305 ऐसी तर्कशीलता के साथ तुम परमेश्वर से संपर्क करने में अयोग्य हो
1 तुम लोगों के लिए सबसे अच्छा यह होगा कि तुम सब स्वयं को जानने की सच्चाई पर ज़्यादा ध्यान दो। तुम लोग परमेश्वर की कृपा क्यों नहीं प्राप्त कर पाए हो? तुम्हारा स्वभाव उसे घिनौना क्यों लगता है? तुम्हारे शब्द उसके अंदर जुगुप्ता क्यों उत्पन्न करते हैं? जैसे ही तुम लोग थोड़ी-सी निष्ठा दिखाते हो, तो खुद ही तुम अपनी तारीफ करने लगते हो और अपने छोटे से योगदान के लिए पुरस्कार चाहते हो; जब तुम थोड़ी-सी आज्ञाकारिता दिखाते हो तो दूसरों को नीची दृष्टि से देखते हो, और कोई छोटा-मोटा काम संपन्न करते ही तुम परमेश्वर का अनादर करने लगते हो। तुम लोग परमेश्वर का स्वागत करने के बदले में धन-संपत्ति, भेंटों और प्रशंसा की अभिलाषा करते हो। एक या दो सिक्के देते हुए भी तुम्हारा दिल दुखता है; जब तुम दस सिक्के देते हो तो तुम आशीषों की और दूसरों से विशिष्ट माने जाने की अभिलाषा करते हो। तुम लोगों जैसी मानवता के बारे में तो बात करना और सुनना भी अपमानजनक है। क्या तुम्हारे शब्दों और कार्यों में कुछ प्रशंसा योग्य है?
2 तुम लोग भली-भांति जानते हो कि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, फिर भी तुम परमेश्वर के अनुरूप नहीं हो सकते हो। तुम लोग भली-भांति यह जानते हुए भी कि तुम सब बिल्कुल अयोग्य हो, तुम लोग डींगें मारते रहते हो। क्या तुम्हें ऐसा महसूस नहीं होता कि तुम्हारी समझ इतनी खराब हो चुकी है कि तुम्हारे पास अब आत्म-नियंत्रण ही नहीं रहा है? इस तरह की समझ के साथ तुम लोग परमेश्वर के साथ संगति करने के योग्य कैसे हो सकते हो? क्या तुम लोगों को इस मुकाम पर अपने लिए डर नहीं लगता है? तुम्हारा स्वभाव पहले ही इतना खराब हो चुका है कि तुम परमेश्वर के अनुरूप होने में समर्थ नहीं हो। इस बात को देखते हुए, क्या तुम लोगों की आस्था हास्यास्पद नहीं है? क्या तुम्हारी आस्था बेतुकी नहीं है? तुम अपने भविष्य से कैसे निपटोगे? तुम उस मार्ग का चुनाव कैसे करोगे जिस पर तुम्हें चलना है?
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो मसीह के साथ असंगत हैं वे निश्चित ही परमेश्वर के विरोधी हैं से रूपांतरित