256 खोये हुए उद्धार को कैसे हासिल करूँ
1
तुमने पूछा था कब तक मैं तुम्हारा अनुसरण करूँगा;
मैंने कहा था मैं अपनी जवानी दे दूँगा और सदा तुम्हारे साथ रहूँगा।
मेरे दिल की गहराइयों से एक फुसफुसाहट आई,
जिसने पृथ्वी को झकझोर दिया और पहाड़ों को डगमगा दिया।
मैंने अश्रु-रंजित गालों से अपनी शपथें लीं,
पर अपने दोगलेपन को नहीं जाना।
समय के साथ, बड़े बदलाव इन भावनाओं को हल्का कर देते हैं,
और जो शपथ मैंने तुम्हारे सामने ली थीं, वे झूठ बन जाती हैं।
अंततः मैं अपने तुच्छ दान को समझ पाता हूँ।
केवल खोखले शब्दों से प्रतिदान देता हूँ।
अपने स्वप्न से जागकर, मैं अपने लिए चिंतित होता हूँ।
खोये हुए उद्धार को कैसे हासिल करूँ?
अपने स्वप्न से जागकर, मैं अपने लिए चिंतित होता हूँ।
खोये हुए उद्धार को कैसे हासिल करूँ?
2
जब हम मिले थे, मैंने तुम्हारे खिलाफ़ विद्रोह किया।
मैं उन पुराने दृश्यों को याद करना नहीं चाहता।
बिना वफ़ादारी का मेरा समर्पण,
तुम्हारे लिए और भी बड़ी पीड़ा ले आया है।
मेरी जवानी में, तुमने मेरे लिए कठोर परिश्रम किया,
पर इसके लिए कोई भी आभार न दिया गया।
मेरे वे साल यूं ही फिसल गए और मैंने कुछ ख़ास हासिल नहीं किया।
अपने भीतर के संताप को मैं किसे बताऊँ?
अंततः मैं अपने तुच्छ दान को समझ पाता हूँ।
केवल खोखले शब्दों से प्रतिदान देता हूँ।
अपने स्वप्न से जागकर, मैं अपने लिए चिंतित होता हूँ।
खोये हुए उद्धार को कैसे हासिल करूँ?
अपने स्वप्न से जागकर, मैं अपने लिए चिंतित होता हूँ।
खोये हुए उद्धार को कैसे हासिल करूँ?
यहाँ-वहाँ भागते हुए,
मैं तुम्हारे दिल के साथ संपर्क नहीं कर पाता।
हम एक बार संयोग से मिले, पर मैं तुम्हें पहचान न पाया,
जो मुझे और भी अफ़सोस दे गया।