87. आखिरकार मुझे शुद्धिकरण का मार्ग मिल गया

रिचर्ड, अमेरिका

मैं एक कैथोलिक परिवार में पैदा हुआ। 13 साल की उम्र में मैं धार्मिक शिक्षा लेने लगाऔर मेरा बपतिस्मा हो गया, फिर मैंने आधिकारिक तौर पर कैथोलिक धर्म से जुड़ गया। उसके बाद, मैंने तय किया कि परमेश्वर की सेवा करने के लिए मैं पादरी बनूँगा। इसलिए, 22 साल की उम्र में मैंने ईसाई मठ में दाखिला ले लिया। वहाँ मैंने धर्मशास्त्र और बाइबल के अलावा, कुछ और विषय भी पढ़े। लेकिन कुछ समय बीतने के बाद भी मुझे परमेश्वर से निकटता का एहसास नहीं हुआ। बार-बार मुझमें शादी करने और परिवार के साथ रहने की इच्छा जागती रही। मैंने बहुत प्रार्थना की, लेकिन फिर भी इसे दूर नहीं कर सका। मैंने परमेश्वर के सामने पवित्र रहने की कसम खाई थी ताकि मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकूँ। लेकिन अब मैं उस वायदे को त्यागना चाहता था। कहीं मैं पाप तो नहीं कर रहा था, परमेश्वर के सामने झूठ तो नहीं बोल रहा था? मैं परमेश्वर के राज्य में कैसे प्रवेश कर सकता था? मैं ईसाई मठ में 10 साल रहा। ग्रेजुएट होने के बाद, मैं इंडोनेशिया चला गया और वहाँ एक साल तक एक ईसाई मठ में रहा। लेकिन मेरे मन में समय-समय पर अपवित्र विचार आते रहे। मैं सच में बहुत निराश हो गया था। पढ़ाई पूरी करने के बाद, मैंने पैरिश का सामान्य सदस्य बनने का फैसला लिया। फिर मैंने घर जाकर शादी कर ली। लेकिन अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में, छोटी-छोटी बातों पर पत्नी से मेरी अक्सर बहस होती। मुझमें धीरज की भी कमी थी। कभी-कभी मैं अपने फ़ायदे के लिए झूठ बोलता। फिर अक्सर परमेश्वर के सामने कबूल करता और उन बातों पर बहुत प्रायश्चित करता। लेकिन फिर मैं वही सब करता। मैं परमेश्वर से अपने रिश्ते सुधारना चाहता था, इसलिए मैं मिस्सा में जाता और खूब प्रार्थना करता, लेकिन इससे मेरी समस्याओं का हल नहीं हुआ।

फिर 2014 में, मैं अमेरिका आ गया। प्रार्थना-सभा में मेरी मुलाकात ली और लिऊ से हुई, जो पैरिश में रहने वाले पादरी थे। जब भी मौका मिलता मैं उनसे धार्मिक आस्था से जुड़ी बातें करता। मुझे याद है एक बार जब हम बाइबल के बारे में बात कर रहे थे, तो लिऊ ने कहा कि वह एक ऐसे धार्मिक पादरी को जानता है जिन्हें बाइबल का अच्छा ज्ञान है। उन्हें चमकती पूर्वी बिजली में विश्वास है। उसने कहा कि कलीसिया के कुछ और उत्साही सदस्यों ने भी उसमें अपनी रुचि दिखाई है। वह जानना चाहते थे कि चमकती पूर्वी बिजली की कलीसिया आखिर है क्या और इतने सारे उत्साही विश्वासी उससे क्यों जुड़े हैं। मैं भी इससे भ्रमित हो गया था, क्योंकि मैं भी एक धार्मिक पादरी को जानता था जो चमकती पूर्वी बिजली से जुड़ा था। मुझे नहीं पता था कि चमकती पूर्वी बिजली का क्या उपदेश है या क्यों इतने सारे पवित्र विश्वासी इससे आकर्षित होते हैं। कहीं यह पवित्र आत्मा से प्रभावित तो नहीं? मैंने सोचा कि मैं इसके बारे में और पता करूँगा और देखूँगा कि इस कलीसिया के उपदेशों में इतना खास क्या है। मैंने सोचा कि क्या इससे परमेश्वर के प्रति मेरी भक्ति और ज्ञान में इज़ाफ़ा हो सकता है। यह सोचकर, मैंने ली और लिऊ से कहा कि मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया देखना चाहता हूँ। वो मेरे साथ चलने के लिए मान गए।

