74. गलती सामने आने से मैं बेपर्दा हो गई

शैरोन, स्पेन

दिसंबर 2021 में एक दिन, किसी बहन ने मुझे बताया, बहन अरियाना जिनका हमारी कलीसिया से दूसरी कलीसिया में तबादला हो गया था, ने कहा कि मैं अपने कर्तव्य में लापरवाह हूँ, और मैं अपने सुसमाचार के काम में आने वाली समस्याओं को समय रहते दूर नहीं करती, जिससे टीम की कार्यक्षमता और प्रभावकारिता पर बुरा असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि मेरा व्यवहार झूठे अगुआओं जैसा था। उन्होंने मुझे आत्मचिंतन करने की याद दिलाई। मुझे गुस्सा आ गया, मैंने सोचा, “कुछ समय से मैंने काम की आगे की कार्यवाही ठीक से नहीं की थी, मगर उसके पीछे भी एक कारण है। अगर आपको कुछ कहना है, तो मेरे सामने कहिए। मेरी पीठ पीछे ऐसी बातें करके, क्या आप मेरी परेशानियों को और नहीं बढ़ा रहीं? भाई-बहन मेरे बारे में क्या सोचेंगे? अब आपने मेरे बारे ऐसी बातें की हैं, तो मैं आपको इतनी आसानी से माफ तो नहीं करूँगी। मैं भी आपकी गलतियों को उजागर करूँगी, ताकि दूसरे जान जाएँ कि यह मेरी समस्या नहीं बल्कि आपकी है।” फिर मैंने उस बहन से कहा, “अरियाना हमेशा ही मुझे नीचा समझती और मुझमें गलतियाँ निकालती रहती हैं। सभी जानते हैं कि वो कोई दूध की धुली नहीं हैं। वो दूसरों के साथ मिलकर काम करने के बजाय, सबकी आलोचना करती रहती हैं। और अब उनका निशाना मुझ पर है, मैंने तो कभी उनके साथ बुरा नहीं किया। शायद ऐसा इसलिए होगा क्योंकि मैंने दूसरी कलीसिया में उनका तबादला कर दिया, और अब वो टीम की अगुआ का पद खोने पर मुझसे बदला लेना चाहती हों।” इतना सब कहने के बाद भी मुझे लगा कि जो अरियाना ने कहा वह मेरे लिए बहुत ही अपमानजनक था। उन्होंने मुझे सबके सामने उजागर कर दिया। अगर हर किसी ने उनकी बात पर विश्वास कर लिया तो वे मेरे बारे में क्या सोचेंगे? क्या वे सोचेंगे कि मैं झूठी अगुआ हूँ? और अगर बड़े अगुआ को इस बारे में पता चल गया, तो मुझसे मेरा पद भी छीना जा सकता है। मैं हमेशा इसी सोच में डूबी रहती थी और इसी वजह से मैं अरियाना से नफरत भी करने लगी। क्या वो मुझे सिर्फ मेरे ही पीछे नहीं पड़ी थीं? मैंने सोचा कि अगर वो मेरे प्रति कठोर रहेंगी, तो मैं भी उनके साथ गलत ही करूँगी, इसलिए जब तक मैं अगुआ हूँ, उनकी तरक्की नहीं हो सकती। मैं उनके हर बर्ताव को सबके सामने लाऊँगी, ताकि हर कोई उनके बारे में जान सके, और अगर वो मुझे पीठ पीछे लोगों की बुराई करती दिखीं, तो मैं उन्हें कलीसिया से निकलवा दूँगी। सच कहूँ तो मेरा इस तरह से सोचना मुझे ठीक नहीं लगा, मैं ये भी नहीं जानती थी कि ऐसा करना परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप है या नहीं। जो कुछ भी हुआ उसमें परमेश्वर की इच्छा थी, फिर भी मैंने सत्य की खोज या आत्मचिंतन करने के बजाय, बहन वांग पर अपनी नज़रें टिकाये रखी, ताकि उनकी गलतियाँ ढूंढकर उनकी आलोचना कर सकूँ, उन्हें उजागर करके बदला लूँ। मुझे पता था कि यह सत्य को स्वीकारना नहीं है।

उस रात मैंने इस बारे में थोड़ा सोच-विचार किया। दिल से मैं अरियाना की मेरे बारे में कही बात को अब भी स्वीकार नहीं पा रही थी, मगर देखा जाए, तो क्या मैं असल में एक अच्छी और योग्य अगुआ हूँ? एक अगुआ को काम के हर पहलू की जानकारी होनी चाहिए और समस्याओं का पता चलते ही उन्हें हल करना चाहिए। मेरे ऊपर सुसमाचार के काम की ज़िम्मेदारी थी, इसलिए उस टीम को कोई भी समस्या आने पर मुझे फौरन उनकी व्यावहारिक मदद या मार्गदर्शन करना चाहिए। मगर मैंने ऐसा कुछ नहीं किया। झूठा अगुआ तो वही होता है न, जो व्यावहारिक काम नहीं करता? अरियाना