45. पागलखाने से बच निकलना

शियाकाओ, चीन

जनवरी 2012 में मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर का अंत के दिनों का सुसमाचार स्वीकार किया। विश्वास करने के बाद, अपने बिज़नेस में अत्यधिक काम के चलते मुझे कमर की मांसपेशियों में जो भारी ऐंठन और कंधे में अकड़न की समस्या थी, उसमें चमत्कारिक ढंग से सुधार आया। मेरे पति और बेटे रोमांचित थे, पहले मेरे हाथों में इतना ज्यादा दर्द होता था कि मैं बड़ी मुश्किल से उन्हें उठा पाती थी, बालों में कंघी कर पाना या कपड़े पहन पाना भी मुश्किल था, और दवा से कोई फायदा नहीं हो रहा था। मुझे ठीक होता देखकर उन्होंने मेरी आस्था का बहुत समर्थन किया। लेकिन कई महीने बाद मेरे पति ने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा ऑनलाइन फैलाए गए कुछ झूठ देखे, जो उसे बदनाम कर उस पर हमला करते और उसकी निंदा करते थे, और तब से उन्होंने मेरी आस्था का विरोध करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा, “सरकार तुम्हारे इस परमेश्वर के खिलाफ है। अगर तुम इसके लिए गिरफ्तार हो गई, तो इससे हमारे बेटे के करियर पर असर पड़ेगा। तुम्हें इसे छोड़ देना चाहिए।” एक बार मैं सुसमाचार साझा करके वापस लौटी ही थी, कि उन्होंने चेहरे पर गुस्से के भाव लाते हुए कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा ब्रिगेड ने मुझे बुलाकर पूछा कि क्या तुम एक विश्वासी हो, अगर हाँ, तो तुम्हें परमेश्वर संबंधी अपनी किताबें सौंपनी होंगी। उन्होंने मुझे तस्वीरों का एक पुलिंदा दिखाकर लोगों की पहचान करने को भी कहा। अगर तुमने विश्वास करना जारी रखा, तो तुम्हें जरूर गिरफ्तार कर लिया जाएगा।” मैंने जवाब दिया, “परमेश्वर में आस्था जीवन में सही रास्ता है, और मैंने कुछ भी गैरकानूनी नहीं किया है। उन्हें मुझे गिरफ्तार करने का कोई अधिकार नहीं है!” उन्होंने कहा, “तुम बहुत भोली हो! सीसीपी तुम जैसे विश्वासियों को खास तौर पर तंग करती है। अगर तुम विश्वास पर कायम रही, तो वह तुम्हें गिरफ्तार करके मार-पीट सकती है। फिर तुम देखोगी कि वे कितने खतरनाक हैं तुम अपनी आस्था छोड़नी होगी!” मेरे पति मेरी आस्था के विरोधी हो गए थे, इस कारण इस रास्ते पर चलना यकीनन बहुत मुश्किल हो जाएगा। मैंने मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना करके उससे आगे के रास्ते पर मेरा मार्गदर्शन करने की विनती की। मैंने यह भी संकल्प लिया कि भले ही मेरे पति किसी भी तरह मेरे आड़े आएँ, मैं अपनी आस्था कभी नहीं छोड़ूँगी।

दिसंबर 2012 में एक दिन, मुझे गिरफ्तार कर हिरासत में ले लिया गया, क्योंकि किसी दुष्ट व्यक्ति ने मेरे सुसमाचार का प्रचार करने की शिकायत कर दी थी। जिस दिन उन्होंने मुझे रिहा किया, एक अफसर ने मुझे चेतावनी दी, “घर जाकर, बेहतर होगा तुम अपनी आस्था छोड़ दो। वरना तुम अगली बार पकड़ी गई तो तुम यकीनन जेल जाओगी!” करीब आधे घंटे बाद मेरे पति मुझे लेने आए, वे बहुत बेचैन थे और उनके चेहरे पर अजीब-से भाव थे। वे सीधे पुलिस-कार्यालय में चले गए। वहाँ अंदर उनके बीच क्या बातचीत हुई, मुझे कुछ पता नहीं चला। हम घर पहुंचे तो मैंने देखा, मेरा भाई, बहन और जीजाजी सभी आँगन में खड़े हैं। मेरा भाई नगर स्तर का नेता था, और उसने कम्युनिस्ट पार्टी के तरह-तरह के झूठ देखे थे, जो उसने ऑनलाइन फैलाए थे, जिनमें कलीसिया की निंदा और तिरस्कार किया गया था। वह मुझे आस्था छोड़ने के लिए मनाने लगा, और कहा कि अगर मैंने इसे नहीं छोड़ा तो मेरे बेटे पर भी इसका बुरा असर पड़ेगा, और खुद वह भी फँस सकता है, इसके कारण वह अपना अफसर का पद खो देगा। मैं जानती थी कि वे लोग पक्के से मुझ पर आस्था छोड़ने के लिए दबाव डालने आए हैं, इसलिए मैंने जल्दी से प्रार्थना करके परमेश्वर से इन बाधाओं से मेरी रक्षा करने की विनती की। मेरे भाई ने मुस्कराते हुए कहा, “तुम्हें यह परमेश्वर वाला काम बंद कर देना चाहिए। घर पर तमीज़ से रहो। अपने परिवार का ख्याल रखना तुम्हारे लिए सबसे अच्छा है। तुम्हारे बेटे के पास अच्छी नौकरी है, अगर तुम ये सब करती रही, तो वह खतरे में पड़ जाएगी। वह तुमसे हमेशा घृणा करेगा।” फिर मेरे जीजाजी हाथ यहाँ-वहाँ घुमाते हुए मुझ पर चिल्लाने लगे, “परमेश्वर में आस्था? कहाँ है परमेश्वर? मैं उसमें विश्वास नहीं रखता, फिर भी अच्छी-खासी जिंदगी