प्रश्न 6: बाइबल कहती है कि प्रभु यीशु का बपतिस्मा होने के बाद, स्वर्ग के द्वार खुल गए थे, और पवित्र आत्मा एक कबूतर की तरह प्रभु यीशु पर उतर आया था, एक आवाज ने कहा था: "यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिससे मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ" (मत्ती 3:17)। और हम सभी विश्वासी मानते हैं कि प्रभु यीशु ही मसीह यानी परमेश्वर के पुत्र हैं। फिर भी आप लोगों ने यह गवाही दी है कि देहधारी मसीह परमेश्वर का प्रकटन यानी स्वयं परमेश्वर हैं, यह कि प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर भी स्वयं परमेश्वर हैं। यह बात हमारे लिए काफ़ी रहस्यमयी है और हमारी पिछली समझ से अलग है। तो क्या देहधारी मसीह स्वयं परमेश्वर हैं या परमेश्वर के पुत्र हैं? दोनों ही स्थितियां हमें उचित लगती हैं, और दोनों ही बाइबल के अनुरूप हैं। तो कौन सी समझ सही है?

उत्तर: आप लोगों ने जो सवाल उठाया है ठीक वही सवाल है जिसे ज्यादातर विश्वासियों को समझने में परेशानी होती है। जब देहधारी प्रभु यीशु मानवजाति के छुटकारे का कार्य करने के लिए आये थे, तो लोगों के बीच प्रकट होकर कार्य करते हुए, परमेश्वर मनुष्य के पुत्र बन गए। उन्होंने न केवल अनुग्रह के युग का आरंभ किया, बल्कि एक नए युग की भी शुरुआत की जिसमें परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के बीच रहने के लिए मनुष्यों की दुनिया में आये। पूरी श्रद्धा के साथ, मनुष्य ने प्रभु यीशु को मसीह यानी परमेश्वर का पुत्र कहा। उस समय, पवित्र आत्मा ने भी इस तथ्य की गवाही दी कि प्रभु यीशु परमेश्वर के प्रिय पुत्र हैं, और प्रभु यीशु स्‍वर्ग के परमेश्‍वर को पिता कहते थे। इस तरह, लोगों ने विश्वास किया कि प्रभु यीशु परमेश्वर के पुत्र हैं। इस तरीके से, पिता-पुत्र के इस संबंध की धारणा बनी। अब हम एक पल के लिए विचार करते हैं। क्या परमेश्वर ने उत्पत्ति (के अध्याय) में कहीं भी कहा है उनका कोई बेटा है? अब व्यवस्था के युग के दौरान, क्या यहोवा परमेश्वर ने कभी कहा था कि उनका कोई बेटा है? उन्होंने ऐसा नहीं कहा था! इससे साबित होता है कि परमेश्वर सिर्फ़ एक हैं, पिता-पुत्र के संबंध की कहीं कोई बात नहीं है। अब कुछ लोग यह पूछ सकते हैं: अनुग्रह के युग के दौरान, प्रभु यीशु ने ऐसा क्यों कहा कि वे परमेश्वर के पुत्र थे? प्रभु यीशु मसीह परमेश्वर के पुत्र थे या स्वयं परमेश्वर थे? आप लोग कह सकते हैं, यह एक ऐसा सवाल है जिस पर हम विश्वासियों ने सदियों से बहस की है। लोग इस मुद्दे में निहित विरोधाभास को अनुभव करते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि इसे कैसे समझाया जाए। प्रभु यीशु परमेश्वर हैं, लेकिन परमेश्वर के पुत्र भी हैं, तो क्या कोई परमपिता परमेश्वर भी है? लोग इस विषय को भी अच्छी तरह समझाने में असमर्थ हैं। पिछले दो हज़ार सालों में, ऐसे लोग बहुत कम हैं जिन्होंने यह पहचाना कि प्रभु यीशु मसीह स्वयं परमेश्वर हैं, परमेश्वर का प्रकटन हैं। दरअसल, बाइबल में स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख है। यूहन्ना 14:8 में, फिलिप्‍पुस ने प्रभु यीशु से पूछा था: "हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे, यही हमारे लिये बहुत है।" अब, उस समय, प्रभु यीशु ने फिलिप्पुस को कैसे जवाब दिया? प्रभु यीशु ने फिलिप्पुस से कहा था: "हे फिलिप्पुस, मैं इतने दिन से तुम्हारे साथ हूँ, और क्या तू मुझे नहीं जानता? जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है। तू क्यों कहता है कि पिता को हमें दिखा? क्या तू विश्‍वास नहीं करता कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है? ये बातें जो मैं तुम से कहता हूँ, अपनी ओर से नहीं कहता, परन्तु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है। मेरा विश्‍वास करो कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है; नहीं तो कामों ही के कारण मेरा विश्‍वास करो" (यूहन्ना 14:9-11)। यहाँ, प्रभु यीशु ने बहुत स्पष्ट रूप से कहा, "जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है।" जैसा कि आप लोग देख सकते हैं, प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर का प्रकटन हैं। यहाँ प्रभु यीशु ने ऐसा नहीं कहा था कि उनके और परमेश्वर के बीच पिता-पुत्र का संबंध है। उन्होंने कहा, "मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है।" "मैं और पिता एक हैं" (यूहन्ना 10:30)। अब, प्रभु यीशु के वचनों के अनुसार, क्या हम इस बात की पुष्टि नहीं कर सकते कि प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर हैं, परमेश्वर सिर्फ़ एक है और "पिता-पुत्र के संबंध" जैसी कोई बात नहीं है?

"भक्ति का भेद - भाग 2" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 5: अनुग्रह के युग में परमेश्वर ने पाप की भेंट बनने और मनुष्य के पापों का बोझ अपने ऊपर लेने के लिए देह धारण की थी। इन सारी बातों का कोई कारण है। प्रभु यीशु को पवित्र आत्मा ने राजी किया था और वे अपने पापरहित शरीर में मानवजाति के छुटकारे के लिए मनुष्य के पुत्र बने। सिर्फ़ ऐसा करने की वजह से ही शैतान को नीचा दिखाया गया। अंत के दिनों में, परमेश्वर ने न्याय का कार्य करने के लिए मनुष्य के पुत्र के रूप में फिर से देह धारण की है। हमने इसे हकीकत के तौर पर देखा है। मैं यही पूछना चाहता था। परमेश्वर के दो देह धारण थोड़े अलग-अलग हैं, पहला यहूदिया में था, और दूसरा चीन में है। अब, ऐसा क्यों है कि मानवजाति को बचाने का कार्य करने के लिए परमेश्वर को दो बार देह धारण करना चाहिए? परमेश्वर के दो देहधारणों का असली महत्व क्या है?

अगला: प्रश्न 7: अगर प्रभु यीशु स्वयं परमेश्वर हैं, तो ऐसा क्यों है कि जब प्रभु यीशु प्रार्थना करते हैं, तो वे परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं। यहाँ निश्चित रूप से एक रहस्य है जिसे उजागर करना जरूरी है। हमारे लिए चर्चा करें।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

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