176 ईश्वर इंसान की ज़रूरत के कारण काम करने के लिए देह बना

ईश्वर को नहीं मिलना कोई इनाम या फायदा।

न मिलेगा आगे लाभ, मिलेगा उतना ही जो उसका था।

उसके काम खुद के लिए नहीं,

हैं इंसान के फायदे के लिए, बस इंसान के लिए।


1

देह में ईश्वर का काम है बहुत ही ज़्यादा कठिन,

लेकिन अंत में आत्मा के काम से ज़्यादा फल मिलते हैं।

देह में नहीं हो सकती आत्मा की महान पहचान,

न कर सके देह अलौकिक कर्म आत्मा के जैसे,

आत्मा का अधिकार तो इसमें बिल्कुल नहीं।

लेकिन यह आम देह जो काम करे,

उसका सार आत्मा के सीधे काम के सार से बेहतर होता है।

ये देह स्वयं इंसानों की ज़रूरतें पूरे करे।


ईश्वर देह में आया है बस इंसान की

ज़रूरतों के लिए, न कि ईश्वर की ज़रूरतों के लिए।

उसके त्याग और कष्ट, सभी हैं इंसान के लिए

न कि स्वयं परमेश्वर के लिए।


2

जो खोजते सत्य, तरसते ईश्वर के प्रकटन के लिए,

उन्हें आत्मा के काम से बस प्रेरणा मिल सके,

बयां न किया जा सके, ऐसा अद्भुत एहसास मिले,

वह श्रेष्ठ है, स्तुति-योग्य है, लेकिन इंसान

की पहुँच से परे है, ये एहसास मिले।

लेकिन देह का काम इंसान को दे

स्पष्ट वचन, असल लक्ष्य अनुसरण के लिए,

देह है असल और सामान्य, ये एहसास मिले,

वो है नम्र, है आम ये एहसास मिले।


ईश्वर देह में आया है बस इंसान की

ज़रूरतों के लिए, न कि ईश्वर की ज़रूरतों के लिए।

उसके त्याग और कष्ट, सभी हैं इंसान के लिए

न कि स्वयं परमेश्वर के लिए।


3

भले ही लोग डरें देहधारी ईश्वर से, पर वे उससे जुड़ सकें।

उसके चेहरे को देख सकें, उसकी आवाज़ सुन सकें,

बस दूर से देखने की कोई मजबूरी नहीं।

इंसान को लगे वो इस देह के करीब जा सके,

वो न तो बहुत दूर है, न समझ के परे,

उसे इंसान देख सके, छू सके क्योंकि वो है इंसानी दुनिया में।


ईश्वर देह में आया है बस इंसान की

ज़रूरतों के लिए, न कि ईश्वर की ज़रूरतों के लिए।

उसके त्याग और कष्ट, सभी हैं इंसान के लिए

न कि स्वयं परमेश्वर के लिए।


—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, भ्रष्ट मनुष्यजाति को देहधारी परमेश्वर द्वारा उद्धार की अधिक आवश्यकता है से रूपांतरित

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