की बात गलत नहीं थी। वो कोई बुरी इंसान नहीं थी। वे थोड़ी गुणी और काबिल थीं और उनके कर्तव्य में अच्छे नतीजे मिलते थे। अगर मैंने निजी रंजिश के कारण उन्हें कर्तव्य नहीं करने दिया या कलीसिया से निकाल दिया, तो इससे केवल अरियाना को ही चोट नहीं पहुँचेगी, बल्कि कलीसिया के काम में भी रुकावट आएगी। ऐसा करके मैं परमेश्वर को नाराज़ नहीं करना चाहती। यह सोचकर उनके प्रति मेरी नाराजगी थोड़ी कम हो गई। मैंने इस बात पर भी विचार किया कि मैं कौन सा व्यावहारिक काम नहीं कर रही थी। मुझे पता था कि मुझे उनकी बताई कमियों को दूर करना शुरू करना चाहिए और भाई-बहनों से उनकी परेशानियों को लेकर बात करनी चाहिए। ऐसा करके मेरे मन को काफी सुकून मिला।

उस वक्त लगा जैसे सारी बात खत्म हुई, मगर कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि अरियाना 40 से ज़्यादा लोगों की एक सभा में मेरे झूठी अगुआ होने के लक्षणों के बारे में बात कर रही थीं। ये सुनकर मेरा गुस्सा फिर से भड़क उठा, और मुझे लगा, अरियाना ने इतने लोगों के सामने मुझे उजागर करके मेरा नाम मिट्टी में मिला दिया। अगर वो ऐसा ही करती रहीं तो मैं सबसे नज़रें कैसे मिला पाऊँगी? झूठी अगुआ होने के कारण मुझे बर्खास्त भी किया जा सकता है। मैं उन्हें दिखाना चाहती थी कि मैं कौन हूँ और वो क्या है, ताकि वो मुझे कोई सीधा-सादा और मामूली मेमना ना समझें! अगर वो सच में सबके सामने मुझे उजागर करके मेरी छवि खराब करना चाहती हैं, तो मैं भी उनकी गलतियों के सबूत इकठ्ठा करके उन्हें अपने रास्ते से हटाने का मौका ढूंढूंगी। अगले कुछ दिनों तक मेरा गुस्सा सातवें आसमान पर रहा, मैं अपने मान-सम्मान को बचाने और उनसे बदला लेने के बारे में सोचती रही। मैंने उनकी नई कलीसिया की अगुआ को बताया कि उनमें इंसानियत की कमी है और वो हमेशा अगुआओं और कर्मियों की पीठ पीछे बुराई करती रहती हैं, इसलिए उन्हें उनके बर्ताव पर नज़र रखनी चाहिए और जब भी वो दोबारा ऐसा कुछ करें तो फौरन उन्हें बर्खास्त कर देना चाहिए। यह सब कहने के बाद, मैं खुद को थोड़ी दोषी और अशांत महसूस करने लगी। मैंने सोचा, “मैं ये क्या कर रही हूँ? ये तो आँख के बदले आँख वाली बात हो गई, क्या ये दूसरों पर वार करके उन्हें अपने रास्ते से हटाना नहीं हुआ? परमेश्वर इससे मुझे क्या सीख देना चाहता है?” फिर मैंने परमेश्वर से प्रार्थना करके इस बारे में जानने की कोशिश की।

इस दौरान, मैंने परमेश्वर के वचनों पर विचार किया जिनमें उन मसीह विरोधियों को उजागर किया गया है जो खुद से असहमति रखने वालों को अलग कर देते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “जब कोई मसीह-विरोधी किसी विरोधी पर आक्रमण करके उसे निकाल देता है, तो उसका मुख्य उद्देश्य क्या होता है? वे लोग कलीसिया में एक ऐसी स्थिति पैदा करने का प्रयास करते हैं जहाँ उनकी आवाज के विरोध में कोई आवाज न उठे, जहाँ उनकी सत्ता, उनकी अगुआई का दर्जा और उनके शब्द सब सर्वोपरि हों। सभी को उनकी बात माननी चाहिए, भले ही उनमें मतभेद हो, उन्हें इसे व्यक्त नहीं करना चाहिए, बल्कि इसे अपने दिल में पकने देना चाहिए। जो कोई भी उनके साथ खुले तौर पर असहमत होने का साहस करता है, वह मसीह-विरोधी का दुश्मन बन जाता है, वे सोचते रहते हैं कि किसी भी तरह उनके लिए हालात को मुश्किल बना दिया जाए और उन्हें निकाल बाहर करने के लिए बेचैन रहते हैं। यह उन तरीकों में से एक है जिसके जरिए मसीह विरोधी अपने रुतबे को मजबूत करने और अपनी सत्ता की रक्षा के लिए विरोध करने वालों पर हमला कर उन्हें अलग-थलग कर देते हैं। वे सोचते हैं, ‘तुम्हारी राय मुझसे अलग हो सकती है, लेकिन तुम उसके बारे में मनचाही बातें नहीं बना सकते, मेरी सत्ता और हैसियत को जोखिम में तो बिल्कुल नहीं डाल सकते। अगर कुछ कहना है, तो मुझसे अकेले में कह सकते हो। यदि तुम सबके सामने कहकर मुझे शर्मिंदा करोगे तो मुसीबत को बुलावा दोगे, और मुझे तुम्हारा ध्यान रखना पड़ेगा!’ यह किस प्रकार का स्वभाव है? मसीह-विरोधी दूसरों को खुलकर नहीं बोलने देते। अगर उनकी कोई राय होती है—फिर वह चाहे मसीह-विरोधी के बारे में हो या किसी और चीज के बारे में—तो वे खुद उसे यूँ ही सामने नहीं ला सकते; उन्हें मसीह-विरोधी के चेहरे के भावों का ख्याल रखना चाहिए। अगर ऐसा नहीं किया, तो मसीह-विरोधी उन्हें शत्रु घोषित कर देगा, और उन पर आक्रमण कर उन्हें बाहर कर देगा। यह किस तरह की प्रकृति है? यह एक मसीह विरोधी की प्रकृति है। और वे ऐसा क्यों करते हैं? वे कलीसिया में किसी अन्य की आवाज नहीं उठने देते, वे कलीसिया में अपने विरोधी को नहीं रहने देते, परमेश्वर के चुने हुए लोगों को खुले तौर पर सत्य की संगति और लोगों की पहचान नहीं करने देते। वे सबसे ज्यादा इस बात से डरते हैं कि कहीं लोग उन्हें पहचानकर उजागर न कर दें; वे लगातार अपनी सत्ता और लोगों के दिलों में अपनी हैसियत को मजबूत करने की कोशिश में लगे रहते हैं, उन्हें लगता है हैसियत हमेशा बनी रहनी चाहिए। वे ऐसी कोई चीज बरदाश्त नहीं कर सकते, जो एक अगुआ के रूप में उनके गौरव, प्रतिष्ठा या हैसियत और मूल्य को धमकाए या उस पर असर डाले। क्या यह मसीह-विरोधियों की दुर्भावनापूर्ण प्रकृति की अभिव्यक्ति नहीं है? वे पहले से मौजूद अपनी ताकत से संतुष्ट नहीं होते, वे उसे भी मजबूत और सुरक्षित बनाकर शाश्वत सत्ता चाहते हैं। वे केवल लोगों के व्यवहार को ही नियंत्रित नहीं करना चाहते, बल्कि उनके दिलों को भी नियंत्रित करना चाहते हैं। मसीह-विरोधियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले ये तरीके पूरी तरह से अपनी सत्ता और हैसियत की रक्षा करने के लिए होते हैं, और ये पूरी तरह सत्ता से चिपके रहने की उनकी इच्छा का परिणाम है। ... यह तब विशेष रूप से सच होता है जब कोई असहमत व्यक्ति मौजूद होता है, और मसीह-विरोधी सुन लेता है कि असहमत व्यक्ति ने उसके बारे में कुछ कहा है या उसकी पीठ पीछे उसकी आलोचना की है। अगर बात ऐसी है तो, वह मुद्दा थोड़े समय में ही सुलझा लेगा, भले ही इसके लिए रात की नींद और दिन का खाना ही क्यों न छोड़ना पड़े। ऐसा कैसे है कि वह इतना प्रयास कर सकता है? ऐसा इसलिए है, क्योंकि उसे लगता है कि उसकी हैसियत खतरे में है, कि उसे चुनौती दी गई है। उसे लगता है कि अगर वह ऐसी कार्रवाई नहीं करता, तो उसकी सत्ता और हैसियत खतरे में पड़ जाएगी—कि जब उसके बुरे कर्म और उसका कुत्सित आचरण उजागर हो जाएँगे, तो वह न केवल अपनी हैसियत और सत्ता बनाए रखने में असमर्थ होगा, बल्कि उसे कलीसिया से बाहर या निष्कासित भी कर दिया जाएगा। यही कारण है कि वह इस मामले को दबाने और अपने लिए छिपे सभी खतरे दूर करने के तरीकों के बारे में सोचने में बेहद अधीर रहता है। यही एकमात्र तरीका है, जिससे वह अपनी हैसियत बरकरार रख सकता है। जहाँ तक मसीह-विरोधियों का सवाल है, हैसियत उनके जीवन के लिए प्राण-वायु है। जैसे ही वे सुनते हैं कि कोई उन्हें उजागर करने वाला है या उनकी रिपोर्ट करने वाला है, वे भयभीत होकर विचलित हो जाते हैं, भयभीत इस बात से कि भविष्य में वे अपनी हैसियत खो देंगे और फिर कभी न तो उस विशेषाधिकार की भावना का आनंद उठा पाएँगे जो उन्हें हैसियत ने दिया है, न ही हैसियत के लाभ उठा पाएँगे। वे