968 परमेश्वर का स्वभाव पवित्र और निर्दोष है
1
जब नीनवे के लोगों ने उपवास किया,
टाट ओढ़ा, राख मली,
ईश्वर का दिल पिघलने लगा।
उसने कुछ ही पल पहले गुस्से से कहा था
कि वो शहर नष्ट कर देगा।
पर जब उन्होंने पाप स्वीकारे, पछतावा किया,
तो ईश्वर का गुस्सा दया और सहनशीलता में बदल गया।
इंसान के पछतावे और आचरण के अनुसार
ईश्वर का स्वभाव क्रोध, दया और सहनशीलता दिखाए।
उसकी अभिव्यक्ति शुद्ध और प्रत्यक्ष है,
जिसका सार सृष्टि की सभी चीज़ों से अलग है।
2
लोगों के बुरे कामों के प्रति ईश्वर के भयंकर
क्रोध में दोष नहीं।
इंसान को पछताते देख उसका दिल पिघल जाए—
उसका दिल बदल जाए।
जब द्रवित होकर वह इंसान के लिए
दया और सहनशीलता दिखाए,
तो उसकी अभिव्यक्ति साफ, शुद्ध और बेदाग रहे।
ईश्वर की सहनशीलता शुद्ध है।
ईश्वर की दया भी शुद्ध है।
इंसान के पछतावे और आचरण के अनुसार
ईश्वर का स्वभाव क्रोध, दया और सहनशीलता दिखाए।
उसकी अभिव्यक्ति शुद्ध और प्रत्यक्ष है,
जिसका सार सृष्टि की सभी चीज़ों से अलग है।
3
ईश्वर के कार्यों के पीछे के सिद्धांत
वैसे ही निष्कलंक और निर्दोष हैं,
जैसे उसके द्वारा किए जाने वाले काम और फैसले,
और उसके सभी ख्याल और विचार।
इंसान के पछतावे और आचरण के अनुसार
ईश्वर का स्वभाव क्रोध, दया और सहनशीलता दिखाए।
उसकी अभिव्यक्ति शुद्ध और प्रत्यक्ष है,
जिसका सार सृष्टि की सभी चीज़ों से अलग है।
—वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है II से रूपांतरित