जी रहा हूँ!” फिर मेरे पति ने गुस्से से कहा, “हमारे बेटे के लिए अच्छी नौकरी पाना, सबका ध्यान पाना आसान नहीं था, अगर तुम्हारी आस्था के कारण उसकी नौकरी चली गई तो?” मेरी बहन ने आकर मुझ पर दबाव डालते हुए कहा, “तुझे यह छोड़ देना चाहिए। तेरे पति तुझे बहुत अच्छे से रखते हैं, तेरे बेटे के पास अच्छी नौकरी है। यह काफी होना चाहिए। बस, अपने परिवार का ठीक से ध्यान रख।” यह सब सुनकर मैंने सोचा, “मैंने और मेरे पति ने हमारेबेटे की शिक्षा की खातिर पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत की थी, और अब उसे एक अच्छी नौकरी मिल गई है, जो कोई आसान बात नहीं है। सीसीपी मेरे बेटे के काम की धमकी देकर मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाना चाहती है, अगर मेरी आस्था के कारण वाकई उसकी नौकरी छूट गई, तो क्या वो पूरी जिंदगी मुझसे नफरत नहीं करेगा?” लेकिन अगर मैंने अपनी आस्था छोड़ दी, तो यह परमेश्वर को धोखा देना होगा! विश्वासी बनकर मैंने कुछ सत्यों को समझा था, और मैं जानती थी कि एक सृजित प्राणी होने के नाते परमेश्वर की आराधना करना एकदम स्वाभाविक और उचित है, और यही चलने का सही मार्ग है। परमेश्वर ने मेरे घाव भी भरे हैं। परमेश्वर द्वारा बरसाए इतने आशीषों का मैंने आनंद लिया है, मैं इतनी विवेकशून्य नहीं हो सकती। इसलिए, मैंने अपने दिल में परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरा परिवार मुझे मेरी आस्था छोड़ने पर मजबूर करने की कोशिश कर रहा है, और मुझे बहुत बुरा लग रहा है। मुझे आस्था और शक्ति दो।” फिर मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “परमेश्वर द्वारा मनुष्य के भीतर किए जाने वाले कार्य के प्रत्येक चरण में, बाहर से यह लोगों के मध्य अंतःक्रिया प्रतीत होता है, मानो यह मानव-व्यवस्थाओं द्वारा या मानवीय विघ्न से उत्पन्न हुआ हो। किंतु पर्दे के पीछे, कार्य का प्रत्येक चरण, और घटित होने वाली हर चीज, शैतान द्वारा परमेश्वर के सामने चली गई बाजी है, और लोगों से अपेक्षित है कि वे परमेश्वर के लिए अपनी गवाही में अडिग बने रहें। उदाहरण के लिए, जब अय्यूब को आजमाया गया था : पर्दे के पीछे शैतान परमेश्वर के साथ दाँव लगा रहा था, और अय्यूब के साथ जो हुआ वह मनुष्यों के कर्म थे, और मनुष्यों का विघ्न था। परमेश्वर द्वारा तुम लोगों में किए गए कार्य के हर कदम के पीछे शैतान की परमेश्वर के साथ बाजी होती है—इस सब के पीछे एक संघर्ष होता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, केवल परमेश्वर से प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है)। मैं समझ गई कि मेरे परिवार का मेरे खिलाफ एकजुट होना, वास्तव में शैतान द्वारा मुझे भटकाना और मुझ पर हमला करना था। मेरा परिवार पार्टी की अफवाहों और झूठ से प्रभावित हो गया था, और मुझे डराने के लिए मेरे बेटे की नौकरी का इस्तेमाल कर रहा था, ताकि मैं परमेश्वर को धोखा दे दूँ। मैं शैतान की चाल में नहीं फँस सकती थी, मुझे परमेश्वर की गवाही देनी थी। मेरे बेटे के पास जो भी नौकरी है, वह पूरी तरह से परमेश्वर के शासन और व्यवस्थाओं की बदौलत है। कोई भी उसे बदल नहीं सकता। इसलिए मैंने कहा, “आस्था रखना सही और उचित है, और यह जीवन का सही मार्ग है। मैंने कोई नियम नहीं तोड़ा है। कम्युनिस्ट पार्टी का मुझे गिरफ्तार करना और आप सबको इसमें घसीटना पार्टी की दुष्टता है। उसके साथ मिलकर आपको मेरा दमन नहीं करना चाहिए, मेरी आस्था में आड़े नहीं आना चाहिए। आप सभी जानते हैं, परमेश्वर में विश्वास रखने से पहले मेरे घाव इतने गहरे थे कि मैं खुद उनका खयाल नहीं रख पाई थी। आस्था हासिल करने के बाद मैं बिलकुल ठीक हो गई, और यह सब परमेश्वर का अनुग्रह था। अगर मैंने परमेश्वर को धोखा दिया, तो क्या मेरे पास जरा-सा भी ज़मीर होगा। आस्था रखने के बाद न केवल मेरे सभी घाव ठीक हो गए, बल्कि मैंने बहुत-से सत्य भी समझे, मेरा हृदय परिपूर्ण है और मैंने बहुत अधिक आनंद का अनुभव किया है। ये सभी बेहतरीन चीजें हैं। लेकिन तुम इसे नहीं समझते, और तुम मेरी आस्था का विरोध करते हुए कम्युनिस्ट पार्टी के साथ खड़े हो। तुम संभ्रमित हो, और सही-गलत का भेद नहीं कर सकते! आप लोग चाहे जितना भी विरोध करें, मैं अपनी आस्था के प्रति प्रतिबद्ध हूँ।” मेरे पति पूरी तरह आवेश में आकर