148 देहधारी ईश्वर मानवीय और दिव्य दोनों है
1
देहधारण ईश्वर का देह में प्रकट होना है।
वो काम करे इंसानों के बीच इंसान की देह में।
देहधारी ईश्वर होना ही चाहिए सामान्य मानवता वाला देह।
देहधारण का अर्थ ईश्वर का देह में जीना और काम करना है।
अपने सार में वो इंसां बन जाता है।
2
मानवता के बिना देह ना हो सके
और मानवता के बिन इंसान ना हो सके।
जब ईश्वर करे देहधारण, उसकी मानवता अंतर्निहित होती।
कभी न कहना, जब ईश्वर देहधारण करता,
तब वो पूरा दिव्य होता, इंसान बिलकुल नहीं।
ये ईशनिंदा है, सत्य का विरोध है।
क्योंकि ईश्वर देह बन जाता है,
उसका सार मेल होता है मानवता और दिव्यता का।
ये मेल स्वयं ही ईश्वर कहलाता है, धरती पर स्वयं ईश्वर।
3
ईश-कार्य उसकी दिव्यता करती जो उसकी मानवता में छिपी रहती।
उसका देह है कर्ता इंसान और ईश्वर दोनों रूपों में उसके दिव्य कार्य का।
ईश्वर इंसां बन जाता, दोनों के सार वाले शरीर में,
इस तरह सभी आम इंसानों से ऊपर है।
4
उन सभी के बीच जिनका उसकी तरह इंसानी आवरण है,
उन सभी के बीच जिनमें मानवता है,
केवल वो और वो ही है स्वयं देहधारी ईश्वर।
बाकी सब सिर्फ इंसान हैं।
क्योंकि ईश्वर देह बन जाता है,
उसका सार मेल होता है मानवता और दिव्यता का।
ये मेल स्वयं ही ईश्वर कहलाता है, धरती पर स्वयं ईश्वर।
सभी सृजित इंसानों में केवल मानवता है,
जबकि देहधारी ईश्वर में मानवता भी है और दिव्यता भी है।
—वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर द्वारा धारण किये गए देह का सार से रूपांतरित