34. घर के बंधनों से मुक्ति

चेंग शी, चीन

जून 2012 में, मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों का कार्य स्वीकार किया। परमेश्वर के वचनों को पढ़कर, मैं निश्चित हो गई कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही लौटकर आया प्रभु यीशु है, इंसान को बचाने के लिए पृथ्वी पर आया उद्धारकर्ता है, मैं उत्साह से भरी हुई थी। मैंने अपने पति के बारे में सोचा जो चीन में स्नातक की पढ़ाई करते हुए अक्सर अपने निरीक्षक के साथ कलीसिया जाते थे। जब वे विदेश गए, तब भी वे स्थानीय चीनी समुदाय के साथ कलीसिया जाया करते थे। मैं उन्हें जल्द से जल्द खुशखबरी सुनाना चाहती थी।

सितंबर की शुरुआत में मेरे पति चीन लौट आए और मैंने उनके सामने परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य की गवाही दी। मुझे हैरानी हुई, जब सुनने के बाद, उन्हें नेट पर सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में सीसीपी द्वारा गढ़ी गई बहुत-सी झूठी खबरें और उसकी बदनामी करने वाले नकारात्मक प्रोपगंडा मिले। इसे पढ़कर वे मुझपर चिल्लाने लगे, “ये देखो! तुम जिस पर विश्वास करती हो, वह ‘चमकती पूर्वी बिजली’ है, जिस पर बरसों से सीसीपी कड़ी कार्रवाई कर रही है। गिरफ्तार करते ही, वे तुम्हें जेल भेज देंगे। अब तुम्हें इस में विश्वास करने की अनुमति नहीं है।” फिर उन्होंने परमेश्वर के वचनों की सारी पुस्तकें फाड़ दीं। मुझे बहुत गुस्सा आया, पर फिर मैंने सोचा मेरे पति मेरे विश्वास का इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि वे फिलहाल सीसीपी की अफवाहों के धोखे में आ गए हैं, लेकिन वे बाद में समझ जाएंगे। मैं जानती थी, परमेश्वर में आस्था का मार्ग सही था, और चाहे कुछ भी हो जाए, मैं यह मार्ग नहीं छोड़ूँगी। उसके बाद से, मेरे पति नज़र रखने के लिए हर दिन मुझे कॉल करने लगे। उस समय, मैं पढ़ाई कर रही थी, तो उनकी नज़रों से बचने के लिए, मैं अपने स्कूल के पास की सभाओं में जाती थी और सिर्फ सप्ताहांत पर घर जाती थी। 2012 के अंत में, सीसीपी ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के खिलाफ और भी दमनकारी और गिरफ्तारी का अभियान चलाया। इंटरनेट, टीवी और अखबारों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया का अपमान और उस पर हमला करने वाली अफवाहें फैल गयीं, और हर जगह परमेश्वर के विश्वासियों को गिरफ्तार करने के लिए सरकार ने इसे बहाने के रूप में इस्तेमाल किया। मेरे पति को डर था कि परमेश्वर में आस्था के कारण मुझे भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा जिसका असर उन पर और हमारी बेटी पर पड़ेगा, इसलिए वह मुझ पर और भी कड़ी नजर रखने लगे। मुझे धमकी भी दी, कहा कि अगर मैं परमेश्वर में विश्वास करती रही, तो वह मुझे तलाक दे देंगे। इससे मैं बहुत परेशान हो गई। चीन में परमेश्वर में आस्था रखने से सिर्फ गिरफ्तारी होकर जेल जाने का ही जोखिम नहीं है, बल्कि हमारे गैर-विश्वासी परिवार भी हमें पीड़ा पहुँचाते हैं। हमारे लिए बड़ी मुश्किलें हैं। अगर मेरे पति और मेरा तलाक हो गया, तो हमारी बेटी का क्या होगा? कुछ दिनों तक कर्तव्य में मेरा मन नहीं लगा। मैं बहुत दुखी थी।