मुझ पर उँगली उठाते हुए बोले, “तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता!” फिर उन्होंने और मेरे भाई ने एक-दूसरे की तरफ देखा, और वे साथ-साथ घर के पीछे चले गए। मैं बड़ी उलझन में थी। ऐसे नजर बचाकर ये क्या बातें कर रहे हैं? जल्दी ही, मेरा भाई वापस आया और उसने मेरी बहन की ओर देखा, फिर एक रहस्यमय मुस्कान के साथ बोला, “चलो, कुछ खाने के लिए लेकर आते हैं!” मेरी बहन और उसका दामाद दोनों मेरे पास आ गए, मेरी बगल में खड़े होकर मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कार की ओर खींचा। मुझे लगा, कुछ तो गड़बड़ है। मैंने उनके हाथ झटक दिए, और कहा कि मुझे नहीं जाना, लेकिन उन्होंने बस मुझे कार के अंदर धकेल दिया। करीब आधे घंटे चलने के बाद कार रुक गई, देखकर मुझे अचरज हुआ कि हम एक मानसिक अस्पताल में थे। मेरे भाई और पति कार से उतर गए। मैं भाग जाना चाहती थी, लेकिन उन्होंने मुझे कार में बंद कर दिया था। मैंने उनको अस्पताल के कार्यालय की ओर जाते देखा, तो मैं नाराज होकर घृणा से भर गई। मुझे यकीन नहीं हुआ कि वे मुझे ऐसी जगह ले आए हैं। वे कितने बेरहम हैं। तथाकथित प्रियजन! मुझे याद आया कि जब मेरे पति मुझसे पुलिस-थाने में मिले थे, तब उन्होंने अकेले पुलिसवाले से थोड़ी देर बात की थी, और मेरे परिवार के लोग खाना खाने जाने की बात पर कैसे एक-दूसरे को आँखों-ही-आँखों में इशारे कर रहे थे। मुझे एहसास हुआ कि शायद यह योजना पुलिस ने बनाई होगी। वे मुझसे परमेश्वर को धोखा दिलवाने के लिए ये सब कर रहे थे। मैं बहुत परेशान थी, आँखों में आँसू लिए मैंने गुस्से से अपनी बहन से कहा, “मैं परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ, इसलिए आप सब मुझे यातना देने के लिए यहाँ लाए हैं। पागल तो आप सब हैं! आप जो कर रहे हैं, वह स्वर्ग का अपमान है और समझ से परे है। आपको इसके लिए दंड मिलेगा!” तभी अस्पताल से कुछ अर्दली मुझे बाँधने के लिए कुछ बेड़ियाँ लेकर बाहर आए। मेरे पति, और भाई बस वहाँ खड़े मुझे देखते रहे, एक शब्द भी नहीं बोले। मेरा दिल टूट चुका था, मैं बिलकुल मायूस थी। मैंने कभी बुरे-से-बुरे सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि मेरे पति और भाई, सिर्फ अपने हितों की रक्षा के लिए, फँसाए जाने से बचने के लिए, वास्तव में कम्युनिस्ट पार्टी के झूठ सुनेंगे और मुझे एक मानसिक अस्पताल में डाल देंगे, जहाँ मेरे बिलकुल स्वस्थ होने के बावजूद, मेरे जीने-मरने का खयाल किए बिना मुझे यातना दी जाएगी। ये सब प्रियजन नहीं—दानव हैं! यह सोचकर मैं अपने आँसू नहीं रोक पाई। मैंने उनकी तरफ देखना भी नहीं चाहती थी। मैंने अर्दलियों से गुस्से से कहा, “मुझे कोई बीमारी नहीं है! ये मुझे फँसाकर यहाँ लाए हैं, और मेरा एक मानसिक रोगी की तरह इलाज करवा रहे हैं, सिर्फ इसलिए कि मैं परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ। आपने इस पर गौर भी नहीं किया है। आप मुझे बाँध क्यों रहे हैं?” लेकिन उन्होंने मेरी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होंने मुझे गंभीर रूप से विक्षिप्त मरीज के रूप में दाखिल कर लिया और मुझे वार्ड 1 में बंद कर ताला लगा दिया।

वार्ड 1 में सभी गलियारों, दरवाजों और खिड़कियों में धातु की छड़ें लगी थीं। मेरा कमरा तकरीबन 40-50 वर्गफुट का था, और बिलकुल खाली था। उसमें बस एक खाट और उस पर एक गंदी-सी रजाई पड़ी हुई थी, जिस पर पेशाब के धब्बे थे। पेशाब की बहुत तेज बदबू आ रही थी। हॉल में बस एक ही बाथरूम था जो स्त्री-पुरुष दोनों के लिए था, उस पर भी ताला लगा था। जब भी बाथरूम जाने की जरूरत पड़ती, मुझे अर्दली को ढूँढ़ना पड़ता, अगर वे व्यस्त होते, तो दरवाजा न खोलते। मुझे बस रोके रहना पड़ता। अस्पताल में लगातार मनसिक रोगियों के रोने की आवाज गूँजती रहती। कभी-कभी वे गाना गाने, चीखने या चिल्लाने लगते, “मुझे बाहर निकालो! मुझे बाहर निकालो!” वे बिना रुके धातु की छड़ों को ठोकते-पीटते भी रहते। यूँ लगता, जैसे पूरी जगह रोते, चीखते पिशाचों और भेड़ियों से भरी हुई है। इससे मेरा खून जम गया। “इंसानों के लिए यह कैसी जगह है? जैसे ही मुझे पुलिस ने रिहा किया, मेरे अपने परिवार ने मुझे यातना दिलवाने के लिए पागलखाने में डाल दिया। यह आसमान से गिरकर खजूर में अटकने वाली बात थी। मैं इस तरह कैसे जी