प्रश्न 8: 2,000 वर्षों तक, धार्मिक विश्व ने इस विश्वास का समर्थन किया है कि बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से दी गई है, कि यह पूरी तरह परमेश्वर का वचन है, इसलिए, बाइबल प्रभु का प्रतिनिधित्व करती है। जो इस बात से इनकार करते हैं कि बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से दी गई है और उनका वचन है धार्मिक विश्व निश्चित रूप से उनकी निंदा करेगा एवं उन्हें विधर्मी कहेगा। क्या इस समझ में कुछ गलत है?

उत्तर: धार्मिक विश्व के बहुत से लोग मानते हैं कि संपूर्ण बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से दी गयी है, और संपूर्ण बाइबल परमेश्वर का वचन है। यह स्पष्ट रूप से एक गलत धारणा है! बाइबल में मौजूद सभी पत्रियों एवं प्रेरितों के अनुभवों और गवाहियों में रचयिता का नाम साफ-साफ बताया गया है। बाइबल स्पष्ट तौर पर विभिन्न युगों के लोगों द्वारा लिखी गई है। उनकी अनुभवों की गवाहियों का अर्थ परमेश्वर के वचन के रूप में कैसे लिया जा सकता है? यदि हम धार्मिक विश्व की सोच के अनुसार चलें तो, साफ है कि बाइबल के सभी लेखक मनुष्य हैं, पर पता नहीं कैसे उनके वचन, परमेश्वर के वचन बन गए। यह किस प्रकार का तर्क है? परमेश्वर का मूल तत्व, मनुष्यों से बुनियादी तौर पर अलग है, केवल परमेश्वर ही परमेश्वर के वचन बोल सकते हैं। और मनुष्य केवल मनुष्य के वचन बोल सकता है। यदि हम जोर दें कि मनुष्य का वचन वास्तव में परमेश्वर का वचन है तो, ज़रा मुझे बताएं, क्या बाइबल के सभी रचयिता परमेश्वर थे? क्या उन्होंने परमेश्वर होने का दावा किया था? क्या उन्होंने दावा किया था कि उनके सभी वचन परमेश्वर की प्रेरणा से उपजे थे? आप इस प्रश्न पर क्या कहेंगे? यदि आप दावा करते हैं कि वे सभी परमेश्वर थे, तो यह बात साफ तौर पर तथ्यों के विरुद्ध है, क्योंकि परमेश्वर सिर्फ़ एक है। साथ ही, साफ है कि वे सभी मनुष्य हैं, पर आप जोर देते हैं कि वे वास्तव में परमेश्वर हैं। यह परमेश्वर की निंदा है! यह एक भयंकर पाप है! यदि आप स्वीकार करते हैं कि वे सभी मनुष्य हैं, पर फिर भी इस बात पर टिके रहते हैं कि उनके सभी वचन, परमेश्वर के वचन हैं, तो यह तथ्यों को तोड़ना-मरोड़ना हुआ और गलत-बयानी हुई। यह परमेश्वर का विरोध और उनकी निंदा के समान है! क्योंकि, बाइबल में, मूसा और भविष्यवक्ताओं को छोड़कर, अन्य किसी रचयिता को परमेश्वर से परमेश्वर के वचनों को मनुष्यों तक पहुँचाने का निर्देश नहीं मिला था। उन्होंने यह दावा भी कभी नहीं किया कि उनका लेखन परमेश्वर की प्रेरणा से उपजा है। यदि किसी के पास ऐसा कोई सुबूत नहीं है पर फिर भी वह यह दावा करता है कि वे मनुष्य परमेश्वर के वचन बोल रहे थे, तो वह बस बेशर्मी से बकवास उगल रहा है। पुराने और नए नियमों के सभी रचयिता मनुष्य थे जिनका उपयोग परमेश्वर ने किया था। उन्होंने उस समय परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया था। उन्हें परमेश्वर का कुछ ज्ञान था, और उनके दिलों में कुछ बोझ था। उन्होंने अपने अनुभवों और गवाहियों को लिखा और तथा उन्हें कलीसियाओं के संतों को भेज दिया। यह सत्य है। पर कुछ ऐसे भी थे जिन्हें लगा कि ये अनुभव और गवाहियां, आम मनुष्यों की गवाहियों और अनुभवों की तुलना में कहीं अधिक शिक्षाप्रद थे, और नतीजतन वे गलती से उनका अंधानुसरण करने लगे और उनकी आरधना करने लगे, यह सोचते हुए कि उनके शब्द अवश्य ही परमेश्वर के मुख से निकले थे, क्योंकि एक औसत व्यक्ति ऐसी चीजें लिखने में समर्थ नहीं हो सकता, तो ये झूठे तर्क और झूठी धारणाएं अस्तित्व में आ गईं, और ये झूठे तर्क और झूठी धारणाएं दूर-दूर तक फैल गईं और बहुत से लोगों ने इन्हें अपना लिया। अंत में, वे धार्मिक लोगों की धारणाएं बन गईं। इन चीजों से हुए नुकसान का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। यदि सर्वशक्तिमान परमेश्वरन आए होते, तो किसे यह एहसास होता? बहुत से लोग कहते हैं कि सभी चीजें बाइबल और परमेश्वर के वचन के अनुसार होनी चाहिए, इस तथ्य के बावजूद कोई भी इन चीज़ों को परमेश्वर के वचनों के अनुसार समझने और पहचानने की कोशिश नहीं करता। और तो और, न तो कोई सच जानना चाहता है और न ही इस मुद्दे के बारे में खोजबीन करने की कोशिश करता है।

