97. बहुत अधिक भावनात्मक लगाव के परिणाम

सू शिंग, चीन

जब मैं एक साल उपयाजक के रूप में कार्यरत था, तो उस दौरान परमेश्वर के घर ने हमारे सदस्यों के बीच से सभी गैर-विश्वासियों, कुकर्मियों और मसीह-विरोधियों को हटाने के लिए कलीसिया की स्वच्छता का आदेश दिया। इस तरह की स्वच्छता से ही परमेश्वर के चुने हुए लोगों के सामान्य कलीसियाई जीवन को सुनिश्चित किया जा सकता है। इसके तुरंत बाद, हमारी कलीसिया ने इन तीनों प्रकार के लोगों की जांच शुरू की।

एक दिन, कलीसियाई अगुआ, भाई वांग ज़िचेंग ने मुझसे मिलकर कहा : “तुम्हारी पत्नी अक्सर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है और सभाओं के दौरान अगुआओं और कर्मियों की आलोचना करती है। जब दो उपयाजकों ने इस समस्या की ओर इशारा किया, तो न केवल उसने इस बात को स्वीकार नहीं किया, बल्कि उनके प्रति द्वेष रखकर पीठ पीछे उनकी निंदा करने लगी। इस कारण हमारे कुछ भाई-बहन अगुआओं और कर्मियों के प्रति पूर्वाग्रह रखने लगे हैं जिससे कलीसिया के जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ा है। हमने उससे संगति कर उसकी मदद की, और उसकी काट-छाँट भी की, लेकिन उसे तब भी अपने तौर-तरीकों में कोई दोष नजर नहीं आया, उसने न तो पश्चात्ताप किया और न ही उसमें कोई बदलाव आया।” ज़िचेंग भी सामान्य रूप से उसके व्यवहार के बारे में अधिक जानना चाहते थे, इसलिए उन्होंने मुझे एक मूल्यांकन लिखने को कहा ताकि निर्णय लिया जा सके कि क्या उसे हटा देना चाहिए। उस समय मुझे कुछ निराशा हुई। ज़िचेंग सच बोल रहे थे—मेरी पत्नी वाकई यह कहकर अक्सर अगुआओं और कर्मियों की आलोचना करती थी कि वे गैर-जिम्मेदार हैं और व्यावहारिक काम नहीं करते। जबकि सच तो यह है कि अगुआओं ने अपने काम में कुछ परिणाम हासिल किए थे और कुछ व्यावहारिक मुद्दों को हल करने में भी सफलता पाई थी, लेकिन मेरी पत्नी छोटी-छोटी बातों में बाल की खाल निकालकर अगुआओं के हर काम में खामियां ढूंढ़ती थी। मैं इस मुद्दे पर उससे पहले भी संगति कर चुका था, लेकिन उसने अपने तौर-तरीके नहीं बदले और सभा समूह में अगुआओं की आलोचना करना जारी रखा। जब उसके समूह के अगुआ, भाई यांग यानयी ने उससे कहा कि उसे सभाओं के दौरान अगुआओं और कर्मियों की आलोचना नहीं करनी चाहिए, इससे कलीसिया का जीवन बाधित होता है, तो उसने यह कहते हुए उसकी निंदा करनी शुरू कर दी कि वह तो केवल शब्दों और धर्म-सिद्धांतों की बात करता है, और उसमें सत्य वास्तविकता का अभाव है। उसने यहां तक कह दिया कि वह सभा के दौरान भाई-बहनों का समय बर्बाद कर रहा है, जबकि सच यह है कि यानयी की अधिकांश संगति काफी व्यावहारिक थी। मेरी पत्नी के कार्यकलाप कलीसिया के जीवन को बाधित कर रहे थे और अगर कलीसिया की जांच के दौरान, यह पाया गया कि वह कुकर्मी है, तो उसे कलीसिया से निकाल दिया जाएगा। उस समय, मैंने मन ही मन सोचा : “अगर उसे निकाल दिया गया, तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि वह उद्धार प्राप्त नहीं कर पाएगी?” इस बात का एहसास होने पर, मैंने अगुआ से कहा : “मेरी पत्नी द्वारा इन गड़बड़ियों और विघ्नों का कारण यह है कि उसने केवल दो साल पहले ही अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किया है, उसे अभी तक सत्य की समझ नहीं है। घर लौटने पर मैं उसके साथ संगति कर कोशिश करूँगा कि वह पश्चात्ताप करे। तब तक के लिए क्या हम मूल्यांकन रुकवा सकते हैं?” ज़िचेंग ने मुझसे संगति करते हुए कहा कि परमेश्वर के घर ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि कलीसिया के कार्य को बाधित करने वाले कुकर्मियों और गैर-विश्वासियों को हटा दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें सामान्य कलीसियाई जीवन को प्रभावित करने से रोका जा सके। उन्होंने मुझे अपना मूल्यांकन जल्द से जल्द पूरा करने को कहा और आश्वासन दिया कि कलीसिया उसके पूरे व्यवहार के आधार पर सिद्धांत के अनुसार निष्पक्ष निर्णय करेगी। मुझे पता था कि ज़िचेंग सही कह रहे हैं, लेकिन जब अपनी पत्नी का मूल्यांकन लिखने की बात आई, तो मुझे अच्छा नहीं लगा। जब से मैंने और मेरी पत्नी ने आस्था में प्रवेश किया है, तब से हमने बहुत कष्ट सहे हैं। जब हमारे पास-पड़ोसी हमारा मजाक उड़ाते और उपहास किया करते थे तो हमें बहुत बुरा लगता था, यहां तक कि हमारे करीबी दोस्तों और परिवार ने भी हमें छोड़ दिया था—हमने एक साथ बहुत ही कठिन समय गुजारा है। अगर मैंने उसके सभी दुष्ट व्यवहारों के बारे में लिख दिया और आखिर उसे निकाल दिया गया, तो उसने जो कुछ कष्ट सहे, क्या वे सब व्यर्थ नहीं हो