4. हमने कई वर्षों से प्रभु पर विश्वास किया है और हमेशा उसके लिए कड़ी मेहनत की है, सतर्कता से उसकी वापसी की प्रतीक्षा करते हुए। हमारा मानना है कि हमें सबसे पहले प्रभु की वापसी के बारे में रहस्योद्घाटन प्राप्त होना चाहिए। अब आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु लौट आया है, तो हमें इस बारे में रहस्योद्घाटन क्यों नहीं मिला? इसका न मिलना यही साबित करता है कि प्रभु लौटा नहीं है। क्या हमारे लिए ऐसा सोचना गलत है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद :

"देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ" (प्रकाशितवाक्य 3:20)

"जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)

परमेश्वर के प्रासंगिक वचन :

यीशु ने घोषणा की थी कि अंत के दिनों में मनुष्य को सत्य का आत्मा प्रदान किया जाएगा। अब अंत के दिन आ चुके हैं; क्या तुम जानते हो कि सत्य का आत्मा किस प्रकार वचनों को व्यक्त करता है? सत्य का आत्मा कहाँ प्रकट होकर कार्य करता है? नबी यशायाह की भविष्यवाणियों की पुस्तक में कभी भी यह उल्लेख नहीं किया गया कि नए नियम के युग में, यीशु नाम का बच्चा पैदा होगा; केवल यह लिखा था कि इम्मानुएल नाम का एक नर शिशु पैदा होगा। "यीशु" नाम का उल्लेख क्यों नहीं किया गया? पुराने नियम में कहीं भी उसका नाम नहीं दिखाई देता, तब भी तुम यीशु में विश्वास क्यों रखते हो? तुमने यीशु में विश्वास रखने से पहले निश्चित रूप से उसे अपनी आँखों से तो नहीं देखा था? या तुमने प्रकाशन प्राप्त करने पर विश्वास रखना प्रारम्भ किया? क्या परमेश्वर वास्तव में तुम पर ऐसा अनुग्रह दर्शाएगा? और तुम पर इस प्रकार के महान आशीष बरसाएगा? यीशु में तुम्हारी आस्था का आधार क्या है? तुम यह विश्वास क्यों नहीं करते कि आज परमेश्वर देहधारी हो गया है? तुम यह क्यों कहते हो कि तुम्हारे लिए परमेश्वर द्वारा प्रकाशन की अनुपस्थिति यह सिद्ध करती है कि वह देहधारी नहीं हुआ है? क्या परमेश्वर को अपना कार्य प्रारम्भ करने से पहले मनुष्य को सूचित करना चाहिए? क्या पहले उसे मनुष्य से अनुमोदन लेना चाहिए? यशायाह ने केवल यह घोषणा की थी कि चरणी में एक नर शिशु का जन्म होगा; उसने यह भविष्यवाणी नहीं की थी कि मरियम यीशु को जन्म देगी। मरियम से जन्मे यीशु पर तुम्हारे विश्वास का आधार क्या है? निश्चय ही तुम्हारा विश्वास भ्रमपूर्ण नहीं है?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?

ऐसे लोग तो और भी हैं जो यह मानते हैं कि परमेश्वर का नया कार्य जो भी हो, उसे भविष्यवाणियों द्वारा सही साबित किया जाना ही चाहिए और कार्य के प्रत्येक चरण में, जो भी "सच्चे" मन से उसका अनुसरण करते हैं, उन्हें प्रकटन भी अवश्य दिखाया जाना चाहिए; अन्यथा वह कार्य परमेश्वर का कार्य नहीं हो सकता। परमेश्वर को जानना मनुष्य के लिए पहले ही आसान कार्य नहीं है। मनुष्य के बेतुके हृदय और उसके आत्म-महत्व एवं दंभी विद्रोही स्वभाव को देखते हुए, परमेश्वर के नए कार्य को ग्रहण करना मनुष्य के लिए और भी अधिक कठिन है। मनुष्य न तो परमेश्वर के कार्य पर ध्यान से जाँच करता है और न ही इसे विनम्रता से स्वीकार करता है; बल्कि मनुष्य परमेश्वर से प्रकाशन और मार्गदर्शन का इंतजार करते हुए, तिरस्कार का रवैया अपनाता है। क्या यह ऐसे मनुष्य का व्यवहार नहीं है जो परमेश्वर का विरोधी और उससे विद्रोह करने वाला है? इस प्रकार के मनुष्य कैसे परमेश्वर का अनुमोदन प्राप्त कर सकते हैं?

