95 परमेश्वर का प्रेम
1
हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! तू स्वर्ग से इस संसार में आया है!
इंसान को बचाने के लिए तू परमपिता की इच्छा का पालन करता है,
तू देहधारण करके सत्य व्यक्त कर रहा है, और न्याय कर रहा है।
तू धार्मिक और प्रतापी है, और कोई इंसानी अपराध बर्दाश्त नहीं करता।
इंसान को बचाने के लिए तूने अपने हिस्से का सब कुछ सहा है, तूने कोई शिकायत नहीं की है।
दिनोदिन, बरसों-बरस,
तू कितनी अस्वीकृति, बदनामी, और उत्पीड़न, और कितने सारे कष्ट सहता है।
तू अपने चुने हुए लोगों के पोषण और उन्हें राह दिखाने के लिए अपने वचन अभिव्यक्त करता है;
तू हममें सत्य और जीवन भर देता है।
हे परमेश्वर! तू अपना सारा प्रेम इंसान की खातिर लूटा देता है।
बिना किसी पछतावे और शिकायत के तू हर कीमत चुकाता है।
तेरा प्रेम कितना महान है, तेरे सम्मानजनक स्वभाव की कोई तुलना नहीं है।
हम कैसे न ख़ुशी से नाचें और तेरा स्तुतिगान करें?
2
हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! तू कितना सम्मान-योग्य है, कितना अच्छा और सुंदर है!
तू कलीसियाओं में आते-जाते हुए कथन और वचन व्यक्त करता है।
तेरे वचन हर दिन हमारा मार्गदर्शन करते हैं,
हमारे भ्रष्ट स्वभावों का न्याय और उन्हें शुद्ध करते हैं।
परीक्षणों और शुद्धिकरण के जरिए हम तेरे सच्चे प्रेम को देखते हैं।
दिनोदिन, बरसों-बरस,
तू हमारा प्रतिरोध, विद्रहीपन, गलतफहमियाँ और शिकायतें सहता है।
अनवरत धैर्य के साथ तू हमारी जरूरतों को पूरा करता है।
हमने सत्य और एक नया जीवन पा लिया है।
हे परमेश्वर! तेरे कार्य का अनुभव करते हुए, हम तेरे प्रेम को जान पाए हैं।
तेरा स्वभाव धार्मिक और पवित्र है, और यह कितना प्रेमयोग्य है।
हम तुझे अपना दिल, अपना सर्वस्व अर्पित करने को तैयार हैं।
हमारी दिली तमन्ना है कि तुझे सदा प्रेम करें, और तेरी गवाही दें।