क्योंकि उसने न तो सत्य का अनुशीलन किया और न ही कोई व्यावहारिक काम किया।...

10. हृदय की मुक्ति

झेंगशिन, अमेरिका2016 के अक्टूबर में, जब हम देश से बाहर थे, तब मेरे पति और मैंने अंत के दिनों के परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया था। कुछ...

परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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