जब मेरी एक बहन को मेरी हालत का पता चला, तो उसने मुझे परमेश्वर के वचन पढ़कर सुनाए। परमेश्वर कहते हैं : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का विघ्न था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। परमेश्वर के वचनों से मुझे समझ आया कि बाहर से लगता था कि मेरे पति का मुझे रोकना और सताना ही मुसीबत है, असलियत में इसके पीछे शैतान की हेराफेरी और गड़बड़ी थी। परमेश्वर मुझे बचाना चाहता है, और शैतान हर तरह की परेशानियाँ और बाधाएँ खड़ी करता है ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दूँ, उद्धार गँवा दूँ और फिर नरक में जा गिरूँ। शैतान बहुत ही पापी और दुष्ट है! यह जानकर, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मेरा आध्यात्मिक कद बहुत छोटा है, मुझे आस्था प्रदान कर और मुझे शैतान की बाधाओं के खिलाफ डटे रहने में समर्थ बनाए। भले ही मेरे पति मुझे तलाक दे दें, लेकिन मैं तुझे धोखा नहीं दूँगी, मैं शैतान की चालों में नहीं फँसूँगी।” प्रार्थना के बाद, थोड़ा सुकून मिला, मैंने फिर से सुसमाचार फैलाना शुरू कर दिया और अपना कर्तव्य करने लगी।

इसके कुछ समय बाद, एक सभा में पुलिस ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने मुझ पर “समाज में अव्यवस्था” फैलाने का आरोप लगाकर, 30 दिनों के लिए हिरासत में ले लिया था। पूछताछ के दौरान, पुलिस ने मुझे धमकाते हुए कहा, “तुम्हारे स्कूल को पता है कि परमेश्वर में आस्था के कारण तुम्हें गिरफ्तार किया गया है, वे तुम्हें स्कूल से निकालने की सोच रहे हैं। लेकिन अगर तुम सहयोग करो और हमें सब कुछ बता दो, तो हम डीन से बात कर लेंगे और तुम्हारी पढ़ाई जारी रह सकती है। अच्छी तरह सोच लो!” उनके जाने के बाद, जेल की लोहे की सलाखों को देख, मैं दुखी और परेशान हो गई। मैंने सोचा, “अगर परमेश्वर में आस्था के कारण मुझे स्कूल से निकाल दिया गया, तो यह राजनैतिक मुद्दा होगा और यह मामला हमेशा के लिए मेरे रेकॉर्ड और पुलिस फाइल में दर्ज हो जाएगा, मुझे कोई अस्पताल काम नहीं देगा, और डॉक्टर बनने का मेरा सपना चूर-चूर हो जाएगा। केवल तीस साल की उम्र में मेरी पढ़ाई, काम और भविष्य सब चौपट हो जाएगा। मैं कैसे जियूँगी? आस-पास के लोगों के भेदभाव और मजाक का सामना कैसे करूँगी?” कुछ दिनों तक, मैं न कुछ खा पाई, न सो पाई।

उस दौरान, मैं अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करती। एक सुबह, अनजाने में, मैं “सबसे सार्थक जीवन” नाम का परमेश्वर के वचनों का एक भजन गुनगुनाने लगी : “तुम सृजित प्राणी हो—तुम्हें निस्संदेह परमेश्वर की आराधना और सार्थक जीवन का अनुसरण करना चाहिए। चूँकि तुम मानव प्राणी हो, इसलिए तुम्हें स्वयं को परमेश्वर के लिए खपाना और सारे कष्ट सहने चाहिए! आज तुम्हें जो थोड़ा-सा कष्ट दिया जाता है, वह तुम्हें प्रसन्नतापूर्वक और दृढ़तापूर्वक स्वीकार करना चाहिए और अय्यूब तथा पतरस के समान सार्थक जीवन जीना चाहिए। तुम सब वे लोग हो, जो सही मार्ग का अनुसरण करते हो, जो सुधार की खोज करते हो। तुम सब वे लोग हो, जो बड़े लाल अजगर के देश में ऊपर उठते हो, जिन्हें परमेश्वर धार्मिक कहता है। क्या यह सबसे सार्थक जीवन नहीं है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, अभ्यास (2))। वह भजन, मेरे दिल को छू गया, और मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। मैं एक सृजित प्राणी हूँ। मुझे