अंत के दिनों का देहधारी परमेश्वर स्त्री क्यों है?

29 सितम्बर, 2021

अंत के दिनों में, देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर कार्य करने और कई सत्य व्यक्त करने प्रकट हुआ है। इंटरनेट पर आते ही इन चीज़ों ने पूरी दुनिया को हिला दिया है, ज़्यादा से ज़्यादा लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य की जाँच कर रहे हैं। परमेश्वर का देहधारी होकर सत्य व्यक्त करने आना परमेश्वर के वचनों के सामर्थ्य और उसकी सर्वशक्तिमत्ता को पूर्णत: दर्शाता है। सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल से, बहुत से लोग समझ रहे हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में अधिकार और सामर्थ्य है, वे सत्य हैं और परमेश्वर से आए हैं, वे आश्वस्त हैं और उनके मन में कोई संदेह नहीं है। लेकिन जब वो सुनते हैं कि अंत के दिनों का मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर, एक स्त्री है, तो वे उसे स्वीकारने से इंकार कर देते हैं। उन्हें लगता है कि प्रभु यीशु का आगमन पुरुष रूप में था, पवित्र आत्मा ने भी उस समय गवाही दी थी कि प्रभु यीशु “प्रिय पुत्र” था, और बाइबल में भी ऐसी बातें दर्ज हैं, तो जब प्रभु लौटेगा तो वह यहूदिया प्रभु यीशु की छवि में, पुरुष रूप में ही आएगा। वो स्त्री तो बिल्कुल नहीं होगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर चाहे जितने सत्य व्यक्त करे, कितना भी महान कार्य करे, वो उसे नकारते हैं, खोजने और जाँच-पड़ताल करने की तो बात ही छोड़ो। उनका तर्क है, “अगर सर्वशक्तिमान परमेश्वर पुरुष होता, तो मैं मान लेता, लेकिन अगर वो स्त्री है तो तुम कुछ भी कहो, मैं कभी विश्वास नहीं करूँगा, क्योंकि प्रभु यीशु पुरुष था।” इसी वजह से, वे प्रभु की वापसी का स्वागत करने का अवसर गँवाकर, विपत्ति में पड़ जाते हैं, यह अफ़सोस की बात है। तो क्या इन धर्म के ठेकेदारों की बात सही है? बाइबल की भविष्यवाणी के अनुरूप है? क्या परमेश्वर के वचनों में उनका कोई आधार है? बिल्कुल नहीं। क्योंकि प्रभु यीशु ने कभी नहीं कहा कि वो पुरुष-रूप में लौटेगा या स्त्री-रूप में, पवित्र आत्मा ने भी इस बात की गवाही नहीं दी कि मनुष्य का पुत्र पुरुष-रूप में लौटेगा या स्त्री-रूप में। बाइबल भी भविष्यवाणी नहीं करती कि अंत के दिनों में लौटने पर परमेश्वर पुरुष होगा या स्त्री। यह सबूत काफी है कि इंसानी बातों और विचारों का बाइबल में कोई आधार नहीं है, वह लोगों की धारणाओं और कल्पनाओं के अलावा और कुछ नहीं हैं। बहुत से लोग पूछते हैं, “अंत के दिनों में देहधारी परमेश्वर पुरुष के बजाय स्त्री क्यों है?” मैं इस सवाल पर अपनी कुछ समझ साझा करूँगी।

अंत के दिनों में मनुष्य के पुत्र के रूप में परमेश्वर के देहधारण करके आने के बारे में बाइबल में कई भविष्यवाणियाँ हैं, लेकिन उसमें यह नहीं लिखा कि अंत के दिनों में प्रभु पुरुष-रूप में लौटेगा या स्त्री-रूप में। उसमें सिर्फ इतना लिखा है “मनुष्य के पुत्र का भी आना,” “मनुष्य का पुत्र आ जाएगा,” और “मनुष्य का पुत्र अपने दिन में प्रगट होगा।” आज, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने आकर काफी सत्य व्यक्त किए हैं और वह अंत के दिनों में न्याय का कार्य करता है, जिससे ये भविष्यवाणियाँ पूरी होती हैं। फिर भी जब लोगों को पता चलता है कि अंत के दिनों का मसीह स्त्री है, तो उन्हें आश्चर्य होता है। यह हमारी धारणाओं से बिल्कुल मेल नहीं खाता। चूँकि यह परमेश्वर का प्रकटन और कार्य है, इसलिए इस बारे में लोगों की धारणाएँ होना बिल्कुल सामान्य है। प्रभु यीशु के आने पर तो लोगों