हम पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करते हैं और हम प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, सुसमाचार फैलाते हैं और प्रभु के लिए गवाही देते हैं, और पौलुस की तरह प्रभु की कलिसियाओं की चरवाही करते हैं: "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है" (2 तीमुथियुस 4:7)। क्या यह परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करना नहीं है? इस तरह से अभ्यास करने का अर्थ यह होना चाहिए कि हम स्वर्गारोहित होने और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने के योग्य हैं, तो हमें स्वर्ग के राज्य में लाये जाने से पहले परमेश्वर के अंतिम दिनों के न्याय और शुद्धि के कार्य को क्यों स्वीकार करना चाहिए?
उत्तर: यह सवाल बड़ा अहम है। इसमें पूछा गया है कि क्या प्रभु में विश्वास करके किसी को स्वर्ग के राज्य तक पहुंचाया जा सकता है। प्रभु में विश्वास करने वाले बहुत से लोग समझते हैं कि प्रभु के लिए मेहनत करने और स्वयं को खपाने वाले पौलुस के मार्ग पर चलना प्रभु के मार्ग पर चलने जैसा ही है, जिससे प्रभु के लौटने पर वे स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के लायक बन जाएंगे। बहुत से लोगों की यही सोच है। यह सोच क्या प्रभु के वचन पर आधारित है? हमारे ऐसा करने से क्या प्रभु के हृदय को खुशी मिलती है? पौलुस की तरह प्रभु के लिए मेहनत करके क्या हम सचमुच प्रभु के मार्ग पर चल रहे हैं? क्या हम स्वर्ग के राज्य के लायक बनेंगे? प्रभु यीशु ने कहा था, "जो मुझ से, 'हे प्रभु! हे प्रभु!' कहता है, उनमें से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, 'हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्चर्यकर्म नहीं किए?' तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ'" (मत्ती 7:21-23)। प्रभु यीशु ने यह साफ़ तौर पर कहा था कि परमेश्वर की इच्छा का पालन करने वाले लोग ही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पा सकते हैं। प्रभु यीशु ने यह नहीं कहा कि प्रभु के लिए त्याग करनेवाले, स्वयं को खपाने वाले और मेहनत करनेवाले स्वर्ग के राज्य में जा पायेंगे। बहुत से लोग जो उपदेश देते हैं, शैतानों को दूर भगाते हैं, और प्रभु के नाम पर चमत्कार करते हैं, वे मेहनत करने वाले लोग हैं उनकी तारीफ़ करना तो दूर, प्रभु उनको कपटी तक कहते हैं। पौलुस ने कहा था, "मैं अच्छी कुश्ती लड़ चुका हूँ, मैं ने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैं ने विश्वास की रखवाली की है। भविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है" (2 तीमुथियुस 4:7-8)। यह कथन प्रभु यीशु के वचन के विपरीत है। यह प्रभु के इरादे के साथ बुनियादी रूप में मेल नहीं खाता। स्वर्ग के राज्य में पहुँचने का बस सिर्फ एक ही पक्का रास्ता है. जो प्रभु यीशु ने साफ़ तौर पर कहा था: "आधी रात को धूम मची: 'देखो, दूल्हा आ रहा है! उससे भेंट करने के लिये चलो'" (मत्ती 25:6)। "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)। प्रभु के साथ भोजन करने का मतलब है अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय-कार्य को प्राप्त करना, परमेश्वर का न्याय और ताड़ना पाकर, हम सारे सत्य समझ पाते हैं, स्वच्छ और परिपूर्ण हो जाते हैं। प्रभु के साथ भोजन करने के ये परिणाम हैं। तो हम निश्चित हो सकते हैं कि अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय-कार्य और ताड़ना से शुद्धता पाकर ही कोई व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकता है।