सकती हूँ? अगर सीसीपी का उत्पीड़न न होता तो मेरा परिवार मुझसे ऐसे पेश नहीं आता।” मैंने इस बारे में जितना ज्यादा सोचा, उतना ही खराब महसूस किया, और मैं दुखी होकर रोने लगी। रोते हुए मैं सभाओं में हम भाई-बहनों के भजन गाने और परमेश्वर का गुणगान करने के बारे में सोचने लगी। मैं परमेश्वर के वचन पढ़ने और उन लोगों के साथ अपना कर्तव्य निभाने को बेताब थी, लेकिन मैं बाहर नहीं जा सकती थी, मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि मुझे यहाँ कितने दिन रखा जाएगा। मेरे कष्ट कब खत्म होंगे? मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मैं मानसिक रोगियों के साथ बंद हूँ। बहुत दुखी हूँ। हे परमेश्वर, मैं नहीं जानती इससे कैसे उबरूँ। मुझे रास्ता दिखाओ।” प्रार्थना करने के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का ये अंश याद आया : “चूँकि परमेश्वर का कार्य उस देश में आरंभ किया जाता है जो परमेश्वर का विरोध करता है, इसलिए परमेश्वर के कार्य को भयंकर बाधाओं का सामना करना पड़ता है, और उसके बहुत-से वचनों को संपन्न करने में समय लगता है; इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के परिणामस्वरूप लोग शुद्ध किए जाते हैं, जो कष्ट झेलने का भाग भी है। परमेश्वर के लिए बड़े लाल अजगर के देश में अपना कार्य करना अत्यंत कठिन है—परंतु इसी कठिनाई के माध्यम से परमेश्वर अपने कार्य का एक चरण पूरा करता है, अपनी बुद्धि और अपने अद्भुत कर्म प्रत्यक्ष करता है, और लोगों के इस समूह को पूर्ण बनाने के लिए इस अवसर का उपयोग करता है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, क्या परमेश्वर का कार्य उतना सरल है जितना मनुष्य कल्पना करता है?)। मैं समझ गई कि चीन में, विश्वासियों को सीसीपी की बहुत-सी यातना झेलनी होगी, क्योंकि पार्टी परमेश्वर की घोर दुश्मन है, और यह लोगों को आस्था रखने और परमेश्वर का अनुसरण करने नहीं देगी। पार्टी विश्वासियों को पागलों की तरह गिरफ्तार कर सता रही है, और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की निंदा कर रही और हर प्रकार की अफवाहें और झूठ फैला रही है, ताकि उन लोगों को धोखा दे सके जो सत्य नहीं जानते। यह विश्वासियों के परिवार के सदस्यों को फँसा देती है, उनकी नौकरियाँ और करियर की संभावनाएँ खत्म कर देती है, विश्वासियों के परिवार में उनके प्रति घृणा पैदा करवाती है, जिससे विश्वासी मजबूर होकर परमेश्वर को धोखा दे दें। पार्टी घृणित रूप से दुष्ट है! पार्टी द्वारा इस तरह की यातना झेलकर भले ही मुझे बहुत दर्द हुआ है, पर इसने मुझे कम्युनिस्ट पार्टी के दुष्ट सार को समझने में समर्थ बनाया है, और यह परमेश्वर द्वारा मेरी आस्था की परीक्षा भी है। इसलिए मुझे परमेश्वर का सहारा लेकर उसकी गवाही देनी थी। इस विचार पर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करके, उससे मेरा साथ देने और दुष्ट शैतान और दुष्टात्माओं की यातना से मेरी रक्षा करने की विनती की। बड़ा लाल अजगर मेरा जितना ज्यादा दमन करेगा, उतनी ही परमेश्वर में मेरी आस्था बढ़ेगी।

दूसरे दिन एक अर्दली मेरे लिए दवा लाया। मैं गुस्सा होकर उससे बोली, “मुझे कोई बीमारी नहीं है। मैं बिलकुल सामान्य हूँ, मैं इसे नहीं खाऊँगी!” मैं दवा न लेने पर अड़ी रही। तीसरे दिन, एक गंभीर रूप से विक्षिप्त व्यक्ति को दाखिल किया गया, और मुझे वार्ड 3 में भेज दिया गया, क्योंकि वार्ड 1 में कोई अतिरिक्त बिस्तर नहीं था। उस वार्ड पर उतना सख्त नियंत्रण नहीं था—मैं गतिविधियों के लिए अपने कमरे से बाहर जा सकती थी। मैंने देखा कि कुछ मरीजों की पतलूनें इतनी फटी हुई थीं कि उनके नितंब दिख रहे थे, उनके चेहरे और गर्दन बहुत मैले थे, और उनके बाल किसी चिड़िया के घोंसले जैसे थे। कुछ लोगों के कपड़े बहुत गंदे और तेल से सने लगे रहे थे—देखकर उलटी आती थी। उस वार्ड में मेरे कमरे में दो और महिलाएँ थीं। एक की आँखें निर्जीव और भावहीन थीं, वह कभी-कभी बेतरतीब ढंग से खुद से ही बड़बड़ाने लगती थी। दूसरी हर सुबह धूम्रपान करते हुए गलियारे में लगातार चलती रहती थी। उनसे मैं बहुत डर गई। मैं डरती थी कि दौरा पड़ने पर वे बेध्यानी में मेरी पिटाई न कर दें या मेरे बाल न खींच लें, या कहीं मेरे सोते समय मेरा गला दबाकर मुझे मार न डालें, इसलिए रात में कभी