101 यदि परमेश्वर ने मुझे बचाया न होता
यदि परमेश्वर ने मुझे बचाया न होता, तो मैं संसार में अब तक भटक रहा होता,
पापों के दलदल में जूझ रहा होता, और निराशा में जी रहा होता।
यदि परमेश्वर ने मुझे न बचाया होता, दुष्ट आत्माएँ मुझे अब तक कुचलतीँ,
पाप के सुखों को भोगते हुए, न जानते हुए कि मानव-जीवन की राह है कहाँ।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर मेरे प्रति दयालु है, उसके वचन मुझे पुकारते हैं,
मैं सुनता हूँ परमेश्वर की आवाज़, उसके सिंहासन के सामने मैं उठाया गया हूँ।
परमेश्वर के वचनों को रोज खाता-पीता हूँ, कई सत्यों को समझता हूँ,
मैं देखता हूँ कितनी भ्रष्ट है मानवजाति, हमें वास्तव में परमेश्वर के उद्धार की ज़रूरत है।
परमेश्वर का सत्य मुझे शुद्ध करता और बचाता है।
निरंतर होते न्याय और शुद्धि से, मेरा जीवन स्वभाव कुछ बदला है,
परमेश्वर की धार्मिकता और पवित्रता का अनुभव कर, उसका प्यारापन मैंने समझा है।
मैं परमेश्वर का भय मान सकता हूँ, बुराई से दूर रह सकता हूँ, अब इंसानों की तरह थोड़ा-बहुत जी सकता हूँ,
मैंने उसे आमने-सामने देखा है, उसका सच्चा प्यार मैंने चखा है।
परमेश्वर के न्याय व ताड़ना से, पाया है अंतिम दिनों का उद्धार मैंने,
निष्ठा से अपना कर्तव्य करके, मेरा दिल खुशहाल है और सकून में है।
परमेश्वर की आशीष व मार्गदर्शन में अब हम जीते हैं परस्पर प्रेम में परमेश्वर के सामने,
मैं सत्य का अभ्यास करता हूँ, परमेश्वर की हर बात मानता हूँ, एक सच्चा जीवन जीता हूँ।
परमेश्वर का काम है वास्तविक और जीवंत, परमेश्वर पूज्य और प्यारा है,
देखकर उसके प्यारेपन और मनोहरता को, मैं अर्पित करना चाहता हूँ अपना जीवन सारा।
मैं सत्य का अनुसरण करूंगा, सदा उसे प्रेम करूंगा, उसके प्रेम का प्रतिफल चुकाने के लिए मैं अपना कर्तव्य पूरा करूंगा।