प्रश्न 4: धार्मिक पादरी और एल्डर्स प्रभु के वचनों को फैलाने या उनके इरादों की चर्चा करने के बजाय, अक्सर बाइबल में मनुष्य के कथनों और ख़ासकर पौलुस के कथनों को समझाते हैं। यही सच है। मैं एक बात नहीं समझ पायी, क्या पूरा बाइबल परमेश्वर से प्रेरित नहीं है? क्या बाइबल की हर बात परमेश्वर का वचन नहीं है? आप बाइबल में मनुष्य के वचनों और परमेश्वर के वचनों में इतना फ़र्क क्यों करते हैं? क्या बाइबल में मनुष्य का हर कथन परमेश्वर से प्रेरित नहीं है?

उत्तर: "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है।" क्या आप जानते हैं कि यह बात किसने कही थी? क्या इसे परमेश्वर ने कहा या मनुष्य ने? किस आधार पर आप यह कहते हैं "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है?" "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है।" इस बात को यहोवा परमेश्वर ने नहीं कहा था, या प्रभु यीशु ने कहा या पवित्र आत्मा ने, बल्कि पौलुस ने कहा था। पौलुस मसीह नहीं हैं; वे सिर्फ एक भ्रष्ट मनुष्य हैं। वे कैसे जान सकते थे कि पूरी बाइबल परमेश्वर से प्रेरित है? बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से रची गयी थी या नहीं, यह बात सिर्फ परमेश्वर जानते हैं। सिर्फ मसीह इस सवाल का जवाब साफ तौर पर दे सकते हैं, क्योंकि मनुष्य को बिल्कुल नहीं मालूम और वह इन चीज़ों को नहीं समझ सकता। बाइबल तब शुरू हुई जब मूसा ने उत्पत्ति को लिखा, और कम-से-कम 1,000 साल बाद प्रभु यीशु ने अपना कार्य शुरू किया। पौलुस बाइबल के लेखकों में से किसी को भी नहीं जानते थे। वे कैसे जान पाते कि उन लोगों के वचन परमेश्वर से प्रेरित थे? क्या वे लेखक पौलुस को बता सके थे कि उनके सभी वचन परमेश्वर से प्रेरित थे? इससे पता चलता है कि पौलुस ने जो कहा उसका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है! उन्होंने जो कहा वह सिर्फ उनका बाइबल का निजी ज्ञान था। उन्होंने प्रभु यीशु का प्रतिनिधित्व नहीं किया और यही नहीं, पवित्र आत्मा का भी प्रतिनिधित्व नहीं किया। यही सच है! पौलुस के इन कथनों के आधार पर ही धार्मिक पादरी और एल्डर्स तय कर देते हैं कि बाइबल के सभी वचन परमेश्वर से प्रेरित हैं और परमेश्वर के वचन हैं। यह ऐतिहासिक तथ्य से बिल्कुल उल्टी बात है! प्रेरितों के युग में, प्रेरितों के पत्र कलीसिया को सौंपे जाने के बाद, सबने यही कहा होगा कि वे प्रेरितों के शब्द थे, भाई पौलुस के शब्द थे। किसी ने यह नहीं कहा होगा कि ये वचन परमेश्वर से प्रेरित थे या ये प्रभु यीशु के वचन थे। यहाँ तक कि खुद पौलुस ने भी यह कहने की हिम्मत नहीं की होगी कि उनके वचन परमेश्वर के वचन हैं, या वे परमेश्वर से प्रेरित हैं, ऐसा तो नहीं कहा होगा कि उन्होंने प्रभु यीशु की तरफ से बात की है। इसलिए, यह वाक्यांश "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है।" सही साबित नहीं हो सकता! "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है।" सिर्फ अकेले पौलुस ने कहा था, और यह सिर्फ पुराने नियम का हवाला देता है, फिर भी सब लोग इस पर यकीन करते हैं। लोग पौलुस के इस कथन पर क्यों यकीन करते हैं? अगर किसी और ने यह कहा होता तो क्या उन्हें यकीन होता? यह इस बात को साबित करने के लिए काफी है कि लोग पौलुस में बेहद अंधा यकीन करते हैं और उनकी आराधना करते हैं। पौलुस की हर बात को परमेश्वर का वचन मान लिया जाता है। क्या ये मनुष्य की धारणाएं और कल्पनाएँ नहीं हैं? इससे साफ़ पता चलता है कि लोगों के दिलों में प्रभु यीशु नहीं, सिर्फ पौलुस बसे हैं। ये सब ऐसे लोग हैं जो प्रभु से डरने और प्रभु का गुणगान करने के बजाय, मनुष्य की आराधना और उसका अनुसरण करते हैं।

"तोड़ डालो अफ़वाहों की ज़ंजीरें" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 3: जो भी हो, सारे पादरी और एल्डर तो बाइबल के आधार पर ही उपदेश देते हैं। क्या बाइबल की व्याख्या करना और लोगों को उससे जोड़े रखना, प्रभु का गुणगान करना और उनकी गवाही देना नहीं है? क्या पादरियों और एल्डर्स का बाइबल की व्याख्या करना गलत है? आप ऐसा कैसे कह सकती हैं कि वे पाखंडी फरीसी हैं?

अगला: प्रश्न 5: मुझे यकीन है कि पूरी बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से रची गयी है! पौलुस के वचन गलत नहीं हो सकते! चूंकि आप बाइबल में परमेश्वर के वचनों और मनुष्य के कथनों में फर्क कर पाते हैं, तो फिर बताइए कोई कैसे समझे कि कौन-से वचन परमेश्वर के हैं और कौन-से मनुष्य के?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

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