111 चल रहा हूँ पथ पर राज्य की ओर मैं
1
चल रहा हूँ राज्य की ओर,
पढ़ रहा हूँ वचन परमेश्वर के, करता हूँ मैं आदर उनका।
ओह, इतने सार्थक वचन,
बेहद सच्चे, नक्श हो गये दिल पर मेरे।
हे परमेश्वर, फ़िक्र है तुम्हें,
कहीं धोखा न दे दे, टुकड़े न कर दे शैतान मेरे।
राह दिखाई तुम्हारे वचनों ने मुझे,
सच्चा जीवन दिया, इस पथ पर पहुँचाया मुझे।
2
तुम्हारे वचनों के काम से,
देखी है इस जगत की बुराई और अंधेरा मैंने।
दुष्ट चलन से त्रस्त हूँ मैं,
कोई इंसानी समानता नहीं है मुझमें।
भटकता था जगत में,
नाउम्मीद में, दिल में अंधेरा लिये।
तुम्हीं थे मुझे बचाया जिसने!
तुम्हारे वचनों में लिपटा, बढ़ा, मज़बूत हुआ मैं।
3
प्रकट करते हैं वचन परमेश्वर के सत्य,
भ्रष्टता और कुरूपता मेरी।
ख़ुदगर्ज़, लालची, अहंकारी,
झूठ से ग्रसित, लगभग अमानुषी!
गिरता हूँ परमेश्वर के कदमों में,
पश्चाताप में डूबा, होता हूँ समर्पित उसके न्याय को।
सत्य की खोज का,
परमेश्वर के वचनों पर अमल का,
और इंसान के समान जीने का संकल्प करता हूँ।
4
राज्य की ओर चल रहा हूँ,
ख़ुश हूँ मैं, सुसमाचार साझा कर रहा हूँ।
कितना मुश्किल है चलना इस राह पर,
ज़ुल्म बढ़ते जाते हैं दिन-ब-दिन!
एक कदम न चल सका मैं।
राह दिखाते हैं, विश्वास और हौसला देते हैं मुझे, वचन परमेश्वर के।
अंत तक करूँगा अनुसरण परमेश्वर का मैं,
पाकर अनुमोदन परमेश्वर से, ख़ुशी-ख़ुशी मर जाऊँगा मैं।
पाकर अनुमोदन परमेश्वर से, ख़ुशी-ख़ुशी मर जाऊँगा मैं।