जाएँगे? इसके अलावा, अगर उसे पता चला कि मेरे मूल्यांकन की वजह से ही उसके सभी दुष्ट व्यवहारों को उजागर किया गया है, तो क्या वह यह नहीं कहेगी कि मैंने हमारे वैवाहिक बंधन की उपेक्षा की है और मैं पत्थरदिल इंसान हूँ? मैंने मन में सोचा : “जाने दो। मुझे नहीं लिखना चाहिए।” लेकिन फिर मैंने पुनर्विचार किया : “यह बात तो मैं स्पष्ट रूप से जानता हूँ कि मेरी पत्नी कलीसियाई जीवन को बाधित कर रही है। अगर मैंने अपनी पत्नी के व्यवहार के बारे में तुरंत कलीसिया को रिपोर्ट नहीं की, तो क्या मैं सच्चाई छिपाकर उसके किए पर पर्दा नहीं डाल रहा हूँ? परमेश्वर इससे नाराज हो जाएगा!” यह सोचकर, मैं दुखी और बेचैन हो गया। मैं पत्नी के प्रति अपना भावनात्मक लगाव नहीं छोड़ पा रहा था, मैं समझ नहीं पा रहा था कि कैसे आगे बढ़ूँ। अगले कुछ दिनों तक, जब मैं घर लौटता तो अपनी पत्नी के साथ संगति करता और उसे पश्चात्ताप करने के लिए प्रोत्साहित करता। वह बेमन से हाँ तो कर देती, लेकिन जब मैं उस पर दबाव डालता, तो वह नाराज हो जाती और मेरी संगति को भी नकार देती। उसमें थोड़ा-सा भी सुधार होता न देख, मैं इतना परेशान हो गया कि न तो ठीक से कुछ खा पाता था और न रात को ठीक से सो पाता था।

फिर सहकर्मियों की एक बैठक में, एक अगुआ ने ताड़ लिया कि मुझ पर भावनात्मक लगाव हावी है, और मैंने मूल्यांकन अभी तक नहीं लिखा है, और उसने मुझसे संगति करते हुए कहा : “परमेश्वर के घर में सत्य का बोलबाला होता है। किसी भी कुकर्मी को बख्शा नहीं जाएगा और किसी अच्छे व्यक्ति पर गलत आरोप नहीं लगाया जाएगा। इस कलीसिया के एक उपयाजक होने के नाते, कलीसिया के कार्य को संरक्षित करने के लिए तुम्हें सत्य का अभ्यास करने की मिसाल पेश करनी चाहिए।” अगुआ की संगति सुनकर मुझे थोड़ी शर्मिंदगी हुई। वास्तव में, एक कलीसिया के उपयाजक के नाते, यदि कलीसिया मेरी पत्नी की स्थिति के बारे में और अधिक जानना चाहता है, तो मुझे सक्रियता से सहयोग करना चाहिए। इसके बजाय, मैं मूल्यांकन लिखने में देरी कर कलीसिया के काम को संरक्षित करने में नाकाम रहा। वास्तव में, यह मेरी पत्नी के लिए एक चेतावनी और यह समझने का मौका था कि उसके साथ कुछ समस्या है। यदि समय रहते वह सत्य स्वीकार कर पश्चात्ताप कर ले और अपने अंदर बदलाव ले आए, तो इसका सकारात्मक परिणाम हो सकता है। घर लौटकर, जैसे ही मैं अपना मूल्यांकन लिखने की तैयारी करने लगा, तो मैंने देखा कि मेरी पत्नी घर के कामों में पूरी कर्तव्यपरायणता से लगी हुई है और मैं ठिठक गया। मैंने तुरंत परमेश्वर से मार्गदर्शन की प्रार्थना की ताकि मैं अपनी सांसारिक भावनाओं से ऊपर उठकर सत्य का अभ्यास करूँ और कलीसिया के कार्य को कायम रखूँ। प्रार्थना पूरी होने के बाद, मेरे मन में परमेश्वर के ये वचन आए : “सार में, अनुभूतियां क्या होती हैं? वे एक तरह का भ्रष्ट स्वभाव हैं। अनुभूतियों की अभिव्यक्तियोँ को कई शब्दों का उपयोग करते हुए बताया जा सकता है : पक्षपात, सिद्धांतहीन तरीके से दूसरों की रक्षा करने की प्रवृत्ति, भौतिक संबंध बनाए रखना, और पक्षपात; ये ही अनुभूतियां हैं(वचन, खंड 3, अंत के दिनों के मसीह के प्रवचन, सत्य वास्तविकता क्या है?)। “भावनाओं से संबंधित कौन-से मुद्दे हैं? एक तो यह है कि तुम अपने परिवार का मूल्यांकन कैसे करते हो, तुम उनके द्वारा किए जाने वाले कामों पर कैसी प्रतिक्रिया देते हो। ‘उनके द्वारा किए जाने वाले कामों’ में शामिल हैं उनका कलीसिया के काम को अस्त-व्यस्त करना, लोगों की पीठ पीछे उनकी आलोचना करना, गैर-विश्वासियों वाले काम करना, इत्यादि। क्या तुम अपने परिवार द्वारा की जाने वाली इन चीजों के प्रति निष्पक्ष हो सकते हो? अगर तुम्हें लिखित रूप में तुम्हारे परिवार का मूल्यांकन करने के लिए कहा जाए, तो क्या तुम अपनी भावनाओं को एक तरफ रखकर तटस्थ और निष्पक्ष रूप से ऐसा करोगे? यह इससे संबंधित है कि तुम्हें परिवार के सदस्यों का सामना कैसे करना चाहिए। और क्या तुम उन लोगों के प्रति भावुक हो, जिनके साथ तुम उठते-बैठते हो या जिन्होंने पहले कभी तुम्हारी मदद की है? क्या तुम उनके कार्यों और व्यवहार के प्रति तटस्थ, निष्पक्ष और सटीक होगे? क्या तुम उन्हें कलीसिया के काम को अस्त-व्यस्त करते पाकर तुरंत उनकी रिपोर्ट करोगे या उन्हें उजागर करोगे? इसके अलावा, क्या तुम उन लोगों के प्रति भावुक हो, जो तुम्हारे करीब हैं या जिनके हित समान हैं? क्या उनके कार्यों और व्यवहार के प्रति तुम्हारा मूल्यांकन, परिभाषा और प्रतिक्रिया निष्पक्ष और तटस्थ होगी? और अगर सिद्धांत के तकाजे से कलीसिया तुमसे भावनात्मक रूप से संबंधित किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई कदम उठाए और वे कदम तुम्हारी धारणाओं के विपरीत हों, तो तुम कैसे प्रतिक्रिया करोगे? क्या तुम आज्ञापालन करोगे? क्या तुम उनके साथ गुप्त रूप से संपर्क बनाए रखोगे, क्या तुम अभी भी उनके द्वारा फुसलाए जाते रहोगे, क्या तुम अभी भी उनके लिए बहाने बनाने, उन्हें सही ठहराने और उनका बचाव करने के लिए तैयार हो जाओगे? क्या तुम उनके दोष अपने सिर लेकर उनकी मदद करोगे, जिन्होंने तुम पर दया दिखाई है, जो सत्य सिद्धांतों से बेखबर हैं और परमेश्वर के घर के हितों की परवाह नहीं करते? ये सारे भावनात्मक मुद्दे हैं, है न?