हम सब जानते हैं कि सिर्फ प्रभु यीशु मसीह ही सत्य, मार्ग और जीवन हैं। यानी स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के मार्ग का अंतिम आधार प्रभु यीशु का वचन ही होना चाहिए। पौलुस महज एक धर्मप्रचारक था, जिसने सुसमाचार का प्रचार किया। उसको प्रभु की ओर से बोलने का अधिकार नहीं था। उसका चुना हुआ मार्ग आवश्यक रूप से स्वर्ग के राज्य का मार्ग नहीं था। चूँकि प्रभु यीशु ने पौलुस के मार्ग के सही होने की गवाही नहीं दी, इसके अलावा, प्रभु यीशु ने लोगों से पौलुस का मार्ग अपनाने को नहीं कहा, तो यदि स्वर्ग के राज्य का मार्ग चुनने के लिए हम सिर्फ पौलुस के वचन पर चलें, तो आसानी से राह भटक सकते हैं। प्रभु यीशु के वचन का यह उद्धरण जो हम ने अभी पढ़ा, वह बहुत अहम है! "परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।" यह वाक्य हमें बताता है कि हमें प्रभु के वचन में विश्वास करना चाहिए। स्वर्ग के राज्य तक पहुँचने का एकमात्र मार्ग, परमेश्वर की इच्छा का पालन करना है। जब अंत के दिनों में प्रभु यीशु, परमेश्वर के निवास से आरंभ होने वाला न्याय का कार्य करने के लिए लौट आयेंगे। यदि हम अंत के दिनों में परमेश्वर की आवाज को सुनें, उनके कार्य को ग्रहण करें, शुद्धता पा लें और परमेश्वर के न्याय और उनकी ताड़ना से परिपूर्ण बन जायें, तब हम परमेश्वर की इच्छा का पालन करने वाले व्यक्ति बन जायेंगे और फिर स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के लायक बन जायेंगे। यह सुनिश्चित है। जो लोग प्रभु की ओर से उपदेश देने के लिए सिर्फ उत्साह के भरोसे रहते हैं, शैतानों को दूर भगाते हैं, और प्रभु के नाम पर चमत्कार करते हैं, वे न तो प्रभु के वचन का पालन करने पर ध्यान देते हैं, न ही इस समय परमेश्वर के कार्य को ग्रहण करने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग क्या प्रभु को जान पायेंगे? क्या वे परमेश्वर की इच्छा का पालन करते हैं? प्रभु यीशु ने क्यों कहा था, "मैं ने तुम को कभी नहीं जाना। हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ" (मत्ती 7:23)? यह उद्धरण सचमुच महत्वपूर्ण है! हम सब जानते हैं कि पुराने जमाने में जब यहूदी धर्म के फरीसियों ने सुसमाचार का प्रचार करने हेतु थल और समुद्र से हर जगह यात्रा की थी, तब उन्होंने बहुत तकलीफें झेलीं और कई मूल्य अदा किए। देखने में तो लगता था कि उनमें परमेश्वर के प्रति निष्ठा है, लेकिन दरअसल उन्होंने परमेश्वर के वचनों पर अमल करने के स्थान पर, धार्मिक रीति रिवाज़ों और नियमों के पालन करने पर ही जोर दिया, उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन नहीं किया। यही नहीं, उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं को भी त्याग दिया। उन्होंने जो किया, वह परमेश्वर की इच्छा के बिलकुल विपरीत और उनके मार्ग से भिन्न था। इसलिए प्रभु यीशु ने उनकी निंदा की और उनको श्राप दिया। "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम एक जन को अपने मत में लाने के लिये सारे जल और थल में फिरते हो, और जब वह मत में आ जाता है तो उसे अपने से दूना नारकीय बना देते हो" (मत्ती 23:15)। ज़ाहिर है कि: "जब तक कोई प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करेगा, उसे प्रभु के आगमन के समय स्वर्ग के राज्य में प्रवेश दिया जाएगा", यह विचार केवल मनुष्य की धारणा और कल्पना मात्र है, जो प्रभु के वचन से बिलकुल मेल नहीं खाता। उद्धार और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश पाने की हमारी इच्छा ठीक है, लेकिन हमें प्रभु यीशु के वचन को अंतिम मान कर उसके अनुसार कार्य करना चाहिए। यदि हम प्रभु के वचन को नजरअंदाज कर दें, पर पौलुस के वचन को आधार और पौलुस के आचरण को अपनी खोज का लक्ष्य मान लें, तो हम प्रभु से सराहना कैसे पा सकते हैं? यदि हम धर्मग्रंथों के इन दो उद्धरणों को समझ जाएं, तो हम स्वर्ग के राज्य का मार्ग अवश्य जान जाएंगे।
दरअसल, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को पाने से पहले, हम सबके मन में यह धारणा और कल्पना थी कि जब तक हम प्रभु के नाम की गरिमा बनाए रखेंगे, प्रचार करेंगे, स्वयं को खपायेंगे और उनके लिए कार्य करेंगे, तब तक हम प्रभु के वचन का पालन करते हुए उनके मार्ग पर चल रहे हैं, और जब प्रभु पधारेंगे, तब हमें स्वर्ग के राज्य में प्रवेश मिल जाएगा। बाद में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को पाया और मैंने उनके वचन देखे: "कार्य के संबंध में, मनुष्य का विश्वास है कि परमेश्वर के लिए इधर-उधर दौड़ना, सभी जगहों पर प्रचार करना और परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाना ही कार्य है। यद्यपि यह विश्वास सही है, किंतु यह अत्यधिक एकतरफा है; परमेश्वर इंसान से जो माँगता है, वह परमेश्वर के लिए केवल इधर-उधर दौड़ना ही नहीं है; यह आत्मा के भीतर सेवकाई और पोषण से जुड़ा है। ... कार्य परमेश्वर के लिए इधर-उधर दौड़ने को संदर्भित नहीं करता, बल्कि इस बात को संदर्भित करता है कि मनुष्य का जीवन और जिसे वह जीता है, वे परमेश्वर को आनंद देने में सक्षम हैं या नहीं। कार्य परमेश्वर के प्रति गवाही देने और साथ ही मनुष्य के प्रति सेवकाई के लिए मनुष्य द्वारा परमेश्वर के प्रति अपनी निष्ठा और परमेश्वर के बारे में अपने ज्ञान के उपयोग को संदर्भित करता है। यह मनुष्य का उत्तरदायित्व है और इसे सभी लोगों को समझना चाहिए। कहा जा सकता है कि तुम लोगों का प्रवेश ही तुम लोगों का कार्य है, और तुम लोग परमेश्वर के लिए कार्य करने के दौरान प्रवेश करने का प्रयास कर रहे हो। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने का अर्थ मात्र यह नहीं है कि तुम जानते हो कि उसके वचन को कैसे खाएँ और पीएँ; बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि तुम लोगों को यह जानना चाहिए कि परमेश्वर की गवाही कैसे दें और परमेश्वर की सेवा करने तथा मनुष्य की सेवकाई और आपूर्ति करने में सक्षम कैसे हों। यही कार्य है, और यही तुम लोगों का प्रवेश भी है; इसे ही हर व्यक्ति को संपन्न करना चाहिए। कई लोग हैं, जो केवल परमेश्वर के लिए इधर-उधर दौड़ने, और हर जगह उपदेश देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, किंतु अपने व्यक्तिगत अनुभव को अनदेखा करते हैं और आध्यात्मिक जीवन में अपने प्रवेश की उपेक्षा करते हैं। यही कारण है कि परमेश्वर की सेवा करने वाले लोग परमेश्वर का विरोध करने वाले बन जाते हैं" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (2))। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के दर्शन करने पर, मैं समझ पाया कि मनुष्य के कार्य को ले कर परमेश्वर की ज़रूरत सिर्फ कष्ट झेलना, यहां-वहां भाग दौड़, और परमेश्वर के लिए स्वयं को खपाना ही नहीं है। यह मुख्य रूप से परमेश्वर के वचन का पालन कर उसका अनुभव करने की हमारी क्षमता, व्यावहारिक अनुभवों से परमेश्वर के वचन को समझ कर उसको व्यक्त करने की हमारी क्षमता को ले कर है, और परमेश्वर के वचन के यथार्थ तक पहुँचने में भाइयों-बहनों को हमारा मार्गदर्शन है। केवल इसी प्रकार के कार्य से परमेश्वर की इच्छा पूरी होगी। प्रभु में कई वर्षों से अपने विश्वास को याद करते हुए, हालांकि मैंने आंधी-तूफ़ान और बरसात में, हर जगह प्रभु के नाम पर उपदेश देने का कार्य किया है, तकलीफें सही हैं और कुछ कीमत भी चुकाई है, फिर भी मैंने प्रभु के वचन का पालन कर उसका अनुभव करने पर ध्यान नहीं दिया, इसलिए मैं प्रभु के वचन के पालन को ले कर अनुभवों और गवाहियों के बारे में चर्चा नहीं कर सका। अपने उपदेश-कार्य में, मैं कुछ खोखले शब्दों और बाइबल के सिद्धांतों के बारे में ही चर्चा कर सका, और भाइयों और बहनों को कुछ धार्मिक रस्मों-रिवाजों और नियमों का पालन करने की शिक्षा दे सका। इससे भला भाई-बहन परमेश्वर के वचन के यथार्थ को कैसे जान पाते? इतना ही नहीं, उपदेश देते समय, लोगों को अपनी ओर खींचने के लिए अक्सर खुद को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करता, और अपने खुद के रंग-ढंग, हाव-भाव दिखा कर मैं अक्सर प्रभु की जरूरतों के खिलाफ चला जाता था। थोड़ा-कुछ त्याग कर, कुछ तकलीफें झेल कर, और प्रभु के लिए थोड़ी कीमत चुका कर, मैं सोचता था कि मैं प्रभु को सबसे ज्यादा प्रेम करता हूँ, और मैं उनके प्रति सबसे अधिक निष्ठावान हूँ। मैं इतना बेशर्म था कि मैं परमेश्वर से स्वर्ग के राज्य में प्रवेश की मांग करने लगा। मैं इतना घमंडी था कि मैं नकरात्मक और कमजोर भाई-बहनों को नीची नज़र से देखता था। क्योंकि मैंने प्रभु के लिए कार्य करने को ले कर सिर्फ उत्साह पर ज़ोर दिया और प्रभु के वचन का पालन और अनुभव करने पर ध्यान नहीं दिया, प्रभु में कई वर्षों तक विश्वास करने के बाद, मैं उस मुकाम पर पहुँच गया जहां न तो मुझे प्रभु का कोई ज्ञान रहा, न ही परमेश्वर के प्रति हृदय में कोई भय, अपने जीवन के स्वभाव में संपूर्ण परिवर्तन की तो बात ही छोड़िये! चूंकि मैंने कई वर्षों तक प्रभु में विश्वास किया था, और मैंने बड़ी तकलीफें झेलीं और बड़ी कीमत चुकाई थी, इसलिए मैं ज्यादा-से-ज्यादा घमंडी और किसी की न सुनने वाला बनता गया। मैं हर पहलू में शैतान का स्वभाव उजागर करते हुए धोखेबाजी और जालसाजी के काम तक तक करने लगा। मैं जो कड़ी मेहनत कर रहा था, उसका प्रभु की आज्ञा मानने और उनके वचन का पालन करने की सच्चाई से कोई लेना-देना नहीं था। इससे प्रभु को समझने का रास्ता भला कैसे खुलता? मुझ जैसे व्यक्ति के लिए जिसको न तो सत्य की वास्तविकता मालूम थी और न ही प्रभु की समझ थी, क्या मेरा हर काम प्रभु का अपमान और उनका प्रतिरोध नहीं