में और भी ज़्यादा भ्रांतियाँ थीं। लेकिन किसी चीज़ के बारे में लोगों की धारणाएँ जितनी ज़्यादा होती हैं, वो उतनी ही रहस्यमय बन जाती है। अगर परमेश्वर इन रहस्यों को प्रकट न करे, तो हम उन्हें कभी न समझ पाएँ। तो आओ देखें कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर क्या कहता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “यदि परमेश्वर केवल एक पुरुष के रूप में देह में आए, तो लोग उसे पुरुष के रूप में, पुरुषों के परमेश्वर के रूप में परिभाषित करेंगे, और कभी विश्वास नहीं करेंगे कि वह महिलाओं का परमेश्वर है। तब पुरुष यह मानेंगे कि परमेश्वर पुरुषों के समान लिंग का है, कि परमेश्वर पुरुषों का प्रमुख है—लेकिन फिर महिलाओं का क्या? यह अनुचित है; क्या यह पक्षपातपूर्ण व्यवहार नहीं है? यदि यही मामला होता, तो वे सभी लोग जिन्हें परमेश्वर ने बचाया, उसके समान पुरुष होते, और एक भी महिला नहीं बचाई गई होती। जब परमेश्वर ने मानवजाति का सृजन किया, तो उसने आदम को बनाया और उसने हव्वा को बनाया। उसने न केवल आदम को बनाया, बल्कि पुरुष और महिला दोनों को अपनी छवि में बनाया। परमेश्वर केवल पुरुषों का ही परमेश्वर नहीं है—वह महिलाओं का भी परमेश्वर है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के कार्य का दर्शन (3))। “परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के प्रत्येक चरण के अपने व्यवहारिक मायने हैं। जब यीशु का आगमन हुआ, तो वह पुरुष रूप में आया, लेकिन इस बार के आगमन में परमेश्वर, स्त्री रूप में आता है। इससे तुम देख सकते हो कि परमेश्वर द्वारा पुरुष और स्त्री, दोनों का ही सृजन उसके काम के लिए उपयोगी हो सकता है, वह कोई लिंग-भेद नहीं करता। जब उसका आत्मा आता है, तो वह इच्छानुसार किसी भी देह को धारण कर सकता है और वही देह उसका प्रतिनिधित्व करता है; चाहे पुरुष हो या स्त्री, दोनों ही परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं, यदि यह उसका देहधारी शरीर है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से, हम देख सकते हैं कि परमेश्वर का देहधारण चाहे पुरुष-रूप में हो या स्त्री-रूप में, यह अर्थपूर्ण होता है। इसमें खोजने के लिए सत्य होता है, इससे हम परमेश्वर की इच्छा समझ सकते और उसका स्वभाव जान सकते हैं। यदि देहधारी परमेश्वर हमेशा पुरुष ही हो, तो उसका परिणाम क्या होगा? लोग परमेश्वर को हमेशा के लिए पुरुष-रूप में देखेंगे, स्त्री-रूप में नहीं, स्त्रियों के साथ भेदभाव होता रहेगा, वे समाज की पूर्ण सदस्य कभी नहीं बन पाएँगी। क्या यह स्त्रियों के साथ न्याय होगा? परमेश्वर धार्मिक परमेश्वर है, उसी ने स्त्री-पुरुष दोनों को बनाया है, तो परमेश्वर अपने पहले देहधारण में पुरुष बना, और अंत के दिनों में, परमेश्वर ने स्त्री-रूप में देहधारण किया। यह बहुत मायने रखता है, सभी स्त्रियों को इस बात की खुशी मनानी चाहिए और कोई धारणा नहीं रखनी चाहिए। अगर अभी भी कोई स्त्री, देहधारी स्त्री परमेश्वर को नकारकर उसके साथ भेदभाव करती है, तो वो स्त्री दया की पात्र है! सच्चाई ये है परमेश्वर चाहे स्त्री-रूप में देहधारण करे या पुरुष-रूप में, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। महत्वपूर्ण यह है कि वह सत्य व्यक्त करके उद्धार-कार्य कर सकता है। लोगों को यह नहीं सोचना चाहिए कि देहधारी परमेश्वर केवल पुरुष-रूप में ही ईश-कार्य कर सकता है अगर वह स्त्री-रूप में है तो ईश-कार्य नहीं कर सकता। ऐसी सोच पिछड़ी और अज्ञान से भरी है। आज हम देखते ही हैं कि स्त्रियाँ पुरुषों के सारे काम कर सकती हैं। मसलन, अगर पुरुष हवाई