130 परमेश्वर के अनुग्रह की गिनती
1
परमेश्वर के अनुग्रह की गिनती से बहते हैं मेरे आँसू।
बंद होंठों के पीछे, मेरे गले में हैं सिसकियां।
जब मैं भूखा था, बिना शक्ति के, तुमने मुझे दिया सबसे अच्छा पोषण।
जब मैं था दर्द में और निराश,
किया गया मुझे अपमानित, छोड़ दिया गया मुझे,
तुम्हारे हाथों ने पोंछे मेरे आंसू, तुमने दी मुझे सांत्वना।
ओह परमेश्वर! जब मैं कांप रहा था ठंड से,
ओह परमेश्वर! तुमने पहुंचाई थी मुझे गर्माहट।
जब कठिनाइयां थीं बहुत कठिन, तुमने की मुझ पर दया।
2
जब मैं अकेला खोया हुआ था, तुम्हारे प्यारे वचनों ने दिया मुझे आराम।
जब मैं बीमारियों से घिरा हुआ था, तुमने किया इलाज, दिखाया रास्ता।
जब मैं बहुत घमंडी और अहंकारी था,
तुम्हारी छड़ी मुझसे दूर नहीं थी।
जब किया गया मुझे अपमानित, किया गया गलत मेरे साथ,
तुम्हारे उदाहरण ने किया मुझे प्रोत्साहित।
ओह परमेश्वर! मैं अंधेरे में था, कोई उम्मीद नहीं थी,
ओह परमेश्वर! तुम्हारे वचनों ने चमकाई थी रोशनी मुझ पर।
मेरे लिए कोई राह नहीं थी, रास्ते के अंत को तुमने किया रोशन।
3
जब समुंदर ने निगला मुझे, तो जहाज़ से तुमने हाथ बढ़ाया।
जब शैतान ने घेरा मुझे, तुम्हारी तलवार ने उसकी पकड़ से छुड़ाया।
तुम्हारे साथ की मैंने प्राप्त जीत, तुम भी मुझे देखकर मुस्कुराए।
मेरे दिल में हैं कई शब्द।
जहां तुम हो, वहां से मेरा दिल भटक सकता नहीं।
ओह परमेश्वर! परमेश्वर का अनुग्रह है पहाड़ों से भी बड़ा।
ओह परमेश्वर! मेरा जीवन चुका सकता नहीं तुम्हारा कर्ज़।
तुम्हारा अनुग्रह है बहुत गहरा।
वर्णन करने के लिए नहीं है पर्याप्त सियाही।