"सब कुछ पीछे छोड़कर परमेश्वर का अनुसरण करो" इसका क्या मतलब है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
अगर तुम अपना हृदय, शरीर और अपना समस्त वास्तविक प्यार परमेश्वर को समर्पित कर सकते हो, उसके प्रति पूरी तरह से आज्ञाकारी हो सकते हो, और उसकी इच्छा के प्रति पूर्णतः विचारशील हो सकते हो-देह के लिए नहीं, परिवार के लिए नहीं, और अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के लिए नहीं, बल्कि परमेश्वर के परिवार के हित के लिए, परमेश्वर के वचन को हर चीज में सिद्धांत और नींव के रूप में ले सकते हो-तो ऐसा करने से तुम्हारे इरादे और दृष्टिकोण सब युक्तिसंगत होंगे, और तब तुम परमेश्वर के सामने ऐसे व्यक्ति होगे, जो उसकी प्रशंसा प्राप्त करता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर से सचमुच प्रेम करने वाले लोग वे होते हैं जो परमेश्वर की व्यावहारिकता के प्रति पूर्णतः समर्पित हो सकते हैं
तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो और परमेश्वर का अनुसरण करते हो, और इसलिए अपने ह्रदय में तुम्हें परमेश्वर से प्रेम करना ही चाहिए। तुम्हें अपना भ्रष्ट स्वभाव जरूर छोड़ देना चाहिए, तुम्हें परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति की खोज अवश्य करनी चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर के सृजित प्राणी का कर्तव्य निभाना ही चाहिए। चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास और परमेश्वर का अनुसरण करते हो, तुम्हें अपना सर्वस्व उसे अर्पित कर देना चाहिए, और व्यक्तिगत चुनाव या माँगें नहीं करनी चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर की इच्छा की पूर्ति करनी चाहिए। चूँकि तुम्हें सृजित किया गया था, इसलिए तुम्हें उस प्रभु का आज्ञापालन करना चाहिए जिसने तुम्हें सृजित किया, क्योंकि तुम्हारा स्वयं अपने ऊपर स्वाभाविक कोई प्रभुत्व नहीं है, और स्वयं अपनी नियति को नियंत्रित करने की क्षमता नहीं है। चूँकि तुम ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर में विश्वास करता है, इसलिए तुम्हें पवित्रता और परिवर्तन की खोज करनी चाहिए। चूँकि तुम परमेश्वर के सृजित प्राणी हो, इसलिए तुम्हें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, और अपनी स्थिति के अनुरूप व्यवहार करना चाहिए, और तुम्हें अपने कर्तव्य का अतिक्रमण कदापि नहीं करना चाहिए। यह तुम्हें सिद्धांत के माध्यम से बाध्य करने, या तुम्हें दबाने के लिए नहीं है, बल्कि इसके बजाय यह वह पथ है जिसके माध्यम तुम अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकते हो, और यह उन सभी के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है—और प्राप्त किया जाना चाहिए—जो धार्मिकता का पालन करते हैं।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, सफलता या विफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है
9. अपने विचार कलीसिया के कार्य पर लगाए रखो। अपनी देह की इच्छाओं को एक तरफ़ रखो, पारिवारिक मामलों के बारे में निर्णायक रहो, स्वयं को पूरे हृदय से परमेश्वर के कार्य में समर्पित करो और परमेश्वर के कार्य को पहले और अपने जीवन को दूसरे स्थान पर रखो। यह एक संत की शालीनता है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, दस प्रशासनिक आदेश जो राज्य के युग में परमेश्वर के चुने लोगों द्वारा पालन किए जाने चाहिए
तुम्हें सत्य के लिए कष्ट उठाने होंगे, तुम्हें सत्य के लिए समर्पित होना होगा, तुम्हें सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुम्हें अधिक कष्ट उठाने होंगे। यही तुम्हें करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण पारिवारिक जीवन के लिए तुम्हें सत्य का त्याग नहीं करना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुम्हें अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुम्हें उस सबका अनुसरण करना चाहिए जो खूबसूरत और अच्छा है, और तुम्हें अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो ज्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तुम एक घिनौना जीवन जीते हो और किसी भी उद्देश्य को पाने की कोशिश नहीं करते हो तो क्या तुम अपने जीवन को बर्बाद नहीं कर रहे हो? ऐसे जीवन से तुम क्या हासिल कर पाओगे? तुम्हें एक सत्य के लिए देह के सभी सुखों को छोड़ देना चाहिए, और थोड़े-से सुख के लिए सारे सत्यों का त्याग नहीं कर देना चाहिए। ऐसे लोगों में कोई सत्यनिष्ठा या गरिमा नहीं होती; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं होता!