(वचन, खंड 5, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ, अगुआओं और कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियाँ (2))। परमेश्वर के वचनों ने खुलासा किया कि प्रबल भावनात्मक लगाव के चलते लोग सिद्धांत के अनुसार आचरण नहीं करते, फिर उनसे निष्पक्ष रहकर कार्य करने की अपेक्षा तो क्या ही करें। इसके बजाय, वे अपनों का पक्ष लेकर और कलीसिया के हितों को ताक पर रखकर अपने सांसारिक संबंध बनाए रखते हैं। जब मैंने खुद को परमेश्वर के वचनों की कसौटी पर कसा, तो देखा कि मैं अपनों के मोह में कुछ ज्यादा ही फँसा हूँ। मैं अच्छी तरह जानता था कि मेरी पत्नी अक्सर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है, अगुआओं और कर्मियों की आलोचना कर कलीसियाई जीवन को बाधित करती है, ऐसे में मुझे सत्य का अभ्यास कर उसके दुष्ट व्यवहार को उजागर करना चाहिए। ऐसा करने पर ही मैं परमेश्वर की इच्छा के प्रति सतर्क रहकर कलीसिया के कार्य को सुरक्षित रख पाऊँगा। फिर भी, क्योंकि मैं अपने पारिवारिक बंधन को छोड़ नहीं पाया था, मुझे डर था कि कहीं मेरी पत्नी अपने उद्धार का अवसर गँवा न दे और मुझसे नाराज न हो जाए, मैं उसकी तरफदारी करता रहा, उसका बचाव करता रहा, मैंने उसका मूल्यांकन लिखने में देरी की और उसे कलीसिया को बाधित करने दिया। उसके बचाव में, मैंने कलीसिया के काम पर जरा भी ध्यान नहीं दिया और न ही यह सोचा था कि इससे भाई-बहनों के जीवन को कितना नुकसान पहुँचेगा। मैं वाकई नीच था! इन बातों का एहसास होने पर, मैंने सोचा : “अब मैं अपने विवेक के खिलाफ जाकर परमेश्वर को नाराज नहीं कर सकता। मुझे सत्य का अभ्यास करना चाहिए, सांसारिक भावनाएं त्याग कर उसके दुष्ट व्यवहार को उजागर करना चाहिए।” इसी के साथ मैंने पेन उठाया और पत्नी का हर वह बुरा व्यवहार लिख दिया, जो मैंने देखा था। कुछ दिनों बाद, अगुआओं और कर्मियों ने इस सिद्धांत के आधार पर कि मेरी पत्नी में खराब मानवता है, उसने कई बार कलीसियाई जीवन को बाधित किया है, यह निर्णय लिया कि उसे निकाल देना चाहिए, लेकिन चूँकि उसे अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार किए हुए कुछ ही समय हुआ था, इसलिए उसे पश्चात्ताप का एक और मौका मिलेगा। उसकी काट-छाँट की जाएगी, और चेतावनी दी जाएगी, लेकिन इसके बावजूद अगर उसने पश्चात्ताप नहीं किया, तो उसे निष्कासित कर दिया जाएगा। यह खबर सुनकर मुझे राहत मिली कि उसके पास अभी भी अपने आपको सुधारने का मौका था। मैंने निश्चय किया कि मैं जी-जान लगाकर पत्नी को अपना दुष्ट व्यवहार पहचानने और परमेश्वर के आगे पश्चात्ताप करने में मदद करूँगा। अगर वह पश्चात्ताप कर खुद को बदल सके, तो उसे हटाया नहीं जाएगा। अगर ऐसा हो जाए, तो अभी भी उम्मीद रहेगी कि वह उद्धार प्राप्त कर ले। घर पहुँचकर मैंने अपनी पत्नी को उसकी सारी समस्याएँ बताईं और पश्चात्ताप करने के इस अवसर का लाभ उठाने का आग्रह किया। उस समय, वह मेरी बात से सहमत हो गई। उसके बाद, उसने भाई-बहनों से बहस करना और सभाओं में अगुआओं और कर्मियों की आलोचना करना बंद कर दिया। कलीसिया ने उसे जब भाई-बहनों की मेजबानी का काम सौंपा, तो उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया, कम से कम उसके व्यवहार से ऐसा लगा कि उसने खुद को काफी संयमित कर लिया है। मुझे उसमें यह बदलाव देखकर बहुत खुशी हुई, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, उसका असली चेहरा फिर सामने आने लगा।