था? मैं प्रभु की स्तुति और गवाही कैसे कर सकता था? सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के बाद, मैंने जाना कि किसी व्यक्ति ने चाहे जितने वर्ष प्रभु में विश्वास कर लिया हो, चाहे जितनी कड़ी मेहनत की हो, यदि उसने प्रभु के अंत के दिनों के न्याय और ताड़ना का अनुभव नहीं किया, तो उसके लिए परमेश्वर की इच्छा का पालन करने वाला व्यक्ति बनना, हृदय से परमेश्वर की आज्ञा मानने और उनकी आराधना करने वाला व्यक्ति बनना असंभव है। यह बिलकुल सही है।
आइये धार्मिक पादरियों और एल्डर्स को देखें। हांलाकि उन्होंने प्रभु के लिए कड़ी मेहनत करने हेतु सब कुछ त्याग दिया है, वे किस प्रकार का काम कर रहे हैं? उनका कार्य कैसा है? कई वर्षों तक प्रभु में विश्वास करने के बाद, उन्होंने सत्य की खोज कभी नहीं की। वे पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त नहीं कर पाए, और हमें नहीं समझा पाए कि हमारी श्रद्धा और जीवन में प्रवेश से जुड़ी व्यावहारिक समस्याओं को कैसे सुलझाएं। वे आस्तिकों को धोखा देने के लिए अक्सर बाइबल के कुछ खोखले सिद्धांतों की चर्चा करते हैं और प्रभु के लिए, उन्होंने कितनी यात्रा की है, कितना कार्य उन्होंने किया है, कितनी पीड़ा उन्होंने झेली है, कितनी कलीसियाएं उन्होंने बनायी हैं, आदि की गवाहियाँ देते रहते हैं। वे ये सब स्वयं को स्थापित करने के लिए करते हैं, ताकि लोग उनकी आराधना और अनुपालन करें। फलस्वरूप इतने साल काम करने के बावजूद वे न केवल भाई-बहनों को सत्य को समझाने और परमेश्वर को जानने के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ा पाए, बल्कि उन्होंने भाई-बहनों को उनकी खुद की आराधना करने और अनुगमन करने दिया, उनको मनुष्य की आराधना करने और अनजाने में परमेश्वर को धोखा देने के मार्ग पर ला खड़ा किया। ये पादरी और एल्डर्स क्या इस तरह कार्य करके और स्वयं को खपा के, प्रभु के मार्ग का अनुसरण कर रहे हैं? क्या वे प्रभु के विरुद्ध बुरा नहीं कर रहे हैं? विशेषकर अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य के साथ वे जैसा बर्ताव करते हैं। अधिकतर पादरी और एल्डर्स वास्तव में जानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचन ही सत्य है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य ही पवित्र आत्मा का कार्य है, लेकिन वे उसको खोज कर नहीं पढ़ते, बल्कि अपना स्थान व आजीविका सुरक्षित रखने के लिए वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर की निंदा करने और उनका प्रतिरोध करने हेतु जूनून में आ कर अफवाहें ईजाद करके तमाम बकवास और भ्रम फैलाते हैं। और धार्मिक समुदाय को एक हवाबंद और जल-रोधी हालात में बंद कर देते हैं। वे किसी को भी सही रास्ता खोजने और उसको समझने नहीं देते, और लोगों को परमेश्वर के कार्य की गवाही देने के लिए चर्च में जाने से रोकते हैं। वे दुष्ट चीनी साम्यवादी दल के साथ साँठ-गाँठ कर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की गवाही देने वाले लोगों को पकड़ कर उनको सजा देते हैं। क्या वे साफ़-साफ़ परमेश्वर के खिलाफ काम नहीं कर रहे? परमेश्वर के खिलाफ उनके पाप पुराने जमाने में प्रभु यीशु के खिलाफ फरीसियों के पापों से भी ज्यादा बदतर हैं। बहुत बदतर! इन तथ्यों के अनुसार, क्या हम