परमेश्वर में स्वाभाविक रूप से विश्वास होना चाहिए, उसकी आराधना करनी चाहिए। मेरा ऐसा करना स्वाभाविक और सही है। परमेश्वर के विधान से ही मैं प्रभु में विश्वास करने वाले परिवार में पैदा हुई, ताकि बचपन से ही मैं परमेश्वर के अस्तित्व को जानूँ। अंत के दिनों में, परमेश्वर मेरे प्रति अनुग्रहशील था और उसने मुझे प्रभु की वाणी सुनने और उसकी अगवानी करने दी। उसने मुझे परमेश्वर के वचनों का सिंचन और पोषण का आनंद लेने दिया, उसका न्याय और शुद्धिकरण स्वीकार करने दिया, परमेश्वर द्वारा बचाए जाने का मौका दिया। यह बहुत बड़ा आशीर्वाद है! मैंने उन बहुत-से लोगों के बारे में सोचा जिन्होंने पीढ़ियों तक परमेश्वर की आराधना की। परमेश्वर का सुसमाचार फैलाने के लिए, उन्होंने मुश्किलें और यातनाएँ सहीं, बहुतों ने तो अपनी जान भी गँवा दी। उन सबने परमेश्वर के लिए सुंदर और शानदार गवाही दी। इसके आगे मेरे थोड़े-से कष्ट क्या थे? मैंने सोचा, “अगर मैंने अपने हितों और भविष्य की खातिर परमेश्वर में आस्था छोड़ दी, तो क्या फिर भी मेरे अंदर अंतरात्मा होगी? क्या मैं इंसान कहलाने लायक रहूँगी?” इस विचार से मुझे बल मिला, और मैंने कसम खाई कि अब चाहे मुझे निकाल दिया जाए, मेरे भविष्य और नियति का चाहे जो हो, और आसपास के लोग मुझे नकारें या मेरा अपमान करें, मैं परमेश्वर को कभी धोखा नहीं दूँगी और उसकी गवाही दूँगी। अपनी अंतिम पूछताछ में, मैंने शांति से पुलिस से कहा, “अगर स्कूल मुझे निकाल देता है, तो मेरा अनुरोध है कि आप मेरे पति से कहें कि वे स्कूल जाकर मेरा सामान ले आएँ।” पुलिसवाले मेरा दृढ़ निश्चय देखकर, निराश होकर चले गए। मैं परमेश्वर की कृतज्ञ थी।

रिहाई के बाद, मेरे पति ने गुस्से से कहा, “पुलिस ने कहा है अगर परमेश्वर में आस्था के कारण फिर गिरफ्तार हुई, तो सिर्फ एक महीने हिरासत में नहीं रहोगी। उसका असर मुझ पर और हमारी बेटी पर भी पड़ेगा। हमारी बेटी के यूनिवर्सिटी जाने और नौकरी पाने की संभावना पर असर पड़ेगा और वह लोक सेवा में काम नहीं कर पाएगी। क्या तुम्हें समझ नहीं आता? तुम्हारे परमेश्वर में आस्था के कारण गिरफ्तार होने की वजह से मैंने भी महीना भर झेला है। बता नहीं सकता मैं कितनी बार रोया हूँ, मेरी कार दुर्घटना होते-होते बची है। तुम्हें नजरबंदी केंद्र से छुड़वाने के लिए, मदद की भीख माँगता फिरा हूँ, बुरी तरह शर्मिंदा हुआ हूँ! मैं फिर कभी ऐसी यातना नहीं झेलना चाहता। क्या तुम आस्था छोड़कर हमारे परिवार के बारे में सोच सकती हो?” उसके बाद, भाई-बहनों से मुझे संपर्क न करने देने के लिए, वे मुझ पर हर वक्त नजर रखने लगे जैसे मैं कोई अपराधी हूँ। उसने मेरा घर से निकलना बंद कर दिया और मेरी आजादी छीन ली। जब वो काम पर जाते, तो अपनी माँ को मुझ पर नजर रखने के लिए कह जाते। मुझे फोन कर-करके पूछते मैं कहाँ हूँ, क्या कर रही हूँ। वह लगातार मुझे सीसीपी की क्रांतिकारी गतिविधियों और हिंसात्मक तरीकों के बारे में बताते ताकि मुझे सीसीपी की नाफरमानी करने का नतीजा पता चले और मैं परमेश्वर में आस्था रखने का विचार त्याग दूँ। उन्होंने यह भी कहा, “मुझे पता है तुम्हारी कलीसिया के बारे में सीसीपी ने जो अफवाहें फैलायी हैं, वे झूठ हैं। तुम परमेश्वर में विश्वास रखना चाहती हो लेकिन वे इसकी इजाजत नहीं देते। अगर नहीं मानोगी, तो वो तुम्हारा जीवन तबाह कर देंगे। जरा सांस्कृतिक क्रांति और चार जून की घटना को मारे गए लोगों को देखो। अगर तुम सीसीपी को नाराज करोगी, तो विदेश भी नहीं भाग पाओगी।” मेरी सास भी शुरू हो गईं, “सीसीपी अच्छी नहीं है, लेकिन उनके पास सत्ता है। हम गैर-जरूरी, साधारण लोग हैं, हम इतने ताकतवर नहीं कि उनका विरोध कर पाएँ।” उसके बाद, परमेश्वर में विश्वास के कारण मुझे स्कूल से निकाल दिया गया, और हमारे परिवार के साथ जो कुछ भी बुरा हुआ, उसके लिए मेरे पति ने परमेश्वर में मेरी आस्था को दोष दिया। जब वे किसी बात से परेशान होते, तो वे मुझे डाँटते, मेरा मजाक उड़ाते और फब्तियाँ कसते। ऐसा जीवन जीते-जीते, मेरा मन खिन्न हो गया, इसके अलावा, न मैं परमेश्वर के वचन पढ़ पाती थी और न ही भाई-बहनों से संपर्क कर पाती थी, तो मैं और भी दुखी हो गई, समझ में नहीं आता था कि ये दुर्दिन कब खत्म होंगे।

उस दौरान, मैं अक्सर परमेश्वर से प्रार्थना करती कि वह मुझे प्रबुद्ध करे, मेरा मार्गदर्शन करे, और मुझे अपनी इच्छा से अवगत कराए। एक दिन, मुझे परमेश्वर के वचनों का यह अंश याद आया : “बड़ा लाल अजगर परमेश्वर को सताता है और परमेश्वर का शत्रु है, और इसीलिए, इस देश में, परमेश्वर में विश्वास करने वाले लोगों को इस प्रकार अपमान और अत्याचार का शिकार बनाया जाता है...। चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। मुझे परमेश्वर के वचनों से समझ में आया कि चूँकि बड़ा लाल अजगर परमेश्वर से घृणा करता है और बुरी तरह से उसका विरोध करता है, इसलिए चीन में परमेश्वर के विश्वासी होने के नाते, कष्ट तो झेलने पड़ेंगे, लेकिन यह कष्ट सार्थक है। परमेश्वर इस तरह की यातना और मुसीबतों के जरिए हमारी आस्था को पूर्ण बनाता और हमें विवेक देता है। मेरे परमेश्वर में विश्वास के कारण ही सीसीपी ने मुझे हिरासत में रखा, स्कूल से निकलवाया, मुझे डराने के लिए परिवार के काम और भविष्य का इस्तेमाल किया और मुझे सच्चा मार्ग छोड़ने के लिए मजबूर किया। सीसीपी सचमुच दुष्ट है। मेरे पति ने मुझे परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने की कोशिश की क्योंकि वे उसके हिंसात्मक तरीकों से डर गए। सीसीपी की यातनाएँ झेलकर मुझे समझ आ गया कि उसका शैतानी सार भयंकर दुष्टता और सत्य से घृणा करने का है। मैंने सोचा, “सीसीपी मुझे जितना सताएगी, मैं उतना ही उसे नकारूँगी, उसका त्याग करूँगी और अंत तक परमेश्वर का अनुसरण करूँगी।” दस महीनों के बाद, मुझे भाई-बहनों से संपर्क करने का एक मौका मिल गया। जब मैं फिर से परमेश्वर के वचन पढ़ पाई, तो मुझमें उत्साह जगा और मुझे परमेश्वर के वचन और भी मूल्यवान लगे। मैं उन्हें जितना पढ़ती, खुद को उतना ही रोशन और मजबूत महसूस करती।

कई महीनों के बाद एक दिन, मेरी भक्ति-संबंधी पुस्तकें मेरे पति के हाथ लग गयीं। जब उन्हें पता चला कि मैं अभी भी परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ, तो उनका पारा चढ़ गया और ऐसा मुक्का मारा की मैं गिर पड़ी और कम से कम बीस बार और मेरे सिर पर मारा। मुझे तारे नज़र आने लगे, और मेरे सिर में कबूतर के अंडे जितना गोला निकल आया। उनके चेहरे पर निर्मम गुस्सा था। मेरी छह साल की बच्ची डर के मारे रोने लगी, “मॉम को मत मारो! मॉम को मत मारो! ...” वे मुझे गर्दन से पकड़कर दरवाजे के