जब हम वहाँ गए, एक बहन ने हमारे लिए एक वीडियो चलाया, जिसका नाम था, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की उत्पत्ति और विकास।” इससे मैंने जाना कि प्रभु यीशु वापस आ गए हैं, जैसी कि मैंने उम्मीद की थी। वे देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर हैं जो अंत के दिनों में न्याय का कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त कर रहे हैं। यही वजह है कि हर संप्रदाय के वो लोग जो सत्य से प्यार करते हैं और परमेश्वर के प्रकटन के अभिलाषी हैं, वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं। वे जानते हैं कि यही सत्य और परमेश्वर की वाणी है। वे सर्वशक्तिमान परमेश्वर को स्वीकार करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के सुसमाचार का पूर्व में चीन से लेकर पश्चिम के कई देशों तक विस्तार हुआ है, जो प्रभु यीशु की इस भविष्यवाणी को पूरा करता है : “जैसे बिजली पूर्व से निकलकर पश्‍चिम तक चमकती है, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का भी आना होगा(मत्ती 24:27)। भविष्यवाणी को इस तरह पूरा होते देखकर मुझे सच में बहुत हैरानी हुई। मैं इतने सालों तक इसे बिना समझे-बूझे पढ़ता रहा था। फिर एक भाई ने एक सुसमाचार फ़िल्म चलाई जिसका नाम था “बाइबल और परमेश्वर।” इसने तो मुझे और ज़्यादा प्रभावित किया और मैंने जाना कि बाइबल में बहुत सारे रहस्य छुपे हैं। मैंने कई आध्यात्मिक किताबें पढ़ी थीं, लेकिन कभी कोई ऐसा धर्मशास्त्री या बाइबल का व्याख्याता मुझे नहीं मिला जो मुझे इतनी अच्छी तरह समझा सके कि बाइबल के पीछे का सत्य क्या है, कैसे इसकी उत्पत्ति हुई, और परमेश्वर से इसका रिश्ता क्या है। मैंने इस फ़िल्म से बहुत कुछ सीखा। मैं समझ गया कि क्यों इतने सारे उत्साही विश्वासी सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को सुनने के बाद उसे स्वीकारने लगे। मैंने अंत के दिनों के सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य की जाँच करने का फैसला किया।

हमारी चर्चाओं में, सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया के भाई-बहनों ने कहा कि अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर न्याय का कार्य परमेश्वर के घर से शुरू करने के लिए सत्य व्यक्त करते हैं ताकि मानवजाति को हमेशा के लिए शुद्ध करके बचाया जा सके। यह सुनकर मैं भ्रमित था, क्योंकि प्रभु यीशु ने सलीब पर कहा था, “पूरा हुआ।” इसका मतलब होना चाहिए था कि परमेश्वर का मानवजाति को बचाने का कार्य पूरा हुआ। तो हमें शुद्ध करने और बचाने के लिए, परमेश्वर को मानवजाति का न्याय करने की क्या ज़रूरत है? मैं यह जानना चाहता था, लेकिन काफ़ी देर हो गयी थी, इसलिए मैंने अगले दिन आना तय किया। घर जाते समय मैं बहुत उत्साहित था। मैंने उस दिन की संगति से बहुत कुछ सीखा और मुझे लगा जैसे मैं प्रभु के करीब आ गया हूँ। ऐसा लगा जैसे कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर का कार्य वाकई प्रभु का अंत के दिनों का था। यह एकदम अविश्वसनीय होगा, अगर प्रभु सच में वापस आ जाएँ और पतरस की तरह, मैं उनके साथ रह सकूँ। यह विचार बहुत रोमांचक था और मैं अगले दिन की संगति का और भी शिद्दत से इंतज़ार करने लगा।

अगले दिन जैसे ही मैं काम से वापस लौटा, मैं तुरंत सभा की जगह पहुँच गया और बिना समय गँवाए बहन से बोला, “आप कहती हैं कि प्रभु यीशु वापस आ गए हैं और वे अंत के दिनों का न्याय का कार्य करने के लिए सत्य व्यक्त करते हैं। ऐसा कैसे हो सकता है? लेकिन सलीब पर उन्होंने कहा था, ‘पूरा हुआ।’ इसका अर्थ यह हुआ कि परमेश्वर का मानवजाति को बचाने का कार्य पूरा चुका। हमारी आस्था की वजह से हमारे पापों को माफ़ कर दिया गया है। हमारी आस्था ने हमें उचित ठहराया है और बचा लिया है। जब अंत के दिनों में प्रभु आएँगे, वे हमें सीधे अपने राज्य में ले जाएँगे। वे और उद्धार का कार्य क्यों करेंगे?”