डरते हैं कि अब कोई उनकी बात नहीं मानेगा या उनका अनुसरण नहीं करेगा, कोई उनकी चापलूसी नहीं करेगा या उनके कहे अनुसार काम नहीं करेगा। लेकिन जो बात उनके लिए सबसे असहनीय है, वह सिर्फ यह नहीं है कि वे अपनी हैसियत और सत्ता खो देंगे, बल्कि यह है कि उन्हें हटाया या निकाला भी जा सकता है। अगर ऐसा हो गया, तो हैसियत और सत्ता द्वारा उन्हें मिले तमाम लाभ और विशेषाधिकार की भावनाएँ, और साथ ही परमेश्वर में विश्वास करने से मिलने वाले तमाम आशीषों और पुरस्कारों की आशा एक पल में खत्म हो जाएगी। यह संभावना सहन करना उनके लिए सबसे कठिन है(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं)। “किसी मसीह-विरोधी के लिए, विरोधी उसकी हैसियत और सत्ता के लिए खतरा होता है। कोई भी उनकी हैसियत और सत्ता के लिए खतरा बनता है, चाहे कोई भी हो, तो मसीह-विरोधी उसे ठिकाने लगाने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं; अगर इन लोगों को नियंत्रित या भर्ती न किया जा सके, तो मसीह-विरोधी उन्हें सत्ता से गिरा देंगे या बाहर निकाल देंगे। अंततः, मसीह-विरोधी पूर्ण सत्ता पाने का अपना मकसद हासिल कर ही लेंगे और खुद ही कानून बन जाएँगे। ये ऐसी कुछ तरकीबें हैं जिन्हें मसीह-विरोधी अपनी हैसियत और सामर्थ्य बनाए रखने के लिए आदतन उपयोग में लाते हैं—वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं(वचन, खंड 4, मसीह-विरोधियों को उजागर करना, मद दो : वे विरोधियों पर आक्रमण करते हैं और उन्हें निकाल देते हैं)। परमेश्वर के मर्मभेदी वचनों से मैं काफी डर गई। मुझे इसका एहसास भी नहीं था कि मैंने अपने नाम और रुतबे के कारण किसी की निंदा करके उसे अलग करने की कोशिश की, मैं मसीह विरोधी जैसा दुष्ट काम कर रही थी। जब मुझे पता चला कि अरियाना ने सबके सामने कहा था कि मैं व्यावहारिक काम नहीं करती, तो मैंने यह नहीं सोचा कि ये सच है या नहीं, मैं इस बारे में सोचने के बजाय यही सोचती रही कि वे जानबूझकर मेरी पीठ पीछे बुराई कर रही हैं। इससे मेरे मान-सम्मान को ठेस पहुँची इसलिए मैं उनसे नफरत करने लगी और उन्हें अपना दुश्मन समझ बैठी, मैंने तो उनकी निंदा भी करनी चाही। फिर जब मुझे पता चला कि उन्होंने एक बड़ी सभा में मुझे उजागर किया है, तो मेरी नफरत उनके लिए और बढ़ गई। अपने मान-सम्मान और पद को बचाने के लिए, मैं उनके पुराने अपराधों के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बातें करने लगी, ताकि दूसरों को उनमें अच्छी इंसानियत न दिखे और वे उन्हें ठुकरा दें। मैंने उनकी मौजूदा अगुआ को भी उकसाया कि वे उनके व्यवहार पर नज़र रखें, इस आशा में कि उन्हें निकलवाने का मौका मिल जाएगा। मैं ये अच्छे से जानती थी कि वे गुणी और काबिल हैं, अपने कर्तव्य में भी वे ठीक ही थीं, उन्हें कलीसिया में रहकर अपना कर्तव्य निभाते रहना चाहिए। मैं ये भी जानती थी कि अरियाना ने मेरी वास्तविक समस्याओं का ज़िक्र किया था, मगर इससे मेरे नाम और रुतबे पर बुरा असर पड़ रहा था, इसलिए मैं उन्हें अपने विरोधी, दुश्मन और मेरी सत्ता और मेरे पद पर मँडराते खतरे की तरह देखने लगी। मैं उन पर भड़ास निकालना और उनसे बदला लेना चाहती थी। मेरी प्रकृति सचमुच दुष्ट है! फिर मैंने उन मसीह विरोधियों के बारे में सोचा जिन्हें कलीसिया से निकाल दिया गया था। जब भी कोई उनके रुतबे के लिए खतरा बनता, तो वे उनकी निंदा करते और सब पर राज करने के लिए कलीसिया को अपने राज्य में बदलने की कोशिश करते। अंत में इतने दुष्ट काम करने के कारण उन्हें कलीसिया से निकाल दिया गया। मेरा बर्ताव भी इन मसीह विरोधियों के बर्ताव से अलग नहीं था।

मैं निरंतर इस बात पर चिंतन करती रही कि इतने सालों तक विश्वासी होने के बाद भी, मैं खुद को मसीह विरोधी के मार्ग पर चलने और ऐसे बुरे काम करने से रोक क्यों नहीं सकी। फिर एक सभा में हमने “जो सच्चे हृदय से परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हैं वे निश्चित रूप से परमेश्वर द्वारा हासिल किए जाएँगे” पढ़ा। इसका एक अंश मेरे दिल को छू गया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर के सभी वचनों और कार्यों में विश्वास रखना चाहिए। अर्थात्, चूँकि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो, इसलिए तुम्हें उसका आज्ञापालन करना चाहिए। यदि तुम ऐसा नहीं कर पाते हो, तो यह मायने नहीं रखता कि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो या नहीं। यदि तुमने वर्षों परमेश्वर में विश्वास रखा है, फिर भी न तो कभी उसका आज्ञापालन किया है, न ही उसके वचनों की समग्रता को स्वीकार किया है, बल्कि तुमने परमेश्वर को अपने आगे समर्पण करने और तुम्हारी धारणाओं के अनुसार कार्य करने को कहा है, तो तुम सबसे अधिक विद्रोही व्यक्ति हो, और गैर-विश्वासी हो। एक ऐसा व्यक्ति परमेश्वर के कार्य और वचनों का पालन कैसे कर सकता है जो मनुष्य की धारणाओं के अनुरूप नहीं है? सबसे अधिक विद्रोही वे लोग होते हैं जो जानबूझकर परमेश्वर की अवहेलना और उसका विरोध करते हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के शत्रु और मसीह विरोधी हैं। ऐसे लोग परमेश्वर के नए कार्य के प्रति निरंतर शत्रुतापूर्ण रवैया रखते हैं, ऐसे व्यक्ति में कभी भी समर्पण का कोई भाव नहीं होता, न ही उसने कभी खुशी से समर्पण किया होता है या दीनता का भाव दिखाया है। ऐसे लोग दूसरों के सामने अपने आपको ऊँचा उठाते हैं और कभी किसी के आगे नहीं झुकते। परमेश्वर के सामने, ये लोग वचनों का उपदेश देने में स्वयं को सबसे ज़्यादा निपुण समझते हैं और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सबसे अधिक कुशल समझते हैं। इनके कब्ज़े में जो ‘खज़ाना’ होता है, ये लोग उसे कभी नहीं छोड़ते, दूसरों को इसके बारे में उपदेश देने के लिए, अपने परिवार की पूजे जाने योग्य विरासत समझते हैं, और उन मूर्खों को उपदेश देने के लिए इनका उपयोग करते हैं जो उनकी पूजा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में इस तरह के कुछ ऐसे लोग हैं। ये कहा जा सकता है कि वे ‘अदम्य नायक’ हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी परमेश्वर के घर में डेरा डाले हुए हैं। वे वचन (सिद्धांत) का उपदेश देना अपना सर्वोत्तम कर्तव्य समझते हैं। साल-दर-साल और पीढ़ी-दर-पीढ़ी वे अपने ‘पवित्र और अलंघनीय’ कर्तव्य को पूरी प्रबलता से लागू करते रहते हैं। कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता; एक भी व्यक्ति खुलकर उनकी निंदा करने की हिम्मत नहीं दिखाता। वे परमेश्वर के घर में ‘राजा’ बनकर युगों-युगों तक बेकाबू होकर दूसरों पर अत्याचार करते चले आ रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करने और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीती-जागती दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने कैसे अस्तित्व में बने रहने दे सकता हूँ? यहाँ तक कि आधा-अधूरा आज्ञापालन करने वाले लोग भी अंत तक नहीं चल सकते, फिर इन आततायियों की तो बात ही क्या है जिनके हृदय में थोड़ी-सी भी आज्ञाकारिता नहीं है! इंसान परमेश्वर के कार्य को आसानी से ग्रहण नहीं कर सकता। इंसान अपनी सारी ताक़त लगाकर भी थोड़ा-बहुत ही पा