भी मैं गहरी नींद नहीं सो पाई। हर बार, मैं मन-ही-मन परमेश्वर से प्रार्थना कर मेरी रक्षा करने की विनती करती। थोड़ी आरामदेह नींद के लिए मैं इसी तरह विश्राम कर पाती थी। हर दिन एक अर्दली आकर एक-एक करके हमें दवा दे जाता। वो हमें देखता रहता, इसलिए मुझे द्व लेनी पड़ती। कभी-कभी जब उसका ध्यान न होता, तो मैं उसे फेंक देती। एक दूसरी मरीज ने मुझे ऐसा करते देख लिया, और मुझसे बोली, “तुम ऐसा नहीं कर सकती। एक बार एक अर्दली ने मुझे दवा फेंकते हुए पकड़ लिया था। उसने मुझे कई थप्पड़ जड़ दिए, फिर उसने प्लास्टिक की एक नली लेकर मेरी नाक में डाल दी, और उसके जरिये जबरन दवा पिला दी। बहुत दर्द हुआ था।” मैं नहीं जानती थी कि उस औरत ने अर्दलियों को मेरे दवा फेंकने के बारे में बताया था या नहीं, लेकिन इसके बाद से अस्पताल के कर्मचारी मरीजों के दवा लेते समय उन पर कड़ी नजर रखने लगे। अर्दली हम पर नजर रखने के लिए एक दो फीट ऊँचे चौकोर मेज पर खड़े हो जाते, हमारा मुँह खुलवाकर फ्लैश-लाइट लेकर यह देखते कि हमने अपनी दवा निगल ली है या नहीं। मेरे पास दवा खाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं रहा।

कुछ दिन बाद कमरों की जाँच के लिए अस्पताल के निदेशक आए, और एकाएक मुझसे पूछ बैठे, “क्या महाआपदा 21 तारीख को आएगी?” मुझे बहुत अजीब लगा, मैंने कहा, “आपदा कब आएगी, यह तो सिर्फ परमेश्वर बता सकता है।” उसका जवाब था, “मैं देख सकता हूँ कि तुम्हारी सेहत ठीक नहीं है। हमें तुम्हारी दवा की खुराक बढ़ानी पड़ेगी।” इसके बाद मुझे एक के बजाय दो गोलियाँ खानी पड़ीं। मैं आगबबूला हो गई। निदेशक को कोई अंदाजा नहीं था कि मैं सचमुच बीमार हूँ या नहीं, बस उसने यूँ ही मेरी खुराक दोगुनी कर दी। वह इंसान के जीवन की कद्र नहीं करता था। अस्पताल बीमारी ठीक करने की जगह होनी चाहिए, लेकिन यह कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा ईसाइयों को सताए जाने की जगह बन गया था। पार्टी मेरी आस्था के कारण दुर्भावना के साथ मुझे हानि पहुँचा रही थी। मुझे उससे बहुत ज्यादा घृणा हो गई।

दवा लेने के दस दिन बाद मैं बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस करने लगी, यहाँ तक कि मेरे लिए चलना भी मुश्किल हो गया। मैं सोचने लगी कि कैसे कुछ ही दिन दवा लेकर मेरा यह हाल हो गया। मुझे डर था कि अगर ऐसा ही चलता रहा, तो बीमार न होकर भी मेरी तबीयत बिगड़ जाएगी। और हर दिन इन सब मानसिक रोगियों के बीच दुखी और उदास रहकर मैं भी जल्दी ही इस यातना से मानसिक रोग का शिकार हो जाऊँगी। उस परिवेश में मैं परमेश्वर से बहुत प्रार्थना करती थी, उससे मार्गदर्शन और आस्था माँगती थी। मुझे याद है, एक बार प्रार्थना के बाद मैंने प्रभु यीशु द्वारा लाजर को उसकी मजार से निकाले जाने की बात याद की। वह चार दिन पहले मर चुका था, और उसके शव से दुर्गंध आ रही थी, लेकिन परमेश्वर ने कुछ ही वचनों से उसे फिर से जीवित कर दिया। परमेश्वर सर्वशक्तिमान है। वह मनुष्य के भाग्य पर नियंत्रण रखता है। क्या मेरा जीवन भी परमेश्वर के हाथ में नहीं है? मैंने परमेश्वर के इस वचन को याद किया : “संसार में घटित होने वाली समस्त चीजों में से ऐसी कोई चीज नहीं है, जिसमें मेरी बात आखिरी न हो। क्या कोई ऐसी चीज है, जो मेरे हाथ में न हो?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के वचन, अध्याय 1)। यह दवा मुझे पागल तो नहीं बना देगी, और मैं कब बाहर निकल पाऊँगी, ये सब परमेश्वर के हाथ में है। मुझे अपनी आस्था और परमेश्वर का सहारा लेकर इससे उबरना होगा। इस विचार ने मुझे आस्था दी और अब मुझे डर लगना बंद हो गया।

दो-तीन हफ्ते बाद, मैंने अपने परिवार को फोन कर देखना चाहा कि क्या मैं यहाँ से जल्दी निकल सकूँगी। अगली सुबह मेरे पति गाड़ी से अस्पताल पहुँचे। मैंने उनसे कहा कि यह इंसानों के रहने लायक जगह नहीं है, यहाँ लंबे समय तक रहने से स्वस्थ इंसान भी पागल हो जाएगा, उन्हें मुझे यहाँ से ले जाना चाहिए। उन्होंने इस पर चर्चा करने के लिए मेरे भाई को फोन किया, और मैंने अपने भाई को फोन पर यह कहते सुना, “उसे अपनी आस्था छोड़नी होगी! पहले उससे उसकी आस्था छोड़ने की गारंटी पर हस्ताक्षर ले लीजिए, फिर वह बाहर आ सकती है। अगर वह अपनी आस्था पर कायम रहना चाहे, तो वहीं मर सकती है।” मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा भाई ऐसी बात कह सकता है। यह सच में बहुत डरावनी बात थी। यह कैसा परिवार है? यह तो एक दानव था! मेरे पति का मुझे बाहर निकालने का कोई इरादा न देखकर, मैंने सोचा, “अगर उन्होंने मुझे यहाँ छोड़ दिया, और मैं कभी बाहर न निकल पाई तो मैं अपनी आस्था का अभ्यास कैसे करूँगी?” इसलिए मैंने सहमत होने का नाटक किया। घर आने के बाद, वो हर दिन लगातार मुझ पर नजर रख रहे थे। वे मुझे सभाओं में नहीं जाने देते थे, परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ने देते थे। कभी-कभी दोपहर को मेरे झपकी लेने के दौरान वे यह देखने अंदर आते कि कहीं मैं परमेश्वर के वचन तो नहीं पढ़ रही। जब उनका ध्यान न होता, तब मैं बस अपने एमपी5 प्लेयर पर चुपचाप परमेश्वर के वचन सुन लेती थी। फिर एक सुबह उसे चार्ज करते समय उन्होंने मुझे पकड़ लिया। उन्होंने उसे छीन लिया और गुस्से से मुझ पर चिल्ला पड़े, “तुम अब भी विश्वास कैसे रख सकती हो? अगर तुम्हें पकड़कर जेल ले जाया गया, और तुम्हारे कारण हमारे बेटे की नौकरी चली गई, तो तुम उसे क्या मुँह दिखाओगी? अब तुम्हें परमेश्वर का अनुसरण करने की इजाजत नहीं है!” यह कहकर उन्होंने मुझे जोर से धक्का दिया, मेरा सिर जोर से पलंग के किनारे से जा टकराया। मैंने सोचा : मैं सिर्फ परमेश्वर में विश्वास रखती हूँ। मैंने कोई गलत काम नहीं किया है, लेकिन वे मुझसे ऐसा बरताव कर रहे थे। उन्होंने न सिर्फ मुझे एक अस्पताल में डाल दिया, बल्कि अब वे मुझ पर हाथ भी उठा रहे हैं, और मुझे परमेश्वर के वचन नहीं पढ़ने दे रहे। बहुत बुरा महसूस करते हुए, मैंने परमेश्वर से प्रार्थना की, “हे परमेश्वर, मेरे पति मुझे धमका रहे हैं, मैं कमजोर हूँ। मैं नहीं जानती, इस मार्ग पर कैसे चलती रहूँ। मेरा मार्गदर्शन करो!” प्रार्थना के बाद, मुझे परमेश्वर के वचनों का ये अंश याद आया : “आज अधिकतर लोगों के पास यह ज्ञान नहीं है। वे मानते हैं कि कष्टों का कोई मूल्य नहीं है, कष्ट उठाने वाले संसार द्वारा त्याग दिए जाते हैं, उनका पारिवारिक जीवन अशांत रहता है, वे परमेश्वर के प्रिय नहीं होते, और उनकी संभावनाएँ धूमिल होती हैं। कुछ लोगों के कष्ट चरम तक पहुँच जाते हैं, और उनके विचार मृत्यु की ओर मुड़ जाते हैं। यह परमेश्वर के लिए सच्चा प्रेम नहीं है; ऐसे लोग कायर होते हैं, उनमें धीरज नहीं होता, वे कमजोर और शक्तिहीन होते हैं! परमेश्वर उत्सुक है कि मनुष्य उससे प्रेम करे, परंतु मनुष्य जितना अधिक उससे प्रेम करता है, उसके कष्ट उतने अधिक बढ़ते हैं, और जितना अधिक मनुष्य उससे प्रेम करता है, उसके परीक्षण उतने अधिक बढ़ते हैं। ... इस प्रकार, इन अंत के दिनों में तुम लोगों को परमेश्वर की गवाही देनी चाहिए। चाहे तुम्हारे कष्ट कितने भी बड़े क्यों न हों, तुम्हें बिलकुल अंत तक चलना चाहिए, यहाँ तक कि अपनी अंतिम साँस पर भी तुम्हें परमेश्वर के प्रति निष्ठावान और उसके आयोजनों के प्रति समर्पित होना चाहिए; केवल यही वास्तव में परमेश्वर से प्रेम करना है, और केवल यही सशक्त और जोरदार गवाही है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, पीड़ादायक परीक्षणों के अनुभव से ही तुम परमेश्वर की मनोहरता को जान सकते हो)। परमेश्वर के वचनों पर मनन करके मैंने यह साफ समझ लिया कि भले ही धमकियों और क्लेशों का सामना करके मुझे पीड़ा हो रही थी, लेकिन इन परिस्थितियों द्वारा किए गए खुलासे के बिना मैं अपना सच्चा आध्यात्मिक कद न देख पाती, न ही मेरी आस्था सच्ची हो पाती। इन कठिनाइयों को झेलने का बहुत मूल्य था। पर मैंने परमेश्वर की इच्छा नहीं समझी और कष्ट न झेल पाने के कारण नकारात्मक और कमजोर हो गई। मैं समझ गई कि मैं कितनी कायर हूँ। तथ्यों के खुलासे से मैं चीजों को साफ देख पाई। मुझ पर परमेश्वर में आस्था त्यागने का दबाव बनाते हुए, मेरे पति को फर्क नहीं पड़ता था कि मैं जियूँ या मरूँ, वे मुझे खुद ही एक मानसिक अस्पताल ले गए, और अब मुझ पर हाथ उठा रहे हैं—मैंने सही मायनों में देखा कि वे परमेश्वर से घृणा करने वाले परमेश्वर-विरोधी दानव हैं। मैंने परमेश्वर के इस वचन को याद किया : “विश्वासी और अविश्वासी संगत नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। मेरे पति और मैं दो अलग रास्तों पर चलने वाले दो भिन्न व्यक्ति थे। मेरे पति मेरा चाहे जैसे दमन