आइए सर्वशक्तिमान परमेश्वरके वचन के कुछ अनुच्छेद पढ़ते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "आज लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल परमेश्वर है और परमेश्वर बाइबल है। इसलिए वे यह भी विश्वास करते हैं कि बाइबल के सारे वचन ही वे वचन हैं, जिन्हें परमेश्वर ने बोला था, और कि वे सब परमेश्वर द्वारा बोले गए वचन थे। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, वे यह भी मानते हैं कि यद्यपि पुराने और नए नियम की सभी छियासठ पुस्तकें लोगों द्वारा लिखी गई थीं, फिर भी वे सभी परमेश्वर की अभिप्रेरणा द्वारा दी गई थीं, और वे पवित्र आत्मा के कथनों के अभिलेख हैं। यह मनुष्य की गलत समझ है, और यह तथ्यों से पूरी तरह मेल नहीं खाती। वास्तव में, भविष्यवाणियों की पुस्तकों को छोड़कर, पुराने नियम का अधिकांश भाग ऐतिहासिक अभिलेख है। नए नियम के कुछ धर्मपत्र लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों से आए हैं, और कुछ पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता से आए हैं; उदाहरण के लिए, पौलुस के धर्मपत्र एक मनुष्य के कार्य से उत्पन्न हुए थे, वे सभी पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के परिणाम थे, और वे कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे, और वे कलीसियाओं के भाइयों एवं बहनों के लिए प्रेरणा और प्रोत्साहन के वचन थे। वे पवित्र आत्मा द्वारा बोले गए वचन नहीं थे—पौलुस पवित्र आत्मा की ओर से नहीं बोल सकता था, और न ही वह कोई नबी था, और उसने उन दर्शनों को तो बिलकुल नहीं देखा था जिन्हें यूहन्ना ने देखा था। उसके धर्मपत्र इफिसुस, फिलेदिलफिया और गलातिया की कलीसियाओं, और अन्य कलीसियाओं के लिए लिखे गए थे। ... यदि लोग पौलुस जैसों के धर्मपत्रों या शब्दों को पवित्र आत्मा के कथनों के रूप में देखते हैं, और उनकी परमेश्वर के रूप में आराधना करते हैं, तो सिर्फ यह कहा जा सकता है कि वे बहुत ही अधिक अविवेकी हैं। और अधिक कड़े शब्दों में कहा जाए तो, क्या यह स्पष्ट रूप से ईश-निंदा नहीं है? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बात कर सकता है? और लोग उसके धर्मपत्रों के अभिलेखों और उसके द्वारा बोले गए वचनों के सामने इस तरह कैसे झुक सकते हैं, मानो वे कोई पवित्र पुस्तक या स्वर्गिक पुस्तक हों। क्या परमेश्वर के वचन किसी मनुष्य के द्वारा बस यों ही बोले जा सकते हैं? कोई मनुष्य परमेश्वर की ओर से कैसे बोल सकता है?" "बाइबल में हर चीज़ परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचनों का अभिलेख नहीं है। बाइबल बस परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरण दर्ज करती है, जिनमें से एक भाग नबियों की भविष्यवाणियों का अभिलेख है, और दूसरा भाग युगों-युगों में परमेश्वर द्वारा इस्तेमाल किए गए लोगों द्वारा लिखे गए अनुभवों और ज्ञान का अभिलेख है। मनुष्य के अनुभव उसके मतों और ज्ञान से दूषित होते हैं, और यह एक अपरिहार्य चीज़ है। बाइबल की कई पुस्तकों में मनुष्य की धारणाएँ, पूर्वाग्रह और बेतुकी समझ शामिल हैं। बेशक, अधिकतर वचन पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी का परिणाम हैं और वे सही समझ हैं—फिर भी अभी यह नहीं कहा जा सकता कि वे पूरी तरह से सत्य की सटीक अभिव्यक्ति हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, बाइबल के विषय में (3))

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़ने के बाद, हम देख सकते हैं कि बाइबल पूरी तरह परमेश्वर की प्रेरणा से पैदा नहीं हुई है, यह पूरी तरह परमेश्वर का वचन नहीं है। बाइबल के कौन से अंश परमेश्वर के शब्द है और कौन से मनुष्यों के शब्द हैं, जो समझदार लोग हैं वे उसी समय बता सकते हैं। क्योंकि बाइबल के प्रत्येक ग्रन्थ के लिए लेखक का नाम स्पष्ट रूप से बताया गया है, और यह भी स्पष्ट रूप से बताया गया है कि बाइबल के किन अंशों में परमेश्वर के वचन हैं। तो यह कैसे है कि बिना पलक झपकाए, लोग मनुष्य और शैतान के शब्दों को परमेश्वर का मानना जारी रखते हैं? क्या यह बात करने का एक उचित तरीका है? यदि परमेश्वर पर विश्वास करने वाले इस दावे पर जोर दें कि बाइबल में शामिल मनुष्यों के शब्द वास्तव में परमेश्वर के वचन हैं, आपको क्या लगता है कि परमेश्वर कैसा महसूस करेंगे? क्या यह परमेश्वर के प्रति उचित होगा? क्या यह परमेश्वर का अपयश, अनादर और ईशनिंदा नहीं है? परमेश्वर की नज़रों में मनुष्य के शब्द का वजन क्या है? हम एक क्षण के लिए सोचते क्यों नहीं हैं? मनुष्य के शब्द की परमेश्वर के शब्द के साथ तुलना कैसे की जा सकती है? मनुष्य का और परमेश्वर का सार बिल्कुल अलग है, अतः निश्चित रूप से मनुष्य के और परमेश्वर के शब्द भी एक-दूसरे से बहुत अधिक अलग हैं। यदि, पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और उद्बोधन के माध्यम से, मनुष्य के शब्द सच्चाई के अनुरूप हो सकें, तो यह पहले से ही एक महान् उपलब्धि है। यदि मनुष्य के शब्द पवित्र आत्मा के कार्य से मार्गदर्शित नहीं हैं, तो क्या यह भ्रम और झूठ नहीं है? यदि परमेश्वर में विश्वास करने वालों को यह नहीं दिखता है, तो मुझे डर है कि वे बहुत मूर्ख और अज्ञानी हैं! आजकल, पूरी धार्मिक दुनिया बाइबल में रहे मनुष्य के शब्दों को परमेश्वर शब्दों के रूप में लेती है। इससे पता चलता है कि धार्मिक दुनिया में कोई भी परमेश्वर को वास्तव में नहीं जानता है। धार्मिक दुनिया के अधिकांश प्रमुख, द्रोही फरीसी हैं। जो लोग वास्तव में परमेश्वर को जानते हैं वे कभी विश्वास नहीं करेंगे कि बाइबल पूरी तरह से परमेश्वर की प्रेरणा से दी गई है और पूरी तरह से परमेश्वर का वचन है। वे निश्चित रूप से आँखें बंद करके बाइबल की पूजा नहीं करेंगे और यहाँ तक कि बाइबल को परमेश्वर के रूप में भी नहीं मानेंगे। धार्मिक दुनिया में यह व्यापक रूप से माना जाता है कि बाइबल को पूर्ण रूप से परमेश्वर की प्रेरणा से दिया गया था और यह परमेश्वर का वचन है, और यह कि बाइबल परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकती है। यह सम्पूर्ण धार्मिक दुनिया में सर्वाधिक बेतुकी झूठी धारणा है।

"मेरा प्रभु कौन है" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 7: आप लोग यह गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही आ चुके हैं और वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं। और यह कि उन्होंने कई सत्य व्यक्त किए हैं और वे अंतिम दिनों का न्याय का कार्य कर रहे हैं। मुझे लगता है कि यह असंभव है। हमने हमेशा यही कहा है कि परमेश्वर के वचन एवं कार्य बाइबिल में लिखे हुए हैं, और यह कि परमेश्वर के शब्द और कार्य बाइबिल के बाहर विद्यमान नहीं हैं। बाइबल में पहले से ही परमेश्वर द्वारा उद्धार की पूर्णता समाविष्ट है, बाइबिल परमेश्वर की प्रतिनिधि है। जब तक कोई व्यक्ति बाइबल का पालन करता है, तब तक वह स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेगा। प्रभु में हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित है, बाइबल से भटकना प्रभु को इनकार तथा उनसे विश्वासघात करने का गठन करता है! क्या इस समझ में कुछ गलत है?

अगला: प्रश्न 9: बाइबल प्रभु की गवाही है, और हमारे पंथ की नींव है। इन दो हज़ार वर्षों में, विश्वास करने वाले सभी लोगों ने अपना पंथ बाइबल पर ही आधारित किया है। इसलिए मेरा विश्वास है कि बाइबल प्रभु की प्रतिनिधि है। प्रभु में विश्वास रखने का अर्थ है बाइबल में विश्वास रखना, और बाइबल में विश्वास रखने का अर्थ है प्रभु में विश्वास रखना। चाहे कुछ भी हो, हम बाइबल से दूर नहीं जा सकते। आख़िर हम बाइबल के बिना पंथ का अभ्यास कैसे करेंगे? क्या उसे प्रभु में विश्वास कहा भी जा सकता है? मुझे बताइए, इस प्रकार से पंथ का अभ्यास करने में क्या गलत है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें