लेकिन हम बाइबल से दूर हो जाने पर भी परमेश्वर में कैसे विश्वास करते रह सकते हैं और जीवन पा सकते हैं?

13 मार्च, 2021

उत्तर: आपने बड़ा अहम सवाल उठाया है। ये ऐसी बात है जिसे हम सभी विश्वासी जानना चाहते हैं। प्रभु यीशु ने एक बार ये वचन कहे थे: "तुम पवित्रशास्त्र में ढूँढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उसमें अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है; और यह वही है जो मेरी गवाही देता है; फिर भी तुम जीवन पाने के लिये मेरे पास आना नहीं चाहते" (यूहन्ना 5:39-40)। पहले, हमने बार-बार बाइबल को खंगाला, यह सोच कर कि बाइबल से ही अनंत जीवन पाया जा सकता है। असलियत में, बाइबल सिर्फ परमेश्वर की एक गवाही है। अगर हम परमेश्वर में अपनी आस्था से सत्य और जीवन पाना चाहते हैं, तो बाइबल की गवाही के भरोसे रहना काफी नहीं है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "अंत के दिनों का मसीह जीवन लेकर आता है, और सत्य का स्थायी और शाश्वत मार्ग लेकर आता है। यह सत्य वह मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य जीवन प्राप्त करता है, और यह एकमात्र मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को जानेगा और परमेश्वर द्वारा स्वीकृत किया जाएगा। यदि तुम अंत के दिनों के मसीह द्वारा प्रदान किया गया जीवन का मार्ग नहीं खोजते हो, तो तुम यीशु की स्वीकृति कभी प्राप्त नहीं करोगे, और स्वर्ग के राज्य के फाटक में प्रवेश करने के योग्य कभी नहीं हो पाओगे, क्योंकि तुम इतिहास की कठपुतली और कैदी दोनों ही हो। ... परमेश्वर के कार्य के चरण उमड़ती लहरों और गरजते तूफानों की तरह विशाल और शक्तिशाली हैं—फिर भी तुम निठल्ले बैठकर तबाही का इंतजार करते हो, अपनी नादानी से चिपके रहते हो और कुछ भी नहीं करते हो। इस तरह, तुम्हें मेमने के पदचिह्नों का अनुसरण करने वाला व्यक्ति कैसे माना जा सकता है? तुम जिस परमेश्वर को थामे हो उसे उस परमेश्वर के रूप में सही कैसे ठहरा सकते हो जो हमेशा नया है और कभी पुराना नहीं होता? और तुम्हारी पीली पड़ चुकी किताबों के शब्द तुम्हें नए युग में कैसे ले जा सकते हैं? वे परमेश्वर के कार्य के चरणों को ढूँढ़ने में तुम्हारी अगुआई कैसे कर सकते हैं? और वे तुम्हें ऊपर स्वर्ग में कैसे ले जा सकते हैं? तुम अपने हाथों में जो थामे हो वे शब्द हैं, जो तुम्हें केवल अस्थायी सांत्वना दे सकते हैं, जीवन देने में सक्षम सत्य नहीं दे सकते। तुम जो शास्त्र पढ़ते हो वे केवल तुम्हारी जिह्वा को समृद्ध कर सकते हैं और ये बुद्धिमत्ता के वचन नहीं हैं जो मानव जीवन को जानने में तुम्हारी मदद कर सकते हैं, तुम्हें पूर्णता की ओर ले जाने की बात तो दूर रही। क्या यह विसंगति तुम्हारे लिए गहन चिंतन का कारण नहीं है? क्या यह तुम्हें अपने भीतर समाहित रहस्यों का बोध नहीं करवाती है? क्या तुम परमेश्वर से अकेले में मिलने के लिए अपने आप को स्वर्ग को सौंप देने में समर्थ हो? परमेश्वर के आए बिना, क्या तुम परमेश्वर के साथ पारिवारिक आनंद मनाने के लिए अपने आप को स्वर्ग में ले जा सकते हो? क्या तुम अभी भी स्वप्न देख रहे हो? तो मेरा सुझाव यह है कि तुम स्वप्न देखना बंद कर दो और उसकी ओर देखो जो अभी कार्य कर रहा है—उसकी ओर देखो जो अब अंत के दिनों में मनुष्य को बचाने का कार्य कर रहा है। यदि तुम ऐसा नहीं करते हो, तो तुम कभी भी सत्य प्राप्त नहीं करोगे, और न ही कभी जीवन प्राप्त करोगे" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। हम सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन से समझ पाये हैं कि सिर्फ मसीह ही मानवजाति को बचाने के लिए सत्य व्यक्त कर सकते हैं। मनुष्य को सत्य और जीवन पाने के लिए मसीह के पास आना होता है। बाइबल परमेश्वर के अधिकार की जगह नहीं ले सकती, न ही मनुष्य को जीवन देने के लिए परमेश्वर नुमाइंदगी कर सकती है, और यही नहीं, यह पवित्र आत्मा के कार्य की जगह भी नहीं ले सकती। सिर्फ अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार करके और उनकी आज्ञा मानकर ही, हम पवित्र आत्मा के कार्य, सत्य और जीवन को पा सकते हैं। अंत के दिनों के मसीह द्वारा व्यक्त वचनों को स्वीकार किये बिना हम जीवन नहीं पा सकते, क्योंकि बाइबल परमेश्वर नहीं है; यह सिर्फ परमेश्वर के कार्य की गवाही है। इससे हम यह समझ सकते हैं कि जीवन बाइबल से नहीं बल्कि मसीह से उपजता है। मसीह बाइबल के प्रभु हैं और जीवन का स्रोत हैं।

पहले परमेश्वर में हमारी आस्था सिर्फ बाइबल की बुनियाद पर थी। हमारी नज़रों में, बाइबल प्रभु और परमेश्वर की नुमाइंदगी करती है। बाइबल ने हमारे दिलों में परमेश्वर की जगह ले ली थी। यह कहने के बजाय कि हम परमेश्वर में विश्वास करते थे, यह कहा जा सकता है कि हम दरअसल बाइबल में विश्वास कर रहे थे। इसलिए, जब अंत के दिनों के मसीह — सर्वशक्तिमान परमेश्वर — ने अपना कार्य किया, तो हमने सोचा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन और कार्य बाइबल के मुताबिक़ नहीं थे, इसलिए उसे ठुकरा दिया, और यही नहीं, उसकी निंदा कर उसका विरोध किया। भाइयो और बहनो, हम जानते हैं कि परमेश्वर का स्वभाव धर्मी है और उसका अपमान नहीं हो सकता। उन दिनों, यहूदी मुख्य पादरियों, धर्मशास्त्रियों और फरीसियों ने पीढ़ियों से परमेश्वर में प्रेम किया था, लेकिन उन्होंने पुराने नियम को पकड़े रखा और उसकी व्यवस्थाओं का इस्तेमाल करके उन्होंने प्रभु यीशु की निंदा की और उन्हें सूली पर चढ़ाया। अब, सर्वशक्तिमान परमेश्वर आ चुके हैं, और हमने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य का विरोध करने के लिए फिर एक बार बाइबल का इस्तेमाल किया है। यह अनुग्रह के युग में फरीसियों द्वारा प्रभु यीशु के विरोध से अलग कैसे है? हमें फरीसियों की नाकामी से सीख लेनी होगी! प्रभु यीशु ने एक बार कहा था: "मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता" (यूहन्ना 14:6)। मैंने परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करने से पहले इस आयत का मतलब नहीं समझा था। लेकिन अब मैं समझता हूँ। सिर्फ अंत के दिनों के मसीह ही स्वर्ग के राज्य में प्रवेश का महाद्वार हैं। सिर्फ अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार करके और उनके आज्ञाकारी बन कर ही हम बचाये जा सकेंगे और स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर पायेंगे।