— "वचन देह में प्रकट होता है" में 'पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान' से उद्धृत
संदर्भ के लिए धर्मोपदेश और संगति के उद्धरण:
जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं वह उन सभी से यह अपेक्षा करता है: परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए सब कुछ त्याग दो। अनुग्रह के युग से लेकर राज्य के युग तक, ऐसे बहुत सारे लोग हुए हैं जिन्होंने परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए सब कुछ त्याग दिया था। केवल वे ही लोग संत कहलाने के योग्य हैं, जो राज्य के युग के दौरान परमेश्वर की प्रजा हैं। सब कुछ त्याग देने और परमेश्वर का अनुसरण करने का क्या अर्थ है? यह परमेश्वर को अपना पूरा हृदय, अपना समस्त अस्तित्व अर्पित करना, और अपने आप को परमेश्वर के कार्य में पूरी तरह से डुबो देना और खुद को परमेश्वर के लिए व्यय कर देना है। परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए सब कुछ त्याग देने का यही सही अर्थ है। ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि जिन लोगों ने अपना स्वयं का कोई परिवार आरंभ नहीं किया है और जिनके पास चिंता करने के लिए कुछ नहीं है केवल वे ही सब कुछ त्याग सकते हैं, जबकि जिनके पास परिवार है, जिनके पास माता-पिता, जीवन-साथी और बच्चे हैं, वे ऐसा नहीं कर सकते हैं। यह दृष्टिकोण ग़लत है। सबसे पहले, लोगों को यह जानना होगा कि लोगों से परमेश्वर की माँगें निष्पक्ष और उचित हैं। वह यह माँग नहीं करता है कि लोग अपने माता-पिता, जीवन-साथी और बच्चों का त्याग कर दें। बल्कि वह अनुरोध करता है कि लोग अपने हृदयों को अर्पित करें और किसी भी व्यक्ति, घटना, या चीज़ द्वारा लाचार हुए बिना अपने कर्तव्य को पूर्णता से करें। यह सब कुछ त्यागने और परमेश्वर का अनुसरण करने के बराबर ही है। परमेश्वर लोगों को उन चीज़ों को करने के लिए बाध्य नहीं करता है जिन्हें करने के लिए वे तैयार नहीं हैं। किसी व्यक्ति के लिए यह पर्याप्त होगा कि वह परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपना पूरा प्रयास करे। यह स्वाभाविक है कि व्यक्ति कुछ ऐसी चीज़ों को अलग करे, जिन्हें अलग किया जाना चाहिए। अगर, फिलहाल, कोई किसी चीज़ को नहीं त्याग सकता है, तो इतना ही आवश्यक है कि बस वह उस चीज़ के द्वारा लाचार न हो। अगर हृदय अभी भी लाचार है और वह अपना कर्तव्य पूरी तरह से नहीं कर सकता है, तो यह सब कुछ त्यागना नहीं गिना जाता है। परमेश्वर के प्रति निष्ठा का मुद्दा सब कुछ त्यागने के अभ्यास के भीतर निहित है। यदि तुम वास्तव में एक ऐसे व्यक्ति हो जो परमेश्वर के प्रति निष्ठावान है, तो अपने हृदय के भीतर अपने परिवार, जीवन-साथी या बच्चों से लाचार किए जाने से बच पाओगे। कई भाइयों और बहनों के पारिवारिक बंधन हैं, लेकिन उनके हृदय उनके परिवारों द्वारा लाचार नहीं होते हैं, और वे अपने कर्तव्यों को बहुत अच्छी तरह से निभाते हैं। यद्यपि, कभी-कभार वे परिवार की देख-भाल करने के लिए चले जाते हैं, फिर भी वे इसे अपने कर्तव्यों के साथ बिल्कुल भी हस्तक्षेप नहीं करने देते हैं। क्या तुम कह सकते हो कि उन्होंने परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए सब कुछ नहीं त्यागा है? परिवार का होना वास्तव में एक कठिनाई है—इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है। हालाँकि, अगर उनका हृदय परमेश्वर के प्रति वफ़ादार हो सकता है, तो वे पारिवारिक सभी उलझनों को दूर रख सकेंगे। यद्यपि देह कुछ कठिनाई से गुज़रता है, मगर उनके जीवन के विकास के लिए परमेश्वर से महान आशीष होते है। और जो लोग देह-सुख से चिपके रहते हैं, उन्हें क्या मिलता है? अंततः वे कुछ भी प्राप्त नहीं करते हैं। और देह की कठिनाइयों से किसी को कैसे निपटना चाहिए? यह कहा जा सकता है कि देह की कितनी भी कठिनाई एक अच्छी बात है। अगर परमेश्वर संतुष्ट है, तो व्यक्ति की आत्मा हर्षित हो सकती है। सब की सबसे बड़ी पीड़ा देह के सुखों से चिपके रह कर परमेश्वर को ठेस पहुँचाना है। वे सभी लोग जो परमेश्वर के लिए स्वयं को व्यय करने हेतु सब कुछ त्याग देते हैं तृप्त होंगे क्योंकि उन्होंने उचित रूप से एक मनुष्य के कर्तव्य को किया है और परमेश्वर को संतुष्ट किया है। इसके अलावा, परमेश्वर द्वारा उनकी सराहना की जाएगी, क्योंकि परमेश्वर उन सभी लोगों को महान आशीषें देता है जो निष्ठापूर्वक अपने को उसके लिए व्यय करते हैं। जो लोग परिवार और देह के सुखों से चिपके रहते हैं और परमेश्वर का अनुसरण करने के लिए सब कुछ नहीं त्याग सकते हैं, वे सभी ऐसे लोग हैं जो दुष्ट शैतान के प्रति निष्ठावान हैं। वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा बचाये नहीं जा सकते हैं, और विशेष रूप से उनके पास परमेश्वर का आशीष तो नहीं होगा।
— ऊपर से संगति से उद्धृत
परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?