7. परमेश्वर पर विश्वास करने वालों को अपने गंतव्य के लिए भले कार्यों से पर्याप्त होकर तैयार होना चाहिए

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

मेरी दया उन पर अभिव्यक्त होती है, जो मुझसे प्रेम करते हैं और स्वयं को नकारते हैं। इस बीच, दुष्टों को मिला दंड निश्चित रूप से मेरे धार्मिक स्वभाव का प्रमाण है, और उससे भी बढ़कर, मेरे क्रोध की गवाही है। जब आपदा आएगी, तो मेरा विरोध करने वाले सभी अकाल और महामारी के शिकार हो जाएँगे और विलाप करेंगे। जिन्होंने सभी तरह के दुष्टतापूर्ण कर्म किए हैं किंतु कई वर्षों तक मेरा अनुसरण किया है, वे अपने पापों का फल भुगतने से नहीं बचेंगे; वे भी लाखों वर्षों में कभी-कभार ही दिखने वाली आपदा में डुबा दिए जाएँगे, और वे लगातार आंतक और भय की स्थिति में जिएँगे। और मेरे वे अनुयायी, जिन्होंने मेरे प्रति निष्ठा दर्शाई है, मेरी शक्ति का आनंद लेंगे और उसका गुणगान करेंगे। वे अवर्णनीय तृप्ति का अनुभव करेंगे और ऐसे आनंद में रहेंगे, जो मैंने मानवजाति को पहले कभी प्रदान नहीं किया है। क्योंकि मैं मनुष्यों के अच्छे कर्मों को सँजोकर रखता हूँ और उनके बुरे कर्मों से घृणा करता हूँ। जबसे मैंने पहली बार मानवजाति की अगुआई करनी आरंभ की, तबसे मैं उत्सुकतापूर्वक मनुष्यों के ऐसे समूह को पाने की आशा करता रहा हूँ, जो मेरे साथ एकचित्त हों। इस बीच मैं उन लोगों को कभी नहीं भूलता, जो मेरे साथ एकचित्त नहीं हैं; अपने हृदय में मैं हमेशा उनसे घृणा करता हूँ, उन्हें प्रतिफल देने के अवसर की प्रतीक्षा करता हूँ, जिसे देखकर मुझे खुशी होगी। अब अंततः मेरा दिन आ गया है, और मुझे अब और प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है!

