प्रश्न 1: आप कहते हैं कि अंत के दिनों में न्याय के कार्य करने के लिए परमेश्वर देहधारी होते हैं। क्या बाइबल में इसका कोई आधार है, या क्या यह बाइबल की किन्हीं भविष्यवाणियों को पूरा करता है? बाइबल से जुड़े आधार के बिना, हमें इस पर विश्वास करने में इतनी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
उत्तर: परमेश्वर के कार्य की किसी भी प्रमुख घटना की भविष्यवाणी बाइबल में पहले से ही कर दी गई है, और प्रभु यीशु के दोबारा आगमन और अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य से संबंधित काफी भविष्यवाणियां हैं। लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि भविष्यवाणियां लोगों को सिर्फ़ यह बताती हैं कि आगे क्या होगा। ये लोगों को अंत के दिनों में सावधान रहने और ध्यान से खोज औऱ जांच-पड़ताल करने की याद दिलाती हैं, ताकि वे परमेश्वर उनका परित्याग न करें और उन्हें हटाएं नहीं। भविष्यवाणियां सिर्फ़ यही कर सकती हैं। भविष्यवाणियां परमेश्वर के कार्य को जानने में, और सत्य को समझने में, या परमेश्वर की आज्ञा मानने में या परमेश्वर के प्रति अपना प्रेम बढ़ाने में हमारी सहायता नहीं कर सकतीं। इसलिए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के व्यक्त वचनों और उनके द्वारा किए गए कार्य की सीधे तौर पर जांच करना और उससे यह निर्धारित करना कि क्या वाकई वे परमेश्वर की वाणी और अभिव्यक्ति हैं, यही हमारे लिए बेहतरीन तरीका है। यह सबसे महत्वपूर्ण और बुद्धिमत्तापूर्ण कार्यप्रणाली है। यह बाइबल की भविष्यवाणियों में आधार खोजने की तुलना में अधिक यथार्थवादी और उपयोगी है। हम सभी जानते हैं कि जब प्रभु यीशु कार्य करने के लिए आए थे, तब जिन प्रेरितों और विश्वासियों ने उनका अनुसरण किया था, सिर्फ़ उन्होंने धीरे-धीरे, उनके कार्यों और वचनों से जाना कि प्रभु यीशु ही मसीह थे, वे मसीहा जिनके आने की भविष्यवाणी की गई थी। उन मुख्य याजकों, शास्त्रियों, और फरीसियों ने, जो व्यवस्थाओं को जानते थे और बाइबल का अध्ययन किया था, उन्हें बहुत अच्छी तरह से पता था कि प्रभु यीशु के वचन सत्य थे, उनमें अधिकार और सामर्थ्य था, लेकिन क्योंकि वे सत्य से घृणा करते थे, उन्होंने न सिर्फ़ प्रभु यीशु का पालन करने से इनकार कर दिया, बल्कि प्रभु यीशु का विरोध और तिरस्कार करने के लिए उन्होंने बाइबल के वचनों और नियमों का इस्तेमाल किया और आखिरकार उन्हें सूली पर चढ़ा दिया। इससे हमें पता चलता है कि बाइबल प्रभु के पुनरागमन को स्वीकारने में हमारा नेतृत्व या मार्गदर्शन नहीं कर सकती है। हम में से जो कोई भी प्रभु की वापसी का इंतज़ार करते हैं, बाइबल उनका सिर्फ़ समर्थन करती है। बुद्धिमान कुंवारियां बाइबल का उपयोग करके दूल्हे का स्वागत नही करतीं। जब वे दूल्हे की आवाज़ सुनती हैं, वे यह निश्चित करती हैं कि यह परमेश्वर की वाणी है और फ़िर वे प्रभु से मिलने के लिए जाती हैं। जो लोग परमेश्वर की वाणी को खोजने के बजाय बाइबल की भविष्यवाणी पर भरोसा करते हैं, और जो अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को अस्वीकार करते हैं और उनकी निंदा करते हैं- वे सबसे बड़ी मूर्ख कुंवारियां हैं, जिन्हें परमेश्वर छोड़ देंगे और समाप्त कर देंगे।
आइए अब हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन का एक अंश पढ़ते हैं। "क्या तुम बिना कोई प्रश्न किए, पवित्र आत्मा के समस्त कार्य को स्वीकार कर सकते हो? यदि यह पवित्र आत्मा का कार्य है, तो यह धारा सही है और तुम्हें बिना किसी आशंका के इसे स्वीकार कर लेना चाहिये; और क्या स्वीकार करना है, इसे लेकर तुम्हें कोई आनाकानी नहीं करनी चाहिए। यदि तुम परमेश्वर के बारे में और अधिक अंतर्दृष्टि पाते हो फिर भी उसके खिलाफ ज़्यादा चौकस रहने लगते हो, तो क्या यह अनुचित नहीं है? तुम्हें बाइबल में और अधिक प्रमाण की तलाश नहीं करनी चाहिए; अगर यह पवित्र आत्मा का कार्य है, तो तुम्हें उसे स्वीकार कर लेना चाहिये, क्योंकि तुम परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए परमेश्वर पर विश्वास करते हो, तुम्हें उसकी जाँच-पड़ताल नहीं करनी चाहिए। यह दिखाने के लिए कि मैं तुम्हारा परमेश्वर हूँ, तुम्हें मुझसे और सबूत नहीं माँगने चाहिए, बल्कि तुम्हें यह विचार करने में सक्षम होना चाहिए कि क्या मैं तुम्हारे लिए लाभदायक हूँ, यही सबसे महत्वपूर्ण बात है। भले ही तुम्हें बाइबल में बहुत सारे अखंडनीय सबूत प्राप्त हो जाएँ, फिर भी ये तुम्हें पूरी तरह से मेरे सामने नहीं ला सकते। तुम केवल बाइबल के दायरे में ही रहते हो, न कि मेरे सामने; बाइबल मुझे जानने में तुम्हारी सहायता नहीं कर सकती है, न ही यह मेरे लिए तुम्हारे प्रेम को गहरा कर सकती है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?)। यह जानने के लिए कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर फ़िर से लौटे हुए प्रभु यीशु हैं, हम पूरी तरह से सिर्फ़ बाइबल के प्रमाणों पर निर्भर नहीं रह सकते। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचन सत्य हैं, क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर जो व्यक्त करते हैं वह परमेश्वर का स्वभाव है और क्या वही परमेश्वर का अस्तित्व है, क्या सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हमारे लिए आवश्यक सत्य, मार्ग और जीवन हैं, क्या वे परमेश्वर में विश्वास के बारे में हमारी सभी उलझनों को दूर कर सकते हैं, क्या वे हमें हमारे शैतानी स्वभावों और शैतानी प्रकृति से बचा सकते हैं, और क्या वे शैतान के प्रभाव से बचने, पवित्रता पाने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने में हमारी सहायता कर सकते हैं। यही सबसे महत्वपूर्ण कारक है।
"सिंहासन से बहता है जीवन जल" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश