प्रश्न 3: मैंने धार्मिक समुदाय के कई पादरी और एल्डर को यह कहते सुना है कि आप जिस पर विश्वास कर रही हैं, वह एक मनुष्य है, न कि यीशु मसीह। फिर भी आप यह गवाही देती हैं कि वह मनुष्य वापस आये प्रभु यीशु हैं, यानी, सर्वशक्तिमान परमेश्वर कार्य करने के लिए प्रकट हुए हैं। क्या आपको पता है कि कम्युनिस्ट पार्टी काफ़ी समय से एक पंथ के रूप में ईसाई धर्म और कैथलिक धर्म की निंदा करती रही है? और आप यह गवाही देने की हिम्मत कर रही हैं कि प्रभु यीशु लौट आये हैं, जो कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं; क्या आप मुसीबत मोल नहीं ले रही हैं? कम्युनिस्ट पार्टी आपको कैसे माफ कर सकती है? कम्युनिस्ट पार्टी तो ईसाई और कैथोलिक धर्म को कुपंथ और और बाइबल को कुपंथी किताब घोषित करने की भी हिम्मत रखती है। यह एक खुला तथ्‍य है। क्या आप यह नहीं जानती? अगर सीसीपी दुनिया के कट्टर धर्मों की निंदा करके उन्‍हें नकार सकती है, तो वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की निंदा क्यों नहीं कर सकती? अगर सीसीपी बाइबल को कुपंथी पुस्‍तक घोषित कर सकती है, तो वह वचन देह में प्रकट होता है को क्‍यों छोड़ेगी? सार्वजनिक सुरक्षा संस्‍थाओं ने इस किताब की कई प्रतियों को ज़ब्‍त कर लिया है। कई लोग इसका अध्ययन कर रहे हैं। मुझे बस यही समझ नहीं आ रहा है। आप लोगों को सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर विश्वास करने की ज़रूरत क्या है? सर्वशक्तिमान परमेश्वर को अंत के दिनों के मसीह साबित करने पर क्यों ज़ोर दिया जा रहा हैं? हम उनके परिवार की पृष्‍ठभूमि के बारे में सब जानते हैं। ठीक यीशु की तरह, जिन पर ईसाई धर्म विश्वास करता है, वे भी एक साधारण इंसान हैं यीशु, एक बढ़ई की संतान थे, उनके माता-पिता और भाई-बहन भी थे। वे बस एक साधारण इंसान थे। फिर भी पूरा ईसाई धर्म यीशु की परमेश्वर की तरह आराधना करता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, जिन पर आप लोग विश्वास करते हैं, वे भी यीशु की तरह ही एक मनुष्य हैं। आपका इस बात पर ज़ोर देना कि वे परमेश्वर हैं, बहुत ही अस्वाभाविक है। एक साधारण इंसान पर विश्वास करने की वजह से आपको इतना अत्याचार और पीड़ा सहनी पड़ी है। क्‍या इसमें कोई फायदा है? मैंने सुना है कि कई लोग ऐसे हैं जिन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए अपने परिवार और पेशे को छोड़ दिया है। मुझे समझ नहीं आता कि आपको इस तरह से परमेश्वर पर विश्वास करने से अंत में क्या हासिल होगा? आपका उनके परमेश्वर होने पर विश्‍वास करने का आधार क्‍या है?

उत्तर: मुझे पता है कि सीसीपी एक नास्तिक क्रांतिकारी पार्टी है जो स्वर्ग के परमेश्वर को पहचानती तक नहीं है। तो वह देहधारी परमेश्वर को कैसे पहचान सकती है? इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि कम्युनिस्ट पार्टी देहधारी मसीह में हमारे विश्वास को अजीब समझती है। धर्मों में बहुत से लोग ऐसे हैं जो सिर्फ स्वर्ग के परमेश्वर को पहचानते हैं, लेकिन देहधारी मसीह को नहीं। इसलिए उन्हें परमेश्वर के कार्य के ज़रिये खत्‍म कर दिया जाता है। हज़ारो सालों से, परमेश्वर ने मानव जाति को बचाने के लिए तीन चरणों में कार्य किया है। परमेश्वर ने अपने कार्य के हर चरण में कई वचन कहे हैं। मानव जाति केवल परमेश्वर के वचनों की वज़‍ह से ही परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने लगी है। अंत के दिनों में, प्रभु यीशु का सुसमाचार पृथ्वी के कोने-कोने तक फ़ैल चुका है। परमेश्वर पर विश्वास करने वाले लोगों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, जो कुल मिलाकर कम से कम दो अरब तक पहुँच गई है। क्या आप इस तथ्य को देख नहीं पाते? लोकतांत्रिक देशों में हर जगह कलीसियाओं को देखा जा सकता है। ईसाई, कैथोलिक और पूर्व की परंपरागत कलीसियाएं, सब-की-सब प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करती हैं। आपको इस बारे में पता होना चाहिए। प्रभु यीशु मसीह देहधारी परमेश्वर हैं। दो हज़ार सालों से, अनगिनत लोग प्रभु यीशु का अनुसरण कर रहे हैं और उनकी गवाही दे रहे हैं। प्रभु यीशु दिखने में साधारण इंसान थे। उनका ऐसा दृढ़ विश्वास क्यों है कि प्रभु यीशु उद्धारकर्ता और परमेश्वर का कार्य रूपी प्रकटन हैं? अगर आप यह जानना चाहते हैं कि परमेश्वर का प्रकटन क्या है और मसीह कौन हैं, तो आपको बाइबल पढ़नी चाहिए ताकि आप समझ सकें कि प्रभु यीशु किस तरह उपदेश देते थे और अपना कार्य करते थे और कैसे पवित्र आत्मा प्रभु यीशु की गवाही देता है। तब आप जान पायेंगे कि लोग प्रभु यीशु में विश्वास क्यों करते हैं। देहधारण अपने आप में ही एक महान रहस्य है। अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, जो प्रकट होते हैं और अपना कार्य करते हैं, उन्होंने मनुष्य के शुद्धिकरण और उद्धार के लिए सारे सत्यों को व्यक्त किया है और बाइबल के सभी रहस्यों से परदा उठाया है। अगर आप परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ते, तो आप परमेश्वर के रहस्यों को कैसे जान सकेंगे? क्या आप जानना चाहते हैं कि देहधारण क्या होता है? अगर ऐसा है तो, सर्वशक्तिमान परमेश्वर कैसे बोलते हैं, यह जानने के लिए सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के बारे में चर्चा करते हैं।

सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "'देहधारण' परमेश्वर का देह में प्रकट होना है; परमेश्वर सृष्टि के मनुष्यों के मध्य देह की छवि में कार्य करता है। इसलिए, परमेश्वर को देहधारी होने के लिए, सबसे पहले देह बनना होता है, सामान्य मानवता वाला देह; यह सबसे मौलिक आवश्यकता है। वास्तव में, परमेश्वर के देहधारण का निहितार्थ यह है कि परमेश्वर देह में रह कर कार्य करता है, परमेश्वर अपने वास्तविक सार में देहधारी बन जाता है, वह मनुष्य बन जाता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार)

"देहधारी हुए परमेश्वर को मसीह कहा जाता है, और इसलिए वह मसीह जो लोगों को सत्य दे सकता है परमेश्वर कहलाता है। इसमें कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि वह परमेश्वर का सार धारण करता है, और अपने कार्य में परमेश्वर का स्वभाव और बुद्धि धारण करता है, जो मनुष्य के लिए अप्राप्य हैं। वे जो अपने आप को मसीह कहते हैं, परंतु परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकते हैं, धोखेबाज हैं। मसीह पृथ्वी पर परमेश्वर की अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि वह विशेष देह भी है जिसे धारण करके परमेश्वर मनुष्य के बीच रहकर अपना कार्य करता और पूरा करता है। यह देह किसी भी आम मनुष्य द्वारा उसके बदले धारण नहीं की जा सकती है, बल्कि यह वह देह है जो पृथ्वी पर परमेश्वर का कार्य पर्याप्त रूप से संभाल सकती है और परमेश्वर का स्वभाव व्यक्त कर सकती है, और परमेश्वर का अच्छी तरह प्रतिनिधित्व कर सकती है, और मनुष्य को जीवन प्रदान कर सकती है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)

"जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर का सार होगा और जो देहधारी परमेश्वर है, उसके पास परमेश्वर की अभिव्यक्ति होगी। चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उस कार्य को सामने लाएगा, जो वह करना चाहता है, और चूँकि परमेश्वर ने देह धारण किया है, इसलिए वह उसे अभिव्यक्त करेगा जो वह है और वह मनुष्य के लिए सत्य को लाने, उसे जीवन प्रदान करने और उसे मार्ग दिखाने में सक्षम होगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)

इन अंशों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने देहधारण के रहस्यों को इतने स्पष्ट रूप से प्रकट किया है। जब हम परमेश्वर के वचन सुनते हैं, तब हम तुरंत समझ जाते हैं कि देहधारण क्या होता है। मनाव जाति के शुद्धिकरण और उद्धार के सत्य को केवल देहधारी परमेश्वर ही व्यक्त कर सकते हैं। क्या यह परमेश्वर का प्रकटन और कार्य नहीं है? क्या दुनिया के नामचीन और महान व्यक्ति सत्य को व्यक्त कर सकते हैं? देहधारी परमेश्वर के अलावा कोई और सत्य को व्यक्त नहीं कर सकता। इसलिए मानव जाति के शुद्धिकरण और उद्धार के लिए जो सत्य व्यक्त कर सकता है, वह स्वाभाविक रूप से मसीह है और परमेश्वर का प्रकटन है। इसमें कोई संदेह नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर हमारा विश्वास इसलिए है क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मानव जाति का शुद्धिकरण और उद्धार करने के लिये सभी सत्‍यों को व्‍यक्‍त किया है, और अंत के दिनों में न्‍याय का कार्य किया है। इसलिए हम मानते हैं कि वे व्‍यावहारिक देहधारी परमेश्वर, यानी प्रभु यीशु हैं जो अंत के दिनों में देहधारण कर लौटे हैं। यही सर्वशक्तिमान परमेश्वर पर हमारे विश्वास का आधार है।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि धार्मिक समुदायों के कुछ पादरी और एल्डर्स सर्वशक्तिमान परमेश्वर का विरोध करते हैं और उनकी निंदा करते हैं, क्योंकि ज़्यादातर लोग सिर्फ़ स्वर्ग के परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। केवल कुछ ही व्यक्ति देहधारी परमेश्वर को स्वीकार कर सकते हैं और उनको समझ सकते हैं। दो हज़ार साल पहले, जब प्रभु यीशु कार्य करने के लिए प्रकट हुए, क्या तब मुख्य पादरियों, लेखकों और यहूदी धर्म के फरीसियों ने प्रभु यीशु का विरोध और उनकी निंदा नहीं की थी? यहाँ तक कि उन्होंने प्रभु यीशु को रोमन सरकार को सौंप दिया ताकि उन्हें सूली पर चढ़ाया जा सके। जब परमेश्वर ने कार्य करने के लिए दो बार देहधारण की, उन्होंने कई सत्यों को व्यक्त किया और मानव जाति के छुटकारे और उद्धार के लिए कार्य किया। हालांकि ज़्यादातर लोग परमेश्वर के अस्तित्व को पहचानते हैं, मगर वे परमेश्वर के देहधारण के बारे में नहीं जानते। वे देहधारण के इस महान रहस्य की गहराई को कभी समझ ही नहीं पाये। इसलिए, हर बार जब परमेश्वर कार्य करने के लिए देहधारण करते हैं, तब कई लोगों को उजागर किया जाता है और उन्‍हें हटाया जाता है। अंत के दिनों में, देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने सत्य को व्यक्त करके लोगों का न्याय किया है और उन्हें उजागर किया है। देहधारी परमेश्वर द्वारा व्यक्त कई सत्यों को सुनने के बाद, जो लोग सत्य को पसंद करते थे, उन्होंने परमेश्वर की वाणी सुनी, और इसे परमेश्वर का प्रकटन और कार्य समझकर मसीह को स्वीकार किया और उनकी आज्ञा का पालन किया। जो लोग सत्य को पसंद नहीं करते, भले ही वे परमेश्वर के वचन के अधिकार और सामर्थ्‍य को समझते हैं लेकिन, उनकी कुछ अवधारणाएं थीं, और क्‍योंकि देहधारी परमेश्वर एक साधारण मनुष्‍य जैसे लगते हैं, इसलिये वे उनकी निंदा और विरोध करने से भी न चूके। ऐसे लोगों को उजागर करके हटाया गया, क्योंकि ये वही लोग थे जो सत्य से नफरत करते थे। वे लोग जिन्हें बचाने का कार्य परमेश्वर करते हैं, वे सत्य को पसंद करने और उसे स्वीकार करने वाले लोग हैं। जिन लोगों को परमेश्वर उजागर करते हैं और हटा देते हैं, वे सत्य से नफरत करने वाले लोग हैं। इस बात से परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और सर्वशक्तिमत्‍ता का पता चलता है! परमेश्वर के कार्य से उनके स्वभाव का पता चलता है। परमेश्वर का देहधारण अवश्य ही एक बहुत महान रहस्य है और इसकी गहराई को समझना आसान नहीं है। कई लोगों ने ऐसा करने की भूल की है। मैं इसी तरह से इसे स्वीकार करती हूँ और देखती हूँ।