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, वो मनुष्य, जिसने परमेश्वर को अपनी ही धारणाओं में सीमित कर दिया है, किस प्रकार उसके प्रकटनों को प्राप्त कर सकता है?

चूँकि हम परमेश्वर के पदचिह्नों की खोज कर रहे हैं, इसलिए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम परमेश्वर की इच्छा, उसके वचन और कथनों की खोज करें—क्योंकि जहाँ कहीं भी परमेश्वर द्वारा बोले गए नए वचन हैं, वहाँ परमेश्वर की वाणी है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर के पदचिह्न हैं, वहाँ परमेश्वर के कर्म हैं। जहाँ कहीं भी परमेश्वर की अभिव्यक्ति है, वहाँ परमेश्वर प्रकट होता है, और जहाँ कहीं भी परमेश्वर प्रकट होता है, वहाँ सत्य, मार्ग और जीवन विद्यमान होता है। परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश में तुम लोगों ने इन वचनों की उपेक्षा कर दी है कि "परमेश्वर सत्य, मार्ग और जीवन है।" और इसलिए, बहुत-से लोग सत्य को प्राप्त करके भी यह नहीं मानते कि उन्हें परमेश्वर के पदचिह्न मिल गए हैं, और वे परमेश्वर के प्रकटन को तो बिलकुल भी स्वीकार नहीं करते। कितनी गंभीर ग़लती है! परमेश्वर के प्रकटन का समाधान मनुष्य की धारणाओं से नहीं किया जा सकता, और परमेश्वर मनुष्य के आदेश पर तो बिलकुल भी प्रकट नहीं हो सकता। परमेश्वर जब अपना कार्य करता है, तो वह अपनी पसंद और अपनी योजनाएँ बनाता है; इसके अलावा, उसके अपने उद्देश्य और अपने तरीके हैं। वह जो भी कार्य करता है, उसके बारे में उसे मनुष्य से चर्चा करने या उसकी सलाह लेने की आवश्यकता नहीं है, और अपने कार्य के बारे में हर-एक व्यक्ति को सूचित करने की आवश्यकता तो उसे बिलकुल भी नहीं है। यह परमेश्वर का स्वभाव है, जिसे हर व्यक्ति को पहचानना चाहिए। यदि तुम लोग परमेश्वर के प्रकटन को देखने और उसके पदचिह्नों का अनुसरण करने की इच्छा रखते हो, तो तुम लोगों को पहले अपनी धारणाओं को त्याग देना चाहिए। तुम लोगों को यह माँग नहीं करनी चाहिए कि परमेश्वर ऐसा करे या वैसा करे, तुम्हें उसे अपनी सीमाओं और अपनी धारणाओं तक सीमित तो बिलकुल भी नहीं करना चाहिए। इसके बजाय, तुम लोगों को खुद से यह पूछना चाहिए कि तुम्हें परमेश्वर के पदचिह्नों की तलाश कैसे करनी चाहिए, तुम्हें परमेश्वर के प्रकटन को कैसे स्वीकार करना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर के नए कार्य के प्रति कैसे समर्पण करना चाहिए। मनुष्य को ऐसा ही करना चाहिए। चूँकि मनुष्य सत्य नहीं है, और उसके पास भी सत्य नहीं है, इसलिए उसे खोजना, स्वीकार करना और आज्ञापालन करना चाहिए।

—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परिशिष्ट 1: परमेश्वर के प्रकटन ने एक नए युग का सूत्रपात किया है

मनुष्य की संगति :