मेरा अंतिम कार्य केवल मनुष्यों को दंड देने के लिए ही नहीं है, बल्कि मनुष्य की मंजिल की व्यवस्था करने के लिए भी है। इससे भी अधिक, यह इसलिए है कि सभी लोग मेरे कर्म और कार्य स्वीकार करें। मैं चाहता हूँ कि हर एक मनुष्य देखे कि जो कुछ मैंने किया है, वह सही है, और जो कुछ मैंने किया है, वह मेरे स्वभाव की अभिव्यक्ति है। यह मनुष्य का कार्य नहीं है, और उसकी प्रकृति तो बिलकुल भी नहीं है, जिसने मानवजाति की रचना की है, यह तो मैं हूँ जो सृष्टि में हर जीव का पोषण करता है। मेरे अस्तित्व के बिना मानवजाति केवल नष्ट होगी और आपदा का दंड भोगेगी। कोई भी मानव फिर कभी सुंदर सूर्य और चंद्रमा या हरे-भरे संसार को नहीं देखेगा; मानवजाति केवल शीत रात्रि और मृत्यु की छाया की निर्मम घाटी देखेगी। मैं ही मानवजाति का एकमात्र उद्धार हूँ। मैं ही मानवजाति की एकमात्र आशा हूँ, और इससे भी बढ़कर, मैं ही वह हूँ जिस पर संपूर्ण मानवजाति का अस्तित्व निर्भर करता है। मेरे बिना मानवजाति तुरंत अवरुद्ध हो जाएगी। मेरे बिना मानवजाति तबाही झेलेगी और सभी प्रकार के भूतों द्वारा कुचली जाएगी, इसके बावजूद कोई मुझ पर ध्यान नहीं देता। मैंने वह काम किया है जो किसी दूसरे के द्वारा नहीं किया जा सकता, और मैं केवल यह आशा करता हूँ कि मनुष्य कुछ अच्छे कर्मों से मुझे प्रतिफल दे सके। यद्यपि कुछ ही लोग मुझे प्रतिफल दे पाए हैं, फिर भी मैं मनुष्यों के संसार में अपनी यात्रा पूरी करूँगा और प्रकटन के अपने कार्य का अगला कदम आरंभ करूँगा, क्योंकि इन अनेक वर्षों में मनुष्यों के बीच मेरे आने-जाने की सारी भागदौड़ फलदायक रही है, और मैं अति प्रसन्न हूँ। मैं जिस चीज की परवाह करता हूँ, वह मनुष्यों की संख्या नहीं, बल्कि उनके अच्छे कर्म हैं। किसी भी स्थिति में, मैं आशा करता हूँ कि तुम लोग अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करोगे। तब मुझे संतुष्टि होगी; अन्यथा तुम लोगों में से कोई भी उस आपदा से नहीं बचेगा, जो तुम लोगों पर पड़ेगी। आपदा मेरे साथ उत्पन्न होती है और निश्चित रूप से मेरे द्वारा ही आयोजित की जाती है। यदि तुम लोग मेरी नजरों में अच्छे दिखाई नहीं दे सकते, तो तुम लोग आपदा भुगतने से नहीं बच सकते। गहरी पीड़ा के बीच तुम लोगों के कार्य और कर्म पूरी तरह से उचित नहीं माने गए, क्योंकि तुम लोगों का विश्वास और प्रेम खोखला था, और तुम लोगों ने स्वयं को केवल डरपोक या कठोर दिखाया। इस संबंध में, मैं केवल भले या बुरे का ही न्याय करूँगा। मेरी चिंता तुम लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति के कार्य करने और अपने आप को व्यक्त करने के तरीके को लेकर बनी रहती है, जिसके आधार पर मैं तुम लोगों का अंत निर्धारित करूँगा। हालाँकि, मुझे यह स्पष्ट कर देना चाहिए : मैं उन लोगों पर अब और दया नहीं करूँगा, जिन्होंने गहरी पीड़ा के समय में मेरे प्रति रत्ती भर भी निष्ठा नहीं दिखाई, क्योंकि मेरी दया का विस्तार केवल इतनी दूर तक ही है। इसके अतिरिक्त, मुझे ऐसा कोई इंसान पसंद नहीं, जिसने कभी मेरे साथ विश्वासघात किया हो, और ऐसे लोगों के साथ जुड़ना तो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं, जो अपने मित्रों के हितों को बेच देते हैं। चाहे जो भी व्यक्ति हो, मेरा यही स्वभाव है। मुझे तुम लोगों को बता देना चाहिए : जो कोई मेरा दिल तोड़ता है, उसे दूसरी बार मुझसे क्षमा प्राप्त नहीं होगी, और जो कोई मेरे प्रति निष्ठावान रहा है, वह सदैव मेरे हृदय में बना रहेगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अपनी मंजिल के लिए पर्याप्त अच्छे कर्म तैयार करो

मैं केवल यह उम्मीद करता हूँ कि मेरे कार्य के अंतिम चरण में तुम लोग अपनेसर्वोत्कृष्ट निष्पादन में सक्षमहोंगे, और कि तुम स्वयंको पूरे मन से समर्पित करोगे, अधूरे मन से नहीं। बेशक, मैं यह उम्मीद भी करता हूँ कि तुम लोगों को सर्वोत्तम गंतव्य प्राप्त हो सके। फिर भी, मेरे पास अभी भी मेरी अपनी आवश्यकता है, और वह यह कि तुम लोग मुझे अपनी आत्मा और अंतिम भक्ति समर्पित करने में सर्वोत्तम निर्णय करो। अगर किसी की भक्ति एकनिष्ठ नहीं है, तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से शैतान की सँजोई हुई संपत्ति है, और मैं आगे उसे इस्तेमाल करने के लिए नहीं रखूँगा, बल्कि उसे उसके माता-पिता द्वारा देखे-भाले जाने के लिए घर भेज दूँगा।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, गंतव्य के बारे में