उस बहन ने कहा, “प्रभु यीशु ने कहा ‘पूरा हुआ’ क्योंकि उनका छुटकारे का कार्य पूरा हो गया था। इसका मतलब यह नहीं था कि परमेश्वर का मानवजाति को बचाने का कार्य पूरा हो गया। अगर हम यह सोचें कि परमेश्वर का मानवजाति को बचाने का कार्य पूरा हो गया, क्योंकि प्रभु यीशु ने कहा, ‘पूरा हुआ’ और जब वे वापस आएँगे तो नए कार्य नहीं करेंगे, तो प्रभु यीशु ऐसी भविष्यवाणियाँ क्यों करता? प्रभु ने कहा : ‘मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा(यूहन्ना 16:12-13)। ‘वो जो मुझे नकार देता है, और मेरे वचन नहीं स्वीकारता, उसका भी न्याय करने वाला कोई है : मैंने जो वचन बोले हैं वे ही अंत के दिन उसका न्याय करेंगे(यूहन्ना 12:48)। 1 पतरस 4:17 में भी कहा गया है : ‘क्योंकि वह समय आ चुका है कि परमेश्वर के घर से न्याय शुरू किया जाए।’ इन भविष्यवाणियों से पता चलता है कि अंत के दिनों में मानवजाति का न्याय करने और उन्हें शुद्ध करने के लिए, जब प्रभु आएंगे और ज़्यादा सत्य व्यक्त करेंगे और न्याय का कार्य करेंगे, ताकि इंसानों को शुद्ध कर उन्हें बचा सकें। अगर हम इंसानी धारणा पर चलते हुए कहें कि परमेश्वर का उद्धार का कार्य एकदम पूरा हो गया है, तो उनकी ये भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी होंगी? बाइबल भी भविष्यवाणी करती है कि अंत के दिनों में, प्रभु भेड़ों को बकरियों से, गेहूँ को खरपतवार से, बुद्धिमान कुंवारियों को मूर्खों से और अच्छे सेवकों को बुरे सेवकों से अलग करने के लिए लौटेगा, और सभी को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत करेंगे। जैसा कि प्रभु यीशु ने कहा था : ‘अच्छे बीज का बोनेवाला मनुष्य का पुत्र है। खेत संसार है, अच्छा बीज राज्य की सन्तान, और जंगली बीज दुष्‍ट की सन्तान हैं। जिस शत्रु ने उनको बोया वह शैतान है; कटनी जगत का अन्त है, और काटनेवाले स्वर्गदूत हैं। अतः जैसे जंगली दाने बटोरे जाते और जलाए जाते हैं वैसा ही जगत के अन्त में होगा। मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा, और वे उसके राज्य में से सब ठोकर के कारणों को और कुकर्म करनेवालों को इकट्ठा करेंगे, और उन्हें आग के कुण्ड में डालेंगे, जहाँ रोना और दाँत पीसना होगा। उस समय धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य के समान चमकेंगे। जिसके कान हों वह सुन ले(मत्ती 13:37-43)। प्रकाशित-वाक्य में भी यह भविष्यवाणी है कि अंत के दिनों में परमेश्वर, विजयी लोगों का एक समूह बनाएँगे और उनका राज्य पृथ्वी पर आएगा। अंत के दिनों में प्रभु ये सारा कार्य करेंगे। अगर हम इंसानी समझ के अनुसार यह कहें कि प्रभु यीशु के ‘पूरा हुआ’ कहने का अर्थ यह है कि मानवजाति को बचाने का परमेश्वर का कार्य एकदम पूरा हो गया है, तो वे भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी होंगी? तो यह प्रभु के वचनों की यह समझ स्पष्ट रूप से गलत है और प्रभु के आशय और परमेश्वर के कार्य की सच्चाई से एकदम अलग है।”