जो लोग कई वर्षों से प्रभु में विश्वास करते रहे हैं, लगातार परिश्रम और कड़ी मेहनत करते रहे हैं, और जिन्होंने सतर्कता से उसकी वापसी की प्रतीक्षा की है, यह मानते हैं कि जब प्रभु वापस आएगा, तो वह उन्हें अपने आने के बारे में प्रकाशन देगा। यह मनुष्य की धारणा और कल्पना है; यह परमेश्वर के कार्य की वास्तविकता के अनुरूप नहीं है। बहुत पहले, यहूदी धर्म के फरीसियों ने सुसमाचार फैलाने के लिए दूर-दूर तक यात्रा की थी। क्या प्रभु यीशु ने उन्हें अपने आने के बारे में प्रकाशन दिया था? इसके अलावा, प्रभु यीशु के शिष्यों में से किसने इसलिए उसका अनुसरण किया क्योंकि उसे प्रभु से प्रकाशन प्राप्त हुआ था? एक भी नहीं! हालाँकि पतरस ने परमेश्वर से प्रकाशन प्राप्त किया था और यह पहचान लिया था कि प्रभु यीशु परमेश्वर का पुत्र, मसीह है, लेकिन यह सब पतरस द्वारा कुछ समय तक प्रभु यीशु का अनुसरण किए जाने और उसके कई उपदेश सुनने के बाद हुआ था; पतरस को पहले से ही प्रभु यीशु के बारे में थोड़ा-बहुत ज्ञान प्राप्त हो चुका था, और इसके बाद ही उसने पवित्र आत्मा से प्रकाशन प्राप्त किया और वह प्रभु यीशु की वास्तविक पहचान को जान पाया। इससे यह देखा जा सकता है कि पतरस ने वास्तव में प्रभु यीशु का अनुसरण करने से पहले प्रकाशन प्राप्त नहीं किया था; यह एक तथ्य है। वे सभी जो प्रभु यीशु का अनुसरण कर पाए, उन्होंने केवल यीशु के उपदेश सुनने के कारण ही उसे आने वाले मसीहा के रूप में पहचाना; ऐसा नहीं था कि उन्होंने पहले परमेश्वर से प्रकाशन प्राप्त किया, फिर उसे पहचाना और उसके अनुयायी बन गए। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों का न्याय-कार्य करने के लिए गुप्त रूप से आ चुका है। लाखों लोगों ने उसे स्वीकार कर लिया है और उसका अनुसरण कर रहे हैं, लेकिन उनमें से किसी ने भी पवित्र आत्मा से प्रकाशन प्राप्त करने के परिणामस्वरूप ऐसा नहीं किया है; हम सभी ने परमेश्वर की वाणी पहचान ली है और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन पढ़कर और सत्य पर संगति करके उसका अनुसरण करने का निर्णय लिया है। तथ्यों से यह स्पष्ट है कि अपना कार्य करने के लिए जब परमेश्वर देहधारण करता है तो वह किसी को भी प्रकाशन नहीं देता है, ताकि वे उस पर विश्वास करें और उसका अनुसरण करें। इसके अलावा, अंत के दिनों में परमेश्वर ने सत्य व्यक्त करने और न्याय-कार्य करने के लिए देहधारण किया है; अंत के दिनों में उसके कथन वे पहले वचन हैं जो उसने सृष्टि की शुरुआत के बाद से पूरे ब्रह्मांड और पूरी मानव-जाति से सार्वजनिक रूप से कहे हैं। सभी लोग परमेश्वर की वाणी सुन सकते हैं, इसलिए वे प्रभु का स्वागत कर सकते हैं या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे परमेश्वर की वाणी को पहचान सकते हैं या नहीं, साथ ही इस बात पर भी कि वे सत्य से प्रेम करते हैं या नहीं, और इसे स्वीकार करते हैं या नहीं। इसका संबंध व्यक्तिगत चुनाव से है; परमेश्वर कभी भी किसी व्यक्ति को प्रकाशन नहीं देगा कि वे उस पर विश्वास करें। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के अध्याय 2 और 3 में इसका कई बार उल्लेख किया गया है : "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है।" और प्रकाशितवाक्य 3:20 में : "देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूँ; यदि कोई मेरा शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आकर उसके साथ भोजन करूँगा और वह मेरे साथ।" प्रभु यीशु ने यह भी कहा, "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं; मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं" (यूहन्ना 10:27)। यदि प्रभु अपने आने पर लोगों को खुद पर विश्वास करने के लिए प्रकाशन देता है, तो उसने क्यों कहा कि वह लोगों के दरवाजे पर खड़ा होकर दस्तक देगा, और परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की वाणी सुनेंगी? क्या यह परस्पर-विरोधी नहीं होगा? अंत के दिनों में, परमेश्वर अपनी भेड़ों को खोजने के लिए अपने वचनों और सत्य की अभिव्यक्तियों का उपयोग करता है। “परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज सुनती हैं”—अर्थात्, जो परमेश्वर की वाणी सुनते और समझते हैं, वे उसकी भेड़ें हैं, वे बुद्धिमान कुंवारियाँ हैं; जबकि जो उसकी वाणी सुनते तो हैं, परंतु समझते नहीं हैं, वे निश्चय ही मूर्ख कुँवारियाँ हैं, और इस तरह लोग उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किए जाएँगे। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि परमेश्वर कितना अधिक बुद्धिमान और धार्मिक है!