बाहर धकेलते हुए गुस्से से बोले, “अगर परमेश्वर में विश्वास रखना है तो निकल जाओ मेरे घर से!” जब मैंने देखा कि मेरे पति बदल गए हैं, क्रूर और बेरहम हो गए हैं और उन्हें हमारे बरसों साथ बिताए वक्त की भी परवाह नहीं है, तो मेरा दिल टूट गया। मुझे तब बर्दाश्त नहीं हुआ जब पति के गुस्से से मैंने अपनी बेटी को काँपते हुए देखा। जैसे ही वह मेरे पास आते, तो मेरी बेटी को लगता कि वह मुझे मारेंगे, और वह दौड़कर मुझे अपनी नन्हीं बाहों में भर लेती, और कहती, “आप मॉम से दूर रहो!” जब मैं ऊपर के कमरे में होती, और बेटी अपने पापा को सीढ़ियों की तरफ जाते देखती, तो वह चिल्लाती कि आप ऊपर मत जाइए। मैं हर बार अपनी बेटी के चेहरे पर डर और घबराहट देखती, इतनी छोटी उम्र में उसके मन पर घरेलू हिंसा का बुरा प्रभाव पड़ते देखती, तो मेरे दिल पर नश्तर चलने लगते, और मुझे बड़े लाल अजगर से और भी अधिक घृणा होने लगती। ये सारी आफत कम्युनिस्ट पार्टी की यातनाओं के कारण थी।

एक दिन, मेरे पति ने काम से वापस आकर, अपना फोन निकाला और गुस्से से बोले, “देखो, सीसीपी ने कितने सारे लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। अब भी परमेश्वर में विश्वास रखना चाहती हो? मरना चाहती हो क्या? परमेश्वर में विश्वास रखना है तो रखो, लेकिन अपने साथ मुझे और मेरी बेटी को मत घसीटो। अगर तुम फिर गिरफ्तार हो गई, तो हमारा जीना मुहाल हो जाएगा। अगर पता होता कि तुम परमेश्वर में आस्था के मार्ग पर चलोगी, तो तुमसे कभी शादी न करता।” अपने पति की बातों से मुझे बहुत चोट पहुँची। मुझे बीता वक्त याद आया, किस तरह उसने परमेश्वर में मेरी आस्था के कारण, मुझे एक अपराधी से भी कम आजादी दी थी, किस तरह वह मुझे अक्सर पीटता था और कैसे मेरी बेटी का नन्हा मन आहत होता था, मुझे एहसास हो गया था कि अब मेरे लिए समझौता करना मुश्किल है, मैंने अपने पति की तलाक की गुजारिश मान ली। जब उसने देखा कि मैं अपनी आस्था पर अड़ी हुई हूँ, तो उसने मेरे भाई को मुझे मनाने के लिए कहा। मेरा भाई मुझे बहुत चाहता था, और मुझ पर गर्व करता था, लेकिन चूँकि सीसीपी ने मुझे यातना दी थी, इसलिए मुझे स्कूल से निकाल दिया गया था और मेरी पढ़ाई भी रोक दी गई थी। अगर मेरा तलाक हो गया, तो मेरी कायापलट पर गाँव वाले मुझ पर हँसेंगे। मेरा भाई भी कितना निराश हो जाएगा! समझ नहीं आया कि भाई का सामना कैसे करूँ, मैंने मन ही मन परमेश्वर को पुकारा और प्रार्थना की कि मेरी रक्षा करे ताकि मैं उसकी गवाही दे सकूँ, और चाहे जो हो जाए कभी भी उसमें अपनी आस्था का त्याग न करूँ। फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश याद आया : “तुम में मेरी हिम्मत होनी चाहिए, जब उन रिश्तेदारों का सामना करने की बात आए जो विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारे पास सिद्धांत होने चाहिए। लेकिन तुम्हें मेरी खातिर किसी भी अन्धकार की शक्ति से हार नहीं माननी चाहिए। पूर्ण मार्ग पर चलने के लिए मेरी बुद्धि पर भरोसा रखो; शैतान के किसी भी षडयंत्र को काबिज़ न होने दो(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 10)। परमेश्वर ने ही इंसान को बनाया है, तो उसमें विश्वास रखना और उसका अनुसरण करना सहज और उचित है। हमें अपने चुने हुए मार्ग पर टिके रहना चाहिए और शैतान के हाथों बेवकूफ नहीं बनना चाहिए। एकदम करीबी लोगों को भी हस्तक्षेप नहीं करने देना चाहिए। मेरे भाई के आने के बाद, उसके सामने मेरे पति मेरी आलोचना करते रहे, कहा कि मुझे परमेश्वर में विश्वास नहीं करना चाहिए। मेरे पति मुझे शांत देखकर, मुझ पर हाथ उठाने ही जा रहे थे कि तभी भाई ने उसे रोक दिया। भाई ने मुझे समझाया, “देखो, तुम समझदार हो, अपने जीवन का फैसला तुम खुद ले सकती हो। लेकिन तलाक लेने से पहले यह सोच लो कि तुम्हारी बेटी का क्या होगा। अगर तुम मेरी बेटी की हालत देखो, तो तुम्हें समझ आएगा कि तुम्हारी बेटी भी। ...” थोड़ी देर के लिए भाई की बातों से मैं उदास हो गई, मुझे उसके तलाक का ख्याल आया, और कैसे आसपास के लोग उसका मजाक उड़ाते रहते हैं और उसे नीची नजरों से देखते हैं। बिन माँ का बच्चा बड़ा बदनसीब होता है। मेरी लिए चीजें जैसी थीं, उसे देखते हुए अगर मैं तलाक ले लूँ, तो मेरे पति को जरूर मेरी बेटी की कस्टडी मिल जाएगी और वह बिन माँ की बच्ची बन जाएगी। क्या स्कूल में उसके टीचर और सहपाठी उसके साथ भेदभाव करके उसका मजाक नहीं उड़ाएँगे? मेरे बिना, अगर वह अपने अविश्वासी पिता और दादा-दादी के साथ रहेगी, तो क्या वह परमेश्वर में विश्वास के मार्ग पर चल पाएगी? यह सोचते ही कि वो कितनी छोटी है, उसकी जुदाई का ख्याल मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ। उन दिनों मेरी हालत बहुत खराब थी, तो मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “परमेश्वर, मैं अपनी बेटी से अलग नहीं रह सकती। उसके भविष्य की सोचकर ही मैं दुखी हो जाती हूँ। मुझे प्रबुद्ध कर, राह दिखा, और मेरी रक्षा कर।”

उसके बाद, मैंने परमेश्वर के वचनों के दो अंश पढ़े : “जन्म देने और बच्चे के पालन-पोषण के अलावा, बच्चे के जीवन में माता-पिता का उत्तरदायित्व उसके बड़ा होने के लिए बस एक औपचारिक परिवेश प्रदान करना है, क्योंकि सृजनकर्ता के पूर्वनिर्धारण के अलावा किसी भी चीज़ का उस व्यक्ति के भाग्य से कोई सम्बन्ध नहीं होता। किसी व्यक्ति का भविष्य कैसा होगा, इसे कोई नियन्त्रित नहीं कर सकता; इसे बहुत पहले ही पूर्व निर्धारित किया जा चुका होता है, किसी के माता-पिता भी उसके भाग्य को नहीं बदल सकते। जहाँ तक भाग्य की बात है, हर कोई स्वतन्त्र है, और हर किसी का अपना भाग्य है। इसलिए किसी के भी माता-पिता जीवन में उसके भाग्य को नहीं रोक सकते या उस भूमिका पर जरा-सा भी प्रभाव नहीं डाल सकते जिसे वह जीवन में निभाता है। ऐसा कहा जा सकता है कि वह परिवार जिसमें किसी व्यक्ति का जन्म लेना नियत होता है, और वह परिवेश जिसमें वह बड़ा होता है, वे जीवन में उसके ध्येय को पूरा करने के लिए मात्र पूर्वशर्तें होती हैं। वे किसी भी तरह से किसी व्यक्ति के भाग्य को या उस प्रकार की नियति को निर्धारित नहीं करते जिसमें रहकर कोई व्यक्ति अपने ध्येय को पूरा करता है। और इसलिए, किसी के भी माता-पिता जीवन में उसके ध्येय को पूरा करने में उसकी सहायता नहीं कर सकते, किसी के भी रिश्तेदार जीवन में उसकी भूमिका निभाने में उसकी सहायता नहीं कर सकते। कोई किस प्रकार अपने ध्येय को पूरा करता है और वह किस प्रकार के परिवेश में रहते हुए अपनी भूमिका निभाता है, यह पूरी तरह से जीवन में उसके भाग्य द्वारा निर्धारित होता है। दूसरे शब्दों में, कोई भी अन्य निष्पक्ष स्थितियाँ किसी व्यक्ति के ध्येय को, जो सृजनकर्ता द्वारा पूर्वनिर्धारित किया जाता है, प्रभावित नहीं कर सकतीं। सभी लोग अपने-अपने परिवेश में जिसमें वे बड़े होते हैं, परिपक्व होते हैं; तब क्रमशः धीरे-धीरे, अपने रास्तों पर चल पड़ते हैं, और सृजनकर्ता द्वारा नियोजित उस नियति को पूरा करते हैं। वे स्वाभाविक रूप से, अनायास ही लोगों के विशाल समुद्र में प्रवेश करते हैं और जीवन में भूमिका ग्रहण करते हैं, जहाँ वे सृजनकर्ता के पूर्वनिर्धारण के लिए, उसकी संप्रभुता के लिए, सृजित प्राणियों के रूप में अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करना शुरू करते हैं(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। “लोगों की योजनाएँ और कल्पनाएँ उत्तम होती हैं; क्या वे नहीं जानते कि यह तय करना उनका काम नहीं है कि उनके कितने बच्चे हैं, उनके बच्चों का रंग-रूप, योग्यताएँ कैसी हैं, इत्यादि बच्चों का थोड़ा-सा भी भाग्य उनके हाथ में नहीं है? मनुष्य अपने भाग्य के स्वामी नहीं हैं, फिर भी वे युवा पीढ़ी के भाग्य को बदलने की आशा करते हैं; वे अपने भाग्य से बचकर नहीं निकल सकते, फिर भी वे अपने बेटे-बेटियों के भाग्य को नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं। क्या वे अपने आप को अपनी क्षमता से बढ़कर नहीं आंक रहे हैं? क्या यह मनुष्य की मूर्खता और अज्ञानता नहीं है?(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है III)। परमेश्वर के वचनों से मैं समझ गई कि परमेश्वर ने ही हर चीज बनाई है और सभी चीजों पर उसी का प्रभुत्व है। इंसान की नियति पूरी तरह परमेश्वर के ही हाथों में है। माता-पिता तो बस बच्चों की परवरिश करने के लिए हैं, लेकिन वे अपने बच्चे की नियति नहीं बदल सकते। मुझे लगता था कि मैं अपनी बेटी के जीवन को प्रभावित कर सकती हूँ, उसे काबू कर सकती हूँ, अपने साथ रखकर उसे खुशियाँ दे सकती हूँ और उसे परमेश्वर के मार्ग पर चला सकती हूँ। लेकिन दोबारा सोचा, तो लगा कि जब अपनी नियति पर ही मेरा कोई बस नहीं है, तो अपनी बेटी की नियति को मैं कैसे काबू कर सकती हूँ? मुझे याद आया कि अभी कुछ दिन पहले ही वह बीमारी से बेहोश हो गई थी, और मैं उसके दर्द को जरा भी कम नहीं कर पाई थी, सिर्फ तमाशबीन बनी खड़ी रही थी। मैं केवल अपनी बेटी की रक्षा के लिए परमेश्वर से प्रार्थना कर सकती हूँ। मेरी बेटी पहाड़ी पर से फिसलकर गिर गई थी। मैं कुछ भी नहीं कर पाई। लेकिन वह चमत्कारिक ढंग से वह चट्टान के सिरे पर एक सूखे पेड़ में अटककर बच गई। इन घटनाओं से मुझे एक बात समझ में आई, मैं हर तरह से अपनी बेटी का ख्याल रखती हूँ, तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वह कभी बीमार नहीं पड़ेगी या उस पर कोई मुसीबत नहीं आएगी। लोगों का जीवन परमेश्वर के हाथों में होता है। अपने पूरे जीवन में कोई व्यक्ति कितना कष्ट झेलेगा, कौन-सा मार्ग चुनेगा, यह बहुत पहले ही परमेश्वर द्वारा नियत कर दिया गया है। इन बातों पर लोग कुछ नहीं कह सकते, उनका कोई ज़ोर नहीं चलता। इन बातों को समझ लेने पर, मुझे राहत की साँस मिली। मुझे एहसास हुआ कि मुझे अपनी बच्ची को परमेश्वर के हाथों में सौंपकर, उसके प्रभुत्व और व्यवस्था को मान लेना चाहिए। एक सृजित प्राणी के तौर पर, मुझे यही करना चाहिए।