मैं उस बहन की संगति से पूरी तरह आश्वस्त था, और मैंने सुनते हुए हामी भरी। इतनी स्पष्ट बात को मैं कभी क्यों नहीं समझ सका? इसके बाद उन्होंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के कई अंश पढ़े : “क्योंकि मनुष्य को छुटकारा दिए जाने और उसके पाप क्षमा किए जाने को केवल इतना ही माना जा सकता है कि परमेश्वर मनुष्य के अपराधों का स्मरण नहीं करता और उसके साथ अपराधों के अनुसार व्यवहार नहीं करता। किंतु जब मनुष्य को, जो कि देह में रहता है, पाप से मुक्त नहीं किया गया है, तो वह निरंतर अपना भ्रष्ट शैतानी स्वभाव प्रकट करते हुए केवल पाप करता रह सकता है। यही वह जीवन है, जो मनुष्य जीता है—पाप करने और क्षमा किए जाने का एक अंतहीन चक्र। अधिकतर मनुष्य दिन में सिर्फ इसलिए पाप करते हैं, ताकि शाम को उन्हें स्वीकार कर सकें। इस प्रकार, भले ही पापबलि मनुष्य के लिए हमेशा के लिए प्रभावी हो, फिर भी वह मनुष्य को पाप से बचाने में सक्षम नहीं होगी। उद्धार का केवल आधा कार्य ही पूरा किया गया है, क्योंकि मनुष्य में अभी भी भ्रष्ट स्वभाव है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, देहधारण का रहस्य (4))। “यद्यपि यीशु ने मनुष्यों के बीच अधिक कार्य किया, फिर भी उसने केवल समस्त मानवजाति की मुक्ति का कार्य पूरा किया और वह मनुष्य की पाप-बलि बना; उसने मनुष्य को उसके समस्त भ्रष्ट स्वभाव से छुटकारा नहीं दिलाया। मनुष्य को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचाने के लिए यीशु को न केवल पाप-बलि बनने और मनुष्य के पाप वहन करने की आवश्यकता थी, बल्कि मनुष्य को उसके शैतान द्वारा भ्रष्ट किए गए स्वभाव से मुक्त करने के लिए परमेश्वर को और भी बड़ा कार्य करने की आवश्यकता थी। और इसलिए, अब जबकि मनुष्य को उसके पापों के लिए क्षमा कर दिया गया है, परमेश्वर मनुष्य को नए युग में ले जाने के लिए वापस देह में लौट आया है, और उसने ताड़ना एवं न्याय का कार्य आरंभ कर दिया है। यह कार्य मनुष्य को एक उच्चतर क्षेत्र में ले गया है। वे सब, जो परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन समर्पण करेंगे, उच्चतर सत्य का आनंद लेंगे और अधिक बड़े आशीष प्राप्त करेंगे। वे वास्तव में ज्योति में निवास करेंगे और सत्य, मार्ग और जीवन प्राप्त करेंगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, प्रस्तावना)। “परमेश्वर के ताड़ना और न्याय के कार्य का उद्देश्य सार रूप में अंतिम विश्राम की खातिर मानवता को शुद्ध करना है; अन्यथा संपूर्ण मानवता अपने प्रकार के मुताबिक़ विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत नहीं की जा सकेगी, या विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ होगी। यह कार्य ही मानवता के लिए विश्राम में प्रवेश करने का एकमात्र मार्ग है। केवल परमेश्वर द्वारा शुद्धिकरण का कार्य ही मनुष्यों को उनकी अधार्मिकता से शुद्ध करेगा और केवल उसकी ताड़ना और न्याय का कार्य ही मानवता के उन अवज्ञाकारी तत्वों को सामने लाएगा, और इस तरह बचाये जा सकने वालों से बचाए न जा सकने वालों को अलग करेगा, और जो बचेंगे उनसे उन्हें अलग करेगा जो नहीं बचेंगे। इस कार्य के समाप्त होने पर जिन्हें बचने की अनुमति होगी, वे सभी शुद्ध किए जाएँगे, और मानवता की उच्चतर दशा में प्रवेश करेंगे जहाँ वे पृथ्वी पर और अद्भुत द्वितीय मानव जीवन का आनंद उठाएंगे; दूसरे शब्दों में, वे अपने मानवीय विश्राम का दिन शुरू करेंगे और परमेश्वर के साथ रहेंगे। जिन लोगों को रहने की अनुमति नहीं है, उनकी ताड़ना और उनका न्याय किया गया है, जिससे उनके असली रूप पूरी तरह सामने आ जाएँगे; उसके बाद वे सब के सब नष्ट कर दिए जाएँगे और शैतान के समान, उन्हें पृथ्वी पर रहने की अनुमति नहीं होगी। भविष्य की मानवता में इस प्रकार के कोई भी लोग शामिल नहीं होंगे; ऐसे लोग अंतिम विश्राम की धरती पर प्रवेश करने के योग्य नहीं