इस प्रकार, सच्चे मार्ग की जाँच-पड़ताल करने का इससे कोई लेना-देना नहीं है कि किसी ने परमेश्वर से प्रकाशन प्राप्त किया है या नहीं; मूल बात यह है कि व्यक्ति सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गए वचनों में परमेश्वर की वाणी पहचानने में सक्षम है या नहीं। अंत के दिनों में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने लाखों वचन व्यक्त किए हैं। ये कथन सत्य हैं; वे परमेश्वर की वाणी हैं। विभिन्न संप्रदायों के बहुत से लोगों ने, जिनका प्रभु में सच्चा विश्वास है, परमेश्वर की वाणी सुनी और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर मुड़ गए। यही लोग "चोरी" किए गए खजाने हैं; अपने गुप्त आगमन में प्रभु का उद्देश्य इन खजानों को प्राप्त करना है, और सबसे पहले परमेश्वर के सिंहासन के सामने उठाए गए इन लोगों को, आपदाओं से पहले विजेताओं में बदलना है। हालाँकि, जब लोग केवल परमेश्वर से प्रकाशन प्राप्त करने की प्रतीक्षा करते हैं और सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए वचनों में उसकी वाणी पहचानने में असमर्थ होते हैं, तो यह दर्शाता है कि वे सत्य से प्रेम नहीं करते हैं, न ही प्रभु को जानते हैं, और वे परमेश्वर की भेड़ बिल्कुल नहीं हैं। ये लोग स्वाभाविक रूप से ऐसे लक्ष्य होंगे जिन्हें परमेश्वर त्याग देगा और हटा देगा, और वे उन लोगों में से हैं जो तबाही के शिकार होंगे, विलाप करेंगे और अपने दाँत पीसेंगे। यह ठीक वैसा ही है जैसा प्रभु यीशु ने थोमा से कहा था : "तू ने मुझे देखा है, क्या इसलिये विश्‍वास किया है? धन्य वे हैं जिन्होंने बिना देखे विश्‍वास किया" (यूहन्ना 20:29)

पिछला: 3. आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु देह में लौट आया है। तो अब प्रभु कहाँ है? हमने उसे क्यों नहीं देखा है? देखना ही विश्वास करना है, इसलिए यह तथ्य कि हमने उसे नहीं देखा है, यह साबित करता है कि प्रभु अभी तक लौटा नहीं है। जब मैं इसे देखूँगी/देखूँगा, तभी मुझे विश्वास होगा।

अगला: 5. पुराने और नए दोनों नियमों के युगों में, परमेश्वर ने इस्राएल में काम किया। प्रभु यीशु ने भविष्यवाणी की कि वह अंतिम दिनों के दौरान लौटेगा, इसलिए जब भी वह लौटता है, तो उसे इस्राएल में आना चाहिए। फिर भी आप गवाही देते हैं कि प्रभु यीशु पहले ही लौट चुका है, कि वह देह में प्रकट हुआ है और चीन में अपना कार्य कर रहा है। चीन एक नास्तिक राजनीतिक दल द्वारा शासित राष्ट्र है। किसी भी (अन्य) देश में परमेश्वर के प्रति इससे अधिक विरोध और ईसाइयों का इससे अधिक उत्पीड़न नहीं है। परमेश्वर की वापसी चीन में कैसे हो सकती है?

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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संदर्भ के लिए बाइबल के पद :"क्योंकि उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति-जाति में मेरा नाम महान् है, और हर कहीं मेरे नाम पर धूप और शुद्ध भेंट...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

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