एक बार, एक सभा में एक समूह अगुआ बहन लियू यी ने पूछ लिया कि हमें कैसे अभ्यास करना चाहिए, और परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के सत्य में कैसे प्रवेश करना चाहिए। यह सुनकर, मेरी पत्नी ने लियू यी की निंदा करते हुए कहा : “तुमने पहले मुझे यह कहकर उजागर किया कि मैंने अगुआओं और कर्मियों की आलोचना और बुराई की, लेकिन तुम्हें खुद परमेश्वर का भय मानने और बुराई से दूर रहने के सत्य की समझ तक नहीं है! तुम इस समूह की अगुआ क्यों हो? तुम्हें मेरी आलोचना करने का क्या हक है?” वह लियू यी के खिलाफ अपशब्द बोलकर विषवमन करती रही, दूसरों के मना करने पर भी उसने रुकने से इनकार कर दिया। आखिरकार, उसका बड़बड़ाना इतना तेज हो गया कि एक पड़ोसी आकर पूछने लगा कि क्या चल रहा है और सुरक्षा की दृष्टि से सभा को रोकना पड़ा। जब मुझे इस घटना का पता चला, तो मैंने उसकी काट-छाँट करते हुए कहा कि उसका विषवमन कलीसियाई जीवन में विघ्न डाल उसे बाधित कर रहा है, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थी, यहां तक कि उसने अपना बचाव करने की भी कोशिश की। उसके बाद वह मुझसे नाराज हो गई और मेरी उपेक्षा करती रही। मेरे साथ उसका यह रवैया वाकई मनोबल गिराने वाला था। फिर, चूँकि मैं अपने गृहनगर में विश्वासियों के बीच काफी प्रसिद्ध था, और इसलिए भी कि सुसमाचार फैलाने के लिए एक दुष्ट व्यक्ति ने मेरी रिपोर्ट कर दी थी, मुझे और मेरी पत्नी को अपने कर्तव्यों के निर्वहन के लिए मजबूरन घर से दूर एक नई कलीसिया में जाना पड़ा। एक बार एक सभा के दौरान, मेरी पत्नी परमेश्वर के वचनों के अंश को ठीक से समझ नहीं पाई और दूसरे भाई-बहनों ने उसकी गलती की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह परमेश्वर के वचनों की प्रामाणिक व्याख्या नहीं है। लेकिन मेरी पत्नी मानने को तैयार नहीं थी और अपनी बात पर इस हद तक अड़ी रही कि इससे सभा का पूरा प्रवाह ही बाधित हो गया। ऐसे ही एक और बार, वह एक ऐसे कुकर्मी के बचाव में उतर आई जिसे कलीसिया निष्कासित करने की तैयारी कर रही थी और कलीसिया के काम को बुरी तरह बाधित किया। जब मुझे इस बारे में पता चला, तो मैंने उसकी काट-छाँट कर उसे उजागर किया, लेकिन वह मेरी बात मानने को तैयार ही नहीं थी, उसे तो लगा कि वह एकदम सही है। एक अन्य अवसर पर, मेरी पत्नी ने कहीं से सुना कि कलीसिया का अगुआ खतरे में है और इसलिए उसने अगुआ को सभा में शामिल होने से यह कहते हुए रोक दिया कि वह अन्य प्रतिभागियों को खतरे में डाल देगा। उसने यहाँ तक कह दिया कि वह तो कलीसिया के काम की रक्षा कर रही है और भाई-बहनों के बीच भय का बीज बो दिया, उनसे कहा कि वे उस अगुआ के साथ न जुड़ें। उसे असल में पता ही नहीं था कि वह क्या बोल रही है और हर तरह के हास्यास्पद बयान और हरकतें कर रही थी जो सीधे तौर पर कलीसियाई जीवन को बाधित कर रहे थे। जो कुछ हुआ, उसे सुनकर मैं क्रोधित और परेशान हो गया और यह कहते हुए उससे संगति की : “तुमने अगुआ को सभा में शामिल होने से रोका, भाई-बहनों के बीच भय के बीज बोए, लोगों को अगुआ के संपर्क में आने से रोका और अगुआ की कर्तव्य करने की योग्यता को अवरुद्ध किया। क्या तुम बुराई करके कलीसियाई जीवन को बाधित नहीं कर रही हो? पहले, कलीसिया ने तुम्हें तमाम बुराइयाँ करने पर इसलिए नहीं निकाला क्योंकि तब तुम्हें विश्वासी बने कुछ ही समय हुआ था। उन्होंने तुम्हें पश्चात्ताप करने का मौका दिया, लेकिन तुमने पश्चात्ताप करने के बजाय बुराई करना जारी रखा। अगर तुम्हारा यही हाल रहा, तो फिर तुम्हारा निष्कासन तय है। तब तुम उद्धार कैसे प्राप्त करोगी?” उसने गर्दन नीचे कर ली और कुछ नहीं कहा। उसमें आत्म-जागरूकता नहीं थी और आगे चलकर भी अपने व्यवहार में कोई सुधार नहीं किया। जब मैं उसकी काट-छाँट कर उसे उजागर कर रहा था, तब भी उसने मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लिया और पश्चात्ताप करने का जरा भी इरादा नहीं दिखाया। अपनी पत्नी की कारगुजारियों के संबंध में, मुझे परमेश्वर के वचनों का एक अंश मिला जिसमें कहा गया था : “भाइयों-बहनों में से जो लोग हमेशा अपनी नकारात्मकता का गुबार निकालते रहते हैं, वे शैतान के अनुचर हैं और वे कलीसिया को परेशान करते हैं। ऐसे लोगों को अवश्य ही एक दिन निकाल और हटा दिया जाना चाहिए। परमेश्वर में विश्वास रखते हुए अगर लोगों के पास परमेश्वर का भय मानने वाला दिल न हो, परमेश्वर की आज्ञा मानने वाला दिल न हो, तो ऐसे लोग न सिर्फ परमेश्वर के लिए कोई कार्य कर पाने में असमर्थ होंगे, बल्कि वे परमेश्वर के कार्य में बाधा डालने वाले और उसकी उपेक्षा करने वाले लोग बन जाएंगे। परमेश्वर में विश्वास करना किन्तु उसकी आज्ञा का पालन न करना या उसका भय न मानना और उसका प्रतिरोध करना, किसी भी विश्वासी के लिए सबसे बड़ा कलंक है। यदि विश्वासी अपनी वाणी और आचरण में हमेशा ठीक उसी तरह लापरवाह और असंयमित हों जैसे अविश्वासी होते हैं, तो ऐसे लोग अविश्वासी से भी अधिक दुष्ट होते हैं; ये मूल रूप से राक्षस हैं। जो लोग कलीसिया के भीतर विषैली, दुर्भावनापूर्ण बातों का