हैं, न ही ये उस विश्राम के दिन में प्रवेश के योग्य हैं, जिसे परमेश्वर और मनुष्य दोनों साझा करेंगे क्योंकि वे दंड के लायक हैं और दुष्ट, अधार्मिक लोग हैं। ... बुराई को दंडित करने और अच्छाई को पुरस्कृत करने के परमेश्वर के अंतिम कार्य के पीछे का पूरा उद्देश्य, सभी मनुष्यों को पूरी तरह शुद्ध करना है, ताकि वह पूरी तरह पवित्र मानवता को शाश्वत विश्राम में ला सके। उसके कार्य का यह चरण सबसे अधिक महत्वपूर्ण है; यह उसके समस्त प्रबंधन-कार्य का अंतिम चरण है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के ये वचन पढ़ने के बाद, उस बहन ने यह सहभागिता की : “प्रभु यीशु ने अनुग्रह के युग में छुटकारे का कार्य किया, मानवजाति को उसके पापों से छुटकारा दिलाया अगर हम उनमें आस्था रखते हैं, प्रार्थना करते हैं, पाप को स्वीकारते और पश्चाताप करते हैं, तो हमारे पापों को माफ़ कर दिया जाएगा। हम प्रभु के अनुग्रह का आनंद उठा सकते हैं और किसी भी व्यवस्था के तहत हम अपने पापों के लिए निंदित और दंडित नहीं होंगे। ‘आस्था से बचाव’ का यही असली मतलब है और प्रभु यीशु के छुटकारे के कार्य से यही हासिल हुआ। प्रभु यीशु हमारे पापों को माफ़ कर देते हैं और अब हम जानबूझकर पाप नहीं करते; कभी-कभार हम अच्छे काम करते हैं। लेकिन हम अब भी पाप से मुक्त नहीं हैं। हम फिर भी अपने फ़ायदे के लिए झूठ बोलते और धोखा देते हैं। हम लालची, ईर्षालु और द्वेषपूर्ण हैं। बुरे ख़यालों को मन में रखते हैं। सांसारिक चीज़ों के प्रलोभन से हम बच नहीं पाते। पैसा और हैसियत हमारी चाहत हैं। हम उन लोगों को नीचा दिखाते हैं जो हमारी पसंद के काम नहीं करते हैं। हम सबके अंदर घमंड, चालाकी, सत्य से ऊबने जैसे और कई शैतानी स्वभाव भरे हैं। बाहरी पापों की अपेक्षा शैतानी स्वभाव हममें अधिक गहराई से समाए हुए है। इन्हें हमारे अंदर शैतान भरता है और यही हमारे पापों की और परमेश्वर के विरोध की जड़ है। जब तक इनका समाधान नहीं होता, हम पाप करना नहीं छोड़ सकते और पाप के बंधन से आज़ाद नहीं हो सकते। बाइबल कहती है : ‘पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूँ(1 पतरस 1:16)। परमेश्वर पवित्र हैं और वैसा ही उनका राज्य है। वे उसमें अपवित्र इंसानों को आने की इजाज़त नहीं देते। जो लोग रोज़ पाप करते हैं, वो पाप के ग़ुलाम होते हैं, तो भला कैसे वो परमेश्वर के राज्य में प्रवेश के काबिल हो सकते हैं? प्रभु यीशु का छुटकारे का कार्य, मानवजाति को बचाने के परमेश्वर के कार्य का बस एक हिस्सा है, पूरा कार्य नहीं। हमारे पापों को बस माफ़ किया गया है, लेकिन न हम पाप से आज़ाद हुए हैं और न ही शैतान के प्रभाव से मुक्त हुए हैं। परमेश्वर ने अभी तक मानवजाति को पूरी तरह से प्राप्त नहीं किया है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में आए हैं। वो सत्य व्यक्त करते हैं और न्याय का कार्य करते हैं। इससे हमारा भ्रष्ट स्वभाव साफ़ होगा और परमेश्वर का विरोध करने वाली हमारी पापी शैतानी प्रकृति का समाधान होगा। हम पाप के बंधनों से पूरी तरह आज़ाद हो जाएँगे, बचाए जाएँगे और परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकेंगे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के प्रकटन और कार्य से अच्छे और बुरे सेवकों, भेड़ों और बकरियों, गेहूँ और खरपतवार, बुद्धिमान और मूर्ख कुंवारियों के बीच का अंतर भी स्पष्ट हो जाता है। ऐसे लोग जो परमेश्वर की वाणी सुनना नहीं