करें, मैं परमेश्वर का अनुसरण करती रहूँगी। अब मैं उनके रोकने से नहीं रुकूँगी। इसलिए मैंने उनसे कहा, “चलिए, तलाक ले लें। आप सांसारिक मार्ग पर हैं, धन के पीछे भाग रहे हैं, और मैं आस्था के मार्ग पर हूँ। हम अलग-अलग रास्तों पर हैं और हमारे बीच कुछ भी एक-समान नहीं है। आप हमारे बेटे के लिए डर रहे हैं, इसलिए हमें तलाक ले लेना चाहिए। फिर मेरी आस्था का आप दोनों पर कोई बुरा असर नहीं होगा। मुझे आपकी कोई संपत्ति नहीं चाहिए। मुझे सिर्फ एक कमरा, रहने के लिए एक जगह चाहिए। अगर मैं परमेश्वर का अनुसरण कर सकूँ, तो मैं ठीक रहूँगी।” उन्होंने कहा, “मैं जानता हूँ, तुम एक अच्छी औरत हो। मुझे तलाक नहीं चाहिए।” मैंने उनसे कहा, “अगर आपको तलाक नहीं चाहिए, तो मुझे मेरी आजादी दीजिए। मैं एक विश्वासी हूँ, और आप मेरे आड़े नहीं आ सकते।” उन्होंने कहा, “तुम अपनी आजादी ले सकती हो, लेकिन पहले तुम्हें मेरे साथ एक सहमति-पत्र पर दस्तखत करने होंगे कि तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास रखना छोड़ दोगी!” मैंने कहा, “मुझे अपनी आस्था रखनी है—मैं उस सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर नहीं कर सकती।” वे अवाक् हो गए। इसके बाद, यह देखकर कि वे मुझे विश्वास रखने से नहीं रोक सकते, उन्होंने मेरी आस्था के अभ्यास में उतनी ज्यादा बाधा नहीं डाली। मैं कलीसिया का जीवन जी पाई और सामान्य रूप से अपना कर्तव्य निभा पाई।

कुछ समय बीत गया। तब, एक शाम मैं पास ही रहने वाली एक बहन के साथ नवागंतुकों के सिंचन के बारे में चर्चा करने गई। हमारे बैठते ही मेरा बेटा वहाँ पहुँच गया, और उस बहन से बहुत गुस्से के साथ बोला, “आप ही ने मेरी माँ को धर्मांतरित किया है!” फिर उसने उस पर हाथ उठाने की कोशिश की। मैं अपने बेटे को रोकने के लिए उसे अपनी बाँहों से पकड़ने के लिए झपटी। वह गुस्से से उबलते हुए मुझे घसीटकर घर ले आया और गुस्से से बोला, “तुम्हें यह छोड़ना होगा। देखो, तुम्हारी कलीसिया के बारे में वे ऑनलाइन क्या कह रहे हैं!” फिर उसने सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया को बदनाम करने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी की कुछ झूठी बातों को दोहराया। इसके बाद वह चिल्लाया, “डैड, मानसिक अस्पताल को फोन कीजिए और इसे वहाँ वापस भेज दीजिए!” उसकी यह बात सुनकर मुझे लगा, मेरा सिर फटने वाला है। मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि मेरा बेटा अपनी ही माँ को मानसिक अस्पताल भेज देगा, सिर्फ अपनी नौकरी बचाने की खातिर। यह बहुत क्रूर था! मैंने अपने पति को उस अस्पताल को फोन करते हुए सुना, और फोन पर मैंने उन्हें कहते सुना कि वहाँ जगह खाली नहीं है। मेरे पति ने फोन रखकर कहा, “चलो, पुलिस को बुलाकर इसे ले जाने को कहते हैं।” मेरे बेटे ने जवाब दिया, “इसे वहाँ बंद नहीं किया जा सकता। हम इसे उस अँधेरे कमरे में डाल दें तो कैसा रहेगा, जहाँ हम खरगोश पालते थे?” फिर वे दोनों मुझे जबरदस्ती उठाकर उस कमरे में ले गए, लोहे का दरवाजा बंद कर दिया और चले गए। यह देखकर कि पार्टी ने मेरे पति और बेटे को मेरे साथ इतना बर्बर होने के लिए किस तरह धोखा दिया था, मैं डर के मारे सिहर गई, और दिल की गहराई से कम्युनिस्ट पार्टी से और भी ज्यादा नफरत करने लगी। मैंने परमेश्वर के इन वचनों को याद किया : “हजारों सालों से यह मलिनता की भूमि रही है। यह असहनीय रूप से गंदी और असीम दुःखों से भरी हुई है, चालें चलते और धोखा देते हुए, निराधार आरोप लगाते हुए, क्रूर और दुष्ट बनकर इस भुतहा शहर को कुचलते हुए और लाशों से पाटते हुए प्रेत यहाँ हर जगह बेकाबू दौड़ते हैं; सड़ांध ज़मीन पर छाकर हवा में व्याप्त हो गई है, और इस पर जबर्दस्त पहरेदारी है। आसमान से परे की दुनिया कौन देख सकता है? शैतान मनुष्य के पूरे शरीर को कसकर बांध देता है, अपनी दोनों आंखों पर पर्दा डालकर, अपने होंठ मजबूती से बंद कर देता है। शैतानों के राजा ने हजारों वर्षों तक उपद्रव किया है, और आज भी वह उपद्रव कर रहा है और इस भुतहा शहर पर बारीकी से नज़र रखे हुए है, मानो यह राक्षसों का एक अभेद्य महल हो...। प्राचीन पूर्वज? प्रिय अगुवा? वे सभी परमेश्वर का विरोध करते हैं! उनके हस्तक्षेप ने स्वर्ग के नीचे की हर चीज को अंधेरे और अराजकता की स्थिति में छोड़ दिया है! धार्मिक स्वतंत्रता? नागरिकों के वैध अधिकार और हित? ये सब पाप को छिपाने की चालें हैं!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, कार्य और प्रवेश (8))। पार्टी ईसाइयों को गिरफ्तार कर उन्हें सताती है, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के बारे में तरह-तरह की अफवाहें और झूठी निंदा फैलाती है, और उनके परिवार के सदस्यों को फँसाती है। इसलिए मेरा परिवार पार्टी द्वारा गुमराह होकर मुझे मेरी आस्था त्यागने को धमकाने लगा। मुझे व्यक्तिगत रूप से एक मानसिक अस्पताल ले गया जहाँ मुझे यातना दी गई, और अब मुझे कमरे में बंद कर रहे हैं। एक अच्छा-खासा खुशहाल परिवार इतना गिर गया। पार्टी असली सरगना है, मैंने इस दानव से दिल की गहराइयों से घृणा करती हूँ। जल्दी ही मेरा बेटा एक स्टूल लाकर लोहे के गेट के बाहर उस पर बैठकर बोला, “मॉम, तुम्हें परमेश्वर में विश्वास रखना बंद कर देना चाहिए। व्यापार करते समय तुम बहुत कड़ी मेहनत करती थी, मेरी शिक्षा का खर्च उठाना आसान नहीं था। अब मैं काम कर रहा हूँ, थोड़ा पैसा भी जमा किया है। कैसा रहेगा अगर मैं तुम्हारे कहीं घूमने पर खर्च करूँ?” उसकी इस बात पर मुझे एहसास हुआ कि यह शैतान की एक चाल है, इसलिए मैंने उससे कहा, “विश्वासी बनने से पहले मैं सिर्फ पैसा कमाना चाहती थी। वह जीने का एक मुश्किल, थकाऊ तरीका था। अब परमेश्वर को पा लेने और कुछ सत्य समझ लेने के बाद मेरा जीवन पहले से ज्यादा आजाद और सुखी है। क्या तुम दोनों मुझे ऐसे ही नहीं छोड़ सकते? तुम मुझे अपनी माँ के रूप में ठुकरा दो और तुम्हारे पिता मुझे तलाक दे दें, तो भी मैं अपनी आस्था पर कायम रहूँगी। मैं इस पथ को समर्पित हूँ।” उसने जवाब में एक भी शब्द नहीं कहा, बल्कि उठकर चला गया। मेरी आस्था को मजबूती देने के लिए मैं सचमुच परमेश्वर की आभारी थी, मुझे सच में बड़ी मजबूती और सुकून महसूस हुआ। मैंने यह भजन गाना शुरू किया : “हे सर्वशक्तिमान सच्चे परमेश्वर, मेरा हृदय तुझे अर्पित है। कारागार सिर्फ़ मेरे जिस्म पर पाबंदी लगा सकता है। यह मेरे कदमों को तेरा अनुसरण करने से नहीं रोक सकता। दुखदायी कष्टों में, पथरीले रास्तों पर, तेरे वचनों के मार्गदर्शन, मेरा दिल निर्भय रहता है। तेरे प्रेम के संग, मेरा दिल परितृप्त रहता है” (मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ, अ‍पनी पसंद पर अ‍फ़सोस नहीं)। यह भजन गाते हुए, मैंने महसूस किया कि परमेश्वर मेरे साथ है। उस छोटे-से अँधेरे कमरे में बैठकर, जहाँ मुझे आसपास कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, मैं दुखी नहीं हुई। अगली सुबह मेरे बेटे ने अचानक दरवाजा खोलकर मुझे बाहर जाने दिया, और बोला, “मॉम, हम अब तुम्हें अकेला छोड़ देंगे। तुम जो चाहो कर सकती हो।” उसने जब यह कहा, तो मैं जान गई कि शैतान शर्मसार होकर हार गया है, मैंने परमेश्वर का धन्यवाद किया।

कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा गिरफ्तारी और अपने परिवार के दमन से गुजरने से मुझे पार्टी के दानवी परमेश्वर-विरोधी सार को पूरी तरह समझने में मदद मिली। यह पार्टी विश्वासियों को गिरफ्तार कर उन्हें सताती है, और लोगों को धोखा देने के लिए हर प्रकार की अफवाहें और झूठ फैलाती है, जिसके कारण विश्वासियों को उनके परिवारों की धमकियाँ और बाधाएँ झेलनी पड़ती हैं। यह ईसाई परिवारों को नष्ट करने वाली मास्टरमाइंड है। अपने हितों के लिए, मेरे पति और बेटे ने पार्टी के साथ होकर मेरी आस्था त्यागने को धमकाया, उन्होंने खुद मेरे जीने-मरने का खयाल किए बिना मुझे एक पागलखाने में दाखिल भी करवा दिया। मैंने पूरी तरह समझ लिया कि उनका सार परमेश्वर-विरोधी था, और मैं उन्हें कभी भी मुझे रोकने नहीं दूँगी। इस अनुभव ने मुझे दिखा दिया है कि सिर्फ परमेश्वर ही हमसे प्रेम करता है, और सिर्फ परमेश्वर ही हमें बचा सकता है। जब मैं बहुत दुखी और बेसहारा थी, तब परमेश्वर ने मुझे प्रबुद्ध करने, मुझे आराम देने और प्रोत्साहित करने और उन मुश्किल दिनों से उबारने के लिए अपने वचनों का प्रयोग किया। अब मैंने खुद अनुभव किया है कि केवल परमेश्वर का प्रेम सच्चा है। मैं परमेश्वर का अनुसरण करके अपना कर्तव्य अच्छे से निभाने को तैयार हूँ और मुझे इसका कभी पछतावा नहीं होगा।

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