गुबार निकालते हैं, भाई-बहनों के बीच अफवाहें व अशांति फैलाते हैं और गुटबाजी करते हैं, तो ऐसे सभी लोगों को कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिए था। अब चूँकि यह परमेश्वर के कार्य का एक भिन्न युग है, इसलिए ऐसे लोग नियंत्रित हैं, क्योंकि उन्हें निश्चित रूप से बाहर निकाला जाना है। शैतान द्वारा भ्रष्ट ऐसे सभी लोगों के स्वभाव भ्रष्ट हैं। कुछ के स्वभाव पूरी तरह से भ्रष्ट हैं, जबकि अन्य लोग इनसे भिन्न हैं : न केवल उनके स्वभाव शैतानी हैं, बल्कि उनकी प्रकृति भी बेहद विद्वेषपूर्ण है। उनके शब्द और कृत्य न केवल उनके भ्रष्ट, शैतानी स्वभाव को प्रकट करते हैं, बल्कि ये लोग असली पैशाचिक शैतान हैं। उनके आचरण से परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी और विघ्न पैदा होता है; इससे भाई-बहनों के जीवन प्रवेश में विघ्न पड़ता है और कलीसिया के सामान्य कार्यकलापों को क्षति पहुंचती है। आज नहीं तो कल, भेड़ की खाल में छिपे इन भेड़ियों का सफाया किया जाना चाहिए, और शैतान के इन अनुचरों के प्रति एक सख्त और अस्वीकृति का रवैया अपनाया जाना चाहिए। केवल ऐसा करना ही परमेश्वर के पक्ष में खड़ा होना है; और जो ऐसा करने में विफल हैं वे शैतान के साथ कीचड़ में लोट रहे हैं(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, जो सत्य का अभ्यास नहीं करते हैं उनके लिए एक चेतावनी)। मेरी पत्नी के कारनामे ठीक वैसे ही थे जैसे परमेश्वर ने बयाँ किए हैं। पहले वह अक्सर सत्य को विकृत किया करती थी, अगुआओं और कर्मियों की आलोचना किया करती थी, यहां तक कि भाई-बहनों, अगुआओं और कर्मियों के बीच लड़ाई-झगड़ा करवा देती थी। अब वह फिर से अपनी पुरानी चालबाजियों पर उतर आई थी, लापरवाही से काम करती, अगुआ को कर्तव्य करने से रोकती और कलीसिया के काम को बुरी तरह प्रभावित करती थी। पिछली कलीसिया में हमारे अगुआ ने उसके बुरे व्यवहार का विश्लेषण किया था, लेकिन उसमें अभी भी आत्म-जागरूकता की कमी थी और पश्चात्ताप नहीं कर रही थी। जो कोई उसकी मदद करने की कोशिश करता, वह उससे डाह रखती और मौका मिलते ही उन पर प्रहार करती। यह स्पष्ट था कि उसने थोड़ा-सा भी सत्य नहीं स्वीकारा था, बल्कि उसे सत्य से घृणा थी, सत्य का तिरस्कार करती थी। उसके ये व्यवहार केवल भ्रष्टता या एक बार किए अपराधों की सामान्य अभिव्यक्ति नहीं थे, बल्कि वह इस तरह की बाधा और विघ्न डालती रहती थी और उसे दी गई कोई भी सलाह या समझाना-बुझाना उसके तौर-तरीकों में बदलाव नहीं ला पा रहा था। यह एक दुर्भावनापूर्ण प्रकृति का प्रकटीकरण था! कुकर्मियों का सार सत्य से घृणा और उसका तिरस्कार करना तथा बरसों की आस्था के बाद भी सच्चा पश्चात्ताप न करना होता है। परमेश्वर के वचनों के प्रकाशन पर विचार करते हुए, मैंने महसूस किया कि मेरी पत्नी कुकर्मी है, देर-सबेर उसे कलीसिया से निकाल दिया जाएगा। लेकिन बरसों की आस्था के बाद, मैं उसका निष्कासन सह नहीं सकता था—इस बारे में सोचने मात्र से मुझे बेहद पीड़ा हो रही थी। हालांकि मुझे पता था कि उसका अपरिहार्य निष्कासन उसके अपने ही कुकर्मों का फल था, उसने खुद ही अपनी कब्र खोदी थी, फिर भी मैं यह सब होते देख नहीं सकता था और उसे बचाना चाहता था। तभी कलीसिया अगुआ ने मुझसे अपनी पत्नी का मूल्यांकन लिखने को कहा। उस समय मैंने सोचा : “मैं केवल उन कुकर्मों के बारे में लिख देता हूँ जिनके बारे में इस कलीसिया के भाई-बहनों को पता है और पिछली कलीसिया में हुई घटनाओं को छोड़ देता हूँ जिनके बारे में यहाँ के लोग नहीं जानते। शायद तब उसे कलीसिया में बने रहने का मौका मिल जाए।” तो मैंने बेपरवाही से हाल ही में हुए कुकर्मों का एक संक्षिप्त-सा सारांश लिखकर उन्हें सौंप दिया। कुछ दिनों के बाद, अगुआ ने मुझसे कहा : “तुमने एक बहुत ही बुनियादी मूल्यांकन लिखकर दिया है। क्या तुमने अपनी पत्नी के सभी कुकर्मों की जानकारी दे दी थी? अपने आचरण में, हमें परमेश्वर की जांच को स्वीकारना चाहिए। हमें अपने निजी भावनात्मक जुड़ाव के कारण तथ्यों और वास्तविकता को छिपाना नहीं चाहिए।” अगुआ की बातों से मेरे अंदर उथल-पुथल मच गई। दरअसल, मैंने अपनी पत्नी के सभी कुकर्मों की जानकारी नहीं दी थी, क्योंकि अगर मैंने ऐसा किया, तो उसका जो पूरा व्यवहार रहा है, उसके आधार पर, उसका कुकर्मी साबित होना तय है और तब उसे तुरंत की निष्कासित कर दिया जाएगा। उसके अड़ियल रवैये को देखते हुए, अगर उसे वाकई निकाल दिया गया और उसे पता चल गया कि सबूत मैंने दिए हैं, तो फिर दिन-रात वह मुझसे लड़ाई-झगड़ा करेगी। इसके अलावा, अगर हमारे बच्चों को पता चला कि क्या हुआ है, तो क्या वे यह नहीं कहेंगे कि मैंने अपनी पत्नी के साथ एक बाहरी व्यक्ति की तरह व्यवहार किया है? लेकिन अगर मैंने अपने मूल्यांकन में सच्ची बातें नहीं लिखीं, तो यह तथ्यों और वास्तविकता को छुपाकर एक कुकर्मी को बचाना होगा, उसे बुराई करते रहने की छूट देकर कलीसिया के काम में बाधा डालना होगा। मैं बेहद दुखी था, मन में जबर्दस्त उधेड़बुन चल रही थी और तय नहीं कर पा रहा था कि क्या करूँ।