चाहते, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्यों की अनदेखी करते हैं, उनकी निंदा करते हैं, वे मूर्ख कुंवारियाँ, खरपतवार और बुरे सेवक हैं, जो आखिरकार मुसीबत में घिरेंगे, रोएँगे और अपने दाँत पीसेंगे। ऐसे लोग जो सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों में परमेश्वर की वाणी को पहचानते हैं और उनके अंत के दिनों के कार्य को स्वीकारते हैं, वे बुद्धिमान कुंवारियाँ, गेहूँ और भेड़ हैं। अंत के दिनों में परमेश्वर उनके साथ न्याय करेंगे, उनका शुद्धिकरण होगा, और आखिरकार उन्हें परमेश्वर के राज्य में लाया जाएगा। इस तरह प्रकाशित-वाक्य की भविष्यवाणियाँ पूरी तरह साकार होती हैं। तो जब परमेश्वर का अंत के दिनों का न्याय कार्य पूरा होने लगेगा, तब परमेश्वर का मानवजाति को बचाने का प्रबंधन कार्य एकदम पूरा हो जाएगा।”

उनकी संगति से मेरी आँखें खुल गईं। मैं समझ गया कि प्रभु यीशु ने सिर्फ़ छुटकारे का कार्य किया था। अंत के दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर का न्याय का कार्य ही मानवजाति को पूरी तरह शुद्ध करके बचा सकता है। हमारी आस्था की वजह से हमारे पापों से हमें छुटकारा तो मिल जाता है, लेकिन हमारी पापी प्रकृति अभी तक गहराई तक समाई हुई है, इसी वजह से हम निरंतर पाप करने और कबूल करने की अवस्था में रहते हैं। मैं बस इतना कर सकता था कि खुद को पाप करने से रोकूँ, धर्मशास्त्र पढ़ूँ और ईसाई मठ के नियमों का पालन करूँ, पर इन सब के बावजूद मैं पाप करता रहा। फिर मैं समझा कि इस पाप की समस्या का समाधान करने का सिर्फ़ एक तरीका है, अंत के दिनों में परमेश्वर द्वारा मेरा न्याय करना और मुझे शुद्ध करना। मैंने उत्सुकता से इस बहन से पूछा कि किस तरह सर्वशक्तिमान परमेश्वर, न्याय का कार्य करके लोगों को शुद्ध करते हैं। उन्होंने परमेश्वर के वचनों के पाठ का एक वीडियो चलाया। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहते हैं : “अंत के दिनों का मसीह मनुष्य को सिखाने, उसके सार को उजागर करने और उसके वचनों और कर्मों को विश्लेषित करने के लिए विभिन्न प्रकार के सत्यों का उपयोग करता है। इन वचनों में विभिन्न सत्यों का समावेश है, जैसे कि मनुष्य का कर्तव्य, मनुष्य को परमेश्वर के प्रति समर्पण किस प्रकार करना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार परमेश्वर के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, मनुष्य को किस प्रकार सामान्य मनुष्यता का जीवन जीना चाहिए, और साथ ही परमेश्वर की बुद्धिमत्ता और उसका स्वभाव, इत्यादि। ये सभी वचन मनुष्य के सार और उसके भ्रष्ट स्वभाव पर निर्देशित हैं। खास तौर पर वे वचन, जो यह उजागर करते हैं कि मनुष्य किस प्रकार परमेश्वर का तिरस्कार करता है, इस संबंध में बोले गए हैं कि किस प्रकार मनुष्य शैतान का मूर्त रूप और परमेश्वर के विरुद्ध शत्रु-बल है। अपने न्याय का कार्य करने में परमेश्वर केवल कुछ वचनों के माध्यम से मनुष्य की प्रकृति को स्पष्ट नहीं करता; बल्कि वह लंबे समय तक उसे उजागर करता है, और उसकी काट-छाँट करता है। उजागर करने, और काट-छाँट करने की इन तमाम विधियों को साधारण वचनों से नहीं, बल्कि उस सत्य से प्रतिस्थापित किया जा सकता है, जिसका मनुष्य में सर्वथा अभाव है। केवल इस तरह की विधियाँ ही न्याय कही जा सकती हैं; केवल इस तरह के न्याय द्वारा ही मनुष्य को वशीभूत और परमेश्वर के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त