अब भी कह सकते हैं कि हम परमेश्वर की इच्छा का पालन कर रहे हैं, जबकि हम प्रभु के नाम पर केवल खुस को खपा रहे हैं और कड़ी मेहनत कर रहे हैं? क्या हम अब भी यह कह सकते हैं कि जब तक हम प्रभु का नाम ले कर, उनके मार्ग को साथ रख कर, प्रभु के लिए इधर-उधर जा कर स्वयं को खपाते रहे, तो हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश के लायक बन जाएंगे? सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के कई और उद्धरण पढ़ने के बाद हम बात को और अधिक समझ पाएंगे।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "तुम कहते हो कि तुमने परमेश्वर का अनुसरण करते हुए हमेशा दुख उठाया है, तुमने हर परिस्थिति में उसका अनुसरण किया है, और तुमने उसके साथ अच्छा-बुरा समय बिताया है, लेकिन तुमने परमेश्वर द्वारा बोले गए वचनों को नहीं जिया है; तुम हर दिन सिर्फ परमेश्वर के लिए भाग-दौड़ करना और उसके लिए स्वयं को खपाना चाहते हो, तुमने कभी भी एक अर्थपूर्ण जीवन बिताने के बारे में नहीं सोचा है। तुम यह भी कहते हो, 'खैर, मैं यह तो मानता ही हूँ कि परमेश्वर धार्मिक है। मैंने उसके लिए दुख उठाया है, मैंने उसके लिए भाग-दौड़ की है, और उसके लिए अपने आपको समर्पित किया है, और इसके लिए कोई मान्यता प्राप्त किए बिना मैंने कड़ी मेहनत की है; वह निश्चित ही मुझे याद रखेगा।' यह सच है कि परमेश्वर धार्मिक है, फिर भी इस धार्मिकता पर किसी अशुद्धता का दाग नहीं है: इसमें कोई मानवीय इच्छा नहीं है, और इस पर शरीर या मानवीय सौदेबाजी का कोई धब्बा नहीं है। जो लोग विद्रोही हैं और विरोध में खड़े हैं, वे सब जो उसके मार्ग के अनुरूप नहीं हैं, उन्हें दंडित किया जाएगा; न तो किसी को क्षमा किया जाएगा, न ही किसी को बख्शा जाएगा!" ("वचन देह में प्रकट होता है" में 'पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान')।
"तुम्हें जानना ही चाहिए कि मैं किस प्रकार के लोगों को चाहता हूँ; वे जो अशुद्ध हैं उन्हें राज्य में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है, वे जो अशुद्ध हैं उन्हें पवित्र भूमि को मैला करने की अनुमति नहीं है। तुमने भले ही बहुत कार्य किया हो, और कई सालों तक कार्य किया हो, किंतु अंत में यदि तुम अब भी बुरी तरह मैले हो, तो यह स्वर्ग की व्यवस्था के लिए असहनीय होगा कि तुम मेरे राज्य में प्रवेश करना चाहते हो! संसार की स्थापना से लेकर आज तक, मैंने अपने राज्य में उन लोगों को कभी आसान प्रवेश नहीं दिया है जो अनुग्रह पाने के लिए मेरे साथ साँठ-गाँठ करते हैं। यह स्वर्गिक नियम है, और कोई इसे तोड़ नहीं सकता है! तुम्हें जीवन की खोज करनी ही चाहिए। आज, जिन्हें पूर्ण बनाया जाएगा वे उसी प्रकार के हैं जैसा पतरस था : ये वे लोग हैं जो स्वयं अपने स्वभाव में परिवर्तनों की तलाश करते हैं, और जो परमेश्वर के लिए गवाही देने, और परमेश्वर के सृजित प्राणी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने के इच्छुक होते हैं। केवल ऐसे लोगों को ही पूर्ण बनाया जाएगा। यदि तुम केवल पुरस्कारों की प्रत्याशा करते हो, और स्वयं अपने जीवन स्वभाव को बदलने की कोशिश नहीं करते, तो तुम्हारे सारे प्रयास व्यर्थ होंगे—यह अटल सत्य है!" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर का वचन बहुत ही स्पष्ट है: परमेश्वर पवित्र और धर्मी हैं। किसी भी मैले और भ्रष्ट व्यक्ति को परमेश्वर अपने राज्य में प्रवेश की बिलकुल इजाज़त नहीं देते।
— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत
बहुत से लोग पूछ रहे हैं, "हम लोग प्रभु के लिये मेहनत करते हैं और हम प्रभु के नाम और कार्य को थामे रहते हैं। हम लोग स्वर्ग के राज्य में प्रवेश क्यों नहीं कर सकते?" बात मात्र इतनी नहीं है कि हम परमेश्वर का अनुसरण करते हैं या नहीं। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हमारी पापी प्रकृति में सुधार नहीं आया है। इसलिये, किसी भी व्यक्ति के लिये अपने जीवन स्वभाव में बदलाव लाने और स्वर्गिक पिता की आज्ञा मानने वाला बनने हेतु शुद्धिकरण प्राप्त करने के लिये ज़रूरी है कि वह अंत के दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य का अनुभव करे। मात्र इसी तरीके से वह व्यक्ति स्वर्ग के राज्य में लाये जाने के काबिल बन सकता है। अब हम लोग समझ सकते हैं कि हम लोग क्यों अक्सर दिन में पाप करते हैं और रात को अपने पापों को स्वीकार करते हैं, और कभी पाप करना छोड़ नहीं पाते हैं? मूल कारण हमारी शैतानी प्रकृति है जो अक्सर परमेश्वर का विरोध करने और उसके ख़िलाफ़ विद्रोह करने के लिये हमें अपने अधीन रखती है। अगर हम प्रभु के समक्ष अपने पापों को स्वीकार करके प्रायश्चित कर भी लें, तो भी हम पाप के बंधन से मुक्त नहीं हो पाते। प्रभु के सभी विश्वासियों की यही दुविधा और यथा-स्थिति है। क्योंकि अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने मात्र छुटकारे का कार्य किया था ताकि इंसान को उसके पापों के लिये क्षमा किया जा सके और वह परमेश्वर से प्रार्थना करने के योग्य बन सके, परमेश्वर से संवाद कर सके, और उसके अनुग्रह और आशीषों का आनंद ले सके। लेकिन प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य ने केवल हमारे पापों को माफ़ किया था, हमारी शैतानी प्रकृति को नहीं। प्रभु के नाम पर मेहनत करने, भाग-दौड़ करने और ख़ुद को खपाने के बावजूद हम लोग पाप के नियंत्रण और बंधन से मुक्त नहीं हो पाये। इसलिये प्रभु यीशु ने कहा कि वह हमारी पापी प्रकृति और शैतानी स्वभाव को सुधारने के लिये अंत के दिनों में लौटकर आयेगा। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अनुग्रह के युग के छुटकारे के कार्य की बुनियाद पर, न्याय का कार्य और इंसान के शुद्धिकरण का कार्य करने के लिये आया है। सत्य व्यक्त करके, परमेश्वर इंसान की शैतानी प्रकृति को उजागर करता है, उसका न्याय करता है, और इंसान के शैतानी स्वभाव को शुद्ध करता है, ताकि हम शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से मुक्त होकर, बचाये जा सकें और परमेश्वर को प्राप्त हो सकें। आइये सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ें: "मनुष्य को छुटकारा दिए जाने से पहले शैतान के बहुत-से ज़हर उसमें पहले ही डाल दिए गए थे, और हज़ारों वर्षों तक शैतान द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद मनुष्य के भीतर ऐसा स्थापित स्वभाव है, जो परमेश्वर का विरोध करता है। इसलिए, जब मनुष्य को छुटकारा दिलाया गया है, तो यह छुटकारे के उस मामले से बढ़कर कुछ नहीं है, जिसमें मनुष्य को एक ऊँची कीमत पर खरीदा गया है, किंतु