255 परमेश्वर के प्रेम की यादें
1
जब परमेश्वर के न्याय के वचनों ने मुझे जाग्रत किया, तभी जाकर मुझे अहसास हुआ कि मैं अपनी गढ़ी गयी अवघारणाओं के अनुसार परमेश्वर में विश्वास करता हूँ।
मुझे पछतावा है कि परमेश्वर पर अपने विश्वास में, मैं बस आशीष मांगता रहा, उसके वचनों की अनदेखी करता रहा।
बार-बार निपटे जाने, तराशे जाने और अनुशासित किये जाने की वजह से मेरा हृदय हमेशा शिकायतों और दलीलों से भरा रहा।
बार-बार परीक्षाओं और परिष्कारों से गुज़ारे जाने की वजह से, मैं हमेशा परमेश्वर से दूर भागने की, उससे दूरी बनाने की कोशिश करता रहा।
मुझे नफ़रत है कि मैं इतना दूषित हूँ और परमेश्वर के परिश्रमपूर्ण इरादों पर खरा उतरने में नाकामयाब रहा हूँ।
हे परमेश्वर! न्याय और प्रकाशन के तेरे वचनों ने मुझे मेरे सपने से जगा दिया है।
2
मैंने बहुत वक़्त बरबाद कर दिया है; मैं वर्षों परमेश्वर में विश्वास करता रहा और सत्य को समझने में नाकामयाब रहा हूँ।
मेरी आँखों के समक्ष समूचा अतीत उजागर हो उठा है, प्रतिरोध और अवज्ञा के अलावा उसमें और कुछ नहीं था।
मैं परमेश्वर में विश्वास करता था लेकिन मैंने उसके न्याय और दण्ड को अनुभव नहीं किया, और पछतावा करने में मैंने सचमुच बहुत देर कर दी है।
आश्चर्य की बात नहीं कि मेरे जीवन के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया है, और अपने हर कर्तव्य का निर्वाह मैंने बहुत बुरे ढंग से किया है।
मुझे बहुत पश्चाताप है, और मैं परमेश्वर का बहुत ऋणी हूँ।
मैं परमेश्वर के प्रेम के लिए लालायित हूँ और अपनी हृदयहीनता के कारण मैं स्वयं से और भी ज़्यादा नफ़रत करने लगा हूँ।
परमेश्वर का न्याय लोगों को जीवन प्रदान करता है; मैंने उसके प्रेम का बहुत आनंद लिया है,
मैं सत्य की खोज करूँगा और जीवन हासिल करूँगा; परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के लिए मैं अपने कर्तव्यों का अच्छी तरह निर्वाह करूँगा।