किया जा सकता है, और इतना ही नहीं, बल्कि मनुष्य परमेश्वर का सच्चा ज्ञान भी प्राप्त कर सकता है। न्याय का कार्य मनुष्य में परमेश्वर के असली चेहरे की समझ पैदा करने और उसकी स्वयं की विद्रोहशीलता का सत्य उसके सामने लाने का काम करता है। न्याय का कार्य मनुष्य को परमेश्वर की इच्छा, परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य और उन रहस्यों की अधिक समझ प्राप्त कराता है, जो उसकी समझ से परे हैं। यह मनुष्य को अपने भ्रष्ट सार तथा अपनी भ्रष्टता की जड़ों को जानने-पहचानने और साथ ही अपनी कुरूपता को खोजने का अवसर देता है। ये सभी परिणाम न्याय के कार्य द्वारा लाए जाते हैं, क्योंकि इस कार्य का सार वास्तव में उन सभी के लिए परमेश्वर के सत्य, मार्ग और जीवन का मार्ग प्रशस्त करने का कार्य है, जिनका उस पर विश्वास है। यह कार्य परमेश्वर के द्वारा किया जाने वाला न्याय का कार्य है(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, मसीह न्याय का कार्य सत्य के साथ करता है)। हमारे वीडियो देख लेने के बाद उन्होंने अपनी संगति जारी रखी। “लोगों का न्याय करने और उन्हें शुद्ध करने के लिए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर अंत के दिनों में सत्य व्यक्त करते हैं। वे सारे सत्य व्यक्त करते हैं, जिन्हें भ्रष्ट मानवजाति को शुद्ध होने और बचाए जाने के लिए समझना और अमल में लाना ज़रूरी है। उन्होंने अपनी 6,000 साल की प्रबंधन योजना के रहस्यों को उजागर किया है, और देहधारी परमेश्वर के कार्यों के रहस्य, और अंत के दिनों में किए गए उनके न्याय कार्य और उसके नामों के रहस्य से पर्दा उठाया है। वे इसकी वजह का खुलासा करते हैं कि क्यों मानवजाति पाप करती है और परमेश्वर का विरोध करती है। वे शैतान द्वारा हमारी भ्रष्टता के सत्य और सभी तरह की भ्रष्ट अवस्थाओं को उजागर करते हैं। इसके अलावा, वे परमेश्वर के पवित्र और धार्मिक स्वभाव को उजागर करते हैं, जिसका अपमान नहीं किया जा सकता है। वे हमें यह भी बताते हैं कि उनको कौन अच्छा लगता है और कौन बुरा, कौन परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सकता है और किसको सज़ा मिलेगी, और हर किस्म के व्यक्ति की मंज़िल और परिणाम क्या है। वे हमें अपने जीवन स्वभाव को बदलने का रास्ता भी दिखाते हैं। परमेश्वर के चुने हुए लोग अब परमेश्वर के वचनों के न्याय और ताड़ना से गुज़र कर, अब आखिरकार देखते हैं कि शैतान ने हमें कितना अधिक भ्रष्ट किया है। हमारे अंदर घमंड और धोखेबाज़ी जैसे शैतानी स्वभाव भरे हैं। हम इंसानों की तरह जरा भी नहीं जीते। हम परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को भी देखते हैं जो अपमान नहीं सहता और हमारा दिल परमेश्वर का भय मानने लगता है। हम सच में पश्चात्ताप करते और खुद से नफ़रत करने लगते हैं और दैहिक इच्छाओं का त्याग करके सत्य का अभ्यास करना चाहते हैं। इससे हमारा भ्रष्ट स्वभाव धीरे-धीरे बदल जाता है और हम परमेश्वर के प्रति विद्रोही और अवज्ञापूर्ण नहीं रह जाते, बल्कि उसके प्रति आज्ञाकारी हो जाते हैं।” संगति के बाद उसने मेरे लिए “सत्य की रोशनी प्रकट होती है” नामक गवाही वाला वीडियो चलाया। इसके मुख्य किरदार के पास कुछ प्रतिभा है जिसका रोब वह सब पर डालता है और दूसरों को कमतर समझता है। वह घमंडी है और दूसरों को नीचा दिखाता है। वह चाहता है कि सब उसकी सुनें। वह विश्वासी है और प्रार्थना करके पापों को