आइए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन के एक अंश को पढ़ें! "मसीह द्वारा बोले गए सत्य पर भरोसा किए बिना जो लोग जीवन प्राप्त करना चाहते हैं, वे पृथ्वी पर सबसे बेतुके लोग हैं, और जो मसीह द्वारा लाए गए जीवन के मार्ग को स्वीकार नहीं करते हैं, वे कोरी कल्पना में खोए हैं। और इसलिए मैं कहता हूँ कि वे लोग जो अंत के दिनों के मसीह को स्वीकार नहीं करते हैं सदा के लिए परमेश्वर की घृणा के भागी होंगे। मसीह अंत के दिनों के दौरान राज्य में जाने के लिए मनुष्य का प्रवेशद्वार है, और ऐसा कोई नहीं जो उससे कन्नी काटकर जा सके। मसीह के माध्यम के अलावा किसी को भी परमेश्वर द्वारा पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो, और इसलिए तुम्हें उसके वचनों को स्वीकार करना और उसके मार्ग का पालन करना चाहिए। सत्य को प्राप्त करने में या जीवन का पोषण स्वीकार करने में असमर्थ रहते हुए तुम केवल आशीष प्राप्त करने के बारे में नहीं सोच सकते हो। मसीह अंत के दिनों में आता है ताकि वह उसमें सच्चा विश्वास करने वाले सभी लोगों को जीवन प्रदान कर सके। उसका कार्य पुराने युग को समाप्त करने और नए युग में प्रवेश करने के लिए है, और उसका कार्य वह मार्ग है जिसे उन सभी लोगों को अपनाना चाहिए जो नए युग में प्रवेश करेंगे। यदि तुम उसे पहचानने में असमर्थ हो, और इसकी बजाय उसकी भर्त्सना, निंदा, या यहाँ तक कि उसे उत्पीड़ित करते हो, तो तुम्हें अनंतकाल तक जलाया जाना तय है और तुम परमेश्वर के राज्य में कभी प्रवेश नहीं करोगे। क्योंकि यह मसीह स्वयं पवित्र आत्मा की अभिव्यक्ति है, और परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वह जिसे परमेश्वर ने पृथ्वी पर करने के लिए अपना कार्य सौंपा है। और इसलिए मैं कहता हूँ कि यदि तुम वह सब स्वीकार नहीं करते हो जो अंत के दिनों के मसीह के द्वारा किया जाता है, तो तुम पवित्र आत्मा की निंदा करते हो। पवित्र आत्मा की निंदा करने वालों को जो प्रतिशोध सहना होगा वह सभी के लिए स्वत: स्पष्ट है। मैं तुम्हें यह भी बताता हूँ कि यदि तुम अंत के दिनों के मसीह का प्रतिरोध करोगे, यदि तुम अंत के दिनों के मसीह को ठुकराओगे, तो तुम्हारी ओर से परिणाम भुगतने वाला कोई अन्य नहीं होगा। इतना ही नहीं, इस दिन के बाद तुम्हें परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने का दूसरा अवसर नहीं मिलेगा; यदि तुम अपने प्रायश्चित का प्रयास भी करते हो, तब भी तुम दोबारा कभी परमेश्वर का चेहरा नहीं देखोगे। क्योंकि तुम जिसका प्रतिरोध करते हो वह मनुष्य नहीं है, तुम जिसे ठुकरा रहे हो वह कोई अदना प्राणी नहीं है, बल्कि मसीह है। क्या तुम जानते हो कि इसके क्या परिणाम होंगे? तुमन कोई छोटी-मोटी गलती नहीं, बल्कि एक जघन्य अपराध किया होगा। और इसलिए मैं सभी को सलाह देता हूँ कि सत्य के सामने अपने जहरीले दाँत मत दिखाओ, या छिछोरी आलोचना मत करो, क्योंकि केवल सत्य ही तुम्हें जीवन दिला सकता है, और सत्य के अलावा कुछ भी तुम्हें पुनः जन्म लेने नहीं दे सकता, और न ही तुम्हें दोबारा परमेश्वर का चेहरा देखने दे सकता है" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है)। परमेश्वर के वचन से हम देखते हैं कि अंत के दिनों के मसीह के अलावा किसी और रास्ते से कोई स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता। जब परमेश्वर का नया कार्य हम तक पहुंचता है, तब हमारे स्वीकार करने या ठुकरा देने से ही हमारी किस्मत का फैसला होता है। ऐसा कहा जा सकता है कि अंत के दिनों के मसीह के प्रति हमारा रवैया ही परमेश्वर के प्रति हमारा रवैया होता है। अगर हम आखिरकार उनका विरोध कर उन्हें ठुकरा देंगे, तो हम बचाये जाने का मौका खो देंगे और अनंत उद्धार गवां देंगे। इससे हमें परमेश्वर के धर्मी स्वभाव का पता चलता है। सन 1991 से, अंत के दिनों के मसीह—सर्वशक्तिमान परमेश्वर—ने करोड़ों वचन व्यक्त किये हैं। इस किताब वचन देह में प्रकट हुआ, में परमेश्वर ने अपनी 6,000-साल की प्रबंधन योजना के सबसे बड़े रहस्य का खुलासा किया है, और परमेश्वर ने हम विश्वासियों को उद्धार पाने का एकमात्र मार्ग दिखाया है।