तुम लोगों में से प्रत्येक को अपना कर्तव्य अपनी पूरी क्षमता से, खुले और ईमानदार दिलों के साथ पूरा करना चाहिए, और जो भी कीमत ज़रूरी हो, उसे चुकाने के लिए तैयार रहना चाहिए। जैसा कि तुम लोगों ने कहा है, जब दिन आएगा, तो परमेश्वर ऐसे किसी भी व्यक्ति के प्रति लापरवाह नहीं रहेगा, जिसने उसके लिए कष्ट उठाए होंगे या कीमत चुकाई होगी। इस प्रकार का दृढ़ विश्वास बनाए रखने लायक है, और यह सही है कि तुम लोगों को इसे कभी नहीं भूलना चाहिए। केवल इसी तरह से मैं तुम लोगों के बारे में निश्चिंत हो सकता हूँ। वरना तुम लोगों के बारे में मैं कभी निश्चिंत नहीं हो पाऊँगा, और तुम हमेशा मेरी घृणा के पात्र रहोगे। अगर तुम सभी अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन सको और अपना सर्वस्व मुझे अर्पित कर सको, मेरे कार्य के लिए कोई कोर-कसर न छोड़ो, और मेरे सुसमाचार के कार्य के लिए अपनी जीवन भर की ऊर्जा अर्पित कर सको, तो क्या फिर मेरा हृदय तुम्हारे लिए अक्सरहर्ष से नहीं उछलेगा? इस तरह से मैं तुम लोगों के बारे में पूरी तरह से निश्चिंत हो सकूँगा, या नहीं?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, गंतव्य के बारे में

यदि सत्य का मार्ग खोजने से तुम्हें प्रसन्नता मिलती है, तो तुम सदैव प्रकाश में रहने वाले व्यक्ति हो। यदि तुम परमेश्वर के घर में सेवाकर्मी बने रहकर बहुत प्रसन्न हो, गुमनाम बनकर कर्मठतापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से काम करते हो, हमेशा देने का भाव रखते हो, लेने का नहीं, तो मैं कहता हूँ कि तुम एक निष्ठावान संत हो, क्योंकि तुम्हें किसी फल की अपेक्षा नहीं है, तुम एक ईमानदार व्यक्ति हो। यदि तुम स्पष्टवादी बनने को तैयार हो, अपना सर्वस्व खपाने को तैयार हो, यदि तुम परमेश्वर के लिए अपना जीवन दे सकते हो और दृढ़ता से अपनी गवाही दे सकते हो, यदि तुम इस स्तर तक ईमानदार हो जहाँ तुम्हें केवल परमेश्वर को संतुष्ट करना आता है, और अपने बारे में विचार नहीं करते हो या अपने लिए कुछ नहीं लेते हो, तो मैं कहता हूँ कि ऐसे लोग प्रकाश में पोषित किए जाते हैं और वे सदा राज्य में रहेंगे।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, तीन चेतावनियाँ

संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण :

अच्छे कर्म इस बात का प्रमाण हैं कि हमने उद्धार पा लिया है, और वे सत्य में हमारे प्रवेश और परमेश्वर के वचन की वास्तविकता की अभिव्यक्ति हैं। यदि हमने बहुत से अच्छे कर्मों को तैयार किया है, तो इसका अर्थ है कि हम परमेश्वर के सामने नए व्यक्ति बन गए हैं और हमारे पास वास्तविक मनुष्य होने के पहलू के बारे में सच्चा प्रमाण है; यदि हमारे पास बहुत-से अच्छे कर्म हैं, तो इसका मतलब है कि हममें सच्चे मनुष्य की सदृशता है। यदि तुमने परमेश्वर पर कई वर्षों तक विश्वास किया है परन्तु थोड़े ही अच्छे कर्म किए हैं, तो क्या तुममें मानवीय सदृशता है? क्या तुम्हारे पास अंतःकरण और विवेक है? क्या तुम कोई ऐसे हो जो परमेश्वर के प्रेम को चुकाता हो? तुम्हारा सच्चा विश्वास कहाँ है? परमेश्वर के लिए तुम्हारा प्रेम से भरा दिल और आज्ञाकारिता कहाँ है? वह वास्तविकता क्या है जिसमें तुमने प्रवेश किया है? तुम्हारे पास इनमें से कुछ भी नहीं है। इसलिए, एक ऐसा व्यक्ति जो कोई अच्छे कर्म नहीं करता है वह कोई ऐसा है जो परमेश्वर में अपने विश्वास के द्वारा कुछ भी प्राप्त नहीं करता है। वह कोई ऐसा है जिसने परमेश्वर से उद्धार प्राप्त किया ही नहीं है, कोई ऐसा जिसकी भ्रष्टता इतनी गहरी है कि उसमें ज़रा सा भी परिवर्तिन नहीं हुआ है। अच्छे कर्म वास्तव में इसे स्पष्ट करते हैं।

—जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति

पर्याप्त अच्छे कर्म क्या हैं? हम कह सकते हैं कि कोई भी कर्तव्य जिसे मनुष्य परमेश्वर के कार्य के अपने अनुभव में पूरा कर सकता है, या उसे पूरा करना चाहिए और वो सब कुछ जिसकी परमेश्वर मनुष्य से अपेक्षा करता है—यदि मनुष्य इन चीजों को कर सकता है और वह परमेश्वर को संतुष्ट कर पाता है, तो ये सभी अच्छे कर्म हैं। यदि तुम परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा कर सकते हो, तो यह एक अच्छा कर्म है। यदि अपने कर्तव्यों को पूरा करते समय तुममें परमेश्वर के प्रति भक्ति है, तो यह एक अच्छा कर्म है। यदि तुम जिन चीज़ों को करते हो, वे परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए लाभदायक है और सभी लोग सोचते हैं कि तुम जो कर रहे हो, वह अच्छा है, तो यह एक अच्छा कर्म है। वे सभी चीज़ें जिन्हें मनुष्य का अंतःकरण और विवेक परमेश्वर के इरादों के अनुरूप मानता है, अच्छे कर्म हैं। जो चीज़ें परमेश्वर को संतुष्ट कर सकती हैं और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के लिए लाभदायक हैं, वे भी अच्छे कर्म हैं। यदि कोई मनुष्य इन अच्छे कर्मों को तैयार करने के लिए सब कुछ झोंक देता है, तो अंतत: वह इन्हें पूरा कर लेगा और इसका अर्थ होगा कि उसने पर्याप्त अच्छे कर्मों को पूरा कर लिया है। ... अब हर व्यक्ति अपने कर्तव्य का निर्वाह करना चाहता है और उद्धार का अनुसरण करता है, लेकिन मात्र संकल्प और ख़्वाहिश का होना ही पर्याप्त नहीं है। उसके लिये एक व्यक्ति को व्यवहारिक आचरण और व्यवहारिक कार्य करना चाहिए। आपने परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन में प्रवेश की ख़ातिर किन कर्तव्यों का निर्वाह किया है? आपने परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये क्या किया है और क्या कीमत अदा की है? आपने परमेश्वर की संतुष्टि और उसके प्रेम का प्रतिदान देने के लिये क्या किया है? इन सारी बातों पर आपको चिंतन करने की आवश्यकता है। यदि आपने परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिये और परमेश्वर के चुने हुए लोगों के जीवन प्रवेश और विकास के लिये बहुत सारे काम किये हैं और बड़ी कीमत अदा की है, तो फिर कहा जा सकता है कि आपने पर्याप्त सत्कर्म तैयार कर लिये हैं।

—जीवन में प्रवेश पर धर्मोपदेश और संगति

कम से कम, कुछ कर्तव्यों को पूरा करना पर्याप्त मात्रा में भले कर्मों को तैयार करने के लिए काफी नहीं है। दूसरे शब्दों में, किसी भी हाल में, बस अपने कर्तव्य में से थोड़ा सा करना पर्याप्त भले कर्मों के रूप में नहीं माना जाता है। पर्याप्त भले कर्म बिल्कुल उतने सरल नहीं है जैसे कि मनुष्य कल्पना करता है। भले कर्मों की पर्याप्त मात्रा की तैयारी करने के लिए स्वयं को पूरी तरह से परमेश्वर के लिए खपाना आवश्यक है। इसके अलावा, इसके लिए हर कीमत चुकाने की, और शुरुआत से अंत तक परमेश्वर के आदेश के प्रति वफादार होने की आवश्यकता है; परमेश्वर के मानकों पर खरा उतरने का यही एकमात्र तरीका है।

