प्रश्न 3: आपने यह प्रमाणित किया है कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर लौटकर आए प्रभु यीशु हैं और उन्होंने बहुत से वचन व्यक्त किये हैं। परन्तु दक्षिण कोरिया में कुछ लोग ऐसे हैं जो लौटकर आए प्रभु यीशु की नकल करते हैं। उन्होंने कुछ वचन भी कहे हैं और कुछ किताबें भी लिखी हैं। कुछ को अनुयायी भी मिल गए हैं। मैं सुनना चाहता हूँ कि आपका इस बारे में क्या विचार है कि इन झूठे मसीहों के वचनों में भेद कैसे किया जाए।

उत्तर: प्रभु की वापसी की अगवानी कर पाने के लिये ये ज़रूरी है कि सच्चे मसीह और झूठे मसीहों में अंतर करना आए। जो लोग सच्चे मसीह और झूठे मसीहों में अंतर कर सकते हैं केवल वही लोग परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर सकते हैं और उनके सिंहासन के सामने आरोहित किये जा सकते हैं। जो लोग सच्चे मसीह और झूठे मसीहों में भेद नहीं कर सकते, वे मूर्ख कुँवारियाँ हैं और आखिरकार परमेश्वर उन्हें त्याग देंगे और हटा देंगे। झूठे मसीहों को पहचानने के लिये उनके सार की आसलियत का पता लगाना ज़रूरी है। झूठे मसीह दुष्ट आत्माओं के कब्ज़े में होते हैं, इसलिए उनका सार बुरी आत्माएँ है। झूठे मसीहों में सत्य की कोई वास्तविकता नहीं होती। उनके सारी वचन झूठ, बकवास, भ्रामक होते हैं जो काले और सफेद को उलट-पलट देते हैं। वे जानते हैं कि सभी लोग बाइबल के ज्ञान की आराधना करते हैं और बाइबल के रहस्यों को समझना चाहते हैं, इसलिए वे बाइबल की उलटी व्याख्या करने के लिये इस मनोविज्ञान का लाभ उठाते हैं, और लोगों को धोखा देने के लिए तरह-तरह की अजीबोगरीब बातों और बेतुकी बहस का इस्तेमाल करने के लिए बाइबिल को गलत तरीके से पेश करते हैं। उनकी भ्रामक बातें बहुत अजीब और नई लगती हैं, मानो बाइबल की उनकी व्याख्या में बहुत गहरा ज्ञान और रहस्य हो। क्या इससे सिद्ध हो सकता है कि उनकी बातें सत्य हैं? तो फिर सत्य क्या है? सत्य वो है परमेश्वर के पास क्या है और जो वे हैं। ये सभी सकारात्मक चीजों की वास्तविकता है और परमेश्वर के स्वभाव को दर्शाती है। सत्य के सहारे लोग परमेश्वर को जान पाते हैं और सत्य उनका जीवन हो सकता है। ये लोगों को बचा सकता है, उन्हें शुद्ध, परिवर्तित और पूर्ण कर सकता है। झूठे मसीह बाइबल की व्याख्या अजीबो-गरीब बातों और बेतुके तर्कों से करते हैं-वो सच कैसे हो सकता है? क्या ये लोगों को पूर्ण और परिवर्तित कर सकता है? क्या इससे लोग परमेश्वर को जान सकते हैं, उनके हुक्म का पालन कर सकते हैं? क्या इससे लोग शैतान को पहचानकर उससे घृणा कर सकते हैं? क्या इससे लोग शैतान के अंधकारमय प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं? अगर उनकी बातें लोगों के जीवन को ऊपर उठाने के असली प्रभाव को हासिल नहीं कर सकतीं, तो फिर वे भ्रामक, पाखंड और झूठ ही मानी जाती हैं। परमेश्वर का कार्य व्यवहारिक है। अंत के दिनों के देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर मानवजाति को बचाने के लिए सभी सत्य व्यक्त करते हैं। इन सत्यों से लोग परमेश्वर को जान सकते हैं और उद्धार पाने के लिये शैतान के प्रभाव से मुक्त हो सकते हैं, ऐसे लोग बन सकते हैं जो परमेश्वर की आज्ञा मानें और उनकी आराधना करें, और लोग बन सकते हैं जो असल इंसान की तरह रहकर एक सार्थक जीवन जियें। ये परमेश्वर का कार्य है। अगर लोग सच्चे मसीह में, देहधारी परमेश्वर में विश्वास करें और उनका अनुसरण करें, तो परमेश्वर में 8 या 10 साल आस्था रखने के बाद, वे सहज तौर पर बहुत से सत्य समझने लगेंगे। परमेश्वर में धीरे-धीरे उनका विश्वास, प्रेम और आज्ञाकारिता बढ़ती रहनी चाहिए, और उनके जीवन-स्वभाव में भी कुछ परिवर्तन आना चाहिए। यही प्रभाव सिद्ध कर सकते हैं कि इंसान का जिनमें विश्वास है वे मसीह और सच्चे परमेश्वर हैं। ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने आठ-दस साल तक झूठे मसीहों पर विश्वास किया, लेकिन उन्हें कोई सत्य हासिल नहीं हुआ, उन्हें सच्चे परमेश्वर का कोई असली ज्ञान नहीं है, और परमेश्वर के लिये न कोई आस्था है, न प्रेम है और न ही कोई आज्ञाकारिता है। क्या ऐसे लोगों के साथ धोखा और फरेब नहीं हुआ है?

झूठे मसीहों और हर तरह की दुष्ट आत्माओं के पास कोई सत्य नहीं होता और न ही वे परमेश्वर का कोई कार्य कर सकती हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर के स्वभाव को, जो उनके पास है और जो वे हैं, उसे व्यक्त करते हैं। कोई झूठा मसीह या दुष्ट आत्मा उन वचनों की नकल नहीं कर सकती है। झूठे मसीह बातों को केवल अलग संदर्भ में ले जा सकते हैं और लोगों को धोखा देने के लिए बाइबल की गलत व्याख्या कर सकते हैं, या लोगों को आशीष देने और वादा करने के लिए प्रभु यीशु का छ्द्म नाम धारण कर सकते हैं, लेकिन लोगों के जीवन प्रवेश के लिए इनका कोई लाभ नहीं होता है इनसे न तो कोई नया मार्ग निकलता और न ही किसी नए युग का सूत्रपात होता है। झूठे मसीहों और दुष्ट आत्माओं के काम टिकते नहीं हैं। कुछ समय के बाद, हंगामे और आत्म-घात में ये खुद ही बिखर जाते हैं। यह सच्चाई है। परमेश्वर से प्राप्त होने वाली चीज़ें ही फलती-फूलती और टिकाऊ होती हैं। मसीह के सच्चे कार्य से ही इंसान को बचाने और उसे पूर्ण करने के परिणाम हासिल किये जा सकते हैं, परमेश्वर की इच्छा पूरी की जा सकती है और युगों का आरंभ और अंत किया जा सकता है। यह पूर्ण है, क्योंकि परमेश्वर सर्वशक्तिमान हैं। परमेश्वर जो सत्य व्यक्त करते हैं वह हमेशा मौजूद रहेगा। स्वर्ग और पृथ्वी समाप्त हो जाएंगे, मगर परमेश्वर के वचन नहीं!

"वे कौन हैं जो वापस आए हैं" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 2: अभी कई देशों के धार्मिक क्षेत्रों में झूठे मसीहों द्वारा लोगों को धोखा दिए जाने के कुछ मामले सामने आए हैं। कोरिया में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनमें विवेक नहीं है, जिससे वे झूठे मसीहों का अनुसरण करके धोखा खा जाते हैं। इससे प्रभु यीशु की ये भविष्यवाणी पूरी होती है: "उस समय यदि कोई तुम से कहे, 'देखो, मसीह यहाँ है!' या 'वहाँ है!' तो विश्‍वास न करना। क्योंकि झूठे मसीह और झूठे भविष्यद्वक्‍ता उठ खड़े होंगे, और बड़े चिह्न, और अद्भुत काम दिखाएँगे कि यदि हो सके तो चुने हुओं को भी भरमा दें" (मत्ती 24:23-24)। मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसा मानता हूँ कि जहाँ कहीं भी ऐसा उपदेश दिया जाता है कि प्रभु देहधारण करके वापस आ गए हैं, वो बात निश्चित रूप से झूठी है। अगर ऐसा कहकर कोई हमें धोखा देता है तो हमें उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए!

अगला: प्रश्न 4: अभी आपने जो संगति की है कि किस तरह लोगों को धोखा देने के लिए झूठे मसीह बाइबल की गलत व्याख्या करते हैं, संकेतों और चमत्कारों का इस्तेमाल करते हैं, मुझे इसका ये पहलू कुछ-कुछ समझ में आ रहा है। लेकिन मेरा अभी भी एक सवाल है जो मैं आपसे पूछना चाहती हूँ। कुछ झूठे मसीह दावा करते हैं कि परमेश्वर का आत्मा उन पर उतरा है। वे वापस आए प्रभु यीशु का छद्मवेष धारण करके कुछ लोगों को धोखा देते हैं। हम इसे कैसे पहचानें?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

सेटिंग

  • इबारत
  • कथ्य

ठोस रंग

कथ्य

फ़ॉन्ट

फ़ॉन्ट आकार

लाइन स्पेस

लाइन स्पेस

पृष्ठ की चौड़ाई

विषय-वस्तु

खोज

  • यह पाठ चुनें
  • यह किताब चुनें

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें