302 पा नहीं सकते थाह परमेश्वर के कार्यों की
1
आसमानों से भी ऊँचा देखते हैं हम प्रताप तुम्हारा।
बिन श्रद्धा हम न आयेंगे कभी तुम्हारी शरण में।
कौन जान सकता है इच्छा तुम्हारी,
किसमें साहस जो महसूस कर पाए क्रोध तुम्हारा?
किसे चाहत है तुम्हारे प्रताप की, कब आएगा प्रताप तुम्हारा?
तुम्हारे हाथों के पालने में यहाँ आसरा हमारा,
माँ के प्यार की तरह, ले रहे आनंद तुम्हारे प्यार की तपन का,
जबकि क्रोध तुम्हारा करता है भयभीत हमें।
तुम वो माँ हो बेहद प्यार करते जिसे हम,
तुम वो पिता हो प्यार और आदर देते जिसे हम।
तुमसे गुप्त रहता है दिल हमारा,
मगर कर नहीं पाते दूर जाने की हिम्मत हम।
और दिलों में तुम्हें महसूस करते हैं अपने करीब हम,
कितना नज़दीक तुम्हें महसूस करते हैं हम।
अनजाने में लगता है थाह तुम्हारी पा सकते नहीं हम।
ओह, तब दूर से ही दे सकते हैं तुम्हें सम्मान हम।
ओह, बस दूर से ही दे सकते हैं तुम्हें सम्मान हम।
2
दिल हमारा प्यार करता है तुम्हें, फिर भी मगर तुमसे डरते हैं हम।
लफ़्ज़ों की क्या कोई अहमियत है?
कैसे बयाँ कर सकती है इंसानी दीवानगी इन अहसासों को?
बस कर सकते हैं इतना हम, ख़ाली हाथ आएं तुम्हारे सामने हम,
और बस बच्चों की तरह, डरे-से, विनती करें तुमसे हम।
हर तरह की हमारी ज़रूरतें पूरी करते हो तुम।
अपार यशगान बुलंद होता है हर्षित दिलों से हमारे।
बेग़रज़ दिया है सबकुछ तुमने, कोई माँग नहीं, शिकायत नहीं कोई।
बमुश्किल देखते हैं चेहरा तुम्हारा,
फिर भी पा लिया हमने सबकुछ तुम्हारा।
ढेरों अशुद्धियाँ हैं ख़ुद हमारे भीतर,
बहुत पहले ही तुमने पा लिया हमारा पूरा वजूद मगर।
कैसे देख सकती
हैं जिस्मानी आँखें पुराने युग में पूरे किये गए तथ्यों को,
पुराने युग में जो तुमने पूरे किये उन तथ्यों को?
3
पुराने ज़माने से, एक छोर से दूसरे छोर तक,
हर चीज़ है उजागर तुम्हारी आँखों में।
ख़ामोश हो जाते हैं हम, किसमें साहस है कि करे तुलना तुमसे।
अनवरत निकलते हैं पूरे काल में वचन तुम्हारे।
कितना विशाल है वैभव तुम्हारा, कह नहीं सकता कोई।
किसमें साहस है कि गुणगान कर सके
सहज लफ़्ज़ों में तुम्हारे उत्तम सौंदर्य का?
किसमें साहस है कि गान कर सके तुम्हारे विनय का आसानी से?
एक पल में हम से दूर होते हो तुम, फिर बीच में होते हो हमारे,
फिर दूर होते हो, फिर करीब हमारे,
कभी दूर, कभी पास होते हो हमारे।
कभी देखे नहीं किसी ने नक्शे-कदम, या साये तुम्हारे।
उमंगभरी यादें हैं बस साथ हमारे।
मधुर, कितना मधुर अनुभव निरंतर साथ है हमारे।
तुम्हारी मौजूदगी का मधुर अनुभव निरंतर साथ है हमारे।
4
ज़मीं, आसमाँ की तरह शाश्वत,
कौन जानता है दायरा तुम्हारे कर्मों का?
रेतीले तट पर देखते हैं हम बस एक कण,
तुम्हारी व्यवस्था के हम इंतज़ार में हैं ख़ामोशी से।
नन्हीं चींटी की तरह,
कैसे कर पाएं हम मुकाबला तुम्हारी ऊँचाई से?
तुम्हारे हाथों शुद्धिकरण हमारा, तुम्हारी करुणा से भरपूर है।
देखते हैं हम तुम्हारी दया में छिपी धार्मिकता तुम्हारी,
देखते हैं हम तुम्हारे पवित्र प्रताप में गुप्त धार्मिकता तुम्हारी,
देखते हैं हम इसे तुम्हारे प्यार में और कर्मों में तुम्हारे।
कौन गिन सके, कर्म अनगिनत हैं तुम्हारे।
कौन गिन सके, कर्म अपार हैं तुम्हारे।
कौन गिन सके, कर्म अनगिनत हैं तुम्हारे।
कौन गिन सके, कर्म अपार हैं तुम्हारे।