जहाज़ उड़ा सकते हैं, तो स्त्रियाँ भी। पुरुष अंतरिक्ष यात्री हो सकते हैं, स्त्रियाँ भी। पुरुष राष्ट्रपति हो सकते हैं, तो स्त्रियाँ भी। पुरुष कारोबार कर सकते हैं और करियर बना सकते हैं, तो स्त्रियाँ भी कारोबार कर सकती हैं और करियर बना सकती हैं। इससे साबित होता है कि स्त्रियाँ किसी भी मायने में पुरुषों से कम नहीं हैं। तो फिर ऐसा क्यों है कि देहधारी परमेश्वर केवल पुरुष हो सकता है, स्त्री नहीं? सर्वशक्तिमान परमेश्वर को देखो, जिसने इतना सत्य व्यक्त किया और इतना कार्य किया है। क्या स्त्री होने से परमेश्वर के कार्य में कोई बाधा आई है? अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय-कार्य प्रभु यीशु द्वारा किए गए कार्य से कहीं अधिक विशाल है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त किए गए सत्य से कहीं अधिक गहरा सत्य व्यक्त किया है। जब ये बात जग-ज़ाहिर है, तो लोग इन बातों को पहचान क्यों नहीं पाते? आज दुनियाभर में कितनी महिलाएँ अत्याचार और भेदभाव का शिकार होती हैं? उन्हें पुरुषों के बराबर दर्जा दिया जाना चाहिए, इसके अलावा, उन्हें उद्धार और आज़ादी मिलनी चाहिए। हमारी महिला साथियों को कौन बचा सकता है? आज, सर्वशक्तिमान परमेश्वर आ चुका है, इस बेहद दुष्ट संसार और गहराई से भ्रष्ट इंसान का न्याय करने के लिए उसने सत्य व्यक्त किया है। ऐसी बहुत-सी महिलाएँ हैं जिन्होंने देखा है कि देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर स्त्री है, जो सत्य व्यक्त कर सकती है और अंत के दिनों में न्याय का कार्य करती है, इसलिए वो महिला होने पर गर्व महसूस करती हैं। वे सिर ऊँचा करके चलती हैं, उनमें स्वतंत्रता और मुक्ति की भावना आई है, वो जश्न मनाकर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की स्तुति करती हैं। परमेश्वर का स्त्री-रूप में देहधारण करके आना उसके धार्मिक स्वभाव का परिचायक है। केवल परमेश्वर ही इंसान से सच्चा प्रेम करता है, वही लोगों के साथ उचित व्यवहार कर सकता है। परमेश्वर अत्यंत प्रेम-योग्य है! अब एक और बात पर विचार करते हैं। पुरुष प्रभु यीशु लोगों के पाप वहन कर सका और उसने सूली चढ़कर छुटकारे का काम किया। अगर प्रभु यीशु स्त्री-रूप में आया होता, तो क्या वह सूली पर चढ़कर छुटकारे का काम कर पाता? इसमें कोई शक नहीं कि वह ऐसा कर पाता। परमेश्वर के देहधारण का अर्थ है कि उसका आत्मा इंसानी चोला धारण करता है, फिर वो चोला चाहे स्त्री का हो या पुरुष का, फर्क नहीं पड़ता। वो स्वयं परमेश्वर है। वह सत्य व्यक्त करके कार्य करता है, जो कि परमेश्वर के आत्मा के द्वारा किया जाता और नियंत्रित होता है। इसलिए, देहधारी परमेश्वर का तन चाहे स्त्री का हो या पुरुष का, वह परमेश्वर की पहचान का प्रतिनिधित्व करने और स्वयं परमेश्वर का कार्य करने योग्य होता है, और अंत में, कार्य पूरा होगा और परमेश्वर महिमा प्राप्त करेगा। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा है। “यदि यीशु स्त्री के रूप में आ जाता, यानी अगर पवित्र आत्मा ने लड़के के बजाय लड़की के रूप में गर्भधारण किया होता, तब भी कार्य का वह चरण उसी तरह से पूरा किया गया होता। और यदि ऐसा होता, तो कार्य का वर्तमान चरण पुरुष के द्वारा पूरा किया जाता और कार्य उसी तरह से पूरा किया जाता। प्रत्येक चरण में किए गए कार्य का अपना अर्थ है; कार्य का कोई भी चरण दोहराया नहीं जाता है या एक-दूसरे का विरोध नहीं करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दो देहधारण पूरा करते हैं देहधारण के मायने)। यानी देहधारी तन स्त्री का हो या पुरुष का, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर वह सत्य व्यक्त कर सके और वो कार्य कर सके जो परमेश्वर करना चाहता है, साथ ही इंसान को शुद्ध करके बचा सके, तो वो देहधारी परमेश्वर है। अगर लोग सोचते हैं कि देहधारी परमेश्वर केवल पुरुष ही हो सकता है स्त्री नहीं, तो क्या यह केवल लोगों के नियमों, धारणाओं और कल्पनाओं की उपज नहीं है? क्या उन्हें यह लगता है कि परमेश्वर ने पुरुष को बनाया है स्त्री को नहीं? चूँकि देहधारी परमेश्वर स्त्री है, इसलिए भले ही वो कितना भी सत्य व्यक्त करे या विशाल कार्य करे, लोग उसे मान्यता या स्वीकृति नहीं देते। क्या यह सिर्फ इसलिए नहीं कि लोग स्त्रियों को नकारते और उनके प्रति भेदभावपूर्ण हैं? क्या यह भी एक तरह का भ्रष्ट इंसानी स्वभाव नहीं है? लोगों को यह चुनने का कोई अधिकार नहीं है कि परमेश्वर कैसे प्रकट होकर कार्य करेगा। अगर वह परमेश्वर का देहधारण है और सत्य व्यक्त करके परमेश्वर का कार्य करता है, तो फिर चाहे देह स्त्री का हो या पुरुष का, लोगों को उसे स्वीकारना और उसका आज्ञापालन करना चाहिए। यह उचित और बुद्धिमत्तापूर्ण है। परमेश्वर सर्वशक्तिमान और सर्व-बुद्धिमान है, उसकी सोच इंसानी सोच से परे है। इंसान परमेश्वर का कार्य समझने की आशा कैसे कर सकता है? प्राचीन काल से लेकर आज तक, परमेश्वर के कार्य का हर चरण इंसानी धारणाओं से आगे और उनके विरुद्ध ही रहा है। जब प्रभु यीशु ने प्रकट होकर कार्य किया, तो उसका रूप, जन्म और परिवार इंसानी धारणाओं से एकदम अलग था। इसलिए फरीसियों ने उसे बाइबल में वर्णित मसीहा नहीं माना और आखिरकार उसे सूली पर चढ़ा दिया, ऐसा जघन्य पाप किया जिसके लिए परमेश्वर ने उन्हें दंडित किया और शाप दिया। यह एक विचारोत्तेजक सबक था जिसकी कीमत खून से चुकाई गई। तो परमेश्वर के प्रकटन और कार्य से जुड़ी हर चीज़ एक अहम घटना और रहस्य होती है। अगर लोग सत्य खोजने के बजाय, अपनी ही धारणाओं से चिपके रहते हैं, और बिना सोचे परखते और निर्णय लेते हैं, तो मुमकिन है कि वे परमेश्वर के स्वभाव को ठेस पहुँचा दें। अगर परमेश्वर तुम्हें ठुकरा दे, हटा दे और तुम उसके हाथों अपना उद्धार गँवा बैठो, तो तुम्हारे लिए ये सबसे बड़े अफसोस की बात होगी।

आज भी अनगिनत लोग ऐसे हैं जो अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य को सिर्फ इसलिए नकारते हैं क्योंकि वह स्त्री है, यह जानते हुए भी कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं, वे उसे नहीं स्वीकारते। यहाँ समस्या क्या है? इन लोगों की धारणाएँ इतनी मज़बूत क्यों हैं? वे सत्य और सत्य की अभिव्यक्ति को सबसे अधिक महत्व क्यों नहीं देते? हमें इंसान और सृजित प्राणी होने के नाते, परमेश्वर और उसके कार्य के साथ अक्लमंदी से पेश आना चाहिए। अगर हम साफ तौर पर जानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही देहधारी परमेश्वर है और उसने जो वचन व्यक्त किए वो सत्य हैं, फिर भी हम अपनी ही धारणाओं से चिपके रहकर, उसे स्त्री होने के कारण नकारते रहें, तो यह बहुत ही गंभीर समस्या है। ऐसा करना परमेश्वर को नकारना और उसका विरोध करना है। देहधारी परमेश्वर या उसके द्वारा व्यक्त सत्य को नकारना मात्र धारणाओं और कल्पनाओं की समस्या नहीं रह जाती। यह तुम्हें मसीह-विरोधी बना देती है, परमेश्वर का शत्रु, जो शापित किए जाने योग्य है! जैसा कि बाइबल में कहा गया है : “क्योंकि बहुत से ऐसे भरमानेवाले जगत में निकल आए हैं, जो यह नहीं मानते कि यीशु मसीह शरीर में होकर आया; भरमानेवाला और मसीह-विरोधी यही है” (2 यूहन्ना 1:7)। “जो आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्‍वर की ओर से नहीं; और वही तो मसीह के विरोधी की आत्मा है, जिसकी चर्चा तुम सुन चुके हो कि वह आनेवाला है, और अब भी जगत में है” (1 यूहन्ना 4:3)। तो हम पक्के तौर पर कह सकते हैं कि जो मनुष्य के पुत्र की वापसी को नहीं स्वीकारता, जो वापस आए देहधारी परमेश्वर को नहीं मानता वो मसीह-विरोधी है। तुम्हें लगता है परमेश्वर वापस आने पर मसीह-विरोधियों को बचाएगा? बिल्कुल नहीं। तो फिर मसीह-विरोधियों का अंत क्या होता है? मसीह-विरोधी क्या गलती करते हैं? वो केवल किसी व्यक्ति का विरोध नहीं कर रहे होते, बल्कि अंत के दिनों के मसीह यानी स्वयं परमेश्वर का विरोध कर रहे होते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा और आलोचना का सार क्या है? यह पवित्र आत्मा के विरुद्ध ईशनिंदा का पाप है। इस पाप को अनंत काल तक माफ़ नहीं किया जाता।

आज बहुत से लोग परमेश्वर में विश्वास तो रखते हैं लेकिन उसका कार्य नहीं जानते, न ही वो ये जानते हैं कि मनुष्य का पुत्र क्या है, देहधारण क्या है या एक सच्चा परमेश्वर कौन है। इस तरह, देहधारी परमेश्वर का विरोध करना आसान होता है। इसलिए हमें अपनी धारणाओं और कल्पनाओं से परमेश्वर के कार्य को कभी सीमित नहीं करना चाहिए। बल्कि सत्य खोजकर अपनी धारणाओं से मुक्ति पानी चाहिए। तभी हम परमेश्वर का आशीष पा सकते हैं। परमेश्वर के दोनों देहधारणों के दौरान किए गए कार्य के मायने दूरगामी और गहरे हैं। ऐसा सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने कहा है। “परमेश्वर केवल पवित्र आत्मा, पवित्रात्मा, सात गुना तीव्र पवित्रात्मा या सर्व-व्यापी पवित्रात्मा ही नहीं है, बल्कि एक मनुष्य भी है—एक साधारण मनुष्य, एक अत्यधिक सामान्य मनुष्य। वह नर ही नहीं, नारी भी है। वे इस बात में एक-समान हैं कि वे दोनों ही मनुष्यों से जन्मे हैं, और इस बात में असमान हैं कि एक पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आया और दूसरा मनुष्य से जन्मा किंतु सीधे पवित्रात्मा से उत्पन्न है। वे इस बात में एक-समान हैं कि परमेश्वर द्वारा धारित दोनों देह परमपिता परमेश्वर का कार्य करते हैं, और असमान इस बात में हैं कि एक ने छुटकारे का कार्य किया, जबकि दूसरा विजय का कार्य करता है। दोनों परमपिता परमेश्वर का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन एक प्रेममय-करुणा और दयालुता से भरा मुक्तिदाता है और दूसरा कोप और न्याय से भरा धार्मिकता का परमेश्वर है। एक सर्वोच्च सेनापति है जिसने छुटकारे का कार्य आरंभ किया, जबकि दूसरा धार्मिक परमेश्वर है जो विजय का कार्य संपन्न करता है। एक आरंभ है, दूसरा अंत। एक निष्पाप देह है, दूसरा वह देह जो छुटकारे को पूरा करता है, कार्य जारी रखता है और कभी भी पापी नहीं है। दोनों एक ही पवित्रात्मा हैं, लेकिन वे भिन्न-भिन्न देहों में वास करते हैं और भिन्न-भिन्न स्थानों पर पैदा हुए थे और उनके बीच कई हजार वर्षों का अंतर है। फिर भी उनका संपूर्ण कार्य एक-दूसरे का पूरक है, कभी परस्पर-विरोधी नहीं है, और एक-दूसरे के तुल्य है। दोनों ही मनुष्य हैं, लेकिन एक बालक था और दूसरी बालिका(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है?)। हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से देखते हैं कि जब परमेश्वर इंसान को बचाने का कार्य करने के लिए देहधारण करके आता है, तो फर्क नहीं पड़ता कि वो पुरुष है या स्त्री, वो किस परिवार से आता है या कैसा दिखता है। इनमें से कोई भी चीज़ अहम नहीं है। अहम बात यह है कि वह परमेश्वर का कार्य कर सकता है, परमेश्वर की इच्छा पूरी कर सकता है, और उसे महिमामंडित कर सकता है। दो हज़ार साल पहले, प्रभु यीशु का जन्म यहूदिया के एक बहुत ही साधारण परिवार में चरनी में हुआ था। इसे लेकर लोगों की धारणाएँ थीं। उन्होंने प्रभु यीशु को नासरत के एक बढ़ई के पुत्र के नज़रिए से देखा और उसी आधार पर उसके काम को नकार दिया। नतीजा ये हुआ कि परमेश्वर ने उन्हें श्राप दिया और वो अपने उद्धार से हाथ धो बैठे। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर आया है। उसका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ और वो रूप-रंग से एशियाई है। देखने में वो एक साधारण व्यक्ति लगता है, फिर भी वह बहुत से सत्य व्यक्त करता है, अंत के दिनों में न्याय का कार्य करता है, लोगों को जीतता है और विजेताओं का समूह बनाता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बहुत ही ज़बर्दस्त कार्य किया है जिसने पूरी दुनिया को हिला दिया है, हज़ारों वर्षों से शैतान द्वारा इंसान को भ्रष्ट करने के इतिहास को समाप्त कर एक नए युग की शुरुआत की है। लोगों को क्या हक है कि वे परमेश्वर के स्त्री-रूप में देहधारण के बारे में धारणा बनाएँ? ऐसे लोग बहुत अहंकारी और विवेकशून्य होते हैं। आज, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार पूरी दुनिया में प्रचारित किया जाता है। परमेश्वर के कार्य के चरण विशाल, शक्तिशाली और अजेय हैं, परमेश्वर के वचन सब-कुछ संपन्न कर देंगे। यह पूरी तरह से परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव, सर्वशक्तिमत्ता और बुद्धिमत्ता को प्रकट करता है। जैसा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, “अंत के दिनों में परमेश्वर का सारा काम इस साधारण मनुष्य द्वारा किया जाता है। वह तुम्हें सब-कुछ प्रदान करेगा और इतना ही नहीं, वह तुमसे जुड़ी हर बात तय करने में सक्षम होगा। क्या ऐसा व्यक्ति वैसा हो सकता है, जैसा तुम लोग मानते हो : इतना साधारण मनुष्य, जो उल्लेख करने योग्य भी नहीं है? क्या उसका सत्य तुम लोगों को पूर्ण रूप से आश्वस्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है? क्या उसके कार्य की गवाही तुम लोगों को पूर्ण रूप से आश्वस्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है? या फिर उसके द्वारा लाया गया मार्ग तुम लोगों के चलने योग्य नहीं है? सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद, वह क्या चीज है, जिसके कारण तुम लोग उससे घृणा करते हो और उसे अलग कर देते हो और उससे दूर रहते हो? यही मनुष्य है जो सत्य अभिव्यक्त करता है, यही मनुष्य है जो सत्य प्रदान करता है, और यही मनुष्य है जो तुम लोगों को अनुसरण करने के लिए मार्ग प्रदान करता है। क्या ऐसा हो सकता है कि तुम लोग अभी भी इन सत्यों के भीतर परमेश्वर के कार्य के संकेत पाने में असमर्थ हो? यीशु के कार्य के बिना मानवजाति सूली से नहीं उतर सकती थी, लेकिन आज के देहधारण के बिना सूली से उतरे लोग कभी परमेश्वर का अनुमोदन नहीं पा सकते या नए युग में प्रवेश नहीं कर सकते। इस साधारण मनुष्य के आगमन के बिना तुम लोगों को कभी परमेश्वर के सच्चे मुखमंडल का दर्शन करने का अवसर न मिलता, न ही तुम इसके योग्य होते, क्योंकि तुम लोग ऐसी वस्तुएँ हो, जिन्हें बहुत पहले ही नष्ट कर दिया जाना चाहिए था। परमेश्वर के द्वितीय देहधारण के आगमन के कारण परमेश्वर ने तुम लोगों को क्षमा कर दिया है और तुम लोगों पर दया दिखाई है। खैर, अंत में मुझे तुम लोगों के पास जो वचन छोड़ने चाहिए, वे अभी भी ये ही हैं : यह साधारण मनुष्य, जो देहधारी परमेश्वर है, तुम लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह वह महान काम है, जिसे परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच पहले ही कर दिया है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम जानते थे? परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच एक महान काम किया है)

