373 लोग परमेश्वर से ईमानदारी से प्रेम क्यों नहीं करते?
1
ईश्वर ने हर चीज़ बनाई, इंसान बनाए, और आज वो लोगों के बीच आ गया है,
पर इंसान उस पर वार करे, बदला ले।
क्या ईश्वर के काम से उसे लाभ नहीं?
क्या वो उसे संतुष्ट नहीं कर पाता? इंसान ईश्वर को नकारता क्यों है?
इंसान इतना रूखा, उदासीन क्यों है? धरती लाशों से ढकी क्यों है?
क्या ईश्वर की बनाई दुनिया की हालत ये है?
जिस इंसान को वो इतनी संपदा देता,
उस इंसान के हाथ उसके लिए ख़ाली क्यों हैं?
इंसान उसके वचनों को संजोता क्यों नहीं?
इंसान उसके वचनों को नकारता क्यों है?
ईश्वर निंदा नहीं करता; वो चाहता है बस,
इंसान शांत होकर आत्म-चिंतन करे।
2
ईश्वर ने सब चीज़ें बनाईं, इंसान बनाए,
और आज वो लोगों के बीच आ गया है,
पर इंसान उस पर वार करे, बदला ले।
क्या ईश्वर के काम से उसे लाभ नहीं?
क्या वो उसे संतुष्ट नहीं कर पाता?
इंसान ईश्वर से सच्चा प्रेम क्यों नहीं करता?
इंसान कभी उसके सामने क्यों नहीं आता?
क्या बेकार हो गए उसके सारे वचन?
क्या पानी से ताप की तरह गायब हो गए उसके वचन?
इंसान उससे सहयोग करने को तैयार क्यों नहीं है?
इंसान उसके वचनों को संजोता क्यों नहीं?
इंसान उसके वचनों को नकारता क्यों है?
ईश्वर निंदा नहीं करता; वो चाहता है बस,
इंसान शांत होकर आत्म-चिंतन करे।
3
क्या ईश्वर का दिन इंसान की मौत का पल है?
क्या ईश्वर कर सकता उसे तबाह ईश-राज्य बनने पर?
उसकी प्रबंधन योजना के दौरान, किसी ने भी
समझी क्यों नहीं इच्छा उसकी?
इंसान उसके वचनों को संजोता क्यों नहीं?
इंसान उसके वचनों को नकारता क्यों है?
ईश्वर निंदा नहीं करता; वो चाहता है बस,
इंसान शांत होकर आत्म-चिंतन करे।
ईश्वर निंदा नहीं करता; वो चाहता है बस,
इंसान शांत होकर आत्म-चिंतन करे।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 25 से रूपांतरित