प्रश्न 7: मैंने 20 साल से भी ज़्यादा बाइबल का अध्ययन किया है। मैंने पाया कि बाइबल अलग-अलग वक्त में 40 अलग-अलग लेखकों द्वारा लिखी गयी थी, लेकिन उनकी लिखी विषयवस्तु में एक भी गलती नहीं थी। इससे पता चलता है कि परमेश्वर ही बाइबल के सच्चे लेखक हैं और बाइबल पवित्र आत्मा से उपजी है।

उत्तर: बाइबल को 40 से भी ज्यादा लेखकों ने लिखा था और यह कि इसमें एक भी गलती नहीं है। क्या वाकई कोई गलती नहीं है? तो फिर आइए, ख़ास तौर से इस मसले पर संवाद करें। दरअसल, अंत के दिनों के मसीह—सर्वशक्तिमान परमेश्वर—ने हमारे लिए इन रहस्यों का पहले ही खुलासा कर दिया है। आइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के एक अंश को पढ़ें! सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "नए नियम में मत्ती का सुसमाचार यीशु की वंशावली दर्ज करता है। प्रारंभ में वह कहता है कि यीशु दाऊद और अब्राहम का वंशज और यूसुफ का पुत्र था; आगे वह कहता है कि वह पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया था, और कुँआरी से जन्मा था—जिसका अर्थ है कि वह यूसुफ का पुत्र या अब्राहम और दाऊद का वंशज नहीं था। यद्यपि वंशावली यीशु का संबंध यूसुफ से जोड़ने पर ज़ोर देती है। आगे वंशावली उस प्रक्रिया को दर्ज करना प्रारंभ करती है, जिसके तहत यीशु का जन्म हुआ था। वह कहती है कि यीशु पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया था, उसका जन्म कुँआरी से हुआ था, और वह यूसुफ का पुत्र नहीं था। फिर भी वंशावली में यह साफ-साफ लिखा हुआ है कि यीशु यूसुफ का पुत्र था, और चूँकि वंशावली यीशु के लिए लिखी गई है, अत: वह उसकी बयालीस पीढ़ियों को दर्ज करती है। जब वह यूसुफ की पीढ़ी पर जाती है, तो वह जल्दी से कह देती है कि यूसुफ मरियम का पति था, ये वचन यह साबित करने के लिए दिए गए हैं कि यीशु अब्राहम का वंशज था। क्या यह विरोधाभास नहीं है? वंशावली साफ-साफ यूसुफ की वंश-परंपरा को दर्ज करती है, वह स्पष्ट रूप से यूसुफ की वंशावली है, किंतु मत्ती दृढ़ता से कहता है कि यह यीशु की वंशावली है। क्या यह यीशु के पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आने के तथ्य को नहीं नकारता? इस प्रकार, क्या मत्ती द्वारा दी गई वंशावली मानवीय विचार नहीं है? यह हास्यास्पद है! इस तरह से तुम जान सकते हो कि यह पुस्तक पूरी तरह से पवित्र आत्मा से नहीं आई थी" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3))। परमेश्वर के वचन के जरिये हम समझते हैं कि मत्ती की बनायी वंशावली परमेश्वर का विचार नहीं था। क्या परमेश्वर की कोई वंशावली हो सकती है? मत्ती जानते थे कि प्रभु यीशु की संकल्पना पवित्र आत्मा ने की थी, फिर भी उन्होंने यह कहकर उन्हें एक वंशावली दी कि प्रभु यीशु दाऊद के पुत्र थे और यूसुफ़ के पुत्र थे| क्या यह इस बात को नकारना नहीं है कि प्रभु यीशु की संकल्पना पवित्र आत्मा ने की थी| प्रभु यीशु और यूसुफ़ का कोई रिश्ता नहीं है| मत्ती के वचनों में विरोधाभास है। स्पष्ट है कि यह वंशावली पवित्र आत्मा से नहीं उपजी और मनुष्य का विचार थी। तो फिर आप यूहन्ना 8:58 की इस बात को कैसे समझा सकते हैं: "यीशु ने उनसे कहा, 'मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि पहले इसके कि अब्राहम उत्पन्न हुआ, मैं हूँ।'" यहाँ हम समझ पाये हैं कि प्रभु यीशु की वंशावली मनुष्य का विचार है। इसे मत्ती ने 50 ईसवी के आसपास लिखा था, और इसे पवित्र आत्मा के सीधे निर्देश पर नहीं लिखा गया था।

परमेश्वर के वचन में इस बारे में एक और अंश है। मुझे सबके लिए पढ़ने की इजाज़त दें! सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "यदि चारों सुसमाचार पवित्र आत्मा से आये, तो ऐसा क्यों था कि मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना प्रत्येक ने यीशु के कार्य के बारे कुछ भिन्न कहा? यदि तुम लोग इस पर विश्वास नहीं करते हो, तो फिर तुम बाइबल के विवरणों में देखो कि किस प्रकार पतरस ने प्रभु को तीन बार नकारा था: वे सब भिन्न हैं, और उनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषताएँ हैं। ... चारों सुसमाचारों को ध्यानपूर्वक पढ़ो; पढ़ो कि उन्होंने उन चीज़ों के बारे में क्या दर्ज किया है जो यीशु ने की थीं, और उन वचनों को पढ़ो जो उसने कहे थे। प्रत्येक विवरण, एकदम सरल रूप में भिन्न है और प्रत्येक का अपना परिप्रेक्ष्य है। यदि इन पुस्तकों के लेखकों के द्वारा जो कुछ लिखा गया था, वह सब पवित्र आत्मा से आया, तो यह सब एक समान और सुसंगत होना चाहिए। तो फिर उनमें विसंगतियाँ क्यों हैं? क्या मनुष्य अत्यंत मूर्ख नहीं है जो इसे देखने में असमर्थ है? ... लूका और मत्ती द्वारा यीशु के वचनों को सुनने और यीशु के कार्यों को देखने के पश्चात्, उन्होंने यीशु द्वारा किये गए कार्य के कुछ तथ्यों के संस्मरणों का विवरण देने के तरीके से स्वयं के ज्ञान के बारे में बोला था। क्या तुम कह सकते हो कि उनके ज्ञान को पूरी तरह से पवित्र आत्मा के द्वारा प्रकट किया गया था?" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पदवियों और पहचान के सम्बन्ध में)। आइए देखें कि चार सुसमाचारों में तीन बार किस तरह से पतरस ने प्रभु को मानने से इनकार किया। मत्ती 26:75 में कहा गया है: "मुर्ग़ के बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।" लेकिन मरकुस 14:72 में कहा गया है: "मुर्ग़ के दो बार बाँग देने से पहले तू तीन बार मेरा इन्कार करेगा।" उनके द्वारा दर्ज घटना एक ही है, लेकिन समय में फर्क है। अगर यह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से आयी होती, तो इनमें कोई फर्क नहीं होता। ये तथ्य साबित करते हैं कि ये मनुष्य के दस्तावेज थे और पवित्र आत्मा की प्रेरणा से नहीं रचे गये थे।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के जरिये हम समझते हैं कि चारों सुसमाचार मनुष्य के दस्तावेज़ हैं और पवित्र आत्मा की प्रेरणा से नहीं रचे गये हैं। इसी वजह से इनमें फर्क है। अगर वे परमेश्वर से उपजे होते तो वे पूरी तरह से सही होते। जैसे कि लूका ने कहा था: "बहुतों ने उन बातों का जो हमारे बीच में बीती हैं, इतिहास लिखने में हाथ लगाया है, जैसा कि उन्होंने जो पहले ही से इन बातों के देखनेवाले और वचन के सेवक थे, हम तक पहुँचाया" (लूका 1:1-2)। इससे पता चलता है कि चारों सुसमाचार लेखकों की देखी-सुनी बातों से तैयार हुए थे। इसमें से कुछ को प्रचारकों के प्रवचनों और उनकी निजी जांच-पड़ताल की बुनियाद पर लिखा गया था। यह उन्हें सीधे परमेश्वर की प्रेरणा से नहीं मिला था। ठीक इसलिए चूंकि इतिहास की किताबें याददाश्त और दूसरों से सुनी बातों के आधार पर लिखी जाती हैं, उनमें ज़रूर गलतियां और इंसानी ख्याल घुल-मिल जाते हैं। चूंकि बाइबल पूरी तरह से परमेश्वर की प्रेरणा से नहीं रची गयी है और पूरी तरह से परमेश्वर का वचन नहीं है, तो फिर बाइबल का सच्चा लेखक कौन है? आइए, देखें कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन में क्या कहा गया है। "वास्तव में, यह मात्र एक मानवीय अभिलेख है। यहोवा ने व्यक्तिगत रूप से इसका नाम नहीं रखा था, और न ही यहोवा ने व्यक्तिगत रूप से इसकी रचना का मार्गदर्शन किया था। दूसरे शब्दों में, इस पुस्तक का लेखक परमेश्वर नहीं था, बल्कि मनुष्य था। पवित्र बाइबल केवल सम्मानजनक शीर्षक है जो इसे मनुष्य ने दिया है। इस शीर्षक का निर्णय यहोवा और यीशु के द्वारा आपस में विचार-विमर्श करने के बाद नहीं लिया गया था; यह मानव विचार से अधिक कुछ नहीं है। क्योंकि यह पुस्तक यहोवा ने नहीं लिखी, यीशु ने तो कदापि नहीं। इसके बजाय, यह अनेक प्राचीन नबियों, प्रेरितों और भविष्यवक्ताओं द्वारा दिया गया लेखा-जोखा है, जिसे बाद की पीढ़ियों ने प्राचीन लेखों की ऐसी पुस्तक के रूप में संकलित किया जो लोगों को विशेष रूप से पवित्र प्रतीत होती है, ऐसी पुस्तक जिसमें वे मानते हैं कि अनेक अथाह और गहन रहस्य हैं जो भावी पीढ़ियों द्वारा बाहर लाए जाने का इन्तज़ार कर रहे हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (4))। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमें साफ़ तौर पर बताते हैं कि बाइबल के लेखक मनुष्य हैं, परमेश्वर नहीं। इंसानी दस्तावेज़ में ज़रूर इंसानी ख्याल और गलतियां घुली-मिली होंगी। अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आज बाइबल के इन रहस्यों का खुलासा न किया होता, तो हम कभी न समझ पाये होते।

"बाइबल के बारे में रहस्य का खुलासा" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 6: चूंकि पौलुस ने कहा, "सम्पूर्ण पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है," यह गलत नहीं हो सकता। परमेश्वर मानवजाति को पौलुस की मार्फ़त बता रहे थे कि धर्मग्रंथ पूरी तरह से परमेश्वर से प्रेरित थे और पूरी तरह से परमेश्वर के वचन हैं। क्या आप इसे नकारने की हिम्मत करते हैं?

अगला: प्रश्न 8: लेकिन हम बाइबल से दूर हो जाने पर भी परमेश्वर में कैसे विश्वास करते रह सकते हैं और जीवन पा सकते हैं?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

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