यह तथ्य कि तुम लोग आज तक पहुँच गए हो, इसी देह के कारण है। चूँकि परमेश्वर देह में जीता है, इसीलिए तुम लोगों के पास जीवित रहने का मौका है। यह समस्त सौभाग्य इसी साधारण मनुष्य के कारण मिला है। इतना ही नहीं, बल्कि अंत में समस्त राष्ट्र इस साधारण मनुष्य की उपासना करेंगे और साथ ही इस मामूली मनुष्य को धन्यवाद देंगे और उसकी आज्ञा का पालन करेंगे, क्योंकि उसके द्वारा लाए गए सत्य, जीवन और मार्ग ने ही समस्त मानवजाति को बचाया है, मनुष्य और परमेश्वर के बीच के संघर्ष को शांत किया है, उनके बीच की दूरी कम की है, और परमेश्वर के विचारों और मनुष्य के बीच संबंध जोड़ा है। इसी ने परमेश्वर को और अधिक महिमा प्रदान की है। क्या ऐसा साधारण मनुष्य तुम्हारे विश्वास और श्रद्धा के योग्य नहीं है? क्या यह साधारण देह मसीह कहलाने के योग्य नहीं है? क्या ऐसा साधारण मनुष्य लोगों के बीच परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं बन सकता? क्या ऐसा व्यक्ति, जिसने मानवजाति को आपदा से बचाया है, तुम लोगों के प्रेम और अनुसरण करने की तुम्हारी इच्छा के लायक नहीं हो सकता? यदि तुम लोग उसके मुख से निकले सत्य को नकारते हो, और अपने बीच उसके अस्तित्व का तिरस्कार करते हो, तो अंत में तुम लोगों का क्या होगा?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या तुम जानते थे? परमेश्वर ने मनुष्यों के बीच एक महान काम किया है)

राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरुआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने और संपूर्ण युग के लिए काम करने के लिए अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। वह देहधारी हुआ ताकि विभिन्न दृष्टिकोण से बोल सके, मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को देख सके, जो देह में प्रकट होने वाला वचन है, उसकी बुद्धि और चमत्कार को जान सके। इस तरह का कार्य मनुष्य को जीतने, उन्हें पूर्ण बनाने और बाहर निकालने के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से हासिल करने के लिए किया जाता है। वचन के युग में वचन के उपयोग का यही वास्तविक अर्थ है। वचन के द्वारा परमेश्वर के कार्यों को, परमेश्वर के स्वभाव को मनुष्य के सार और इस राज्य में प्रवेश करने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए, यह जाना जा सकता है। वचन के युग में परमेश्वर जिन सभी कार्यों को करना चाहता है, वे वचन के द्वारा संपन्न होते हैं। वचन के द्वारा ही मनुष्य की असलियत का पता चलता है, उसे बाहर निकाला जाता है और परखा जाता है। मनुष्य ने वचन देखा है, सुना है और वचन के अस्तित्व को जाना है। इसके परिणामस्वरूप वह परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करता है, मनुष्य परमेश्वर के सर्वशक्तिमान होने और उसकी बुद्धि पर, साथ ही साथ मनुष्य के लिए परमेश्वर के हृदय के प्रेम और मनुष्य को बचाने की उसकी इच्छा पर विश्वास करता है। यद्यपि ‘वचन’ शब्द सरल और साधारण है, देहधारी परमेश्वर के मुख से निकला वचन संपूर्ण ब्रह्माण्ड को झकझोरता है; और उसका वचन मनुष्य के हृदय को रूपांतरित करता है, मनुष्य के सभी विचारों और पुराने स्वभाव और समस्त संसार के पुराने स्वरूप में परिवर्तन लाता है। युगों-युगों से केवल आज के दिन का परमेश्वर ही इस प्रकार से कार्य करता है और केवल वही इस