सकता है जिससे वो आखिरकार पूर्ण बनाया जा सके। फिर प्रधानदूत की संतानों का क्या, जो परमेश्वर के कार्य को नष्ट करने की कोशिश में लगी रहती हैं? क्या परमेश्वर द्वारा उन्हें ग्रहण करने की आशा और भी कम नहीं है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य)। परमेश्वर के वचनों ने मेरा दिल छलनी कर दिया और मैं उसका धार्मिक और प्रतापी स्वभाव देख पाई। इन वचनों ने मुझे बहुत भयभीत किया : “कभी किसी के आगे नहीं झुकते,” “कोई उन्हें छूने का साहस नहीं करता,” और “वे परमेश्वर के घर में ‘राजा’ बनकर युगों-युगों तक बेकाबू होकर दूसरों पर अत्याचार करते चले आ रहे हैं। दुष्टात्माओं का यह झुंड संगठित होकर काम करने और मेरे कार्य का विध्वंस करने की कोशिश करता है; मैं इन जीती-जागती दुष्ट आत्माओं को अपनी आँखों के सामने कैसे अस्तित्व में बने रहने दे सकता हूँ?” जब मुझे पता चला कि अरियाना ने मुझे झूठी अगुआ बताकर सबके सामने उजागर किया, तो मैंने इसका जवाब दुश्मनी, असंतोष, नाराजगी और प्रतिरोध के साथ दिया। मैंने गुस्से में आकर बुरी तरह से उनकी निंदा की। कलीसिया की अगुआ होने के बावजूद मैंने न तो सत्य को स्वीकारा और न ही मुझमें कोई समर्पण की भावना थी। जब किसी ने मेरी समस्याओं को उजागर किया, मेरे मान-सम्मान को ठेस पहुँचाई और मेरे पद पर आँच आई, तो मैंने उसे रोकने और उनसे बदला लेने के लिए हर तरीके आजमाये, यहाँ तक कि उससे कर्तव्य निभाने का अधिकार छीनने और कलीसिया से निकलवाने की भी कोशिश की। मेरे अंदर यह दुर्भावनापूर्ण सोच थी कि जब तक मैं उसे पूरी तरह से बर्बाद नहीं कर देती, चैन से नहीं बैठूँगी। मैं कलीसिया की ऐसी “शासक” बन गयी थी जिससे पंगा लेने की हिम्मत किसी में नहीं थी। ये सीसीपी के राक्षसों और उन तानाशाहों से अलग कैसे है? उनका आदर्श वाक्य है, “जो मेरा अनुपालन करते हैं उन्हें फूलने-फलने दो और जो मेरा विरोध करते हैं उन्हें नष्ट होने दो।” अपनी सत्ता बनाये रखने और अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए, सीसीपी अपने बुरे कर्मों से असहमति रखने वालों या उसे उजागर करने वालों का उत्पीड़न करती है, उनका सब कुछ तहस-नहस करके उन्हें पूरी तरह मिटा देती है। उसने तियानमेन स्क्वेयर के प्रदर्शनकारियों के साथ ऐसा ही किया और जातीय अल्पसंख्यकों के साथ यही कर रही है, विश्वासियों के साथ तो इससे भी बुरा किया जाता है : हमें गिरफ्तार करके सताया और हम पर अत्याचार किया जाता है। उन्होंने कितनी ही मासूम ज़िंदगियां तबाह कर दी हैं! मैंने बचपन से उन कम्युनिस्ट राक्षसों से शिक्षा प्राप्त की है और उनके द्वारा प्रभावित हूँ। कितने ही शैतानी विष मुझमें गहराई तक समाए हुए हैं, जैसे “सर्वोच्च शासक बस मैं ही हूँ,” “जो मेरा अनुपालन करते हैं उन्हें फूलने-फलने दो और जो मेरा विरोध करते हैं उन्हें नष्ट होने दो,” “अगर तुम निर्दयी हो, तो अन्यायी होने का दोष मुझ पर मत डालो,” और “अपनी ही दवा का स्वाद चखो।” ऐसे शैतानी ज़हर मेरे जीवन के नियम बन गए थे, जिन्होंने मुझे बहुत अहंकारी और दुष्ट बना दिया। चूंकि मैं इन नियमों के अनुसार जी रही थी, इसलिए मेरा दूसरों के साथ बुरा बर्ताव करना, उन्हें सताना और चोट पहुँचाना ज़ाहिर था। मैंने यह भी सोचा कि परमेश्वर ने झूठे अगुआओं और मसीह विरोधियों को पहचानने के बारे में कितने ही सत्यों पर संगति की है। अब सत्य को जानकर हर किसी की आँखें खुल रही हैं, इसलिए कुछ लोग झूठे अगुआओं को उजागर कर उनकी शिकायत कर रहे हैं। यह सत्य का अभ्यास करके कलीसिया के कार्य की रक्षा करना है—ये एक अच्छा काम