अपने कर्तव्यों को पूरा करने में ऐसे लोग हैं जिन्होंने वास्तव में एक कीमत चुकाई है, उन चीजों को किया है जिनकी परमेश्वर ने प्रशंसा की है, जिन्होंने उत्कृष्ट, असाधारण, प्रशंसनीय और ईर्ष्याजनक तरीकों से अपना कर्तव्य इस हद तक किया है कि ये माना जा सकता है कि उन्होंने भले कर्म किये हैं। कुछ भाई-बहन अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए जेल गए हैं, जिन्होंने शैतान के अधीन हुए बिना कई पीड़ाएं सहीं हैं, और गवाही दी है। कुछ ऐसे लोग हैं जो व्यक्तिगत सुरक्षा या लाभ की चिंता किये बगैर जोखिम उठाने की हिम्मत रखते हैं, जो निडरता से जो धार्मिक है उसे करने के जोश में खतरनाक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए समर्पित हैं। और ऐसे भाई-बहन भी हैं जो खुद को सुसमाचार के काम में समर्पित करने में सक्षम हैं, और वे लोगों को बचाने के लिए सुसमाचार प्रचार करने में अपमान सहने में भी सक्षम हैं। ऐसे लोग भी हैं जो सुसमाचार के काम में परिश्रम करते हैं, व्यक्तिगत और पारिवारिक मामलों को अलग करते हुए कोई शिकायत किये बिना कठिनाइयों का सामना करते हैं, जबकि उनके दिमाग इसमें डूबे होते हैं कि वे परमेश्वर के सामने अधिक से अधिक लोगों को लाने और परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए सुसमाचार कैसे फैला सकते हैं। वे सभी जो परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए पूरी तरह से स्वयं को खपाने के लिए समर्पित हैं, वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने पहले से ही भले कर्म कर लिए हैं। फिर भी वे अब तक "पर्याप्त भले कर्म" जिनकी परमेश्वर अपेक्षा करता है, उससे एक निश्चित दूरी पर हैं। अधिकांश लोगों ने बस कुछ भले कर्म तैयार किए हैं और पूरी तरह से परमेश्वर की अपेक्षाओं को पूरा नहीं किया है। इसके लिए हमें अपने कर्तव्यों को पूरा करने की क्षमता पाने के लिए बहुत परिश्रम करना होगा और पर्याप्त भले कर्म करने के लिए गहराई तक सत्य में प्रवेश करने में ईमानदार होना होगा। इसके लिए आवश्यक है कि चाहे हम कोई भी कर्तव्य पूरा कर रहे हों, हम परमेश्वर के दिल को संतुष्ट करने के लिए सर्वोत्तम परिणामों को प्राप्त करने का प्रयास करें। विशेष रूप से सुसमाचार फैलाने में, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कितना अपमान सहते हैं या हम कितनी पीड़ा सहन करते हैं, जब तक हम अधिक से अधिक लोगों को उद्धार प्राप्त करने के लिए ला सकते हैं, हमें व्यक्तिगत लागत के बावजूद इसे एक कर्तव्य समझना चाहिए। केवल यही सबसे भला काम करना है। यदि लोग इस तरह के अधिक भले काम करने में सक्षम हैं, तो इसे पर्याप्त भले कर्म माना जा सकता है। यही वह कर्म है जो परमेश्वर को सबसे अधिक खुशी और आनंद देता है, और ऐसे लोगों को निश्चित रूप से परमेश्वर की प्रशंसा प्राप्त होगी। इसके अलावा, अपने कर्तव्यों को पूरा करने में हमें ईमानदारी और सावधानी भी बरतनी चाहिए, हमेशा खुद को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए, और ज़रा सी भी लापरवाही की अनुमति नहीं देनी चाहिए। इससे पहले कि हम परमेश्वर की इच्छा पूरी तरह से संतुष्ट कर सकें, परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाने हेतु, हममें निष्ठावान भक्ति होनी चाहिए।

—ऊपर से संगति

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

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