घर लौटने पर, मुझे परमेश्वर के वचनों के निम्नलिखित अंश मिले : “तुझे शीघ्रातिशीघ्र अपनी भावनाओं को निकाल फेंकना चाहिए; मैं भावनाओं के वशीभूत कार्य नहीं करता हूँ, बल्कि धार्मिकता का प्रयोग करता हूँ। यदि तेरे माता-पिता कुछ भी ऐसा करते हैं जिससे कलीसिया को कोई लाभ नहीं होता, तो वे बच नहीं सकते हैं! मेरे इरादे तेरे समक्ष प्रकट कर दिए गए हैं और तू उनकी उपेक्षा नहीं कर सकता है। बल्कि, तुझे अपना पूरा ध्यान उन पर लगाना चाहिए और पूरे मनोयोग से उनका पालन करने के लिए शेष सब कुछ छोड़ देना चाहिए। मैं सदैव तुझे अपने हाथों में रखूँगा। सदैव डरपोक मत बन और अपने पति या पत्नी के नियंत्रण के अधीन मत रह; तुझे मेरी इच्छा अवश्य पूरी होने देना चाहिए(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 9)। “शैतान कौन है, दुष्टात्माएँ कौन हैं और परमेश्वर के शत्रु कौन हैं, क्या ये वे परमेश्वर के प्रतिरोधी नहीं जो परमेश्वर में विश्वास नहीं रखते? क्या ये वे लोग नहीं, जो परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं? क्या ये वे नहीं, जो विश्वास करने का दावा तो करते हैं, परंतु उनमें सत्य नहीं है? क्या ये वे लोग नहीं, जो सिर्फ़ आशीष पाने की फ़िराक में रहते हैं जबकि परमेश्वर के लिए गवाही देने में असमर्थ हैं? तुम अभी भी इन दुष्टात्माओं के साथ घुलते-मिलते हो और उनके प्रति साफ़ अंतःकरण और प्रेम रखते हो, लेकिन क्या इस मामले में तुम शैतान के प्रति सदिच्छाओं को प्रकट नहीं कर रहे? क्या तुम दानवों के साथ मिलकर षड्यंत्र नहीं कर रहे? यदि आज कल भी लोग अच्छे और बुरे में भेद नहीं कर पाते और परमेश्वर की इच्छा जानने का कोई इरादा न रखते हुए या परमेश्वर की इच्छाओं को अपनी इच्छा की तरह मानने में असमर्थ रहते हुए, आँख मूँदकर प्रेम और दया दर्शाते रहते हैं, तो उनके अंत और भी अधिक ख़राब होंगे। यदि कोई देहधारी परमेश्वर पर विश्वास नहीं करता, तो वह परमेश्वर का शत्रु है। यदि तुम शत्रु के प्रति साफ़ अंतःकरण और प्रेम रख सकते हो, तो क्या तुममें धार्मिकता की समझ का अभाव नहीं है? यदि तुम उनके साथ सहज हो, जिनसे मैं घृणा करता हूँ, और जिनसे मैं असहमत हूँ और तुम तब भी उनके प्रति प्रेम और निजी भावनाएँ रखते हो, तब क्या तुम अवज्ञाकारी नहीं हो? क्या तुम जानबूझकर परमेश्वर का प्रतिरोध नहीं कर रहे हो? क्या ऐसे व्यक्ति में सत्य होता है? यदि लोग शत्रुओं के प्रति साफ़ अंतःकरण रखते हैं, दुष्टात्माओं से प्रेम करते हैं और शैतान पर दया दिखाते हैं, तो क्या वे जानबूझकर परमेश्वर के कार्य में रुकावट नहीं डाल रहे हैं? वे लोग जो केवल यीशु पर विश्वास करते हैं और अंत के दिनों के देहधारी परमेश्वर को नहीं मानते, और जो ज़बानी तौर पर देहधारी परमेश्वर में विश्वास करने का दावा करते हैं, परंतु बुरे कार्य करते हैं, वे सब मसीह-विरोधी हैं, उनकी तो बात ही क्या जो परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते। ये सभी लोग विनाश की वस्तु बनेंगे(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचनों का न्याय और प्रकाशन हृदयविदारक था। मैं अच्छी तरह जानता था कि मेरी पत्नी में एक कुकर्मी का सार है और उसे निकाल दिया जाना चाहिए, लेकिन उसके प्रति अपने भावनात्मक लगाव के कारण, मैं उसे निष्कासित होते और उद्धार पाने का मौका गँवाते नहीं देख सकता था। मुझे यह भी चिंता थी कि जब मेरी पत्नी और बच्चों को पता चलेगा कि मूल्यांकन मैंने दिया है तो वे मुझे पत्थरदिल और परिवार के प्रति बेईमान कहेंगे। मैंने तथ्य छुपाए, परमेश्वर और भाई-बहनों को बरगलाने और धोखा देने के प्रयास में अपनी पत्नी के व्यवहार का केवल एक संक्षिप्त और सतही मूल्यांकन किया। मैं इस बात से अच्छी तरह वाकिफ था कि अगर मेरी पत्नी कलीसिया में बनी रही, तो वह वहाँ के जीवन को बाधित करती रहेगी, लेकिन फिर भी मैंने जोखिम उठाकर उसके कुकर्मों पर पर्दा डाला और जरा भी यह नहीं सोचा कि इससे कलीसिया के काम को कितना नुकसान हो सकता है। क्या मैं एक कुकर्मी को बचाकर परमेश्वर का विरोध कर, कलीसिया और भाई-बहनों को नुकसान नहीं पहुंचा रहा था? मैं अच्छे-बुरे का भेद भूल गया, भावनाओं में बह गया, एक कुकर्मी के प्रति भावुकता और प्रेमपूर्ण लगाव के आगे झुक गया। मैं कितना बेवकूफ था! मैंने विचार किया कि सत्य का अभ्यास करने के बजाय मेरा भावनात्मक जुड़ाव की लगातार तरफदारी करने का कारण इन शैतानी विषों का जड़ें जमाए होना था कि “मनुष्य निर्जीव नहीं है; वह भावनाओं से मुक्त कैसे हो सकता है?” और “विवाह-बंधन में बँधकर पुरुष और स्त्री का रिश्ता गहरा हो जाता है,” और इस कारण मैं अपने भावनात्मक रिश्तों को बहुत अधिक महत्व दे रहा था और सोच रहा था कि इंसान को स्नेही और वफादार होना चाहिए। मैं इन शैतानी फलसफों को सकारात्मक चीज मानने लगा था और नतीजा यह हुआ कि मैं अच्छे-बुरे और सही-गलत में अंतर नहीं कर पा रहा था, मेरे आचरण में सिद्धांत का अभाव था, भावनात्मक संबंध बनाए हुए था, कुकर्मी का बचाव कर उसे कलीसियाई जीवन को बाधित करने और कलीसिया के काम में रुकावट पैदा करने दे रहा था। क्या मैं कुकर्मी के बुरे कामों में खुलेआम सहभागी नहीं था? इस बात का एहसास होने पर मैं थोड़ा डर गया, मुझे बहुत शर्म आई और पछतावा भी हुआ। यदि मैंने सत्य का अभ्यास कर अपनी पत्नी के कुकर्मों का पर्दाफाश किया होता ताकि मेरे भाई-बहनों को उसकी समझ आए और उसे तुरंत कलीसिया से निकाला जा सके, तो कलीसियाई जीवन में आने वाले व्यवधानों से बचा जा सकता था। मैंने अपनी पत्नी के तमाम दुर्व्यवहारों पर विचार किया—हो सकता है कि उसमें थोड़ा-बहुत उत्साह रहा हो, लेकिन उसने कभी सत्य नहीं स्वीकारा, और केवल कलीसिया में अशांति फैलाने का ही काम किया। कलीसिया ने उसे पश्चात्ताप करने के कई अवसर दिए, मैंने और मेरे भाई-बहनों ने उसके साथ कई बार संगति की, यहां तक कि उसकी काट-छाँट भी की, उसे कई चेतावनियां दीं, लेकिन उसने न तो कभी सत्य स्वीकारा और न ही पश्चात्ताप किया। उल्टे भाई-बहनों की आलोचना कर उन पर हमला किया। अंततः मैं जान गया कि वह सत्य से घृणा और उसका तिरस्कार करती थी। वह ठीक उस खरपतवार की तरह है जिसे अंत के दिनों के अपने कार्य में परमेश्वर ने उजागर किया है। मैंने प्रकाशितवाक्य के एक अंश पर विचार किया, जो कहता है : “जो अन्याय करता है, वह अन्याय ही करता रहे; और जो मलिन है, वह मलिन बना रहे; और जो धर्मी है, वह धर्मी बना रहे; और जो पवित्र है; वह पवित्र बना रहे(प्रकाशितवाक्य 22:11)। सच है, जो कुकर्मी होता है, वह हमेशा कुकर्मी ही रहता है। चाहे जो हो, वह किसी भी स्थिति में बदलने वाली नहीं थी।

फिर मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश मिला : “प्रत्येक व्यक्ति के परिणाम का निर्धारण उसके आचरण से पैदा होने वाले सार के अनुसार होता है और इसका निर्धारण सदैव उचित तरीक़े से होता है। कोई भी दूसरे के पापों को नहीं ढो सकता; यहाँ तक कि कोई भी दूसरे के बदले दंड नहीं पा सकता। यह सुनिश्चित है। ... अंत में, धार्मिकता करने वाले धार्मिकता ही करते हैं और बुरा करने वाले, बुरा ही करते हैं। अंततः धार्मिकों को बचने की अनुमति मिलेगी, जबकि बुरा करने वाले नष्ट हो जाएंगे। पवित्र, पवित्र हैं; वे गंदे नहीं हैं। गंदे, गंदे हैं और उनमें पवित्रता का एक भी अंश नहीं है। जो लोग नष्ट किए जाएँगे, वे सभी दुष्ट हैं और जो बचेंगे वे सभी धार्मिक हैं—भले ही बुरा कार्य करने वालों की संतानें धार्मिक कर्म करें और भले ही किसी धार्मिक व्यक्ति के माता-पिता दुष्टता के कर्म करें। एक विश्वास करने वाले पति और विश्वास न करने वाली पत्नी के बीच कोई संबंध नहीं होता और विश्वास करने वाले बच्चों और विश्वास न करने वाले माता-पिता के बीच कोई संबंध नहीं होता; ये दोनों तरह के लोग पूरी तरह असंगत हैं। विश्राम में प्रवेश से पहले एक व्यक्ति के रक्त-संबंधी होते हैं, किंतु एक बार जब उसने विश्राम में प्रवेश कर लिया, तो उसके कोई रक्त-संबंधी नहीं होंगे। जो अपना कर्तव्य करते हैं, उनके शत्रु हैं जो कर्तव्य नहीं करते हैं; जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं और जो उससे घृणा करते हैं, एक दूसरे के उलट हैं। जो विश्राम में प्रवेश करेंगे और जो नष्ट किए जा चुके होंगे, दो अलग-अलग असंगत प्रकार के प्राणी हैं। जो प्राणी अपने कर्तव्य निभाते हैं, बचने में समर्थ होंगे, जबकि वे जो अपने कर्तव्य नहीं निभाते, विनाश की वस्तु बनेंगे; इसके अलावा, यह सब अनंत काल के लिए होगा। ... आज लोगों में एक दूसरे के बीच भौतिक संबंध होते हैं, उनके बीच खून के रिश्ते होते हैं, किंतु भविष्य में, यह सब ध्वस्त हो जाएगा। विश्वासी और अविश्वासी संगत नहीं हैं, बल्कि वे एक दूसरे के विरोधी हैं। वे जो विश्राम में हैं, विश्वास करेंगे कि कोई परमेश्वर है और उसके प्रति समर्पित होंगे, जबकि वे जो परमेश्वर के प्रति अवज्ञाकारी हैं, वे सब नष्ट कर दिए गए होंगे। पृथ्वी पर परिवारों का अब और अस्तित्व नहीं होगा; तो माता-पिता या संतानों या पतियों और पत्नियों के बीच के रिश्ते कैसे हो सकते हैं? विश्वास और अविश्वास की अत्यंत असंगतता से ये संबंध पूरी तरह टूट चुके होंगे!(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, परमेश्वर और मनुष्य साथ-साथ विश्राम में प्रवेश करेंगे)। परमेश्वर के वचनों से मैंने जाना कि परमेश्वर लोगों के परिणाम उनके सार के आधार पर निर्धारित करता है। परमेश्वर कुकर्मियों को नहीं बचाता, वह उन्हें बचाता है जो सत्य स्वीकार कर पश्चात्ताप करते हैं और जो लोग सत्य नहीं स्वीकारते, उन्हें निकाल देता है, बल्कि उनसे घृणा और तिरस्कार भी करता है। अपने सार में, मेरी पत्नी कुकर्मी है, उसे परमेश्वर नहीं बचा सकता। अगर उसे कलीसिया में रहने भी दिया जाए, तो भी अंततः उसे निकाल दिया जाएगा, लगातार किए जाने वाले कुकर्मों के कारण उसे और अधिक कठोर दंड भुगतना पड़ेगा। मैंने परमेश्वर के धार्मिक स्वभाव को नहीं समझा था, बस यही सोचता था कि अपने सांसारिक भावनात्मक रिश्तों को कैसे बचाकर रखूँ, मैं सत्य का अभ्यास नहीं कर रहा था और यही मानकर चल रहा था कि अगर मैं अपनी पत्नी के कुकर्मों को छुपाकर रखूँगा, तो वह कलीसिया में रहते हुए किसी न किसी तरह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने का रास्ता बना लेगी। मेरी धारणाएँ कितनी हास्यास्पद थीं! अंत के दिनों में, परमेश्वर “प्रत्येक को उसकी किस्म के अनुसार वर्गीकृत” करने का कार्य करता है। वह प्रत्येक व्यक्ति का गंतव्य और परिणाम उसके कार्यों, और प्रकृति सार के आधार पर निर्धारित करता है। वह अच्छे को अच्छे के साथ और बुरे को बुरे के साथ जोड़ता है। मेरी पत्नी को अपने कुकर्मों के परिणाम स्वीकारने होंगे क्योंकि यही परमेश्वर का धार्मिक स्वभाव कहता है। मुझे परमेश्वर के वचनों का एक और अंश मिला, जिसमें कहा गया है : “तुम सभी कहते हो कि तुम परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील हो और कलीसिया की गवाही की रक्षा करोगे, लेकिन वास्तव में तुम में से कौन परमेश्वर के बोझ के प्रति विचारशील रहा है? अपने आप से पूछो : क्या तुम उसके बोझ के प्रति विचारशील रहे हो? क्या तुम उसके लिए धार्मिकता का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुम मेरे लिए खड़े होकर बोल सकते हो? क्या तुम दृढ़ता से सत्य का अभ्यास कर सकते हो? क्या तुममें शैतान के सभी दुष्कर्मों के विरूद्ध लड़ने का साहस है? क्या तुम अपनी भावनाओं को किनारे रखकर मेरे सत्य की खातिर शैतान का पर्दाफ़ाश कर सकोगे? क्या तुम मेरी इच्छा को स्वयं में पूरा होने दोगे? सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में क्या तुमने अपने दिल को समर्पित किया है? क्या तुम ऐसे व्यक्ति हो जो मेरी इच्छा पर चलता है?(वचन, खंड 1, परमेश्वर का प्रकटन और कार्य, आरंभ में मसीह के कथन, अध्याय 13)। परमेश्वर के वचनों से मुझे और भी अधिक पछतावा और शर्मिंदगी हुई। मैंने अपने भावनात्मक लगाव को अपने कार्यों पर हावी होने दिया, परमेश्वर के साथ चालबाजियाँ कीं और उसे धोखा दिया, भाई-बहनों को नुकसान पहुंचाया और स्वच्छता कार्य की सामान्य प्रगति में बाधा डाली। मैं अब और भावनाओं के अनुसार कार्य नहीं कर सकता था, मुझे परमेश्वर की इच्छा का ध्यान रखना था, सिद्धांत के अनुसार आचरण करना था, अपनी पत्नी के सभी कुकर्मों को उजागर कर उसे कलीसिया के काम को बाधित करने देने से रोकना था। मैंने अपनी पत्नी के सभी बुरे कामों को और कलीसियाई अवधि के दौरान देखे गए उसके व्यवहार के तौर-तरीकों को लिखा और अपना मूल्यांकन अगुआ को सौंप दिया। इसके तुरंत बाद, कलीसिया के अगुआओं और कर्मियों ने तय किया कि मेरी पत्नी का पूरा आचरण एक कुकर्मी का है। पूरी कलीसिया के मतों के आधार पर उसे बहिष्कृत करने का निर्णय लिया गया। उसके निष्कासन के बाद, कलीसियाई जीवन फिर से सामान्य हो गया। मैंने वाकई परमेश्वर की धार्मिकता देखी और मुझे अच्छा लगा कि मैंने एक कुकर्मी को उजागर कर कलीसिया से निकालने में भूमिका निभाई। परिणामस्वरूप मैंने बहुत अधिक शांति और ठहराव की अनुभूति की। परमेश्वर के वचन पढ़कर ही मैं भावनात्मक लगाव की बाधाओं पर विराम लगा पाया, अपनी पत्नी के कुकर्मों को उजागर कर पाया और कलीसिया के काम की रक्षा करने में अपनी भूमिका निभा पाया। परमेश्वर का धन्यवाद!

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