"वार्तालाप" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 2: लेकिन मैंने न तो परमेश्वर को देखा है, और न ही ये देखा है कि परमेश्वर कैसे कार्य करते हैं और कैसे दुनिया पर प्रभुत्व रखते हैं। मेरे लिए परमेश्वर को समझना और स्वीकार करना मुश्किल है। इतने सालों तक धार्मिक विश्वासों का अध्ययन करने के बाद, मुझे लगता है कि धार्मिक विश्वास सिर्फ़ एक आध्यात्मिक सहारा है और मानव जाति की आध्यात्मिक शून्यता को भरने का एक साधन मात्र है। जिन्‍होंने भी परमेश्वर पर विश्वास रखा, क्या वे अंत में मर नहीं गये? किसी ने भी नहीं देखा कि कौन सा व्यक्ति स्वर्ग गया और कौन सा नरक। मैं सभी धार्मिक मान्यताओं को बहुत ही अस्पष्ट और अवास्तविक समझाता हूँ। वैज्ञानिक विकास और मनुष्य की प्रगति के साथ, हो सकता है कि धार्मिक विश्वासों को छोड़ और हटा दिया जाएगा। हमें अभी भी विज्ञान पर विश्वास करने की ज़रूरत है। केवल विज्ञान ही ऐसा सत्य और वास्तविकता है, जिससे कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। हालांकि, विज्ञान ने परमेश्वर के अस्तित्व से इन्कार नहीं किया है, लेकिन यह परमेश्वर के अस्तित्व की गवाही भी नहीं देता है। अगर विज्ञान वास्तव में यह तय कर सकता है कि परमेश्वर का अस्तित्व है और यह गवाही देता है कि परमेश्वर सभी चीजों पर प्रभुत्व रखते हैं, तब हम भी परमेश्वर पर विश्वास करेंगे। हम कम्युनिस्ट सिर्फ विज्ञान पर विश्वास करते हैं। केवल विज्ञान पर विश्वास करके और विज्ञान का विकास करके ही मनुष्य समाज की प्रगति जारी रहेगी। विज्ञान मनुष्य समाज की कई वास्तविक समस्याओं को हल कर सकता है। परमेश्वर पर भरोसा करके लोगों को क्या मिल रहा है? थोड़ी देर की आध्यात्मिक शांति के अलावा, इसका और क्या फायदा है? यह किसी भी व्यावहारिक समस्या को हल नहीं कर सकता। इसलिए, परमेश्वर पर विश्वास करने से विज्ञान पर विश्वास करना ज़्यादा वास्तविक है, कई गुना अधिक व्यावहारिक। हमें विज्ञान पर विश्वास करना होगा।

अगला: प्रश्न 4: भले आप जिन पर विश्वास करते हैं वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं, आप जो पढ़ती हैं वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन हैं, और आप सर्वशक्तिमान परमेश्वर के नाम से प्रार्थना करती हैं, लेकिन हमारी जानकारी के मुताबिक तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की स्‍थापना एक इंसान ने की थी, जिनकी हर आज्ञा का आप पालन करती हैं। आपकी गवाहियों के मुताबिक यह मनुष्य एक पादरी है, एक ऐसा मनुष्य जिसे सभी प्रशासकीय मामलों के प्रभारी के रूप में, परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। इस बात ने मुझे उलझन में डाल दिया है। वो कौन था जिसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की स्‍थापना की थी? उसका जन्‍म कैसे हुआ था? क्या आप इस बात को समझा सकती हैं?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

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