प्रकार से बोलता और मनुष्य का उद्धार करता है। इसके बाद मनुष्य वचन के मार्गदर्शन में, उसकी चरवाही में और उससे प्राप्त आपूर्ति में जीवन जीता है। वह वचन के संसार में जीता है, परमेश्वर के वचन के कोप और आशीषों के बीच जीता है, तथा और भी अधिक लोग अब परमेश्वर के वचन के न्याय और ताड़ना के अधीन जीने लगे हैं। ये वचन और यह कार्य सब कुछ मनुष्य के उद्धार, परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने और पुरानी सृष्टि के संसार के मूल स्वरूप को बदलने के लिए है। परमेश्वर ने संसार की सृष्टि वचन से की, वह समस्त ब्रह्माण्ड में मनुष्य की अगुवाई वचन के द्वारा करता है, उन्हें वचन के द्वारा जीतता और उनका उद्धार करता है। अंत में, वह इसी वचन के द्वारा समस्त प्राचीन जगत का अंत कर देगा। तभी उसके प्रबंधन की योजना पूरी होगी(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, राज्य का युग वचन का युग है)

मैं कभी यहोवा के नाम से जाना जाता था। मुझे मसीहा भी कहा जाता था, और लोग कभी मुझे प्यार और सम्मान से उद्धारकर्ता यीशु भी कहते थे। किंतु आज मैं वह यहोवा या यीशु नहीं हूँ, जिसे लोग बीते समयों में जानते थे; मैं वह परमेश्वर हूँ जो अंत के दिनों में वापस आया है, वह परमेश्वर जो युग का समापन करेगा। मैं स्वयं परमेश्वर हूँ, जो अपने संपूर्ण स्वभाव से परिपूर्ण और अधिकार, आदर और महिमा से भरा, पृथ्वी के छोरों से उदित होता है। लोग कभी मेरे साथ संलग्न नहीं हुए हैं, उन्होंने मुझे कभी जाना नहीं है, और वे मेरे स्वभाव से हमेशा अनभिज्ञ रहे हैं। संसार की रचना के समय से लेकर आज तक एक भी मनुष्य ने मुझे नहीं देखा है। यह वही परमेश्वर है, जो अंत के दिनों के दौरान मनुष्यों पर प्रकट होता है, किंतु मनुष्यों के बीच में छिपा हुआ है। वह सामर्थ्य से भरपूर और अधिकार से लबालब भरा हुआ, दहकते हुए सूर्य और धधकती हुई आग के समान, सच्चे और वास्तविक रूप में, मनुष्यों के बीच निवास करता है। ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसका मेरे वचनों द्वारा न्याय नहीं किया जाएगा, और ऐसा एक भी व्यक्ति या चीज़ नहीं है, जिसे जलती आग के माध्यम से शुद्ध नहीं किया जाएगा। अंततः मेरे वचनों के कारण सारे राष्ट्र धन्य हो जाएँगे, और मेरे वचनों के कारण टुकड़े-टुकड़े भी कर दिए जाएँगे। इस तरह, अंत के दिनों के दौरान सभी लोग देखेंगे कि मैं ही वह उद्धारकर्ता हूँ जो वापस लौट आया है, और मैं ही वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर हूँ जो समस्त मानवजाति को जीतता है। और सभी देखेंगे कि मैं ही एक बार मनुष्य के लिए पाप-बलि था, किंतु अंत के दिनों में मैं सूर्य की ज्वाला भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को जला देती है, और साथ ही मैं धार्मिकता का सूर्य भी बन जाता हूँ जो सभी चीज़ों को प्रकट कर देता है। अंत के दिनों में यह मेरा कार्य है। मैंने इस नाम को इसलिए अपनाया और मेरा यह स्वभाव इसलिए है, ताकि सभी लोग देख सकें कि मैं एक धार्मिक परमेश्वर हूँ, दहकता हुआ सूर्य हूँ और धधकती हुई ज्वाला हूँ, और ताकि सभी मेरी, एक सच्चे परमेश्वर की, आराधना कर सकें, और ताकि वे मेरे असली चेहरे को देख सकें : मैं केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं हूँ, और मैं केवल छुटकारा दिलाने वाला नहीं हूँ; मैं समस्त आकाश, पृथ्वी और महासागरों के सारे प्राणियों का परमेश्वर हूँ(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, उद्धारकर्ता पहले ही एक “सफेद बादल” पर सवार होकर वापस आ चुका है)

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