उसके भीतर की विषैली प्रकृति समाप्त नहीं की गई है। मनुष्य को, जो कि इतना अशुद्ध है, परमेश्वर की सेवा करने के योग्य होने से पहले एक परिवर्तन से होकर गुज़रना चाहिए। न्याय और ताड़ना के इस कार्य के माध्यम से मनुष्य अपने भीतर के गंदे और भ्रष्ट सार को पूरी तरह से जान जाएगा, और वह पूरी तरह से बदलने और स्वच्छ होने में समर्थ हो जाएगा। केवल इसी तरीके से मनुष्य परमेश्वर के सिंहासन के सामने वापस लौटने के योग्य हो सकता है। आज किया जाने वाला समस्त कार्य इसलिए है, ताकि मनुष्य को स्वच्छ और परिवर्तित किया जा सके; वचन के द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से, और साथ ही शुद्धिकरण के माध्यम से भी, मनुष्य अपनी भ्रष्टता दूर कर सकता है और शुद्ध बनाया जा सकता है। इस चरण के कार्य को उद्धार का कार्य मानने के बजाय यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि यह शुद्धिकरण का कार्य है। वास्तव में यह चरण विजय का और साथ ही उद्धार के कार्य का दूसरा चरण है। वचन द्वारा न्याय और ताड़ना के माध्यम से मनुष्य परमेश्वर द्वारा प्राप्त किए जाने की स्थिति में पहुँचता है, और शुद्ध करने, न्याय करने और प्रकट करने के लिए वचन के उपयोग के माध्यम से मनुष्य के हृदय के भीतर की सभी अशुद्धताओं, धारणाओं, प्रयोजनों और व्यक्तिगत आकांक्षाओं को पूरी तरह से प्रकट किया जाता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))। "यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" की 'प्रस्तावना')। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से हमें एहसास होता है कि हम शैतान के हाथों बहुत बुरी तरह से भ्रष्ट हो चुके हैं। हमारे भीतर शैतान की प्रकृति बहुत गहराई तक है। हालाँकि प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य के ज़रिये हमारे पापों को क्षमा कर दिया गया था, और हम लोग प्रभु यीशु के अनुग्रह के कारण परमेश्वर के सम्मुख रह सकते हैं, लेकिन उसके बावजूद हम लोग शैतानी स्वभाव में जी रहे हैं। परमेश्वर के वचनों के अभ्यास में असमर्थ, हम परमेश्वर के वचनों के अनुसार नहीं जी पा रहे, क्योंकि हमारे अंदर की शैतानी प्रकृति में कोई सुधार नहीं आया है। इस प्रकार के लोग अंतत: परमेश्वर को प्राप्त नहीं हो पायेंगे। परमेश्वर उस तरह के लोगों को प्राप्त करेगा जिनका भ्रष्ट स्वभाव शुद्ध हो चुका है, जो भ्रष्टता-मुक्त हैं और परमेश्वर की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी हैं। इसलिये हमें अपने पापों की जड़ों को, जैसे कि हमारे अंदर के शैतानी स्वभाव को, समाप्त करने के लिये, अभी भी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के न्याय के कार्य की ज़रूरत है। जब हमारा शैतानी स्वभाव शुद्ध हो चुका होगा, हम शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से मुक्त हो चुके होंगे, हम सचमुच परमेश्वर की आज्ञा का पालन और उसकी आराधना कर पायेंगे, तभी हम लोग वास्तव में बचाये जायेंगे और परमेश्वर को प्राप्त होंगे, और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने की उसकी प्रतिज्ञा के योग्य बनेंगे। इसमें कोई संदेह नहीं है।
— 'राज्य के सुसमाचार पर विशिष्ट प्रश्नोत्तर' से उद्धृत
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?