93 धरती पर सच्चा प्यार पाना क्यों है इतना मुश्किल
1
कब से है मुझे तुम्हें देखने की लालसा, परमेश्वर।
मैं रहना नहीं चाहता अब तुमसे दूर।
तुम हो मेरे संप्रभु सृष्टिकर्ता,
लेकिन अब रह सकते हैं हम हमेशा एक साथ नहीं।
दूषित इंसान को बचाने के लिए सहते हो अत्यंत शर्मिंदगी तुम।
कौन समझ सकता है?
ख़ून और आंसुओं की सड़क पर सफ़र किया है तुमने,
कई महीनों और सालों से सही है तकलीफ़।
अपना पूरा प्यार लाए हो नीचे हमारे लिए तुम।
लोगों की मुश्किलों को साझा करते हो तुम,
फिर भी एकांत और त्याग सहन करते हो तुम।
कौन कर सकता है ख़्याल तुम्हारे दिल का?
हर पुकार, उम्मीद का हर दिन।
इंसान का प्यार हासिल करने के लिए अपना सब कुछ देते हो तुम।
फिर भी कोई नहीं दे पाता सच में दिलासा तुम्हें।
धरती पर सच्चा प्यार पाना क्यों है इतना मुश्किल?
2
झुकती हूँ तुम्हारे सामने मैं, दुख से भरी हुई
मलाल करते हुए, क्षमा याचना करती हुई।
जो किया है मैंने उस पर है मुझे अफ़सोस।
मुझे नफ़रत है कि मैंने परवाह नहीं की तुम्हारे दिल की।
मेरे सभी दूषण निराश करते हैं तुम्हें।
कैसे मैं अपनी गलतियों का पश्चात्ताप करूं?
तुम्हारी व्यक्त की गई सच्चाई बचाती है इंसान को,
दुनिया के लिए छोड़ती है धधकता प्यार।
तुमने जो मुझे सौंपा है
मेरे दिल में समाया हुआ है गहराई से।
मुझे चाहिए कुछ और नहीं,
बस हमेशा तुम्हारा वफ़ादार रहना है मुझे।