स्वीकार करता है, लेकिन उसकी गुस्सा करने और दूसरों को डांटने की आदत जाती नहीं है। उसके सभी सहकर्मी उससे दूर रहते हैं, उसकी पत्नी और बेटी उससे डरते हैं। उसका एक भी हमराज़ नहीं है। पाप में रहते हुए, वह बहुत कष्ट भोगता है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार करने के बाद, परमेश्वर के वचनों का न्याय और प्रकाशन उसे दिखाता है कि उसकी प्रवृत्ति हमेशा खुद को आगे रखने, अपना फ़ायदा कराने और दूसरों से आज्ञा का पालन कराने की है। इसकी वजह है उसका घमंडी और अविवेकी होना, और यह शैतानी स्वभाव की अभिव्यक्तियाँ हैं। यह परमेश्वर को पसंद नहीं है और इससे दूसरे लोग दूर हो जाते हैं। एक बार जब वह यह समझ जाता है तो वह सच में खुद से नफ़रत करने लगता है और पछताने लगता है। फिर वह औरों से नरमी से पेश आने लगता है। और जब कोई मुश्किल सामने आती है, तो वह दैहिक इच्छाओं का त्याग करके, सत्य को तलाशता है और दूसरों की सुनता है। वह धीरे-धीरे पहले से कम घमंडी बन जाता है।

इस वीडियो को देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने देखा कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन सत्य हैं, वो सच में लोगों को शुद्ध करके उन्हें बदल सकते हैं। फिर जब भी मौका मिलता, मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों को पढ़ने लगता और सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया की सुसमाचार फ़िल्मों और भजनों के वीडियो देखता। जितना ज़्यादा मैं इन्हें देखता उतना ही मैंने दिल में स्पष्टता महसूस करता। मुझे यकीन हो गया था कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन ही सत्य और पवित्र आत्मा की वाणी हैं, सर्वशक्तिमान परमेश्वर ही वापस लौटे प्रभु हैं। मैंने सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अंत के दिनों के कार्य को स्वीकार कर लिया। परमेश्वर का धन्यवाद।

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40. एक अलग प्रकार का उद्धार

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परमेश्वर का प्रकटन और कार्य परमेश्वर को जानने के बारे में अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन मसीह-विरोधियों को उजागर करना अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ सत्य के अनुसरण के बारे में I सत्य के अनुसरण के बारे में न्याय परमेश्वर के घर से शुरू होता है अंत के दिनों के मसीह, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के अत्यावश्यक वचन परमेश्वर के दैनिक वचन सत्य वास्तविकताएं जिनमें परमेश्वर के विश्वासियों को जरूर प्रवेश करना चाहिए मेमने का अनुसरण करो और नए गीत गाओ राज्य का सुसमाचार फ़ैलाने के लिए दिशानिर्देश परमेश्वर की भेड़ें परमेश्वर की आवाज को सुनती हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनो परमेश्वर के प्रकटन को देखो राज्य के सुसमाचार पर अत्यावश्यक प्रश्न और उत्तर मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 1) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 2) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 3) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 4) मसीह के न्याय के आसन के समक्ष अनुभवात्मक गवाहियाँ (खंड 5) मैं वापस सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पास कैसे गया

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