बाद में, जब मेरे पति को मेरे निश्चय का पता चला तो उसने मुझे तलाक देने का फैसला कर लिया। उन्होंने मुझे खाली हाथ घर से जाने को कह दिया और बेटी की कस्टडी मुझे देने से मना कर दिया। वह तो मेरा बेटी से मिलने का हक भी छीनना चाहते थे। मैंने जब संपत्ति के बँटवारे की बात की, तो उसने मेरे सिर पर स्टील का कप भी मारा, मैंने उसे हाथ से रोक तो दिया, लेकिन मेरी कलाई में चोट आ गई, इस कारण करीब दो महीनों तक मैं कोई भारी चीज नहीं उठा पाती थी। उन्होंने क्रूरता से मेरी पीठ पर भी कई वार किए थे, जिस वजह से मैं महीने भर तक बुरी तरह खाँसती रही। इतना ही नहीं, उसने मेरी कमाई के हजारों रुपए भी हड़प लिए। बोले, “तुम परमेश्वर को मानती हो न? तो जाओ अपने परमेश्वर से खाना और कपड़े माँगो।” अपने पति की घटिया और क्रूर हरकतें देखकर, मुझे परमेश्वर के वचन याद आए : “अगर कोई व्यक्ति परमेश्वर के नाम का उल्लेख किए जाने पर कुपित हो जाता है और क्रोध से फनफना उठता है, तो क्या उसने परमेश्वर को देखा है? क्या वह जानता है कि परमेश्वर कौन है? वह नहीं जानता कि परमेश्वर कौन है, उस पर विश्वास नहीं करता और परमेश्वर ने उससे बात नहीं की है। परमेश्वर ने उसे कभी परेशान नहीं किया है, तो फिर वह गुस्सा क्यों होता है? क्या हम कह सकते हैं कि यह व्यक्ति दुष्ट है? दुनिया के रुझान, खाना, पीना और सुख की खोज करना, और मशहूर हस्तियों के पीछे भागना—इनमें से कोई भी चीज ऐसे व्यक्ति को परेशान नहीं करेगी। किंतु ‘परमेश्वर’ शब्द या परमेश्वर के वचनों के सत्य के उल्लेख मात्र से ही वह आक्रोश से भर जाता है। क्या यह दुष्ट प्रकृति का होना नहीं है? यह ये साबित करने के लिए पर्याप्त है कि इस मनुष्य की प्रकृति दुष्ट है(वचन, खंड 2, परमेश्वर को जानने के बारे में, स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है V)। परमेश्वर के वचनों से मुझे अपने पति की परमेश्वर-विरोधी दुष्ट प्रकृति समझ आ गई। शुरू में, जब मेरे पति को सर्वशक्तिमान परमेश्वर में मेरी आस्था के बारे में पता चला, तो वे नाराज हो गए, उन्होंने परमेश्वर के वचनों की सारी पुस्तकें फाड़ दी थीं। बाद में, उन्होंने मुझे पागलों की तरह परमेश्वर में विश्वास रखने से रोकने की कोशिश की, वे मुझसे किसी कैदी की तरह पेश आते थे, मेरी आजादी छीन ली और मुझे बुरी तरह से पीटने लगे। लगता था कि वो मुझे मार डालना चाहते हैं। तलाक के बाद, उन्होंने मेरी सारी संपत्ति हड़प ली ताकि मैं मायूसी में डूब जाऊँ और मेरे लिए जिंदगी मुहाल कर दी। उनका मकसद था कि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ और उसे नकार दूँ। अब मैं अपने पति का प्रकृति सार अच्छी तरह समझ गई थी। वह परमेश्वर से घृणा और उसका विरोध करने वाला शैतान है। मैं और मेरे पति अलग-अलग भाषा बोलते थे। उनके साथ जीते हुए, मुझे कोई आजादी नहीं थी, मुझे मारा-पीटा जाता था और मुझ पर पाबंदियाँ थीं। यह अत्यंत पीड़ादायक था! यह घर कैसे हो सकता है? ये तो बेड़ियाँ हैं। नरक है।

तलाक के बाद, मुझ पति की रोक-टोक और पाबंदियाँ नहीं थीं। मैं सभाओं में जा सकती थी, आराम से परमेश्वर के वचन पढ़ सकती थी। मैंने तुरंत कलीसिया में कर्तव्य भी निभाने लगी। मुझे राहत और मुक्ति का एहसास हुआ। मुझे बचाने के लिए परमेश्वर का धन्यवाद!

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