"बाइबल के बारे में रहस्य का खुलासा" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

संबंधित सामग्री

बाइबल में, पौलुस ने कहा था "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है" (2 तीमुथियुस 3:16), पौलुस के वचन बाइबल में हैं। इसीलिए, वे परमेश्‍वर द्वारा प्रेरित थे; वे परमेश्‍वर के वचन हैं। प्रभु में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है। चाहे कोई भी विचारधारा क्‍यों न हो, यदि वह बाइबल से भटकती है, तो वह विधर्म है! हम प्रभु में विश्वास करते हैं, इसीलिए हमें सदा बाइबल के अनुसार कार्य करना चाहिए, अर्थात्, हमें बाइबल के वचनों का पालन करना चाहिए। बाइबल ईसाई धर्म का मूलभूत सिद्धांत है, हमारे विश्वास की नींव है। बाइबल को त्‍यागना प्रभु में अविश्‍वास करने के समान है; यदि हम बाइबल को त्‍याग देते हैं, तो हम प्रभु में कैसे विश्वास कर सकते हैं? बाइबल में प्रभु के वचन लिखे हैं। क्या कहीं और भी ऐसी जगह है जहां हम उनके वचनों को पा सकते हैं? यदि प्रभु में हमारा विश्वास बाइबल पर आधारित नहीं है, तो इसका आधार क्या है?

उत्तर: आप कहती हैं कि चूंकि पौलुस के वचन बाइबल में हैं, वे प्रभु द्वारा प्रेरित हैं; इसीलिए वे प्रभु के वचन हैं। यह वास्तव में उचित नहीं...

पौलुस ने 2 तिमुथियस में यह बात बिलकुल साफ़ कर दी है कि "सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश" (तीमुथियुस 3:16)। इसका मतलब है कि बाइबल का प्रत्येक वचन परमेश्वर का वचन है, और यह कि बाइबल प्रभु का प्रतिनिधित्व करती है। प्रभु में विश्वास करना बाइबल में विश्वास करना है। बाइबल में विश्वास करना प्रभु में विश्वास करना है। बाइबल से दूर जाने का मतलब है प्रभु में विश्वास नहीं करना! प्रभु में हमारा विश्वास केवल हमसे बाइबल पर अवलंबित रहने की मांग करता है। भले ही हम अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, हमें तब भी मुक्ति मिलेगी और हम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करेंगे! क्या इस समझ में कुछ गलत है?

उत्तर: धार्मिक जगत का ज्यादातर हिस्सा पौलुस के इन शब्दों पर भरोसा करता है कि "सारा धर्मशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से दिया गया है" जिससे यह...

WhatsApp पर हमसे संपर्क करें