प्रश्न 4: आपकी बातों से मुझे एक बात समझ में आई है कि प्रभु की वापसी और आरोहण की हमारी उम्मीदें वाकई इंसानी मान्यताओं और कल्पनाओं की देन हैं। हम पहले ही प्रभु के वचनों को धोखा दे चुके हैं। ख़ैर, अब हम प्रभु की वापसी और आरोहण का इंतज़ार कैसे करें? इस पर थोड़ा और विस्तार से चर्चा कर लें?

उत्तर: आरोहित किए जाने की संतों की उम्मीदों का मुख्य आधार, स्वयं प्रभु यीशु के वचन हैं: "क्योंकि मैं तुम्हारे लिये जगह तैयार करने जाता हूँ। और यदि मैं जाकर तुम्हारे लिये जगह तैयार करूँ, तो फिर आकर तुम्हें अपने यहाँ ले जाऊँगा कि जहाँ मैं रहूँ वहाँ तुम भी रहो" (यूहन्ना 14:2-3)। हम प्रभु यीशु के वचनों की व्याख्या अपनी कल्पनाओं के आधार पर करते हैं। हमें लगता है, चूँकि स्वर्ग में प्रभु यीशु का आरोहण एक बादल पर हुआ था, तो प्रभु ने मनुष्यों के लिये स्वर्ग में ही स्थान तैयार किया होगा। इसलिये हम लोग प्रभु यीशु की वापसी और स्वर्ग में उन्नत किये जाने का इंतज़ार कर रहे हैं। इसके अलावा, हम लोग खास तौर से पौलुस के वचनों में श्रद्धा रखते हैं: "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिलें; और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे" (1 थिस्सलुनीकियों 4:17)। इसीलिये हम लोगों ने उम्मीद करनी शुरु कर दी कि प्रभु लौटने पर हमें स्वर्ग में उन्नत कर देंगे। आरोहण को, लोग अलग-अलग तरीके से समझते हैं। अधिकतर लोग मानते हैं, जब प्रभु आएँगे तो वे संतों को स्वर्ग में उन्नत कर लेंगे। हम लोग बरसों से, इस तरह के आरोहण की उम्मीद लगाए बैठे हैं। अच्छा तो, ये आरोहण दरअसल है क्या? ज़्यादातर लोग इस बारे में कुछ जानते नहीं हैं। संतों के आरोहण का राज़, तभी उजागर हुआ जब सर्वशक्तिमान परमेश्वर का आगमन हुआ। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं: "'उठाया जाना' निचले स्थान से किसी ऊँचे स्थान पर ले जाया जाना नहीं है जैसा कि लोग सोच सकते हैं; यह एक बहुत बड़ी मिथ्या धारणा है। 'उठाया जाना' मेरे द्वारा पूर्वनियत और फिर चयनित किए जाने को इंगित करता है। यह उन सभी के लिए है जिन्हें मैंने पूर्वनियत और चयनित किया है। ... यह लोगों की धारणाओं के बिलकुल भी संगत नहीं है। वे सभी लोग जिन्हें भविष्य में मेरे घर में हिस्सा मिलेगा, ऐसे लोग हैं जो मेरे सामने उठाए जा चुके हैं। यह एक सम्पूर्ण सत्य है, कभी न बदलने वाला और जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। यह शैतान के विरुद्ध एक जवाबी हमला है। जिस किसी को भी मैंने पूर्वनियत किया है, वह मेरे सामने उठाया जाएगा" (वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 104)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन स्पष्ट हैं। "उठा लिये जाने" का अर्थ वो नहीं है जो हम लोग समझते हैं-धरती से हवा में उठा लिया जाना और बादलों पर प्रभु से मिलना। न की इसका अर्थ स्वर्ग में ले जाया जाना है। इसका अर्थ है कि जब परमेश्वर धरती पर अपने वचन बोलने और अपना कार्य करने वापस आएँगे, तो हम लोग उनकी वाणी सुनेंगे और अंत के दिनों में उनका अनुसरण और उनके कार्य का पालन कर पाएँगे। परमेश्वर के सिंहासन के सामने उठाए जाने का यही सच्चा अर्थ है। जो लोग प्रभु की वाणी में भेद कर पाते हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में, सत्य ढूंढ पाते हैं, सत्य को स्वीकार कर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की ओर लौट पाते हैं, वे बुद्धिमान कुँवारियाँ हैं। वे लोग सोना, चाँदी और बेशकीमती पत्थर हैं, जिन्हें प्रभु ने "चुरा" कर परमेश्वर के भवन में लौटा दिया है क्योंकि उन सब की क्षमता अच्छी है, वे सत्य को समझ और स्वीकार करके परमेश्वर की वाणी को सुन सकते हैं। उन्हीं लोगों ने सही मायने में आरोहण पाया है। जब परमेश्वर अंत के दिनों में चुपचाप धरती पर उतरकर अपना कार्य करेंगे तो इन्हीं लोगों को विजेता बनाया जाएगा। जब से सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने अंतिम दिनों का कार्य शुरू किया है, तब से, परमेश्वर के प्रकटन की प्यास से युक्त लोगों ने, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में उनकी वाणी को पहचाना है। एक एक करके, उन्होंने परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार किया है। उन्हें परमेश्वर से मिलने के लिए सिंहासन के सामने उठा लिया गया है और उनके वचनो के जीवन-जल और पोषण को स्वीकार कर लिया है उन्होंने परमेश्वर का सच्चा ज्ञान पा लिया है। उनका स्वभाव शुद्ध कर दिया गया है वे परमेश्वर के वचनों को समझ पाए हैं। उन्हें परमेश्वर का उद्धार प्राप्त हो गया है। इन लोगों को, महाविपदा आने, से पहले विजेता बना दिया गया है। वे परमेश्वर को प्रथम-फल के रूप में, प्राप्त हो गए हैं। जो लोग अपनी कल्पनाओं से चिपके हुए हैं आंखें मूंदे, स्वर्ग में ले जाये जाने के इंतज़ार में हैं, वो परमेश्वर के अंत के दिनों के न्याय को नकारते हैं वे मूर्ख कुँवारियाँ हैं। ऐसे लोगों को परमेश्वर त्याग देंगे। ऐसे लोगों की नियति है कि वे महाविपदा में तड़पें; वे रोएंगे और अपने दाँत पीसेंगे। ये सच है।

