41 विश्व का पतन हो रहा है, राज्य आकार ले रहा है
1
मेरे वचन नर्म हों तुम लोगों के लिये,
तुम इस इंतज़ार में हो, मगर फिर सोचो!
किससे व्यवहार कर रहा हूँ मैं,
इस पर निर्भर हैं वचन मेरे।
उनसे सौम्य, दिलासापूर्ण होता लहजा मेरा,
है जिनसे प्यार मुझे।
मगर होता न्यायपूर्ण, कठोर,
ताड़ना देने वाला, रोषपूर्ण तुम लोगों के लिये।
दिन-ब-दिन पतन होता दुनिया का।
दिन-ब-दिन निधन होता मानव का।
दिन-ब-दिन आकार लेता राज्य मेरा।
दिन-ब-दिन विकास होता मेरे लोगों का।
दिन-ब-दिन बढ़ता आक्रोश मेरा।
दिन-ब-दिन कड़ी होती ताड़ना मेरी।
दिन-ब-दिन कठोर होते वचन मेरे, दिन-ब-दिन।
2
हैं बहुत तनावपूर्ण
हालात हर देश में।
दिन-ब-दिन स्थिति बिगड़ रही है, बिखर रही है,
हर देश के अगुवा किसी भी तरह,
कोशिश करते सत्ता हथियाने की।
बेख़बर इस बात से,
आ रही है ताड़ना उन पर मेरी।
कोशिश करते वे मेरा सामर्थ्य कब्ज़ाने की,
रहते दुनिया में सपनों की!
दिन-ब-दिन पतन होता दुनिया का।
दिन-ब-दिन निधन होता मानव का।
दिन-ब-दिन आकार लेता राज्य मेरा।
दिन-ब-दिन विकास होता मेरे लोगों का।
दिन-ब-दिन बढ़ता आक्रोश मेरा।
दिन-ब-दिन कड़ी होती ताड़ना मेरी।
दिन-ब-दिन कठोर होते वचन मेरे, दिन-ब-दिन।
3
राज करने का हक सब पर रखता हूँ सिर्फ़ मैं
मुझी पर है सब-कुछ निर्भर।
जो करते जाँच मेरी, फ़ौरन मार दूँगा उन्हें मैं,
क्योंकि आ चुका है काम मेरा इस मुकाम पर।
हर दिन नया प्रकाशन, हर दिन नया प्रकाश।
हो रहा है पूरा सब-कुछ लगातार।
अंतिम दिन शैतान का आख़िरकार
आता जा रहा पास लगातार।
दिन-ब-दिन पतन होता दुनिया का।
दिन-ब-दिन निधन होता मानव का।
दिन-ब-दिन आकार लेता राज्य मेरा।
दिन-ब-दिन विकास होता मेरे लोगों का।
दिन-ब-दिन बढ़ता आक्रोश मेरा।
दिन-ब-दिन कड़ी होती ताड़ना मेरी।
दिन-ब-दिन कठोर होते वचन मेरे, दिन-ब-दिन।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 82 से रूपांतरित