18 जब राज्य की सलामी गूँजती है
1
राज्य का युग अब पहले की तरह नहीं है।
इंसान के काम से इसका सरोकार नहीं है।
धरती पर आकर परमेश्वर अपना कार्य करता है,
इंसान उस कार्य का न तो अनुमान लगा सकता, न कर सकता है।
राज्य का निर्माण जब शुरू होता है,
तो देहधारी परमेश्वर अपनी सेवकाई शुरू करता है।
सम्राट सर्वोच्च सामर्थ्य हासिल करता है।
विश्व में राज्य उतर आया है।
2
अधीन है सब परमेश्वर की दया और प्रेम के,
साथ ही न्याय और परीक्षण के।
हो चुका था भ्रष्ट इंसान फिर भी ईश्वर,
इंसान के लिए दयालु, प्रेमी रहा है।
दी है ताड़ना एक बार परमेश्वर ने इंसान को,
जबकि समर्पित कर दिया था सबने ख़ुद को परमेश्वर के।
मगर क्या मध्य में नहीं हैं सब,
परमेश्वर के भेजे दुख और ताड़ना के?
जब गूँजे सलामी राज्य की, तब गूँजें सात गर्जनाएँ भी,
कँपा दे ये धरती और स्वर्ग को, हिला दे उच्चतम आकाश को;
थरथरा दे इंसान के दिल के तारों को।
गूंजे स्तुति-गान राज्य का बड़े लाल अजगर के देश में,
सिद्ध करे इसके देश को तबाह किया,
और परमेश्वर ने धरती पर अपना राज्य स्थापित किया।
3
अपने पुत्रों, प्रजा की चरवाही के लिये
भेज रहा परमेश्वर दुनिया के देशों में अब अपने स्वर्गदूतों को।
इससे मदद मिले उसके कार्य के अगले चरण को।
परमेश्वर युद्ध करे, बड़े लाल अजगर के बिल में जाकर।
देखेंगे लोग जब परमेश्वर को, देह में किये उसके कामों को,
तो अंत होगा अजगर का, राख में बदलेगा बिल उसका।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 10 से रूपांतरित