है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुझे उजागर करने वाला इंसान कैसा है, कहीं वो जानबूझकर मुझे निशाना तो नहीं बना रहा, भले ही वो मेरे सामने मेरी आलोचना करे या मेरी पीठ पीछे, अगर उसकी बात सत्य है, तो मुझे परमेश्वर की इच्छा मानकर स्वीकार करना चाहिए, और उसे स्वीकार करके, उसके प्रति समर्पित होकर उससे सीख लेनी चाहिए। यह सत्य को स्वीकार करके परमेश्वर के प्रति समर्पित होना कहलाता है। लेकिन जहाँ तक मेरी बात है, मैंने न सिर्फ समर्पण करने से इनकार किया, बल्कि मुझे उजागर करने वाले की निंदा भी करने लगी। इसके पीछे कोई निजी रंजिश नहीं थी, बल्कि मैं सिर्फ सत्य को ठुकराकर परमेश्वर का विरोध कर रही थी। इसका एहसास होने पर, मुझे खुद से नफ़रत होने लगी और काफी डर गई। मैंने फौरन परमेश्वर के सामने आकर प्रार्थना की : “परमेश्वर, मैं गलत थी। अरियाना द्वारा मुझे उजागर किए जाने पर, मैं आत्मचिंतन करके कोई सीख लेने के बजाय, उनसे बदला लेने लगी। मैं जान गई हूँ कि मेरी प्रकृति वाकई दुष्ट है। परमेश्वर, मैं तुम्हारे सामने पश्चाताप करना चाहती हूँ।”

मैंने अपनी समस्याओं के बारे में अरियाना की बातों को ध्यान में रखकर आत्मचिंतन किया और अपने काम की अच्छे से जांच-पड़ताल करने लगी। मुझे पता चला कि काम में वाकई काफी समस्याएँ थीं। जैसे कि जो भाई-बहन सुसमाचार साझा करने के काम में नए थे वे अवलोकन के सत्य के बारे में नहीं जानते थे, इसलिए वे प्रवचन देते वक्त उन लोगों की धारणाओं और परेशानियों को हल नहीं कर पा रहे थे। कुछ लोगों को सुसमाचार फैलाने के के सिद्धांतों की कोई समझ नहीं थी, इसलिए गलत लोगों का मत-परिवर्तन किया जा रहा था। कुछ नए विश्वासी काफी समय तक सिंचन के बावजूद सत्य को बिल्कुल नहीं समझ पा रहे थे, कुछ को तो सत्य जानने में दिलचस्पी ही नहीं थी और वो छोड़कर चले गए। इससे हमारे संसाधनों की बर्बादी हुई। मैंने एक सभा में इन समस्याओं को उठाया और सब कुछ ठीक करने के लिए सिद्धांतों पर सहभागिता की। सभी भाई-बहन अवलोकन के सत्य को जानने के लिए अलग-अलग तरह से योजनाएं बनाने लगे, जब उन्हें कुछ समझ नहीं आता या किसी चीज़ पर वे स्पष्ट रूप से सहभागिता नहीं कर पाते तो हम साथ मिलकर सहभागिता करते। जल्द ही, अवलोकन के सत्य को लेकर उनकी समझ स्पष्ट हो गई और हमारी टीम ज़्यादा सफल होने लगी। मुझे एहसास हुआ कि परमेश्वर ने अरियाना को मुझे झूठी अगुआ के रूप में उजागर करने और मेरे व्यावहारिक काम ना करने पर उँगली इसलिए उठाने दिया ताकि मैं खुआत्मचिंतन करूँ और अपना काम अच्छे से कर सकूँ। परमेश्वर मेरी रक्षा कर रहा था।

फिर मैंने परमेश्वर के वचनों के एक और अंश के बारे में सोचा : “परमेश्वर हर एक व्यक्ति में कार्य करता है, और इससे फर्क नहीं पड़ता है कि उसकी विधि क्या है, सेवा करने के लिए वो किस प्रकार के लोगों, चीज़ों या मामलों का प्रयोग करता है, या उसकी बातों का लहजा कैसा है, परमेश्वर का केवल एक ही अंतिम लक्ष्य होता है : तुम्हें बचाना। और वह तुम्हें कैसे बचाता है? वह तुम्हें बदलता है। तो तुम थोड़ी-सी पीड़ा कैसे नहीं सह सकते? तुम्हें पीड़ा तो सहनी होगी। इस पीड़ा में कई चीजें शामिल हो सकती हैं। सबसे पहले तो, जब लोग परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना को स्वीकार हैं, तो उन्हें कष्ट उठाना चाहिए। जब परमेश्वर के वचन बहुत कठोर और मुखर होते हैं और लोग परमेश्वर के वचनों की गलत व्याख्या करते हैं—और धारणाएँ भी रखते हैं—तो यह भी पीड़ाजनक हो सकता है। कभी-कभी परमेश्वर लोगों की भ्रष्टता उजागर करने के लिए, और उनसे चिंतन करवाने के लिए कि वे खुद को समझें, उनके आसपास एक परिवेश बना देता है, और तब उन्हें कुछ पीड़ा भी होती है। कई बार जब लोगों की सीधी काट-छाँट की जाती है और उन्हें उजागर किया जाता है, तब उन्हें पीड़ा सहनी ही चाहिए। यह ऐसा है, जैसे वे शल्यचिकित्सा से गुजर रहे हों—अगर कोई कष्ट नहीं होगा, तो कोई प्रभाव भी नहीं होगा। यदि जब भी तुम्हारी काट-छाँट होती है, और किसी परिवेश द्वारा तुम्हें उजागर कर दिया जाता है, इससे तुम्हारी भावनाएँ जागती हैं और तुम्हारे अंदर जोश पैदा होता है, तो इस प्रक्रिया के माध्यम से तुम सत्य वास्तविकता में प्रवेश करोगे और तुम्हारा आध्यात्मिक कद होगा। ... यदि परमेश्वर तुम्हारे लिए विशेष परिवेशों, लोगों, चीज़ों और वस्तुओं की व्यवस्था करता है, या यदि वह तुम्हारी काट-छाँट करता है; यदि तुम इससे सबक सीखते हो, और तुमने परमेश्वर के सामने आना सीख लिया है, तुमने सत्य की तलाश करना सीख लिया है, अनजाने में, प्रबुद्ध और रोशन हुए हो और तुमने सत्य को प्राप्त कर लिया है; यदि तुमने इन परिवेशों में बदलाव का अनुभव किया है, पुरस्कार प्राप्त किए हैं और प्रगति की है; यदि तुम परमेश्वर की इच्छा की थोड़ी-सी समझ प्राप्त करना शुरू कर देते हो और शिकायत करना बंद कर देते हो, तो इन सबका मतलब यह होगा कि तुम इन परिवेशों के परीक्षण के बीच में अडिग रहे हो, और तुमने परीक्षा उत्तीर्ण कर ली है। इस तरह से तुमने इस कठिन परीक्षा को पार कर लिया होगा। इम्तिहान में खरे उतरने वालों को परमेश्वर किस नज़र से देखेगा? परमेश्वर कहेगा कि उनका हृदय सच्‍चा है और वे इस तरह का कष्‍ट सहन कर सकते हैं, और अंतर्मन में वे सत्‍य से प्रेम करते हैं और सत्‍य को पाना चाहते हैं। अगर परमेश्वर का तुम्‍हारे बारे में ऐसा आकलन है, तो क्‍या तुम कद-काठी वाले नहीं हो? फिर क्‍या तुम में जीवन नहीं है? और यह जीवन कैसे प्राप्‍त हुआ है? क्या यह परमेश्वर द्वारा प्रदत्त है? परमेश्वर तुम्हें कई तरह से आपूर्ति करता है और तुम्हें प्रशिक्षित करने के लिए विभिन्न लोगों, घटनाओं और चीजों का इस्तेमाल करता है। यह बिल्कुल ऐसा जैसे परमेश्वर खुद तुम्हें भोजन और जल प्रदान कर रहा हो, खुद खाने की विभिन्न वस्तुएँ तुम तक पहुँचा रहा हो ताकि तुम पेट भरकर खाओ और आनंदित रहो; तभी तुम मजबूती से खड़े हो सकते हो। इसी तरह से तुम्हें चीजों का अनुभव करना और समझना चाहिए; इसी तरह से तुम्हें परमेश्वर के पास से आने वाली हर चीज के प्रति समर्पित होना चाहिए(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य प्राप्त करने के लिए अपने आसपास के लोगों, घटनाओं और चीजों से सीखना चाहिए)

इन सबसे मैंने यह अनुभव किया कि परमेश्वर ने अरियाना को मेरे कर्तव्य में आने वाली समस्याओं को उजागर करने दिया। इसे स्वीकारना मेरे लिए आसान नहीं था, मगर ये मेरे जीवन प्रवेश के लिए बहुत फायदेमंद रहा। इस तरह उजागर और काट-छाँट किए जाने पर, मैं अपने अंदर छिपे उन सभी लक्षणों को समझ पाई जो एक झूठे अगुआ में होते हैं, इससे मुझे सत्य की खोज करने और खुद को बदलने की प्रेरणा मिली। इतना ही नहीं, मैं अपनी उस अहंकारी, दुष्ट प्रकृति को भी देख पाई जिसने मुझे अपने नाम और रुतबे को बचाने के लिए किसी को सबसे अलग करने पर मजबूर कर दिया था। इसके द्वारा मैं अपनी भ्रष्टता के सत्य को स्पष्टता से देख पाई। मैं खुद से भीतर तक घृणा करती थी और सत्य खोजने और अपनी भ्रष्टता त्यागने में सक्षम हुई। यह मुझ पर परमेश्वर का विशेष अनुग्रह, प्रेम और उद्धार था। मैं परमेश्वर की बहुत आभारी हूँ!

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