"स्वप्न से जागृति" फ़िल्म की स्क्रिप्ट से लिया गया अंश

पिछला: प्रश्न 3: बाइबल कहती है, "तब हम जो जीवित और बचे रहेंगे उनके साथ बादलों पर उठा लिये जाएँगे कि हवा में प्रभु से मिलें; और इस रीति से हम सदा प्रभु के साथ रहेंगे" (1 थिस्सलुनीकियों 4:17)। हम इसकी व्याख्या कैसे करें?

अगला: प्रप्रश्न 4: प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को स्वर्ग का राज्य के रहस्यों के बारे में बताया, और क्या प्रभु यीशु की वापसी के रूप में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने भी अनेक रहस्य उजागर किए हैं? क्या आप लोग सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा प्रकट किए गए कुछ रहस्यों के बारे में हमारे साथ संगति कर सकते हैं? इससे परमेश्वर की वाणी पहचानने में हमें बहुत सहायता मिलेगी।

परमेश्वर के बिना जीवन कठिन है। यदि आप सहमत हैं, तो क्या आप परमेश्वर पर भरोसा करने और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए उनके समक्ष आना चाहते हैं?

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प्रश्न 1: सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं, "केवल अंत के दिनों का मसीह ही मनुष्य को अनंत जीवन का मार्ग दे सकता है," तो मुझे वह याद आया जो प्रभु यीशु ने एक बार कहा था, "परन्तु जो कोई उस जल में से पीएगा जो मैं उसे दूँगा, वह फिर अनन्तकाल तक प्यासा न होगा; वरन् जो जल मैं उसे दूँगा, वह उसमें एक सोता बन जाएगा जो अनन्त जीवन के लिये उमड़ता रहेगा" (यूहन्ना 4:14)। हम पहले से ही जानते हैं कि प्रभु यीशु जीवन के सजीव जल का स्रोत हैं, और अनन्‍त जीवन का मार्ग हैं। क्या ऐसा हो सकता है कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर और प्रभु यीशु समान स्रोत हों? क्या उनके कार्य और वचन दोनों पवित्र आत्मा के कार्य और वचन हैं? क्या उनका कार्य एक ही परमेश्‍वर करते हैं?

उत्तर: दोनों बार जब परमेश्‍वर ने देह धारण की तो अपने कार्य में, उन्होंने यह गवाही दी कि वे सत्‍य, मार्ग, जीवन और अनन्‍त जीवन के मार्ग हैं।...

प्रश्न: प्रभु यीशु कहते हैं: "मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं" (यूहन्ना 10:27)। तब समझ आया कि प्रभु अपनी भेड़ों को बुलाने के लिए वचन बोलने को लौटते हैं। प्रभु के आगमन की प्रतीक्षा से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण बात है, प्रभु की वाणी सुनने की कोशिश करना। लेकिन अब, सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि हमें नहीं पता कि प्रभु की वाणी कैसे सुनें। हम परमेश्वर की वाणी और मनुष्य की आवाज़ के बीच भी अंतर नहीं कर पाते हैं। कृपया हमें बताइये कि हम प्रभु की वाणी की पक्की पहचान कैसे करें।

उत्तर: हम परमेश्वर की वाणी कैसे सुनते हैं? हममें कितने भी गुण हों, हमें कितना भी अनुभव हो, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। प्रभु यीशु में विश्वास...

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